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प्रस्तावना / Introduction –

जॉन स्टुअर्ट मिल एक इंग्लिश विचारक /फिलॉसोफर और अर्थशास्त्री रहे हे, इनके विचार जानने की कोशिश इस आर्टिकल द्वारा हम करेंगे। जिसमे उनके लोकतंत्र के बारे में क्या विचार रहे थे तथा बोलने की आझादी क्या होती हे यह हम देखेंगे। आधुनिक लोकतंत्र पर जिन महान दार्शनिक बुद्धिजीवी लोगो का प्रभाव रहा हे इनमे से एक जॉन स्टुअर्ट मिल के बारे में हम जानने की कोशिश करेंगे।

जिस दौर में जॉन स्टुअर्ट मिल का जन्म हुवा था वह दौर था राजतन्त्र की समाप्ती का तथा औद्योगिक क्रांती, पुरे दुनिया भर में पश्चिमी विचारको का प्रभाव रहा था। यूरोपीय देश वसाहतवाद तथा व्यापार के माध्यम से पूरी दुनिया का भ्रमण कर रहे थे और अपने आर्थिक व्यापार को पूंजीवाद से बढ़ा रहे थे।

जॉन स्टुअर्ट मिल के विचार भविष्य के लिए, लोकतंत्र के महत्वपूर्ण मापदंड देके गए, जिसमे “बोलने की आझादी” तथा “प्रतिनिधिक लोकतंत्र” की विचारधारा जिसने पूरी दुनिया पर प्रभाव डाला और दूसरे विश्व युद्ध के बाद राजतन्त्र तथा वसाहतवाद धीरे धीरे ख़त्म होते गया और लोकतंत्र की निव रखी गयी।

यह लोकतंत्र सामान्य लोगो के लिए कितना कारगर साबित हुवा हे यह चिंतन का विषय हे मगर राजतन्त्र की शोषणकारी व्यवस्था का अंत पश्चिमी विचारको के वैचारिक क्रांति की वजह से संभव हुवा है।

जॉन स्टुअर्ट मिल (१८०६ -१८७३) / John Stuart Mill (1806 -1873)-

उनके पिताजी यह खुद एक दार्शनिक फिलोसोफर रहे हे जो ब्रिटिश इंडिया में ईस्ट इंडिया के लिए काम करते थे और काफी अनुशासित स्वाभाव के रहे हे। जिनके प्रभाव में उनकी शिक्षा पूरी हुई और काफी कम उम्र में उन्होंने दुनिया के बहुत सारे विचारको को पढ़ डाला तथा कई भाषाओ का अध्ययन किया । अपनी युवा उम्र में वह डिप्रेशन के शिकार हुए और उससे उभरने के बाद उनको अपने थिंकिंग को एक नै दिशा मिली, जिससे उन्होंने अपने प्रसिद्द सिद्धांत दुनिया के सामने रखे ।

उनके अध्ययन का मुख्य दायरा इतिहास रहा हे मगर वह पढ़ते पढ़ते उन्होंने बाद में लैटिन और ग्रीक साहित्य पढ़ना शुरू किया जिससे प्लेटो और एरिस्टोटल के दर्शन को पढ़ा जिससे उन्होंने आगे अपने राजनितिक तथा सामाजिक सिद्धांत रखे जो काफी महत्वपूर्ण रहे हे।

सर सामुएल बेंथम जो प्रसिद्द दार्शनिक जेरमी बेंथम के भाई थे और फ्रांस में रहते थे , उनके यहां कुछ समय जॉन स्टुअर्ट मिल ने गुजारे, वह उनके पिताजी के अच्छे मित्र रहे थे। उन्होंने जेरमी बेंथम के स्टडी को काफी नजदीक से जाना और वह कैसे स्टडी करते हे इसका उनपर गहरा असर हुवा। जिससे बाद में वह उनको अपना आदर्श मानते थे और उनके विचार को सपोर्ट करते थे।

जॉन स्टुअर्ट मिल का दर्शनशास्त्र / Philosophy of John Stuart Mill –

जॉन स्टुअर्ट मिल जेरमी बेंथम को अपना आदर्श मानते थे और उनके उपयुक्ततावाद सिद्धांत को काफी सपोर्ट करते थे मगर आगे जाके इसी विचार को उन्होंने नाकारा और उसके कुछ नए सिद्धांत समाज के सामने रखे जिसके लिए उन्होंने सुवर का उदहारण दिया और सोक्रेटस का उदहारण दिया और कहा की उपयोगितावाद केवल संख्या में नहीं देखना चाहिए उसको मूल्य में भी देखना चाहिए।

उन्होंने फ्रीडम ऑफ़ स्पीच याने बोलने की आझादी इसका महत्त्व लोगो के सामने रखा और इससे समाज का कैसे फायदा होता हे यह समझाया। इसके लिए गैलिलिओ तथा कोपर्निकस का उदहारण देते है, अगर उन दोनों की बात समाज मान लेता तो समाज का जो नुकसान हुवा हे वह नहीं होता, इसलिए उनका मानना था की समाज में लिबरल विचार होने चाहिए, ताकि समाज की सोचने की क्षमता का विकास हो।

उन्होंने प्रतिनिधिक लोकतंत्र का समर्थन किया मगर सभी लोगो को मताधिकार होना चाहिए इसके वह सख्त खिलाफ थे। क्यूंकि उनका मानना था की प्रतिनिधिक लोकतंत्र में राजनितिक और सामाजिक समझ होना जरुरी होता हे। वह पश्चिमी देशो में प्रतिनिधिक लोकतंत्र होना चाहिए ऐसा मानते थे मगर अफ्रीका और एशियाई देशो में लोकतंत्र नहीं चल सकता ऐसा उनका मानना था।

वह फेमिनिज्म के समर्थक रहे हे और उनकी पत्नी का खासा प्रभाव उनपर रहा हे और दोनों ने मिलकर कई सारी किताबे लिखी है। वह महिलाओ को समान अधिकार देना चाहते थे और राजनीती में महिलाओ को स्थान देना चाहिए इसके लिए उन्होंने पहल की थी। मगर उनके फेमिनिज्म के कुछ सिद्धांत को बाद में काफी आलोचना का सामना करना पड़ा जिसमे उनका मानना था की महिलाओ को गृहस्ती को संभालके यह सब काम करने होंगे।

जेरमी बेंथम का उपयुक्ततावाद और जॉन स्टुअर्ट मिल / Jermy Bentham’s Utilitarianism & John Stuart Mill –

जेरमी बेंथम की उपयुक्ततावाद का सिद्धांत “सुख क्या हे और दुःख क्या हे” इसपर आधारित थी जिसमे लोग दुःख को टालना चाहते हे और सुख को प्राप्त करना चाहते है। इसलिए उनका मानना था की किसी भी राज्य को इसी सिद्धांत को सामने रखकर समाज के लिए कार्य करना चाहिए। इस व्याख्या में सुख की व्याख्या वह संख्या के आधार पर करते थे जो जितना ज्यादा सुख व्यक्ति के जीवन में मिलेगा उतना समाज आदर्श समाज माना जाना चाहिए।

प्रसिद्द दार्शनिक थॉमस कार्लयिल इसके कड़े विरोधक रहे हे जिसे वह “पिग थ्योरी” कहते हे याने सुवर को गन्दगी में सुख मिलता हे , क्या इसका मतलब सुख है ? इसलिए उन्होंने सुख की नैतिकता को सामने रखा जो जॉन स्टुअर्ट मिल अपने शुरुवाती दिनों में बेंथम की इस थ्योरी के समर्थन में रहे थे।

जॉन स्टुअर्ट मिल ने बाद में बेंथम की थ्योरी में पूरी तरह से बदलाव किये और नैतिकता के आधारपर सोक्रेटस का उदहारण देकर उपयोगितावाद को नए तरीके से दुनिया के सामने रखा और जिनको वह अपना आदर्श मानते थे उनके विचार ही सीरे से ख़ारिज किये।

जॉन स्टुअर्ट मिल और लिबर्टी सिद्धांत/ John Stuart Mill & Liberty Theory –

समाज में हर एक व्यक्ति को अलग से सोचने की आझादी चाहिए भले वह गलत ही क्यों न हो, क्यूंकि मिल का मानना था की सोचने की आझादी होने से लोग अपने विचार सामने रखेंगे उसपर चर्चा करेंगे और सर्व संमती से किसी नतीजे पर पहुचेगे। अगर विचार रखने का अधिकार ही नहीं मिला तो इससे समाज का नुकसान होगा, इसके लिए वह कोपरनिकस और गैलिलिओ का उदहारण देते है।

वह समाज हित और व्यक्ति हित इसमें समाज हित को महत्त्व देते है, आज यह बात सुनने में बहुत सामान्य लगती हे मगर जब पहली बार उन्होंने यह विचार दुनिया के सामने रखे तो वह काफी क्रांतिकारक विचार थे। व्यक्ति स्वतंत्र के साथ साथ समाज के हित में क्या महत्वपूर्ण हे वही हमें स्वीकारना चाहिए ऐसा उनका मानना था।

समाज में लिबरल सोच होना काफी महत्वपूर्ण हे नहीं तो किसी एक विचारधारा से समाज का नुकसान हो सकता हे ऐसा उनका मानना था। अलग अलग सोच होने से हमारी सोचने की शक्ती विकसित होती है और तानाशाह विचारधारा समाज का नुकसान करती हे इसलिए उन्होंने फ्रीडम ऑफ़ स्पीच का सिद्धांत दुनिया के सामने रखा।

प्रतिनिधिक सरकार / Representative Government –

यूरोपीय दार्शनिक वोल्टायर, जॉन लॉक तथा जॉन स्टुअर्ट मिल ने आधुनिक लोकतंत्र की नीव रखी जिसमे प्रतिनिधिक सरकार यह विचार मिल ने बड़ी बारीकीसे दुनिया के सामने रखा जिससे राजतन्त्र और उससे पहले का सामंतवाद इन्ही लोगो के विचारधारा से ध्वस्त हुवा था। एक वोट एक मूल्य इसके लिए जॉन स्टुअर्ट मिल का विरोध रहा है।

प्रतिनिधिक लोकतंत्र की व्याख्या करते समय वह कहते हे, समाज का बुद्धिजीवी वर्ग लोकतंत्र में अपने प्रतिनिधि सरकार चलाने के लिए चुनेगा यह उनका मानना था। वह महिलाओ तथा कर्मचारीओ के वोटिंग के अधिकार के लिए समर्थन में रहे हे मगर लोकतंत्र के लिए सिविलायझ समाज होना जरुरी हे ऐसा उनका मानना था। अफ्रीका तथा एशियाई देशो में प्रतिनिधिक लोकतंत्र नहीं चल सकता ऐसा उनका मानना था।

प्रतिनिधिक लोकतंत्र में दो हाउसेस होने चाहिए जिसमे उस समय हाउस ऑफ़ लार्ड यह ब्रिटेन की राजव्यवस्था के चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा चलाया जाता था जिसे वह एक्सपर्ट और बुद्धिजीवी लोग होने चाहिए ऐसा उनका मानना था। राज्य सभा की जो व्यवस्था आज हम देखते हे वह उनकी विचारधारा की देन थी जिसका महत्त्व लोकतंत्र तथा राजतन्त्र के लिए क्या हे वह समझते थे।

जॉन स्टुअर्ट मिल की माइनॉरिटी की व्याख्या / John Stuart Mill’s Definition of Minority –

सामान्यतः हमारी व्यवस्था में मेजोरिटी और माइनॉरिटी यह व्यवस्था वंशवादी होती हे अथवा जातिवादी होती है, मगर जॉन स्टुअर्ट मिल की माइनॉरिटी की व्याख्या यह समाज का बुद्धिजीवी वर्ग होगा ऐसा मानना था। जो टॅक्स पेयर और एलिट वर्ग ही रहा हे और वही मोनोरिटी कहलाएगा और लोकतंत्र में उनके अधिकारों की सुरक्षा होने के लिए उन्होंने बोलने की आझादी तथा व्यक्ति स्वतंत्रता को महत्त्व दिया है।

क्यूंकि सामान्यतः लोकतंत्र में जिनकी संख्या ज्यादा होती हे उनके विचार समाज पर प्रभुत्व प्रस्तापित करते हे चाहे वह सही हो या गलत इसलिए उनका मानना था की विचारो की स्वतंत्रता समाज को लिबरल रखती हे तथा मोनोरिटी समाज के हक्क और अधिकारों की सुरक्षा होती है।

संख्या के आधार पर प्रतिनिधि चुने जाने की व्यवस्था के वह सख्त खिलाफ थे, क्यूंकि वह मानते थे की इस व्यवस्था में असलियत में सही प्रतिनिधि नहीं चुने जाते। क्यूंकि जिन लोगो ने वोट दिए हे और उनके चुने हुए प्रतिनिधि संख्या के आधारपर चुने नहीं जाते यह एकतरह से वोटिंग का अधिकार ख़त्म होना होता है।

महिलाओ के अधिकार और जॉन स्टुअर्ट मिल / Feminism & John Stuart Mill –

महिलाओ के लिए वोटिंग का अधिकार मिलना चाहिए इसके लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट में उन्होंने पहल की और आंदोलन चलाया था। वह पहले बुद्धिजीवी तथा व्यक्ति थे जिन्होंने महोलाओ को समानता का अधिकार मिलना चाहिए यह कहा था और बराबरी से दर्जा मिलना चाहिए यह कहा था।

उस समय महोलाओ के लिए उनके विचार काफी क्रांतिकारक रहे थे जिसमे औद्योगिक क्रांती का दौर था जहा महिलाए काम के लिए बाहर निकल रही थी और समाज में महिलाओ पर काफी प्रतिबंध होते थे इसलिए उन्होंने समानता की मांग उठाई थी जिसमे सबसे ज्यादा प्रभाव उनके पत्नी का था जो एक बुद्धिजीवी महिला थी और उनके लेखन में साथ साथ काम कर रही थी।

आपने जीवन आखरी दिनों में उन्होंने अपने संपत्ती का आधा हिस्सा महिलाओ के शिक्षा के लिए रखा जाए इसके लिए व्हील बनाकर राखी थी जो उनके मृत्यु के बाद किया गया। उनका फेमिनिज्म का दायरा यह बुद्धिजीवी वर्ग ही रहा हे इसलिए उनपर काफी आलोचना की जाती है।

राजनितिक अर्थशात्र और जॉन स्टुअर्ट मिल / Political Economy & John Stuart Mill –

जॉन स्टुअर्ट मिल के अर्थशास्त्र को दुनिया में काफी सराहा जाता हे और राजनितिक अर्थशास्त्र जिसे आज के आधुनिक विचारक मैक्रो इकोनॉमिक्स कहते हे इसपर काफी अध्ययन किया जिसमे एडम स्मिथ, कार्ल मार्क्स तथा डेविड रिकार्डो जैसे दार्शनिक का काफी हिस्सा रहा हे।

उनका मानना था की अर्थव्यवस्था में प्रोडक्शन यह काफी महत्वपूर्ण हे तथा उत्पादन की क्षमता यह बाजार में अर्थव्यवस्था के विकास के लिए जरुरी हे ऐसा उनका मानना था और इसके लिए राज्य /सरकार की इसमें काफी अहम् भूमिका रहनी चाहिए ऐसा उनका मानना था।

उनके अर्थशास्त्र के विचार एडम स्मिथ से काफी मिलते जुलते रहे हे मगर एडम स्मिथ गवर्नमेंट यह केवल नाममात्र होनी चाहिए जो ग्राहक और पूंजीवादी इनके बिच में सहयोग करने का काम करेगी। जॉन स्टुअर्ट मिल यह समाज पर काफी जोर देते हे और पूंजीवाद और समाज इसका संतुलन बनाए रखना चाहते है।

जॉन स्टुअर्ट मिल के दर्शन की विशेषताए / Features of John Stuart Mill’s Philosophy –

  • समाज में भिन्न विचारो को स्वतंत्रता होनी चाहिए, चाहे वह सही हो या गलत हो जिससे समाज के लिए कुछ अच्छे विचार मिलते है।
    प्रतिनिधिक गवर्नमेंट होनी चाहिए जिसे चुनने का अधिकार केवल समाज के बुद्धिजीवी समाज को होना चाहिए।
  • उनकी माइनॉरिटी की व्याख्या आज के पारम्परिक व्याख्या की तरह नहीं थी वह समाज के बुद्धिजीवी यह समाज की महत्वपूर्ण पूंजी मानते थे इसलिए उनके सुरक्षा के लिए वह राज्य को सतर्क रहना चाहिए ऐसा उनका मानना था।
  • वोटिंग सिस्टम पर वह काफी आलोचना करते थे, उनका मानना था की एक वोट एक मूल्य इस व्यवस्था से समाज जिन लोगो को अपने प्रतिनिधि चुनना चाहता हे वह नहीं चुनके आते इसके बदले पार्टी जो प्रतिनिधि चुनते हे हमें उनको चुनना पड़ता है।
  • प्रतिनिधिक लोकतंत्र यह अफ़्रीकी तथा एशियाई देशो के लिए उपयुक्त राजव्यवस्था नहीं हे ऐसा उनका मानना था।
  • समाज का हित यह व्यक्ति के हित से महत्वपूर्ण माना गया है इसलिए उन्होंने नैतिकता क्या होगी इसके बारे में बताया और समाज हित के लिए व्यक्ति स्वतंत्र को बाधित किया जा सकता हे ऐसा उनका मानना था।

जॉन स्टुअर्ट मिल के दर्शन का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of John Stuart Mill’ s Philosophy –

  • बेंथम के उपयुक्तता वाद को उन्होंने पहले प्रोटेक्ट करने की कोशिश की और बाद में उसमे बदलाव किये, एक तरह से जिन्हे वह आदर्श मानते थे उनके विचार सिरे से ख़ारिज किये थे।
  • जॉन स्टुअर्ट मिल फेमिनिस्ट रहे हे मगर उनके विचार केवल उच्च वर्ग की महिलाओ के अधिकार के बारे में चर्चा करते थे, वह समाज के अन्य महिलाओ के अधिकार के बारे में कुछ नहीं कहते थे ऐसा कई बुद्धिजीवियों का मानना था।
  • आधुनिक फेमिनिस्ट उनकी फेमिनिज्म में खामिया देखते हे जिसमे , महिलाओ को घर तथा बाहर दोनों तरफ बराबरी से ध्यान देना चाहिए यह विचार समानता से सुसंगत नहीं है।
  • एक वोट एक मूल्य इस सिद्धांत के वह विरोधक रहे हे, उनका मानना था की जो समाज यूरोपीय देशो की तरह सभ्य नहीं हे ऐसे देशो में यह सिद्धांत नहीं चल सकते इसलिए उनपर सोशलिस्ट विचारक काफी आलोचना करते है।
  • उनका राजनितिक अर्थशास्त्र यह पूंजीवादी विचारधारा के अनुरूप हे ऐसा आलोचक मानते है।
  • वह केवल बुद्धिजीवी माइनॉरिटी लोगो के अधिकारों के लिए अपने विचार रखते हे ऐसा आलोचकों का मानना था।

जॉन स्टुअर्ट मिल का साहित्य / Literature of John Stuart Mill –

  • Consideration on Representative Government (1861)
  • Essay on some Unsettled questions of Political Economy (1844)
  • On Liberty (1859)
  • Principles of Political Economy (1848)
  • A System of Logic (1843)
  • Three Essays on Religions (1874)
  • Utilitarianism (1863)

जॉन स्टुअर्ट मिल -प्रसिद्द क्वोट/Famous Quote of John Stuart Mill –

  • व्यक्ती बगैर कृति के दूसरे को नुकसान पंहुचा सकता है, बुरा बर्ताव जैसे हानिकारक होता हे वैसे ही कुछ न करना और चुप रहना यह होने वाले किसी नुकसान के लिए जिम्मेदार होता है।
  • मैंने अपने इच्छाओ को सीमित करना सीखा हे, न की अपने सभी इच्छाओ को पूरा करना।
  • अगर कोई धरना बहुमत में हे मगर गलत हे और कोई धरना अल्पमत में हे मगर सही है तो हमें उस हिसाब से सत्य को समाज के भलाई के लिए चुनना चाहिए न की संख्या के हिसाब से सत्य को चुनना चाहिए।
  • समाज में खुले तौर पर आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए चाहे वह सही हो या गलत इससे समाज को फायदा होता है न की नुकसान।
  • लोगो की इच्छा प्रबल हे इसलिए वह बुरा काम करते हे ऐसा नहीं हे, उस व्यक्ति का विवेक कमजोर हे इसलिए वह बुरा काम करता है।
    राजनितिक सत्ता में रिफॉर्मिस्ट पार्टी तथा एकाधिकारवादी पार्टी यह स्वास्थ्य राज्य होने का लक्षण है।
  • कोई भी महान विचारक तबतक नहीं माना जा सकता जबतक वह अपने विचार तर्कबुद्धि पर आधारित नहीं रखता।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की यूरोपीय राजनीती तथा अर्थकारण पर जॉन स्टुअर्ट मिल का कितना प्रभाव रहा है। हमने यहाँ जॉन स्टुअर्ट मिल के सभी सिद्धांत देखे और उसपर विश्लेषण करने के कोशिश की है। जॉन स्टुअर्ट मिल के विचारो की आलोचना क्या हे यह भी हमने देखा और एकतरह से उनके दर्शनशास्त में क्या खामिया हे यह हमने देखा।

उनके कई विचार काफी विवादित रहे थे जिसमे सबसे महत्वपूर्ण विचार यह थे की उन्होंने भारत में लोकतंत्र प्रस्थापित नहीं हो सकता इसके लिए सभ्य समाज की जरुरत होती हे। भारत में यह संख्या काफी कम हे तथा लोगो को लोकतंत्र क्या होता हे यह भी पता नहीं हे इसलिए गलत लोग सत्ता अपने हाथो में लेने की संभावनाए ज्यादा है।

केवल यूरोपीय विकसित देश प्रतिनिधिक लोकतंत्र चलाने के लिए संक्षम हे ऐसा उनका मानना था। हमने उनके साहित्य को आपके लिए प्रस्तुत करने कोशिश की है। उनके कहे हुए प्रसिद्द कोट्स हमने आपके लिए यहाँ दिए हे जो उनके विचार आपके लिए मुख्य रूप से समझमे आये।

बेंथम का कानून का सिद्धांत क्या है?

 

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