Table of Contents

प्रस्तावना / Introduction –

मानव सभ्यता की स्थापना और प्राइवेट प्रॉपर्टी यह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, पिछले सौ सालो में एडवर्स  कब्ज़ा यह संकल्पना प्रचलित हुई हे । प्रतिकूल प्रॉपर्टी कब्ज़ा यह विषय आज के परिपेक्ष में काफी महत्वपूर्ण हैं, इसलिए  हमने यह विषय आपके सामने विस्तृत रूप से रखने के लिए लिया हैं । इसके तहत हम सामाजिक परिस्थिति क्या हैं तथा कानून क्या कहता हैं यह जानने की कोशिश करेंगे । क्यूंकि की हर व्यक्ति के जीवन में अवैध कब्ज़ा तथा जबरन प्रॉपर्टी का कब्ज़ा यह समस्याए देखने को मिलती हैं ।

सरकारी प्रॉपर्टी पर 30 साल से ज्यादा अगर आप रह रहे हो तो आपका मालिकाना हद्द साबित करने के लिए हमें साबुत पेश करने होते हैं । वही अगर हम किसी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर रह रहे हैं तो इसके लिए 2019 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार 12 वर्ष के आपके रहने के सबूत को दिखाना पड़ता हैं । इसलिए हम इस आर्टिकल के माध्यम से प्रतिकूल प्रॉपर्टी कब्ज़ा के कुछ अपवाद भी हम देखेंगे जहा केवल जमीन का कब्ज़ा आपका स्वामित्व नहीं सिद्ध करता हैं यह भी हम विस्तार से देखगे ।

पैतृक संपत्ति , निजी संपत्ति तथा सरकारी किस संपत्ति पर कब्ज़ा आपके स्वामिकत्व के लिए महत्वपूर्ण हैं यह हम जानने की कोशिश करेंगे तथा कानून क्या कहता हैं और न्यायपालिका द्वारा क्या निर्णय दिया गया हैं यह भी जानने की कोशिश करेंगे । किसी भी प्रॉपर्टी पर आपका स्वामित्व सिद्ध करने के लिए हमें उस जमीन का कब्ज़ा होना कोर्ट में काफी जरुरी होता हैं इसलिए मुलभुत जानकारी न होने के कारन भारत के कई परिवारों को सालो तक कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं । इसलिए प्रॉपर्टी के मामलों में मुलभुत जानकारी आपके पास होना काफी जरुरी होता हैं इसलिए यह आर्टिकल काफी महत्वपूर्ण होने वाला हैं ।

अचल संपत्ति प्रतिकूल कब्ज़ा क्या हैं / What is Adverse Possession of Property ? –

ट्रांसफर ऑफ़ प्रॉपर्टी कानून में एडवर्स पजेशन के बारे में कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं लिखी हुई हैं, इसके लिए हमें लिमिटेशन कानून के धारा  65 के देखना पड़ता हैं जहा पर किसी भी जमीन का कब्ज़ा अगर आपके पास 12 साल रहा हैं तो वह जमीन का स्वामित्व आपके पास आता हैं । इसके लिए सरकारी जमीन पर 30 साल का आपका वास्तव्य तथा प्राइवेट जमीन पर 12 साल का वास्तव्य हमें सिद्ध करना होता हैं । इसके लिए जिसके पास जमीन का कब्ज़ा होता हैं उसको कोर्ट में साबुत के साथ सिद्ध करना होता हैं की उसके पास जमीन का कब्ज़ा निरंतर 12 साल से रहा हैं ।

विपरीत कब्जे में मुख्य स्वामित्व होने के बावजूद अगर कोई व्यक्ति अपने प्रॉपर्टी के अविद्या कब्जे पर निश्चित समय तक कोई अप्पत्ति नहीं जताता तो वह प्रॉपर्टी कब्ज़ा करने वाले व्यक्ति के स्वामित्व में चली जाती हैं । इसलिए किसी भी प्रॉपर्टी के मालिक को अपने प्रॉपर्टी अधिकार के लिए जागृत होना जरुरी होता हैं, और अज्ञान यह अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए असमर्थतता दर्शाता हैं । लिमिटेशन कानून के माध्यम से समय सिमा तय की गयी हैं, उसके हिसाब से हमें अपने प्रॉपर्टी पर कोई अवैध कब्ज़ा हैं तो उसको कोर्ट में अप्पति दर्ज करनी होती हैं ।

इसलिए विपरीत प्रॉपर्टी कब्ज़ा यह संकल्पना काफी महत्वपूर्ण हैं, जिसमे प्रॉपर्टी का मालिकाना अधिकार किसके पास हैं इसपर सबसे पहले प्रॉपर्टी के अधिकारों की पुष्टि होती हैं । 2019 में सुप्रीम कोर्ट के विपरीत प्रॉपर्टी अधिकार के दिए गए फैसले के अनुसार प्राइवेट प्रॉपर्टी के लिए 12 साल तथा सरकारी प्रॉपर्टी के लिए 30 साल की समय सिमा दी गयी हैं । जिसके लिए लिमिटेशन कानून की व्याख्या का इस्तेमाल किया गया हैं । इसमें अगर सरकारी जमीन आरक्षित हो तो इसपर कब्ज़ा शून्य घोषित होता हैं वही रेंट एग्रीमेंट के माध्यम से भाड़े पर दिए गए प्रॉपर्टी को इससे अपवाद माना गया हैं । जबरन कब्ज़ा, तथा कुछ अपवाद के साथ इस विपरीत प्रॉपर्टी कब्जे में कुछ प्रोविजन रखे गए हैं ।

अचल संपत्ति प्रतिकूल कब्ज़ा संकल्पना का इतिहास / History of Adverse Possession of Property –

सिविलाइज़ेशन की स्थापना का मूल आधार ही जमीन का निजी संपत्ति के तौर पर इस्तेमाल माना जाता हैं, तथा इतिहास में विस्तार वाद की मूल संकल्पना में ही जमीन पर कब्ज़ा करना हैं । ब्रिटिश इंडिया में इसे कानून के रूप में ढाला गया जिसमे 19 वि सदी में हमें ट्रांस्पेर ऑफ़ प्रॉपर्टी कानून के माध्यम से न्यायिक व्यवस्था को सिविल मामलो के लिए इस्तेमाल होने लगा । ट्रांसफर ऑफ़ प्रॉपर्टी कानून में एडवर्स पोजीशन किसे कहते हैं इसकी व्याख्या नहीं मिलती मगर यह लिमिटेशन कानून 1908 तथा 1963 में देखने को मिलती हैं ।

जैसे जैसे गावो का शहरीकरण होने लगा वैसे वैसे प्रॉपर्टी के विवाद बढ़ने लगे, ऐसा नहीं हैं की इससे पहले प्रॉपर्टी के विवाद बोते नहीं थे मगर इसका स्वरुप बदलने लगा । इसलिए हम देखते हैं की लिमिटेशन कानून में बदलाव किए गए तथा व्याख्या में समय समय पर न्यायिक व्यवस्था द्वारा व्याख्या बनाई गयी । वैसे भी सिविल मामलो में न्याय मिलने में  काफी  समय लगता हैं, इसलिए प्रॉपर्टी के मामलो में जानकारी होना यही सबसे बड़ा समाधान होता हैं ।

1908 के कानून के हिसाब से वादी याने याचिका करता को अपने मालिकाना अधिकार को कोर्ट में साबित करना पड़ता था मगर सुधारित लिमिटेशन कानून के तहत अब प्रतिवादी को अपने एडवर्स पोजीशन को सबूतों के साथ साबित करना होता हैं तथा वादी को केवल अपने मालिकाना अधिकार को कोर्ट में पेश करना होता हैं । समय समय पर एडवर्स पोजीशन की निर्णयोकि खामियों को सुधारित किया गया हैं । जिससे सही व्यक्ति को न्याय मिल सके । क्यूंकि कई बार ट्रेस पास याने अवैध कब्ज़ा इसकी व्याख्या करना बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता हैं ।

लिमिटेशन कानून और प्रतिकूल कब्ज़ा /Limitation Act and Adverse Possession –

एडवर्स पोजीशन के सिद्धांत को समझते समय हमें जमीन का स्वरुप समझने की जरुरत होती हैं जिसमे सरकारी जमीन , प्राइवेट जमीन तथा प्राइवेट जमीन में वह पैतृक प्रॉपर्टी हे अथवा व्यक्तिगत प्रॉपर्टी हैं यह भी जानना जरुरी होता हैं । ट्रांसफर ऑफ़ प्रॉपर्टी के तहत प्रॉपर्टी के सभी विवाद को निर्धारित किया जाता हैं जिसमे लिमिटेशन कानून का एडवर्स पोजीशन के मामलो में काफी महत्त्व होता हैं । अगर एडवर्स पोजीशन सरकारी जमीन पर हैं तो लिमिटेशन कानून के हिसाब से निरंतर 30 साल आपको जमीन का कब्ज़ा होना जरुरी हैं । वही प्राइवेट संपत्ति के मामलो में यह कब्ज़ा निरंतर 12 साल होना जरुरी हैं ।

लिमिटेशन कानून 1963 के आर्टिकल 65 के अनुसार एडवर्स पोजीशन बनने के बाद ही लिमिटेशन समय निर्धारित किया जाता हैं जो सरकारी जमीन के एडवर्स कब्जे को 30 साल तथा प्राइवेट प्रॉपर्टी के लिए 12 साल का एडवर्स पोजीशन होना जरुरी होता हैं । लिमिटेशन कानून 1908 के आर्टिकल 142 और 144 के तहत वादी यानि प्रॉपर्टी मालिक को प्रॉपर्टी का कब्ज़ा तथा प्रॉपर्टी टाइटल साबित करना होता हैं वही लिमिटेशन कानून 1963 के तहत कोर्ट में सबुत पेश करने का दायित्व शिफ्ट किया गया एडवर्स पोजीशन धारक यानि प्रतिवादी को करना पड़ता हैं ।

एडवर्स पोजीशन का दायित्व निरंतर 12 साल साबित करने के लिए समय सिमा बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं जिसमे दोनों पार्टिया अपने अधिकारों के लिए जागृत होना जरुरी हैं । सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई बार लिमिटेशन कानून में तय की हुई 12 साल की समय सिमा प्रॉपर्टी धारक के लिए ज्यादा होनी चाहिए जो 30 – 40 साल होनी चाहिए जिससे प्रॉपर्टी धारक को सही समय मिलेगा । इसके लिए कानून में संशोधन करने की जरुरत हैं क्यूंकि इससे कानून के जानकर लोग फायदा उठाते हैं तथा दूसरे लोगो को इसका नुकसान भुगतना पड़ता हैं ।

सुप्रीम कोर्ट का प्रतिकूल कब्ज़ा पर निर्णय / Important Supreme Court Judgement on Adverse Possession –

सुप्रीम कोर्ट केस रविंदर कौर गरेवाल विरुद्ध मजीत कौर एयर 2019 SC-3827 के माध्यम से पहली बार भारत में एडवर्स पोजीशन धारक अपने कब्जे को सुरक्षित करने के लिए कोर्ट में दावा दाखिल कर सकता हैं यह निर्णय दिया गया । इससे पहले “गुरुद्वारा साबिन विरुद्ध  सिरथला ग्रामपंचायत केस (2014) 1 SC-669 तथा स्टेट ऑफ़ उत्तराखंड विरुद्ध  लक्ष्मण सिद्ध महाराज मंदिर (2017) 9 SCC-579 और धर्मपाल विरुद्ध पंजाब वक्फ बोर्ड (2018) 11 SCC-449 इन महत्वपूर्ण केसेस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एडवर्स पोजीशन अधिकार के लिए दावा दाखिल करने का अधिकार केवल मूल प्रॉपर्टी धारक को दिया गया था ।

रविंद्र कौर गरेवाल मामले में यह फैसला बदलते हुए अब एडवर्स पोजीशन धारक भी अपने कब्जे को सुरक्षित रखने के लिए कोर्ट में केस दाखिल कर सकता हैं जो इससे पहले केवल अपने ऊपर लगे दावे पर डिफेंड करता था । ऐसा माना जाता था की मूल प्रॉपर्टी धारक इस संकल्पना में अपने अधिकार को तलवार की तरह इस्तेमाल कर सकता था वही एडवर्स पोजीशन धारक केवल ढाल की  तरह अपने अधिकार को इस्तेमाल कर सकता था । वैसे तो एडवर्स पोजीशन की व्याख्या कही पर भी स्पष्ट रूप से लिखी नहीं गयी हैं परन्तु समय समय पर कोर्ट ने इसकी व्याख्या की हैं ।

रविंदर गरेवाल विरुद्ध मंजीत कौर मामले में तीन जजों की बेंच के सामने केस चला जिसमे न्यायाधीश अरुण मिश्रा, न्यायाधीश एस अब्दुल नज़ीर, तथा न्यायाधीश एम् आर शाह के सामने यह यह मामला चला जिसमे कुछ प्रश्न उठाए गए ।

  1. प्रतिकूल कब्ज़ा धारक प्रॉपर्टी पर अपना दावा लिमिटेशन कानून के तहत आर्टिकल 65 में क्या अधिकार दे सकते हैं ? जिसमे प्रतिवादी द्वारा प्रॉपर्टी पर गैर कानूनी तरीके से कब्ज़ा हासिल करने की कोशिश हो रही हो ,
  2. क्या प्रतिकूल कब्जाधारक अपने अधिकार को तलवार की तरह इस्तेमाल कर सकता हैं अथवा पिछले दिए गए फैसले की तरह केवल ढाल की तरह अपने अधिकार को लड़ सकता हैं ?
  3. मूल संपत्ति धारक अगर अपना संपत्ति अधिकार लिमिटेशन कानून के तहत खो चूका हो फिर भी वह संपत्ति बेचने की कोशिश कर रहा हो तो क्या प्रतिकूल कब्ज़ा धारक को अपना बचाव करने के लिए कोई प्रावधान हैं ?

प्रतिकूल संपत्ति कब्ज़ा अधिकार के लिए अपवाद / Exceptions for Adverse Possession Rights –

  • जहा टेनेंट और प्रॉपर्टी मालिक यह रिश्ता कॉन्ट्रैक्ट के माध्यम से तथा रजिस्ट्रेशन फ्री भरके किया जाता हैं वह प्रतिकूल कब्ज़ा अधिकार स्थापित नहीं होता ।
  • कई मामलो में लिखित में कोई करार नहीं होता मगर टेनेंट और मालिक का रिश्ता बन जाता हैं तथा रेंट भी तय होता इस मामलो में अगर उद्देश्य प्रॉपर्टी पर रेंट के तौर पर प्रॉपर्टी इस्तेमाल करने का उद्देश्य हैं तो यह प्रॉपर्टी कब्ज़ा नहीं साबित होता हैं ।
  • प्रॉपर्टी धारक अपने किसी पहचान के अथवा नजदीकी व्यक्ति को थोड़े समय के लिए अपनी प्रॉपर्टी रहने के लिए देता हैं वह समय प्रतिकूल प्रॉपर्टी कब्ज़ा में नहीं आता हैं ।
  • जिस संपत्ति पर कोई भी अन्य व्यक्ति अपना अधिकार नहीं दिखा रहा हैं ऐसे मामलो में प्रतिकूल कब्ज़ा संकल्पना का कोई आधार नहीं होता ।
  • लिमिटेशन कानून के अनुसार लिमिटेशन समय के दौरान अगर प्रॉपर्टी धारक की मानसिक स्तिथि ठीक नहीं हैं तो वह समय प्रतिकूल कब्जे के लिए नहीं पकड़ा जाता ।
  • प्राइवेट संपत्ति के लिए निरंतर 30 साल तथा प्राइवेट संपत्ति के लिए निरंतर 12 साल का कब्ज़ा जमीन पर होना अनिवार्य हैं ।
  • अगर प्रतिकूल संपत्ति कब्जे के अधिकार को हासिल करने के लिए कोई कागजी साबुत उपलब्ध नहीं हैं ऐसे मामलो में यह कब्ज़ा साबित करना मुश्किल होता हैं ।
  • अगर प्रतिकूल प्रॉपर्टी अधिकार आप किसी सरकारी  प्रॉपर्टी पर हैं तो वह किसी विशेष कार्य के लिए  सरकार द्वारा आरक्षित  नहीं होनी चाहिए ।

प्रतिकूल संपत्ति कब्ज़ा साबित करने के लिए दस्तावेज / Important Documents for Adverse Possession –

  • प्रतिकूल प्रॉपर्टी का  लाइट बिल
  • प्रतिकूल प्रॉपर्टी का आधार कार्ड
  • प्रतिकूल प्रॉपर्टी का ड्राइविंग  लायसेंस
  • प्रतिकूल प्रॉपर्टी का चुनाव पहचान पत्र
  • प्रतिकूल प्रॉपर्टी का राशन कार्ड पत्र

इस तरह से लिमिटेशन कानून के आर्टिकल 65 के अनुसार निरंतर 12 साल तक प्रतिकूल कब्ज़ा सभीत करने के लिए ऊपर दिए गए महत्वपूर्ण किसी भी दस्तावेज को कोर्ट में सभूत के तौर पर देखा जाता हैं । अगर प्रतिकूल कब्ज़ा निरंतर 12 साल का नहीं हो तो यह अधिकार सिद्ध करने के लिए धारक को बड़ा मुश्किल होता हैं ।

प्रतिकूल कब्जे की अनिवार्यता /Essentials of adverse possession?-

  • अचल संपत्ति होना जरुरी  हैं ।
  • वास्तविक प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा होना जरुरी  हैं ।
  • प्रॉपर्टी पर विवादित कब्ज़ा होना जरुरी हैं ।
  • शांतिपूर्ण तथा अवैध कब्ज़ा होना जरुरी हैं ।
  • निरंतर कब्ज़ा होना जरुरी हैं ।
  • प्रतिकूल कब्ज़ा यह कानून के समय सिमा तक होना जरुरी हैं ।
  • प्रतिकूल कब्ज़ा यह गुप्त रूप से नहीं होना चाहिए ।

अचल संपत्ति प्रतिकूल कब्ज़ा संकल्पना की विशेषताए / Features of Adverse Posession of Property Rights –

  • विपरीत संपत्ति कब्ज़ा अगर हो तो वह दुनिया को पता होना चाहिए वह कब्ज़ा गुप्त रूप से नहीं होना चाहिए, गुप्त कब्ज़ा कभी भी आपको प्रॉपर्टी का अधिकार प्रदान नहीं कर सकता ।
  • प्रॉपर्टी के मूल मालिक को यह पता होना चाहिए की उसकी प्रॉपर्टी में दूसरे व्यक्ति का कब्ज़ा हैं, लिमिटेशन कानून में विपरीत प्रॉपर्टी कब्ज़ा इस संकल्पना की व्याख्या करने के लिए यह आधार लिखा हुवा हैं ।
  • एडवर्स पोजीशन संकल्पना में  विशेष विपरीत प्रॉपर्टी कब्ज़ा और प्रॉपर्टी का इस्तेमाल करना जरुरी हैं ।
  • विपरीत प्रॉपर्टी कब्जे में मूल स्वामित्व धारण करने वाले व्यक्ति का वह प्रॉपर्टी पर कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए ।
  • विपरीत प्रॉपर्टी कब्ज़ा अगर हैं तो वह प्राइवेट प्रॉपर्टी के लिए 12 साल तथा सरकारी जमीन हैं तो 30 साल निरंतर होना चाहिए ।
  • एडवर्स पोजीशन में जमीन अथवा किसी घर का कब्ज़ा कोर्ट में साबित करने की जिम्मेदारी जमीन का कब्ज़ा करने वाले व्यक्ति पर होती हैं जिसे वह साबुत देने होते हैं ।
  • लिमिटेशन कानून 1908 के तहत प्लेनटिफ याने प्रॉपर्टी का असली मालिक को 12 साल का स्वामित्व तथा कब्ज़ा सिद्ध करना होता था मगर लिमिटेशन कानून 1963 के हिसाब से प्रतिवादी याने जिसके पास निरंतर 12 साल का एडवर्स कब्ज़ा हैं इसको सभूत पेश करने होते हैं तथा असली मालिक को केवल टाइटल पेश करना होता हैं ।
  • सरकारी आरक्षित जमीन तथा डिफेन्स की जमीन का कब्ज़ा चाहे आपके पास कितने भी दिन रहे मगर एडवर्स पोजीशन का अधिकार इसमें नहीं प्राप्त होता तथा अन्य सरकारी जमीन के एडवर्स कब्जे के लिए 30 साल की मर्यादा लगाई गयी हैं ।
  • सुप्रीम कोर्ट केस रविंदर कौर गरेवाल विरुद्ध मजीत कौर एयर 2019 SC-3827 के आदेश के अनुसार वादी एडवर्स पोजीशन से अपनी प्रॉपर्टी को बाहर निकलने के लिए याचिका दाखिल कर सकता हैं ।

अचल संपत्ति प्रतिकूल कब्ज़ा संकल्पना का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of Adverse Possession of Property Rights – 

प्रतिकूल प्रॉपर्टी संकल्पना के मामलो में 2019 के दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार प्रतिकूल कब्ज़ा धारक को भी दावा पेश करने का अधिकार दिया गया हैं । जिससे इसलिए प्रॉपर्टी विवाद मामलो में और जटिलता आने की संभावना दिखती हैं क्यूंकि ऐसे मामलो में मुख्य रूप से जानकारी का आभाव यह सबसे बड़ी समस्या देखने को मिलती हैं । इसमें अनपढ़ लोगो को नुकसान होता हैं ऐसा नहीं हैं बल्कि पढ़े लिखे लोगो को भी प्रॉपर्टी अधिकार के लिए क्या सावधिनिया बरतनी चाहिए यह अज्ञान होता हैं ।

प्रॉपर्टी डिस्प्यूट में इसलिए जमीनी स्तर पर देखते हैं की प्रॉपर्टी पर अवैध रूप से कब्ज़ा करके ताकदवर लोग इस कानून का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं । क्यूंकि सामान्य व्यक्ति ऐसे मामलो में सबूतों की अहमियत नहीं जनता हैं और वह ऐसे सबूत नहीं जुटा  पता जिससे कोर्ट में बहुत सारे मूल प्रॉपर्टी धारक को न्याय मिलने के लिए तकलीफ होती हैं । प्रॉपर्टी कानून के मामलो में जानकारी रखने वाले तथा ताकदवर लोग इस कानून का ज्यादातर बार गलत फायदा उठाते हुए हमें दिखते हैं ।

भारत की न्यायिक प्रक्रिया में निर्णय देने में देरी तथा ज्यादा समय तक चलने वाली केस की प्रक्रिया इससे न्याय मिलने में काफी परेशानी होती हैं । इसलिए सामान्य लोग प्रॉपर्टी के मामलो में कोर्ट में जाने के बजाए गलत पर्याय चुनने के निर्णय लेते हैं जिससे केस सुलझने की बजाय और उलझ जाता हैं । क्रिमिनल मामलो में ही इतनी देरी लगाती हैं तथा अंडर ट्रायल मामला भारत की न्यायिक प्रक्रिया के लिए पूरी दुनिया में गलत धारणा पहुँचता हैं, सिविल मामलो में इससे अधिक स्थिति ख़राब हैं । जिसका फायदा जमीन माफिया तथा अन्य शक्तिशाली लोग बड़े शहरों में एक अपना कानून बनाकर ऐसी जमीनों को अवैध रूप से कब्ज़ा हासिल करते हैं ।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने प्रतिकूल कब्ज़ा क्या होता हैं तथा इसके सकारात्मक परिणाम तथा नकारात्मक परिणाम समाज में कैसे निर्माण होते हैं यह जानने की कोशिश इस आर्टिकल के माध्यम से की हैं । प्रतिकूल कब्ज़ा धारक को अपना उद्देश्य तथा निरंतर 12 साल निजी संपत्ति पर तथा 30 साल सरकारी संपत्ति पर कब्ज़ा साबित करना होता हैं । प्रतिकूल प्रॉपर्टी कब्ज़ा हासिल करने के लिए कोर्ट में 2019 से पहले धारक को अपने अधिकार का इस्तेमाल केवल सुरक्षा हेतु ढाल के तौर पर होता था जो बाद में कोर्ट में केस दाखिल करने का अधिकार दिया गया ।

हमने विस्तार से वह केस देखने की कोशिश की जिसमे प्रतिकूल कब्ज़ा धारक को कैसे दावा पेश करने का अधिकार दिया गया हैं। यह आर्टिकल समाज के लिए काफी जरुरी हैं क्यूंकि ज्यादातर लोग इसके लिए अज्ञान में रहते हैं जिससे डिस्प्यूट निर्माण होता हैं । न्यायिक प्रक्रिया की खामियों के वजह से कई बार लोग गलत तरीके से अपनी प्रॉपर्टी को हासिल करने की कोशिश करते हैं जिससे कोर्ट में वह अपना कुदरती अधिकार खो देता हैं ।

किसी भी प्रॉपर्टी के मामलो में हमें किसी वकील की तरह एक्सपर्ट होने की जरुरत नहीं होती किन्तु बेसिक जानकारी रखना भविष्य में जीवन को सुखकर बनाती हैं । हमने कई ऐसे मामलों में देखा हैं की केवल अज्ञान वर्ष गलती करने पर प्रॉपर्टी धारक को सालो तक कोर्ट में केस लड़ना पड़ता हैं जिसमे समय, पैसा तथा मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता हैं । इसलिए पहले से ही सावधानिया बरतने से यह सब समस्याए हमारे जीवन में नहीं आएगी यह हमें देखना चाहिए ।

इंडियन स्टॅम्प एक्ट और रजिस्ट्रेशन एक्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *