प्रस्तावना / Introduction –

भारत के २०२०-२१ के आयत निर्यात के आकड़े देखे तो आयात (Import) के लिए ३९४ बिलियन अमरीकी डॉलर खर्च हुवे और निर्यात से हमें २९२ बिलियन अमरीकी डॉलर हमें मिले, इसका मतलब हे हमने गवाए ९८ बिलियन अमरीकी डॉलर। हमने जो यह आकड़े दिखये यह एक साल के है। १९९० से पहले यह आकड़े और भी भयानक थे जिसके कारन हमें “फेरा” कानून को बदलकर “फेमा” कानून को लाना पड़ा था।

हम यहाँ बात कर रहे है “विदेशी विनिमबंधन अधिनियम-१९९९ ” जिसको २००० में लागु किया गया था। इस कानून का मूल उद्देश्य था विदेशी चलन का नियोजन करना तथा मुक्त बाजार व्यवस्था के अनुरूप इस कानून के नियम बनाना। मूलताह हमारा ज्यादा पैसा ऑइल प्रोडक्ट्स तथा मूल्यवान धातु इसके लिए ज्यादा खर्च होता हे हाला की विकसित होने के लिए निर्यात ज्यादा होना जरुरी होता हे। जो आजतक नहीं हो पा रहा है।

हम यहाँ “विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम -१९९९ इस कानून के बारे में जानने की कोशिश करेंगे की यह क्या काम करता हे तथा इसका नियंत्रण किसके पास होता है। तथा इसके भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या फायदे हुए हे तथा क्या नुकसान हुए है। यह कानून कैसे बनाया गया तथा इसका इतिहास क्या हे इसके बारे में जानने की कोशिश करेंगे।

विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम/The Foreign Exchange Management Act 1999 –

विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम इस कानून को रद्द करके बनाया गया था, जिसको “फेरा” के नाम से जाना जाता था। फेमा यह कानून बनाने का उद्देश्य था की १९९० में जो भारत ने आर्थिक निति में बदलाव किये थे । अर्थव्यवस्था को अंतराष्ट्रीय बाजार को खुला कर दिया था उसके फलस्वरूप “फेरा” यह कानून काफी सख्त था विदेशी मुद्रा को नियमन करने के लिए जिसको लिबरल बनाया गया।

फेमा यह कानून बनाने से पहले फेरा इस कानून के तहत अगर नियमो का उलंघन कोई करता था तो उसके लिए क्रिमिनल प्रावधान फेरा के अंतर्गत थे जिसकी वजह से विदेशी निवेश भारत में आने से परहेज करते थे। यह कानून लागु होने के बाद भारत में विदेशी निवेश बढ़ा है बल्कि  इस कानून में काफी बदलाव किये गए हे जो खुली अर्थव्यवस्था रहे।

वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन जो फ्रेम वर्क दिया था आर्थिक निति का उसके हिसाब से इस कानून में बदलाव किये गए और जो पहले विदेशी मुद्रा को भारत के लिए सुरक्षित करने का जो उद्देश्य था उसको बदलकर नियमो को सरल बनाया गया जिससे विदेशी निवेश को सहजता निर्माण हो सके। इससे पहले भारत में विदेशी मुद्रा को रखने के लिए काफी सख्त नियम बनाए गए थे।

विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम का इतिहास / History of Foreign Exchange Management Act –

विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम यह कानून १९७४ में भारत में लागु हुवा था उस समय भारत की विदेशी मुद्रा की स्थिति काफी ख़राब थी क्यूंकि विदेशी मुद्रा की जरुरत भारत को ज्यादातर ऑइल प्रोडक्ट्स भारत में आयत करने के लिए लगती थी जिसका और भारत के निर्यात का प्रमाण कम होने हमेशा से विदेशी मुद्रा की समस्या निर्माण होती थी इसलिए “फेरा” यह कानून लाया गया था।

रिज़र्व बैंक द्वारा इसका नियमन काफी सख्त किया गया था जिसकी वजह से उस समय कोकाकोला और पेप्सिको जैसी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने भारत के अपने प्लांट बंद कर दिए थे। जो बाद में १९९० में आर्थिक नीतियों के बदलाव के बाद उन्होंने फिर से भारत में अपना उत्पादन शुरू किया था। इन कड़े नियमो की वजह से भारत में विदेशी मुद्रा आना काफी हदतक बंद हुवा था।

अगर हमें विदेशी मुद्रा चाहिए तो उन देशो में निर्यात होनी चाहिए जो हम नहीं करते थे क्यूंकि विकसित देश रिसर्च और डेवेलपमेंट पर ज्यादा इन्वेस्ट करके खुद को आत्मनिर्भर बनाते है। भारत की समस्या हमेशा से यह रही हे की हम टेक्नोलॉजी उत्पादन के लिए अमरीका और यूरोप के देशो पर निर्भर रहते है जिससे हमारी निर्यात हमेशा से आयत से कम होती रही है। इसके लिए फेमा यह कानून बाद में लाया गया जिससे यह स्थिति में बदलाव आये।

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया और विदेशी विनिमय प्रबंधन / RBI & FEMA ACT 1999 –

फेमा यह कानून १९९९ में बनाया गया और २००० में पुरे भारत किया गया जिसका नियंत्रण तथा पालन का जिम्मा संसद में बनाए कानून फेमा के हिसाब से रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को दिया गया। इससे पहले जो फेरा कानून बनाया गया था इसका भी नियंत्रण रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के पास ही दिया गया था मगर वह कानून काफी सख्त था।

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया फेमा कानून के अमल के लिए रूल्स एंड रेगुलेशन बनाने का जिम्मा था जो केंद्र सरकार से सलाह लेकर उसको अमल में लाती है। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया भारत की पूरी मुद्रा का नियंत्रण संभालती हे इसलिए विदेशी मुद्रा का मैनेजमेंट करने का जिम्मा भी इस कानून के हिसाब से इस देश की सेंट्रल बैंक के ऊपर सौपा गया।

समय समय पर सरकार की नीतियों में होने वाले बदलाव तथा अंतराष्ट्रीय मार्किट में होने वाले बदलाव इसे देखते हे हुवे रिज़र्व बैंक अपने नियम बनाती हे जिसका मुख्य उद्देश्य उद्देश्य विदेशी मुद्रा का भारत में आयत बढ़ता रहे और पहले फेरा के जो सख्त नियम थे उसके विपरीत बाजार में मार्किट को लिबरल रखकर देश के हित में कार्य करे।

प्रवर्तन निदेशालय और विदेशी विनिमय प्रबंधन / Enforcement Directorate & FEMA Act –

संसद में बने फेमा इस कानून के अंतर्गत रिज़र्व बैंक को नियमन करने के अधिकार दिए गए हे तथा ED इस संस्था को फेमा के अंतर्गत होने वाली गतिविधियों पे नजर रखने का काम होता हे जिसमे जो भी गतिविधिया फेमा कानून के विपरीत देखने को मिलती हे चाहे वह भारत में हो या विदेश में कही भी हो जो इस कानून के दायरे में आती है।

प्रवर्तन निदेशालय यह संस्था आर्थिक मामलों में होने वाली गैरकानूनी घटनाओ को देखता हे जिसका जिक्र खासकर फेमा इस कानून में खास प्रावधान के साथ इसे दिए गए हे जो इसपर अमल हो। फेरा इस कानून के जैसे क्रिमिनल नियम इसकी गैरकानूनी गतिविधियों के लिए नहीं होती मगर इसमें जो सेटलमेंट सिविल मामलों में होती हे अथवा दंडात्मक कार्यवाही करने का अधिकार ED को दिया गया है।

विदेशी विनिमय क्या है / What is Foreign Exchange –

१९९० से पहले फेरा इस कानून के अंतर्गत विदेशी मुद्रा की भारत में काफी कमी होती थी जो मुख्य रूप से आयत वस्तुए तथा सर्विसेज के लिए लगता है। १९९० के बाद इस नियमन में बदलाव किये गए और विदेशी निवेश का उद्देश्य केवल रेगुलेट करना था उसे बदलकर नियोजन अथवा मैनेजमेंट करना बनाया गया जो फेमा इस कानून के अंतर्गत हम समझते है। कॅश , डिपाजिट , बांड तथा वित्तीय संपत्ति के मैनेजमेंट हेतु RBI अंतर्गत विदेशी विनिमय किया जाता है।

विदेशी विनिमय का मतलब होता हे भारत की मुद्रा यह अंतर्गत व्यवहार के लिए विनिमय का प्रमुख माध्यम होता हे वही विदेशी देशो से आयत तथा निर्यात यह मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा में किया जाता हे जो अमरीकी डॉलर माना जाता है। तथा अन्य देशो में बिज़नेस एग्रीमेंट बनाकर व्यवहार की मुद्रा क्या होगी यह तय किया जाता है।

भारत में विदेशी मुद्रा पर नियंत्रण यह रिज़र्व बैंक भारत सरकार के मार्गदर्शन से करती है तथा जागतिक बाजार व्यवस्था होने के बाद विदेशी मुद्रा का संचय भारत में बढ़ने लगा वही आयत के लिए भी विदेशी मुद्रा उपलब्ध होने लगी। विदेश में नौकरी , प्रवास , मेडिकल कारणोंसे लोगो की आवाजाही बढ़ी इसके लिए विदेशी मुद्रा का मैनेजमेंट करना जरुरी हो गया इसके लिए भारत सरकार ने फेमा यह कानून बनाया जिसके अंतर्गत मुद्रा का संचय तथा नियमन होने लगा।

फेमा और फेरा में अंतर / Difference between FERA & FEMA –

भारत में ब्रिटिश इंडिया के दौरान हमने मुद्रा निति का अवलंब किया था जिसको भारत की स्वतंत्रता के बाद विदेश मुद्रा नियमन कानून को बनाया गया जिसका मुख्य उद्देश्य था विदेश मुद्रा को भारत के लिए जो आयत करने के लिए पूंजी उपलब्ध थी वह बहुत कम होती थी इसलिए उसको सुरक्षित करने के लिए कड़े नियम बनाए गए। फेरा नियमन के कानून के प्रावधान में सजा के प्रावधान काफी कड़े थे जिसमे क्रिमिनल चार्जेज लगाए जाते थे।

फेरा कानून लगाने पर कोकाकोला और पेप्सी जैसी कंपनियों ने भारत में अपने उत्पादन को बंद कर दिया था ऐसे कई विदेशी कम्पनिया उस समय भारत छोड़ कर गयी थी जिसका परिणाम भारत में विदेशी मुद्रा का संचय १९९० आते आते काफी कम हुवा था और आर्थिक संकट देश के सामने खड़ा हुवा था तब वर्ल्ड बैंक के माध्यम से हमने हमारे आर्थिक नीतियों में बदलाव किये।

फेरा कानून को रद्द कर दिया गया और १९९९ में फेमा कानून संसद में पास किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य बदलकर विदेशी मुद्रा को भारत में निवेश करने का मार्ग खुला कर दिया गया तथा विदेशी मुद्रा के संचय जो पाबंदीया थी वह हटा दी गयी जिसका परिणाम विदेशी कम्पनिया फिर से भारत में आने लगी और विदेश मुद्रा का संचय बढ़ने लगा। इसलिए फेरा कानून और फेमा कानून के उद्देश्य काफी अलग है यह हमें देखने को मिला।

फ़ेमा के उद्देश्यों / Object of FEMA –

फेरा कानून का उद्देश्य विदेशी मुद्रा को भारत में ज्यादा से ज्यादा संचय करना यह था मगर विदेशी इन्वेस्टमेंट तथा विदेशी कंपनियों के लिए नियमन काफी कड़े होते थे। फेमा यह कानून का मुख्य उद्देश्य विदेशी मुद्रा का नियोजन करना अथवा मैनेजमेंट करना यह रखा गया क्यूंकि १९९० के बाद भारत की आर्थिक नीतियों में बदलाव किये गए।

विदेशी मुद्रा से संबंधित ग़ैरक़ानून मामले यह सिविल कानून में लाये गए जिसमे दंड के माध्यम से ऐसे मामलो को सेटल किया जाता हे जो पहले के कानून के अंदर क्रिमिनल चार्जेज लगाए जाते थे जो सेटल नहीं होते। संसद में बनाए गए कानून के प्रस्तावना में ही यह स्पष्ट रूप से बताया गया की यह कानून विदेशी मुद्रा का मैनेजमेंट करने के लिए बनाया गया हे।

इस कानून के अंतर्गत सभी विदेशी मुद्रा के व्यवहार को बाजार में मुक्त किया गया हे मगर इसपर टैक्स के प्रावधान लगाकर इसको सरकार के माध्यम से सभी व्यवहार होने चाहिए यह किया गया। जिससे भारत में कितनी विदेशी मुद्रा आती हे तथा भारत से कितनी विदेशी मुद्रा बाहर जाती हे इसका नियोजन कर सके। इसका परिणाम यह हुवा की भारत में विदेशी इन्वेस्टमेंट बढ़ने में सहायता हुई तथा विदेशी कम्पनिया भारत में आने लगी।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा (US) डॉलर और फेमा कानून / International (US) Dollar Currency –

किसी भी देश का विकास उसके आयत और निर्यात के प्रमाण पर निर्भर रहता है जिसमे भारत की बात करे तो हमेशा हमें ऑइल और टेक्नोलॉजी के लिए दूसरे देशो पर निर्भर रहना पड़ता है। १९७३ के बाद ओपेक द्वारा अमेरिकी डॉलर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर को मान्यता दी गयी। क्यूंकि ऑइल आयात यह सबसे ज्यादा ख़रीदा जाने वाला प्रोडक्ट ज्यादातर विकासशील देशो का रहा है। १९९० के समय भारत की विदेशी मुद्रा का संचय यह काफी कम हुवा था।

जिससे हमारे आयत पर इसका परिणाम हो रहा था और कुछ ही दिनों तक अमेरिकी डॉलर का संचय बचा हुवा था। उदारीकरण के माध्यम से भारत सरकार ने आर्थिक नीति में बदलाव किया और भारत में अमरीकी डॉलर का संचय बढ़ सके इसके लिए नयी आर्थिक निति के तहत फेमा कानून के माध्यम से विदेशी मुद्रा का संचय बढ़ाने में हम सफल रहे है। विदेशी कंपनियों का भारत में निवेश १९९० के बाद काफी बढ़ा हे और इससे हमारा विदेशी संचय बढ़ने में हमें सफलता मिली है।

आत्मनिर्भर भारत इस योजना के तहत अपने आयात का प्रमाण कम होकर निर्यात बढ़ सके इसलिए कई रणनीति बनाई गयी परन्तु इसमें सफलता नहीं मिल सकी हे। अमेरिकी मुद्रा का भारत में संचय बढ़ सके इसके लिए कई कानून बनाकर इसको बढ़ाया गया है और भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश बढ़ने में इससे फायदा हुवा है। भारतीय रूपए को सही कीमत मिलने के लिए फेमा कानून में कई सारे नियम बनाए गए जिसके माध्यम से एक्सपोर्ट के लिए सही मात्रा में अमरीकी डॉलर का संचय रहे इसलिए पॉलिसी बनाई गयी।

फेमा की विशेषताएं / Features of FEMA –

  • फेमा यह कानून फेरा इस कानून को रद्द करके १९९९ बनाया गया।
  • फेमा कानून की वजह से भारत में विदेशी इन्वेस्टमेंट और विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में बिज़नेस बढ़ने में प्रोस्ताहन मिला जिससे विदेशी मुद्रा का संचय बढ़ने लगा।
  • वर्ल्ड बैंक द्वारा दी गयी नीतियों के तहत फेरा कानून को रद्द करके फेमा को लाया गया।
  • फेमा इस कानून के अंतर्गत भारत सरकार भारत से बाहर बैठे व्यक्ति अथवा संस्था के भारत से संबंधित मुद्रा की आवा जाहि पर नियंत्रण रख सकती है।
  • विदेशी मुद्रा से सम्बंधित सभी व्यवहार भारत सरकार ने अधिकृत की गयी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा किया जाना बंधनकारक किया गया।
  • विदेशी प्रतिभूति अथवा मुद्रा से सम्बंधित कोई भी व्यवहार फेमा के नियमो के अनुसार करना बंधनकारक।
  • भारत सरकार जनता के हित के मामलो में किसी भी विदेशी व्यापार में व्यक्तिगत करंट अकाउंट को प्रतिबंधित कर सकती है।
  • फेमा के अंतर्गत रिज़र्व बैंक को अधिकार प्रदान किया गया हे जिसके अंतर्गत वह किसी भी व्यक्ति अथवा संस्था के कॅपिटल अकाउंट को प्रतिबंधित अथवा नियंतत्रित कर सकती है अगर वह इस कानून का उलंघन करते है।
  • भारत के नागरिक अथवा भारत में रजिस्टर्ड कंपनी विदेशी में व्यापार अथवा नौकरी कराती हे तो वह भी इस कानून के दायरे में आ जाती है।
  • दुनिया की कोई भी विदेशी कंपनी अगर भारत में कोई शाखा स्थापित करके व्यापार करती है तो वह इस कानून के दायरे में आ जाती है।

फेमा कानून का आलोचनात्मक विश्लेषण /Critical Analysis of FEMA –

  • भारत की समस्या रही हे की निर्यात बढे और आयत कम हो मगर यह कानून बनाने के बाद भी यह समस्या का समाधान हम नहीं कर पाए।
  • भारत की कानूनी व्यवस्था की उपेक्षा करके कई सरे मुद्रा से सम्बंधित व्यवहार किये जाते है जिससे देश का काफी नुकसान होता हे जो आने के बाद भी कम नहीं हुवा जिसे हवाला कहा जाता है।
  • आत्मनिर्भर भारत यह केवल योजना कागजी रूप से रह गयी हे और आयत के लिए हमें आज भी पेट्रोलियम पदार्थ तथा महंगे धातु के लिए सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा को खर्च करना पड़ता है।
  • संशोधन के मामलों में हमने विकसित देशो के मुकाबले कोई ज्यादा विकास नहीं कर पाए हे , जिसका परिणाम हम कई सारे प्रोडक्ट्स के लिए विदेशी आयात पर निर्भर रहते है।
  • विदेशी मुद्रा भारत में निर्यात से जीतनी आती हे उससे कई अधिक हमें हर साल आयत के लिए खर्च करना पड़ता है, इसलिए यह जो घटा हे यह हमें लंबी अवधि के बाद बुरे परिणाम दे सकता है ।
  • भारत में जो विदेशी कंपनियों की संपत्ति और मुद्रा के रूप में जो संचय होता हे वह भी देश की मुद्रा के रूप में देखा जाता है , वास्तविकता में वह विदेशी संपत्ति है।
  • अमरीकी डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा के रूप में संगृहीत करना पड़ता हे क्यूंकि ऑइल प्रोडक्ट पर अमरीका का प्रभुत्व हे जिसके कारन दुनिया के दूसरे विदेशी मुद्रा से ज्यादा हमें अमरीकी डॉलर का संचय अधिक रखना पड़ता है।
  • वर्ल्ड बैंक द्वारा दी गयी नीतियों को हमें भारत में फेमा के अंतर्गत अमल में लाना पड़ा जिससे भारत की सार्वभौमत्व पर परिणाम देखने को मिलते है।

निष्कर्ष / Conclusion –

विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम यह कानून बनाने का उद्देश्य १९९० की आर्थिक सरंचना में हुए बदलाव देखा गया जिससे विदेशी व्यापार को हमें भारत में खुला करना पड़ता है। जिससे भारत के छोटे व्यापार पर सबसे बड़ा संकट माना जाता है, क्यूंकि एप्पल जैसी एक विदेशी कंपनी का कैपिटल वैल्यू भारत की पूरी अर्थव्यवस्था से भी ज्यादा हे। ऐसे कंपनियों के सामने भारत के छोटे व्यापारी टिक नहीं सकते और हम इसके लिए सुरक्षा के कानून बना नहीं सकते यह हमारी समस्या है।

किसी भी देश को विकसित होना हे तो उसे अपना निर्यात बढ़ाना पड़ता हे और जिसके लिए टेक्नोलॉजी में विकसित होना जरुरी होता हे मगर हम इसके लिए विदेशी देशो पर निर्भर है। हमारे इंडस्ट्री के लिए लगाने वाली आधुनिक मशीनरी हमें आयत करनी पड़ती है ऐसे कई सारे मामलों में हमें दूसरे देशो पर निर्भर रहना पड़ता है।

भारत की शिक्षा निति को हमें विकसित करना होगा जो संशोधन आधारित शिक्षा देनी होगी जो आज नहीं है। चीन जैसे देश ने इसके लिए १९७० से इसके लिए नियोजन किया था जिसके परिणाम आज उन्हें देखने को मिलते है। भारत में अच्छी सरकारी संस्था में पढ़े हुए विद्यार्थी विदेश में नौकरी करना पसंद करते हे मगर देश के लिए काम नहीं करना चाहते , जिससे हमारा आत्मनिर्भर होने का उद्देश्य अपूर्ण रह जाता है।

विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम कानून के बारे में हमने जितने सरल भाषा में आपके सामने इस कानून के प्रावधान बताने की कोशिश की हे इसलिए यह आर्टिकल पसंद आए तो इसे आगे फॉरवर्ड करे ….

धन्यवाद …

 

कंपनी कानून क्या है ? 

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