प्रस्तावना / Introduction –

आधुनिक लोकतंत्र की नीव ब्रिटिश थिंकर जॉन लॉक ने रखी जो आशावादी सिद्धांतो पर आधारित थी इससे पहले राज्य होगा और उसकी कानून व्यवस्था होगी यह संकल्पना थॉमस हॉब्स ने रखी थी। जिससे प्रभावित होकर जॉन लॉक ने अपने सिद्धांत दुनिया के सामने रखे जिससे प्रभावित होकर दुनिया का पहला लिखित संविधान अमरीका ने बनाया।

जॉन लॉक के बारे लिखने का मकसद लोकतंत्र की नीव कैसे रखी गई और इसके लिए इतिहास में कैसे संघर्ष हुवा है यह जानना है। यह विषय हमने यहां लेने का कारन लोकतंत्र का मतलब केवल वोटिंग करना नहीं होता इसके लिए इस थिंकर ने क्या कारन दिए हे यह हम जानने की कोशिश करेंगे।

जॉन लॉक ने आज के आधुनिक लोकतंत्र की नीव १७ वी सदी में रखी थी इसके लिए उन्होंने जो तर्क और तथ्य दिए थे वह हमें जिंदगी जीते समय काफी उपयुक्त रहेंगे ऐसा मेरा मानना है क्यूंकि लोकतंत्र के बारे में हमारा अज्ञान ही कानून व्यवस्था का बिगड़ने का काम करता है।

इसलिए जागृत नागरिक की जिम्मेदारी होती हे की यह व्यवस्था सही तरीके से जान ले और इसके लिए जॉन लॉक को समझना काफी महत्वपूर्ण है। यह आर्टिकल सभी वर्ग के लिए एक अभ्यास का विषय रहेगा जिसमे स्पर्धा परीक्षा देने वाले विद्यार्थी से लेकर सामान्य जीवन जीने वाले नागरिक तक उपयोग में आएगा।

जॉन लॉक (१६३२ -१७०४) / John Locke –

जॉन लॉक की शुरुवाती जिंदगी ब्रिस्टल में बीती जहा अपने उम्र के १० साल में उन्होंने ब्रिटेन में अंतर्गत संघर्ष देखा था जो राजव्यवस्था तथा ब्रिटिश पार्लियामेंट में था। उन्होंने अपनी शिक्षा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पूरी की जिसमे मेडिकल डिग्री भी हासिल की थी।

जॉन लॉक के पिताजी पेशे से वकील थे और ब्रिटिश पार्लियामेंट के घुड़सवार सेना में काम करते थे। जिसके कारन उनके शिक्षा के बाद वह राजनितिक लीडर अन्थोनी एश्ले कूपर के संपर्क में आए और उनके मेडिकल सलाहकार बने जिससे उन्होंने राजनीती को बड़े नजदीक से देखा और वह खुद राजनीती में रहकर एक थिंकर के रूप में काम करते रहे।

जॉन लॉक पर थॉमस हॉब्स का काफी प्रभाव रहा था जिसके कारन उन्होंने वही सिद्धांत का अध्ययन करके अपने विचार उसमे सम्मिलित किये और नए तरीके से समाज के सामने रखे जिससे वह काफी प्रसिद्ध हुए।

जॉन लॉक की फिलॉसोफी / Philosophy of John Locke –

जैसे की हमने देखा की शुरुवाती दिनों में उनपर थॉमस हॉब्स के विचारो का खासा प्रभाव रहा था। उनकी विचारो को वह नकारात्मक सोच मानते थे इसलिए उन्होंने वही विचारो को नए तरीके से दुनिया के सामने रखा। जॉन लॉक लोगो के व्यक्तिगत अधिकारों को काफी महत्त्व देते थे और उसमे भी सम्पत्ती का अधिकार के लिए वह काफी आग्रही रहे है।

इसलिए उन्हें पूंजीवादी विचारक भी कहा जाता है। पूंजीवाद की सही नीव एडम स्मिथ ने आगे १०० साल बाद रखी थी जिसमे कार्ल मार्क्स के विचारो ने लोकतंत्र के मॉडल में काफी बदलाव देखने को मिले। जिसमे सोशल कॉन्ट्रेक्ट, स्टेट ऑफ़ नेचर के बारे में सकारात्मक पद्धती से अपने विचार रखने कोशिश की गयी।

परंपरागत राजव्यवस्था को उन्होंने सिरे से नकारा और एक ऐसे व्यवस्था की रचना उन्होंने रखी, जिसमे समाज के संमती से राज्य की निर्मिती होगी और वह समाज के हितो के सुरक्षा के लिए कानून व्यवस्था का निर्माण करेगा। अगर यह व्यवस्था समाज के हित के विरोध में कार्य करने लगे तो उसको शांती पूर्ण तरीके से विद्रोह करने का अधिकार होगा।

थॉमस हॉब और जॉन लॉक / Thomas Hobbs & John Locke –

थॉमस हॉब्स (१५८८ – १६७९) यह दौर में जॉन लॉक अपने शुरुवाती विचारधारा में काम कर रहे थे जिसपर थॉमस हॉब्स के विचारो का प्रभाव रहा है। थॉमस हॉब्स जिस दौर में रहे वह दौर काफी हिंसक रहा था जिसमे रोमन कैथेलिक तथा प्रोटेस्टियन का संघर्ष उन्होंने देखा जहा कानून व्यवस्था नाम की चीज देखने को नहीं मिलती थी।

समाज और राज्य की रचना को थॉमस हॉब्स इससे पहले के स्थिती को कारन मानते थे जहा कानून व्यवस्था नाम की चीज नहीं थी और लोगो के जीवन की सुरक्षा के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। जॉन लॉक स्टेट ऑफ़ नेचर की व्यवस्था को इतना बुरा भी नहीं मानते थे और वहा भी लोग शांती पूर्ण तरीके से अपना जीवन जी रहे थे।

इसतरह से थॉमस हॉब्स की विचारधारा नकारात्मक विचारो पर आधारित थी और जॉन लॉक की विचारधारा सकारात्मक विचारो पर आधारित थी मगर दोनों का उद्देश्य समाज में राज्य की स्थापना करना और कानून व्यवस्था का निर्माण करना यही था।

नैसर्गिक अधिकार क्या है / What is Natural Rights –

जॉन लॉक का यह मानना था की समाज की रचना होने से पहले भी इंसान काफी बुद्धिजीवी था और इसी कारन उसको कानून व्यवस्था की जरुरत नहीं पड़ती थी वह खुद के अधिकार तथा दुसरो के अधिकारों का सम्मान करना जानता था।

जॉन लॉक ने जो नैसर्गिक अधिकारों की व्याख्या की थी वह तर्क के आधारपर कारणों को जानकर जिसमे उन्होंने परंपरागत मिले हुए अधिकारों को तर्कहीन माना तथा एक दूसरे के स्वतंत्रता का सम्मान करना और अपनी इच्छाओ के साथ साथ दुसरो के इच्छाओ का सम्मान करना यह नैसर्गिक अधिकार वह मानते है।

समाज की रचना होने से पहले भी लोग एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करते थे तथा जीवन का अधिकार और संपत्ती का अधिकार यह भगवान ने हमें दिए हुए अधिकार हे जिसमे नैसर्गिक चीजों के साथ अपनी मेहनत जोड़कर कर कोई भी व्यक्ती उसे अपनी संपत्ती बना सकता है ऐसा उनका मानना था।

स्टेट ऑफ़ नेचर सिद्धांत / State of Nature Theory –

थॉमस हॉब्स और जॉन लॉक की स्टेट ऑफ़ नेचर की थ्योरी अलग अलग तरीके से समाज व्यवस्था के निर्माण से पहले इंसान का जीवन कैसा हुवा करता था इसके बारे में बताती है। जॉन लॉक का मानना था की स्टेट ऑफ़ नेचर से समाज में परिवर्तित होना यह समय के साथ किया हुवा एक बदलाव था।

वही थॉमस हॉब्स का मानना था की स्टेट ऑफ़ नेचर यह अवस्था इंसान के लिए काफी असुरक्षित अवस्था थी जिसमे उसे अपने जीवन की सुरक्षा नहीं थी। जॉन लॉक यह स्टेट ऑफ़ नेचर को सकारात्मक तरीके से लोगो के सामने पेश करते है जिसमे लोग बुद्धिजीवी थे तथा वह एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना जानते थे।

जॉन लॉक कहते हे, भले ही स्टेट ऑफ़ नेचर की अवस्था में राज्य अथवा कानून व्यवस्था नाम की कोई व्यवस्था नहीं थी मगर फिर भी लोग अपने अधिकार शांतिपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करते थे।

सोशल कॉन्ट्रैक्ट सिद्धांत /Social Contract Theory –

जॉन लॉक दुनिया के सामने सोशल कॉन्ट्रैक्ट की थ्योरी अपने तरीके से रखते हे जिसमे वह कहते हे, पहले समाज के सभी लोगो ने मिलकर राज्य की रचना की यह इंसान के इतिहास में पहला सोशल कॉन्ट्रैक्ट रहा जिसको चलाने के लिए कोई व्यवस्था का निर्माण अबतक नहीं किया गया था।

जॉन लॉक कहते हे दूसरा सोशल कॉन्ट्रैक्ट की रचना इंसान ने न्यायव्यवस्था , कार्यपालिका तथा स्वतंत्र राज्य की व्यवस्था निर्माण की जो समाज में लोगो के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने का काम करेगी तथा कानून व्यवस्था को प्रस्थापित करने का काम करेगी।

जिस समय में जॉन लॉक ने अपने विचारो को रखा था उस दौर में यह विचार काफी क्रांतिकारक रहे है, आज हमें यह विचार काफी प्रचलित लगते है।प्रतिनिधिक लोकतंत्र का जन्म उस समय तक नहीं हुवा था मगर राजव्यवस्था लोगो के अधीन रहेगी यह विचार जॉन लॉक ने समाज के सामने रखे।

संमत्ती का सिद्धांत / Doctrine of Consent –

इससे पहले सोशल कॉन्ट्रेक्ट का सिद्धांत तथा व्यक्ती स्वतंत्र के बारे में कई थिंकर ने अपने विचार प्रकट किये थे मगर संमती की सिद्धांत जॉन लॉक ने पहली बार दुनिया के सामने रखा। जिसका मतलब था किसी राज्य की स्थापना करने के बाद उसको राज्य का दर्जा तथा कानून व्यवस्था को मान्यता लोगो से लेनी होगी।

हम सामान्य कॉन्ट्रैक्ट के सिद्धांत को जानते हे मगर शासक तथा शासित वर्ग में संमती होना जरुरी हे अन्यथा इस राज्य को न्यायिक दर्जा नहीं मिलेगा और लोग ऐसी राज्य व्यवस्था को सत्ता से उतार सकते है। ऐसे विचार इससे पहले किसी ने नहीं रखे थे।

आज जो हम चुनाव की प्रक्रिया हर पांच साल बाद देखते है यह जनता सर्वोच्च हे यह कहती है। समाज के हित के विरोध में काम करने वाले सत्ता को बदलने का अधिकार जॉन लॉक ने लोगो को दिया। इससे पहले राजा भगवान ने चुने हुए लोग होते थे जिसको नकारना बहुत बड़ा अपराध माना जाता था जिसे जॉन लॉक ने सिरे से ख़ारिज किया।

सामाजिक और राजनितिक समुदाय/ Social & Political Community –

जॉन लॉक ने समाज को दो हिस्सों में बाटा है, स्टेट ऑफ़ नेचर में जो लोग रहते थे उनको सामाजिक समुदाय माना हे और जिस समय राज्य की रचना की गयी तथा कानून व्यवस्था का निर्माण किया गया तभी राजनितिक समाज की रचना हुई ऐसा माना जाता है।

इससे पहले हमने सोशल कॉन्ट्रैक्ट के सिद्धांत को विस्तार से देखा इसी को राजनितिक समुदाय कहा जाता है। जिसमे समाज का हर एक नागरिक राजनीती से जुड़ जाता है। इसलिए राज्य की व्यवस्था पर समाज का अंकुश होना जरुरी हे यही उनकी संमती का सिद्धांत द्वारा हमें दर्शाता है।

आज हम देखते हे की लोग कहते हे हम राजनीती से दूर रहते है, राजनीती यह बुरी चीज है, मगर जॉन लॉक का यह विचार कहता है जिस दिन हमने राज्य और कानून व्यवस्था की रचना की उसी दिन समाज के सभी लोग राजनितिक समुदाय के रूप में राजनीती का हिस्सा बन गए हे इसलिए राजनीती से हम दूर रहते हे, ऐसा कहना मतलब लोकतंत्र को नकारना होता है।

राजनितिक शक्ती का पृथक्करण / Separation of Power –

जॉन लॉक अपने विचार सकारात्मक दृष्टिकोण से रखने की कोशिश करते है, जिसमे समाज के लोग जिम्मेदार हे ऐसा उनका मानना है और शासक को चुनने के लिए वह सक्षम है ऐसा उनका मानना है। जॉन लॉक के पहले पुरे यूरोप में सामाजिक क्रांती हुई जिससे लोगो ने धर्म और राजनीती को अलग करने के लिए काफी संघर्ष किया।

समाज की रचना होने के बाद कई दिनों तक धर्म और राजसत्ता ने समाज पर अपना वर्चस्व प्रस्थापित किया जिसका विरोध मार्टिन लूथर जैसे लोगो ने किया और समाज में बदलाव होने लगे और धर्म ने अपने आप को दो कदम पीछे लेने का निर्णय लिया जिसके कारन पश्चिमी देशो में सबसे पहले तर्कशास्त्र पर आधारित शिक्षा व्यवस्था का निर्माण हुवा और विज्ञानं में काफी बदलाव हमें इस समय में देखने को मिलते है।

जॉन लॉक ने लेजिस्लेटिव, एग्जीक्यूटिव तथा फेडरेशन की व्यवस्था का निर्माण करने के सिद्धांत रखे जिसमे लोगो के व्यक्तिगत अधिकार तथा कानून व्यवस्था प्रस्थापित करने के लिए हर एक अपने परिक्षेत्र में काम करेगा ऐसे सिद्धांत रखे जिसे बाद में फ्रांस तथा इंग्लैंड के दूसरे दार्शनिक ने काफी विकसित किए। जिससे कोई भी व्यवस्था पूर्ण रूप से शक्तिशाली न रहे और समाज के हित में काम करे।

भारत में (१६३२ -१७०४) समय में स्थिती –

जिस समय पश्चिमी देशो में शिक्षा की क्रांती ने ज्ञान और विज्ञानं को विकसित किया था और लोग अपने स्वतंत्रता तथा अधिकार के बारे में जानने लगे थे और तर्कशास्त्र के आधारपर समाज की गलत धारणाओं का विरोध कर रहे थे।

यह समय पश्चिमी यूरोप सामाजिक क्रांती के आखरी पड़ाव पर था और राजनितिक उलटपुलथ को शुरुवात होने लगी थी जिसके अंतर्गत इंग्लैंड के राजा को सरे आम मार दिया गया था तथा राजव्यवस्था कुछ समय के लिए ख़त्म हो गयी थी।

भारत में यह दौर था सामाजिक क्रांती का जहा कई सारे संतो के द्वारा समाज में जागृती का काम चल रहा था। अंग्रेजो ने १६०० में अपनी पहली कॉलोनी सूरत प्रस्थापित की थी तथा वह भारत में व्यापार के उद्देश्य से अपने आप को प्रस्थापित कर रहे थे जो पहले मुग़ल शासक का समय था।

जॉन लॉक की/पर बेहतरीन किताबे /Best books of /on John Locke –

  • Two Treaties of Government – John Locke
  • An Essay concerning human understanding – John Locke
  • On Toleration – John Locke
  • Locke – Samuel Rickless
  • Locke -A Biography – Roger Woolhouse
  • The Cambridge Companion to Locke – Vere Chappell
    ( यह किताबे अंग्रेजी में हे और अमझोन वेबसाइट पर उपलब्ध हे, जो यहाँ क्लिक करके आप इन्हे खरीद सकते है )

निष्कर्ष /Conclusion –

इसतरह से हमने जॉन लॉक के विचारो को देखते हुए समझा की उन्होंने अपने विचार थॉमस हॉब्स के नकारात्मक सोशल कॉन्ट्रैक्ट तथा व्यक्तिगत अधिकार के बारे में बताए। जॉन लॉक ने राज्य तथा कानून व्यवस्था निर्माण होने से पहले समाज की स्थिती कैसे थी इसका विश्लेषण करने की कोशिश की है।

जिसमे उन्होंने कानून व्यवस्था न होते हुए भी समाज शांतिपूर्ण तरीके से अपना जीवन जी रहा था और राज्य तथा कानून की व्यवस्था का स्वीकार उसने समाज के विकास के साथ साथ किया है। कोई भी व्यवस्था निर्माण करने का का मूल उद्देश्य लोगो के अधिकार तथा कानून व्यवस्था का निर्माण करना हे ऐसा उनका मानना था।

जो भी सत्ता लोगो के हित के विरोध में काम करेगी इसके विरोध में विद्रोह करने का अधिकार समाज को हे ऐसा उनका मानना है। उन्होंने परंपरागत राजव्यवस्था को सीधे सीधे नाकारा और समाज के लिए काम करने वाली व्यवस्था को पुरस्कृत करने की कोशिश की है।

जॉन स्टुअर्ट मिल का राजनीतिक दर्शन 

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