प्रस्तावना / Introduction-

१६ सदी तक चीन और भारत यह दुनिया की आधी जीडीपी थी, कारन था बड़ी मात्रा में नैसर्गिक संपदा और अनुकूल वातावरण इसकारण यह दोनों देश दुनिया के अन्य देशो से काफी समृद्ध थे मगर १६ वी सदी के बाद यूरोप में कल्चरल क्रांती होना शुरू हुवा और शिक्षा और स्वतंत्रता के संबंध में समाज में जागृती होने लगी इसकारण व्यापार , विज्ञानं विकसित हुवा यही दौर था यूरोप के देश दुनिया में व्यापार के कारन फैलने लगे और अपना प्रभाव डालने लगे।

दुनिया के बाकी देश अपने कल्चर में रिफार्म लाने में असफल रहे और इसकारण विज्ञानं और आधुनिक लॉजिकल शिक्षा से वंचित रहे। यह सब बाते बताने के कारन आज जो संघर्ष दुनिया में चल रहा हे वह पश्चिमी सभ्यता और चीन की सभ्यता में जो सुपर पावर बनने का राजनितिक और आर्थिक युद्ध बन चूका हे भारत और अमरीका की बढती नजदीकी का मुख्य कारन चीन है।

क्यूंकि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता हे इस रणनिती के तहत अमरीका भारत के साथ चल रहा हे क्यूंकि उसका लोकतंत्र का कैपिटलिस्ट मॉडल यह दुनिया में विकास करने का सबसे अच्छा मॉडल हे ऐसा प्रमोशन कर रहे हे मगर इसके विपरीत चीन का कम्युनिस्ट मॉडल दुनिया में सबसे सफल आर्थिक मॉडल बनके उभरने लगा है।

अमरीका को यह डर सता रहा हे की अगर यह मॉडल सफल हुवा और चीन दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बन जाता हे तो दुनिया में बहुत सारे देशो में जो कैपिटलिस्ट लोकतंत्र का मॉडल चल रहा हे इसको धक्का पहुँच सकता हे इसलिए चीन और अमेरिका में एक युद्ध जैसी स्थिति हे जो पहले शीत युद्ध के दौर में रशिया और अमरीका में दूसरे महायुद्ध के बाद हमने देखा था।

भले अमरीका वह सफल रही लेकिन उसी दौरान चीन शीत युद्ध से बाहर रहा और अमरीका का इस्तेमाल करके आज एक महासत्ता के स्तर पे उभरने लगा है। इसलिए चीन इस देश के बारे में हमने आज का विषय चुना हे और हम जानेगे चीन का १८ वी सदी में जितने असफलता चीन ने झेली उससे उनकी संघर्ष करने की क्षमता का अंदाजा लग जाता है।

चीन का इतिहास / History of China –

किन शी हुआंग से लेके आखरी साम्राज्य क्विंग तक १९१२ यह राज तंत्र का दौर रहा जिसमे चीन ने कभी बाहरी व्यवस्था का आसानी से पनपने नहीं दिया। अंग्रेजो ने जब १६ वि सदी में भारत में बड़े बड़े उपहार देकर यहाँ के राजाओ को व्यापार करने के लिए मनाया यह काम अंग्रेज चीन में नहीं कर सके और असफल रहे फिर भी चीन के एक छोटे से प्रदेश पर व्यापार करने का परमिशन उन्हें मिला मगर सीधे तौर पर नहीं।

इसलिए उन्होंने एक रणनीति अपनायी और अफीम का व्यापार चीन में करना शुरू किया जिससे चीन की लगबघ एक करोड़ आबादी इसके नशे के चपेट में आयी थी जिससे क्विंग साम्राज्य और ब्रिटिश साम्राज युद्ध हुवा जो ओपियम वॉर के नाम से जाना जाता हे ऐसे बहुत सारे युद्ध ब्रिटिश कंपनी और अन्य यूरोपीय कम्पनिया मिलकर चीन में १८३९ से लेकर १८६० तक लढती रही ।

आखिर कार ब्रिटिश और अन्य यूरोपीय देश चीन में व्यापार करने में सफल रहे फिर भी उन्हें चीन के संघर्ष के कारन भारत जैसी पूर्ण सत्ता नियंत्रिण करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी और उन्होंने केवल अपना लक्ष चीन में व्यापार तक सिमित रखा।

इस समय में चीन साम्राज्य ने बहुत युद्ध हारे और इसकी कीमत उन्हें मिलियन ऑफ़ सिल्वर कॉइन के रूप में इन यूरोपियन कंपनियों को दी ।जो आज के करेंसी में देखे तो बिलियन ऑफ़ डॉलर्स में थी। १९०० शतक के बाद परिस्थितिया बदलने लगी और इन यूरोपियन कंपनियों के व्यापारी अग्रीमेंट धीरे धीरे ख़त्म होने लगे और रशिया की कम्युनिस्ट क्रांति ने वैसे तो पूरी दुनिया पर प्रभाव डाला था ।

मगर इसका सबसे गहरा प्रभाव चीन में पड़ा और राजतन्त्र ख़त्म हुवा और कम्युनिस्ट सरकार स्थापित हुवी इसमें काफी सिविल वार बरसो तक शुरू रहे जो बाद में माओ की सरकार १९४९ से लेकर १९७६ तक चीन में स्थापित होके थोड़े स्थिर होने लगी । माओ आर्थिक रूप से चीन को उचाई तक पहुंचने में असफल रहे और उनका बहुत सारा वक्त चीन की आतंरिक व्यवस्था को संभाल ने में ही गया फिर भी उन्होंने अमरीका , रशिया से अपने सम्बन्ध सुधरनेकी कोशिश की मगर उनकी विचारधारा इसके बिलकुल विपरीत होने के कारन वह असफल रहे।

उसके बाद बहुत सारे शासक बने मगर कम्युनिस्ट व्यवस्था नहीं बदली जो आज तक हे जो एक विकास का मॉडल बनने को हे जिसके कई क्रिटिसिज्म हे लॉजिकल कम और विचारधारा के कारन ज्यादा है।

चीन की अर्थव्यवस्था और चीन की कामयाब रणनीति –

औद्योगिक क्रांति के बाद यूरोप और अमरीका टेक्नोलॉजी और संशोधन में बाकि देशो से काफी प्रगत थी । दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमरीका एक सुपर पावर के तौर पर उभरा था और दुनिया के अर्थव्यवस्था पर अपने टेक्नोलॉजी के दम पे राज कर रहा था। रशिया और अमरीका का शीत युद्ध यह कैपिटलिस्ट डेमोक्रेसी का मॉडल और रशिया याने कम्युनिस्ट मॉडल यह दो विचारधारा का संघर्ष था।

जिसमे अमरीका को ड़र था की रशिया का प्रभाव बाकि देशो पर पड़ा तो हमारा कैपिटलिस्ट डेमोक्रेसी का मॉडल खतरे में आजायेगा इसलिए यह युद्ध १९९० तक चला। चीन ने इस समय एक रणनीति के तहत कम्युनिस्ट होने के बावजूद रशिया को शीत युद्ध में सपोर्ट नहीं किया और अमरीका से रिश्ते बनाके अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाना शुरू किया ।

इसका नतीजा टेक्नोलॉजी में उस समय की बड़ी बड़ी कम्पनिया चीन में लेबर सस्ता मिलने से चीन में अपनी इन्वेस्टमेंट बढ़ाने लगी । यह दौर २०१३ तक चला जब तक अमरीका चीन की यह रणनीति समझ सकी तबतक चीन ने अमरीका और यूरोप की सब टेक्नोलॉजी के पर्याय चीन में तैयार कर दिए थे ।

अमरीका में पैसे के काफी निवेश करके रखे थे जो अमरीका को यह समझने में काफी देर लगी। जो प्रोडक्ट्स चीन ने अमरीका के टेक्नोलॉजी को कॉपी करके बनाये थे वह शुरुवाती दौर में क्वालिटी के मामले में काफी बदनाम थे मगर शाओमी , लिनोवो , ओप्पो जैसे ब्रांड आज के दौर में इंटरनेशनल क्वालिटी ब्रांड बनके उभरे जिससे अमरीकी व्यवस्था पूरी तरह से चीन की स्ट्रेटेजी में फस गयी थी।

१९९० से भारत और चीन ने बराबरी से शुरुवात की थी वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रवेश करने की मगर आज चीन की अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना बड़ी हे और आने वाले १० साल में वह अमरीका को पीछे छोड़ देंगे। अमरीका की सबसे बड़ी समस्या यही हे इसलिए राजनितिक तौर पर चीन और अमरीका के बिच आज के दौर में एक ब्रेन वॉर शुरू हे जो अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण कोण पायेगा इस उद्देश्य से है।

चीन की राजनीतिक व्यवस्था / Political System of China –

आज देखा जाये तो पूरी दुनिया में अमरीका के कैपिटलिस्ट लोकतंत्र का शासन करने का मॉडल प्रस्थापित हे और उसे एक आदर्श मॉडल माना जाता हे जो राष्ट्रपती फॉर्म और प्राइम मिनिस्टर फॉर्म में देखने को मिलता हे।इसका महत्वपूर्ण कारन हे अमरीका की अर्थव्यवस्था और टेक्नोलॉजी का पूरी दुनिया पर प्रभाव रहा हे।

इसके लिए अमरीका ख़ुफ़िया राजनीती का इस्तेमाल बरसो से करती आ रही हे। इसका उलटा चीन कम्युनिस्ट देश हे जो अमरीका के लोकतंत्र को खतरा माना जाता हे और जो कैपिटलिज्म को क्रिटिसाइज करता है। क्यूंकि चीन कम्युनिस्ट देश हे इसलिए इस विचारधारा को वह प्रोमोट किया जाता हे और वन पार्टी सिस्टम रूल वहा चलता है। एक शासक सिस्टम की कुछ अच्छी बाते हे और कुछ बुरी।

इस व्यवस्था की सफलता शासक के ईमानदारी से अच्छी पॉलिसीज को बढ़ाना जो लोगो के विकास में काम आये तो यह व्यवस्था सफल होती हे मगर शासक कमजोर हो तो पूरी व्यवस्था असफल हो जाती हे। आज देखे तो शी जिन पिंग यह राज कर रहे हे और वह जो पॉलिसीज अमल में रहे हे या इनसे पहले के जो कम्युनिस्ट शासक थे जिन्होंने उदारवादी निति जो चीन के काम आये ऐसी निति इन शासको ने बनायीं और सफल की है।

अगर बात करे चीन उनके विरोधक लोगो को दबाता हे , तो ऐसा कोई शासक नहीं हे जो अपने विरोधक को दबाता नहीं है। सत्ता पर निरंतर कायम रहने के लिए हर कोई शासक यह रणनीति इस्तेमाल करता है। अमरीका उनके इस पालिसी का विरोध करता हे और जितने भी बागी चीन में पनप रहे हे उनको इस्तेमाल करने की कोशिश वह हमेशा करता आ रहा है।

भारत और चीन के राजनितिक सबंध की बात करे तो वह हमेशा से तनावपूर्ण रहे है, हमें बस यही सोचना होगा क्या अमरीका हमें चीन के खिलाफ एक टूल की तरह इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है ? इसलिए हमें हमारी राजनितिक स्ट्रेटेजी अपने फायदे के लिए रखनी होगी ।क्यूंकि अमरीका का इस्तेमाल करने का इतिहास बड़ा घिनौना रहा है। चीन की बात करे तो आज तक अमरीका की राजनीती को विफल करने में अगर कोई सफल रहा हे तो वह केवल चीन रहा है।

चीन की रिसर्च एंड डेवलपमेंट पॉलिसी R & D Policy of China –

अमरीका २०१७ के आकड़ो अनुसार ५४३ बिलियन डॉलर संशोधन के लिए खर्च करता हे रुपए में इसको आप कन्वर्ट करोगे तो आप कल्पना कर सकते हे अमरीका महाशक्ति क्यों बना। यही अकड़ा चीन देखे तो ३७८ बिलियन डॉलर खर्च करता हे संशोधन पर उनके बजट के यह अकड़ा २.४ % रहा है।

भारत की बात करे तो हम संशोधन पर १७.५ बिलियन डॉलर रहा हे, भारत के बजट के यह राशि ०. ७ % रही मलतब १ प्रतिशत से भी कम हम संशोधन पर खर्च करते है २०१७-१८ के लिए । इससे आप अंदाजा लगा सकते हे हमें चीन से स्पर्धा करने के लिए कितना फासला पार करना पड़ेगा। सवाल खड़ा होता हे की संशोधन पर इतना पैसा खर्च करने से क्या होता है ?

संशोधन पर ज्यादा इन्वेस्ट करने से दूसरे पर निर्भर रहना नहीं पड़ता और अपनी अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर बन जाती है। केवल आत्मनिर्भर कहने से बात नहीं बनती उसके लिए आपकी प्राथमिकता क्या हे यह महत्वपूर्ण बात हे इसलिए अमरीका के बाद चीन संशोधन पर ज्यादा पैसा खर्च करती है , और यही कारन हे आनेवाले समय में वह दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था बनके उभरी है।

चीन की शिक्षा व्यवस्था / Education Policy of China –

रिसर्च और डेवलपमेंट में अमरीका का बाद सबसे ज्यादा इन्वेस्टमेंट चीन ने की हुई हे और चीन अपने विद्यार्थियों को शुरुवाती दौर से आज तक पश्चिमी देश पढ़ने के लिए खर्चा करते हे। खास कर अमरीका में पढ़ने के लिए भेजते हे मगर वह लोग पढ़ लिख कर चीन में आ के चीन के विकास के लिए काम करते हे ।आज भी आप इंटरनेट पर सर्च करके देखेंगे तो पेटेंट रजिस्ट्रेशन में चीन अमरीका से बराबरी की टक्कर दे रहा हे।

इसका महत्वपूर्ण कारन चीन शिक्षा के लिए उसमे भी संशोधन के मामले में ज्यादा पैसा खर्च करता हे और इसके परिणाम हमें चीन के टेक्नोलॉजी के मामले में देखने को मिलते हे।अमरीका के गूगल,फेसबुक,व्हाट्सप, अमेझोन, इन सभी के लिए चीन ने अपनी टेक्नोलॉजी बना के रखी हे ।

जिससे अमरीका को टक्कर दे सके और इसलिए वह एजुकेशन में अमरीकी शिक्षा व्यवस्था के मॉडल से सिख लेके अच्छे इंटेलेक्चुअल कैसे निकल सकते हे इसपर काफी पैसा खर्च करता है। भारत की बात करे तो हमारी सबसे बेहतरीन शिक्षा संस्थाए सरकार के पैसे से चलती हे मगर वहा तैयार हुए विद्यार्थी ज्यादा तर यूरोप और अमरीका में जाकर सेटल है।

इससे देश को इन बुद्धिजीवी लोगो का फायदा होता नहीं और अमरीका, जर्मनी , इंग्लैंड जैसे विकसित देश इनका फायदा उठाती है। चीन के सक्सेस का सबसे महत्वपूर्ण कारन हे वह अच्छी चीजे ग्रहण करने में बहुत माहिर हे चाहे वह टेक्नोलॉजी हो या एजुकेशन सिस्टम।

१९९० के बाद आप चीन के विद्यार्थियों का विदेश में शिक्षा हासिल करने का प्रमाण देखेंगे तो आप चौक जायेगे। इसका एकमात्र कारन था उन्होंने विदेश की जीतनी भी विकसित शिक्षा प्रणाली थी उसको सीखकर चीन में एक शिक्षा का मॉडल बनाया हे जिसके लिए चीन बहुत पैसा इन्वेस्ट करता हे यह उनके पेटेंट रजिस्ट्रेशन से अंदाजा लगा सकते है।

चीन के इकोनॉमी ग्रोथ के कारन / Economy Growth of China –

चीन के विकास के दो महत्वपूर्ण कारन हे उसमे से एक हे बड़े पैमाने पर आतंरिक इन्वेस्टमेंट और विदेशी इन्वेस्टमेंट यह और दूसरा महत्वपूर्ण कारन बड़े पैमाने पर उत्पादन में हुई वृद्धि वर्ल्ड बँक के डाटा के हिसाब से चीन ने २००६ से लेकर २०१६ तक घरेलु उत्पादन में अमरीका जापान जैसे देशो को पछाड़ा है।

इन दो महत्वपूर्ण कारणों की वजह से चीन के बनाये प्रोडक्ट पूरी दुनिया में छा गए , पहले जिन चीनी प्रोडक्ट को दुय्यम दर्जे के प्रोडक्ट माना जाता था आज वही चीन के इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स और उसमे भी मोबाइल प्रोडक्ट्स ने एप्पल , गूगल जैसी कंपनियों के नाक में दम करके रखा हे पूरी दुनिया की मार्किट में।

चीन में डोमेस्टिक सेविंग का प्रमाण यह ३२% चीन के जीडीपी में हिस्सेदारी हे इससे आप अंदाजा लगा सकते हे चीन में सेविंग करने का स्वाभाव यह उनके विकास का महत्वपूर्ण कारन रहा है।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने यहाँ देखा की चीन ने कैसे अमरीका का इस्तेमाल करके खुद की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया । अमरीका में बड़े पैमाने पर निवेश करके अमरीका को चीन पर निर्भर होने को मजबूर कर दिया। जो आर्थिक सहयता करता हे वह राजनितिक इशारा भी करता हे इस हिसाब से देखे तो चीन ने अपने निवेश बहुत सारे देशो में किये हुए हे जैसे अमरीका करता हे।

अगले दस साल में चीन दुनिया की सबसे शक्ति शाली अर्थव्यवस्था बन जायेगा इसलिए अमरीका और चीन में एक आर्थिक युद्ध शुरू हे जिसके तहत इसका लाभ भारत को अमरीका के सपोर्ट से हो रहा है। जैसे चीन ने रशिया और अमरीका संघर्ष में अपना फायदा देखा वैसे ही हमें सिर्फ हमारा फायदा देखना हे और कौनसे देश के साथ हमें कैसे सम्बद्ध रखने हे यह अमरीका नहीं हमें तय करना है।

अमरीका को चीन की रणनीति समझने में बहुत देर लगी तबतक चीन बहुत ताकदवर बन चूका था। आज चीन ने खुद को टेक्नोलॉजी , डिफेन्स , और राजनितिक रणनीति के मामले में काफी सशक्त कर लिया है। आनेवाला वक्त ही बताएगा की जैसे अमरीका के ख़ुफ़िया राजनीती के सामने रशिया ने घुटने टेक दिए वैसे चीन करता हे क्या ?

रशिया जबतक स्टालिन की सत्ता रशिया पर थी तबतक टेक्नोलॉजी के मामले में अमरीका से बराबरी में था मगर उसके बाद काफी पिछड़ गया और आखिर १९९० में शीत युद्ध की समाप्ति के साथ अमरीका का पूरी दुनिया पर एकछत्र आर्थिक और टेक्नोलॉजी में वर्चस्व प्रस्थापित हुवा। चीन आज अमरीका को सुपर पावर बनने में टक्कर दे रहा हे इसका कारन उनकी खुद की टेक्नोलॉजी और उनकी अर्थव्यवस्था, आनेवाला वक्त ही बताएगा के यह बाजी कौन ले जाता है ।

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