प्रस्तावना / Introduction –

केस स्टडी के इस हिस्से में हम आज के आर्टिकल में इंदिरा साहनी केस के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश करेंगे। क्यूंकि यह केस भारत के इतिहास में सामाजिक और राजनितिक दृष्टी से सबसे महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का केस माना जाता है। न्यायिक प्रक्रिया में आपकी विचारधारा कोई भी हो मगर तथ्यों के आधारपर और सबूतों के चलते निर्णय देने का आधुनिक लोकतंत्र का नियम है। इसलिए इस केस में जो निर्णय कोर्ट द्वारा दिया गया था इसके परिणाम हमें देश की राजनीती और समाज पर देखने को मिलता है।

भारत की व्यवस्था पर जातिव्यवस्था का असर हमें गांव से लेकर शहरों तक देखने को मिलता हे, भले ही हम कहते हे की जातिव्यवस्था आज के तारीख में अस्तित्व में नहीं है। हम जाती व्यवस्था को नहीं मानते, केवल मात्र इतना कहने से अगर जाती व्यवस्था ख़त्म हो जाती तो कितना अच्छा होता। वास्तविकता में ऐसा नहीं हे, आज भी हम देखते हे की शादी ब्याह जाती के अंदर ही देखने को मिलता है। समाज के पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग को यह तक पता नहीं हे की जातिव्यवस्था यह समाजशास्त्र में बुरी व्यवस्था मानी जाती है।

समाज का पढ़ा लिखा इंसान जातिव्यवस्था को अपना अभिमान समझता है और अपनी विविधता का गुणगान करता है। इसलिए हमने मंडल आयोग और इंदिरा साहनी केस पर हजारो लेख और आर्टिकल पढ़े होंगे मगर हमें यह पढ़ते समय लेखक की पूर्व धारणा क्या हे यह भी समझना होगा। आरक्षण यह बुरी चीज हे और यह समाज को विभाजित करती हे यह तर्क हमें समाज के बुद्धिजीवी द्वारा देते हुए कई बार देखते है। इसलिए भारत के एलिट वर्ग को अपना न्यायिक चरित्र क्या हे यह देखना होगा और उसका अवलोकन करना होगा।

राजनितिक परिस्थिति और इंदिरा साहनी केस/ Political background of Indira Sawhney Case –

१९९० का दौर था जब भारत की राजनितिक परिस्थिति काफी जटिल बन चुकी थी और किसी भी राजनितिक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल रहा था। इसी समय वीपी सिंग के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। वीपी सींग को यह सरकार चलाने ऐसा कोई मुद्दा चाहिए था जिससे उनकी राजनीती प्रभावशाली बन सके और उनकी सरकार को कमजोर करने वाली ताकत को ख़त्म किया जा सके।

इसलिए उन्होंने मंडल आयोग के सिफारिशों को लागु करने का निर्णय लिया और समाज के बहुसंख्य ओबीसी समाज को खुश करने की कोशिश की। मगर इससे आडवाणी के नेतृत्व में इस सरकार में शामिल हिंदूवादी लोगो को यह निर्णय पसंद नहीं आया था। मगर खुले तौर पर इसका विरोध करना राजनितिक दृष्टी से जोखिमभरा था इसलिए उन्होंने रथयात्रा के माध्यम से मंडल के जाग्रति को हिंदुत्व के मुद्दे पर आकर्षित करने की कोशिश की और वह इसमें सफल भी हुए।

मंडल आयोग के लागु होने पर विरोध में और समर्थन में देशभर में मोर्चे निकलने लगे। इसी दौरान इंदिरा साहनी इन पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसमे जाती के आधार पर आरक्षण देना यह देश को विभाजित करने का कारन बनेगा यह तर्क उन्होंने रखा। संविधान द्वारा दिया गया समानता का अधिकार और मंडल आयोग द्वारा दिया गया आरक्षण यह परस्पर विरोधी हे ऐसा उनका मानना था।

क्या हे इंदिरा साहनी केस / What is Indira Sawhney Case –

इंदिरा साहनी यह एक दिल्ली की पत्रकार थी जिन्होंने प्रधानमंत्री वि पी सिंह के सरकार द्वारा मंडल आयोग को लागु करने के फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में १ अप्रैल १९९० को याचिका दायर की थी। यह मामला जब कोर्ट में चल रहा था तबतक दो बार सरकार बदल चुकी थी और कॉग्रेस की सरकार सत्ता में आयी हुई थी जो नरसिम्हाराव जी के नेतृत्व में चल रही थी।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा ओबीसी को दिया गया २७ % आरक्षण को माना और यह भी स्वीकार किया की जाती के आधारपर सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा पण सिद्ध होता हे तो यह आरक्षण सरकार दे सकती है। क्रीमीलेयर यह सिद्धांत ओबीसी को आरक्षण देते समय ९ जजों की बेंच ने सामने लाया जिसमे जिनकी आय तय किए गए क्राइटेरिया से ज्यादा हे वह इस आरक्षण का लाभ नहीं उठा पाएगे।

इसके साथ साथ सुप्रीम कोर्ट ने ५० प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देना यह संविधान के समानता के सिद्धांत का उलंघन होगा इसलिए इसे तय किया। आर्थिक आधार पर दिए गए आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट रद्द कर दिया गया। कोर्ट का मानना था की आरक्षण का प्रावधान संविधान में केवल सामाजिक और शैक्षणिक आधारपर दिया जा सकता है। इसलिए आर्थिक आधार पर आरक्षण देना संविधान के खिलाफ होगा।

इसतरह से इस केस में इंदिरा साहनी के केस में नौ जजों की बेंच ने ६ विरुद्ध ३ के निर्णय से यह केस सरकार के पक्ष में कुछ हिस्से तक किया और आर्थिक आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया ।

इंदिरा साहनी केस के तथ्य / Facts of Indira Sawhney Case –

जब संविधान निर्माता द्वारा आर्टिकल ३४० का निर्माण किया और इसमें अनुसूचित जाती और जमाती के आलावा भी एक ऐसा वर्ग हे जो सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टी से पिछड़ा है यह बताया । मगर पिछड़ापन की व्याख्या क्या होगी यह आजतक किसी संस्था द्वारा निश्चित नहीं किया गया है। इंदिरा साहनी केस में जाती के आधारपर आरक्षण देना यह समानता का अधिकार का उलंघन हे यह तर्क याचिका करता द्वारा दिया गया मगर कोर्ट ने इसे पूरी तरह से नकार दिया।

मंडल आयोग द्वारा १९३१ की ओबीसी की जनगणना को आधार बनाकर २७ प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गयी है । इंदिरा साहनी के मुख्य विरोध जिस कारन सरकार के इस निर्णय पर था वह है।

  • ओबीसी को दिया हुवा यह आरक्षण संविधान के समान संधी के अधिकार का उलंघन है।
  • जाती यह किसी समाज का पिछड़ा पण निर्धारित करने के लिए उचित नहीं है।
  • आरक्षण के कारन सरकारी संस्थाओ के कार्यक्षमता पर असर पड़ेगा।

१६ नवम्बर १९९२ को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय दिया गया जिसमे आरक्षण निर्धारित करने के लिए जाती यह आधार पिछड़ापन सिद्ध करने के लिए संविधानिक हे यह मान्य किया । २७ प्रतिशत आरक्षण को वैध्य घोषित किया गया मगर क्रीमिलेयर का प्रावधान लागु कर दिया गया जिसके तहत निर्धारित इनकम के ऊपर आरक्षण नहीं मिलेगा। आर्थिक आधारपर आरक्षण नहीं दिया जा सकता यह कहकर नरसिम्हाराव सरकार द्वारा दिया गया आरक्षण अवैध्य घोषित किया गया।

इंदिरा साहनी केस और क्रीमिलेयर/ Indira Sawhney Case & Creamy-layer –

क्रीमिलेयर यह टर्म कानूनी तौर पर पहली बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस केस के माध्यम से देखने को मिला। जिसमे जिस समाज में आरक्षण के माध्यम से लोग आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टी से विकसित हुए हे उनके लिए यह टर्म इस्तेमाल किया गया। ओबीसी को इससे पहले आरक्षण का फायदा नहीं मिला था इसलिए यह टर्म अनुसूचित जाती और अनुसूचित जमाती के लोगो के लिए पहली बार इस्तेमाल किया गया। हलाकि यह पार्टी इस केस में नहीं होने की वजह से यह टर्म ओबीसी के लिए पहली बार उपयोग में लाया गया।

एक लाख से ज्यादा उत्पन्न होने वाले लोगो को इस आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा यह सरकार के नियमावली को समय समय पर बदलाव करके आजतक यह राशि बढ़ाते हुए हमने देखा है। कोर्ट का मानना था की समाज के जो लोग आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टी से सधन हे वही इस आरक्षण का फायदा ज्यादा उठाएगे। इसलिए क्रीमिलेयर यह क्रायटेरिया काफी महत्वपूर्ण हे ऐसा कोर्ट ने माना।

क्रीमिलेयर की संकल्पना में सरकारी व्यवस्था के उच्च पदस्थ व्यक्तियों के बच्चे तथा सरकारी अधिकारियो के बच्चो के लिए यह लागु कर दिया गया। जिससे ओबीसी के वास्तविक रूप से पिछड़े लोगो को इसका फायदा मिल सके। यह प्रावधान शुरुवात में शिक्षा तथा सरकारी नोकरियो के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। यह संकल्पना पर कई विवाद देखने को मिलते हे और इसके संविधानिक होने पर सवाल उठाए जाते रहे है।

परन्तु आज यह संकल्पना ओबीसी आरक्षण के लिए इस्तेमाल की जाती हे और बाकि सभी आरक्षण के लिए इसका इस्तेमाल करने की सिफारिश हो रही हे मगर अनुसूचित जाती और जनजाति यह ओबीसी से काफी जागृत होने के कारन यह बड़ा मुश्किल मामला है।

आरक्षण पर ५०% तक मर्यादा / 50% Limit on Reservation –

सुप्रीम कोर्ट द्वारा आर्टिकल १६(४) का हवाला देते हुए कहा की पिछड़े लोगो के प्रतिनिधित्व के लिए राज्य आरक्षण का प्रावधान कर सकते हे मगर संविधान दूसरी तरफ समानता का अधिकार भी देता हे इसको संतुलित करने के लिए संविधान सभा की चर्चा का हवाला देते हुए पचास प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता यह व्याख्या कोर्ट द्वारा की गयी। वास्तविकता में तमिलनाडु जैसे कई राज्य यह सिमा से ज्यादा आरक्षण अपने राज्य में दे चुकी हे।

पचास प्रतिशत की इस व्याख्या पर कई संविधान विद्वानों द्वारा आक्षेप उठाया गया हे जिसमे उनका मानना हे की सुप्रीम कोर्ट को संविधान लिखने का अधिकार नहीं है। इसलिए यह पचास प्रतिशत का नियम यह गैरसंवैधानिक है। २०१८ में मराठा आरक्षण के समय महाराष्ट्र सरकार के वकील द्वारा इस पचास प्रतिशत की नियमावली पर फिर से सोच विचार होना जरुरी हे।

ऐसा तर्क रखा और ११ जजों की बेंच के माध्यम से इसपर पुनर्विचार होना चाहिए यह कहा मगर उस समय कोर्ट ने यह मांग को अस्वीकार करते हुए यह मर्यादा का समर्थन किया। कोर्ट का मानना था की समानता का अधिकार एवम समान सुरक्षा का अधिकार इसको देखते हुए पचास प्रतिशत की मर्यादा को ख़त्म नहीं किया जा सकता है।

इंदिरा साहनी केस की विशेषताए/ Features of Indira Sawhney Case –

  • १ अप्रैल १९९० के इंदिरा साहनी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण के विरुद्ध याचिका दायर की गई और इसका फैसला १६ नवम्बर १९९२ के दिया गया।
  • इस केस के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन महत्वपूर्ण फैसले लिए गए जिसमे पचास प्रतिशत की आरक्षण सिमा राखी गई , क्रीमिलेयर लागु कर दिया गया और जाती के आधारपर आरक्षण दिया जा सकता हे यह कहकर मंडल आयोग की सिफारिशों को संविधानिक घोषित कर दिया गया।
  • ९ जजों की बेंच ने यह निर्णय ६ विरुद्ध ३ के फैसले से सरकार में दिया।
  • मंडल आयोग की सिफारिशों को लागु करना यह वीपी सींग सरकार द्वारा एक राजनितिक निर्णय था जिससे जनता पार्टी की सरकार अल्पमत में गिर गई।
  • चंद्रशेखर जी ने कॉग्रेस की मदत लेकर सरकार स्थापित की जो ज्यादा दिनों तक नहीं रही और फिर से कॉग्रेस सत्ता में आयी।
  • मंडल आयोग लागु करने से भारत की राजनीती में काफी हलचल देखने को मिली और आरक्षण के समर्थन में और विरोध में मोर्चे निकाले गए।
  • सुप्रीम कोर्ट को अपना निर्णय देते समय समाज का काफी दबाव था मगर कोर्ट ने संविधानिक तरीके निर्णय लिया गया।
  • मंडल आयोग के लिए १९३१ के ओबीसी जनगणना को आधार बनाकर २७ प्रतिशत आरक्षण निर्धारित किया गया।
  • सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टी से पिछड़ापन यह कारन आरक्षण के लिए निर्धारित किया गया जो आर्टिकल १६(४) के अनुसार बताया गया है ।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की इंदिरा साहनी केस भारत की राजनीती और समाजकारण के दृष्टी से कितना महत्वपूर्ण रहा है। उत्तर भारत में मंडल आयोग के सिफारिशों की वजह से कई महत्वपूर्ण नेताओ का उदय हमें देखने को मिला जिन्होंने अगले ३० सालो तक अपनी ओबीसी की राजनीती के दम पर खुद भारत की राजनीती में प्रस्थापित किया था।

इंदिरा साहनी के याचिका पर सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट ने जाती के आधारपर आरक्षण नहीं दे सकते यह तर्क नकार दिया और सरकार को जाती के आधारपर आरक्षण देने का अधिकार हे ऐसा कहा। १९९० में शुरू हुवा यह केस १९९२ तक चला तबतक तीन बार सरकार बदल चुकी थी और नरसिम्हाराव सरकार की तरफ से ओबीसी आरक्षण का मामला देखते हुए आर्थिक आधारपर १० प्रतिशत आरक्षण का मामला खड़ा करके अप्पर कास्ट को खुश करने की कोशिश की गयी।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा आर्थिक आधारपर दिया गया आरक्षण यह गैरसंवैधानिक घोषित करते हुए संविधान केवल सामाजिक और शैक्षणिक आरक्षण आधारपर पिछड़ापन सिद्ध करके ही आरक्षण दिया जा सकता हे यह तर्क रखा। ९ जजों की बेंच ने ६ विरुद्ध ३ इस अंतर से ओबीसी आरक्षण के समर्थन में फैसला देते हुए इसपर पचास प्रतिशत की पाबन्दी लगाई और क्रीमिलेयर यह संकल्पना का पालन करने के आदेश सरकार को दिए।

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