प्रस्तावना / Introduction –

2G स्पेक्ट्रम घोटाला और 2G स्पेक्ट्रम केस यह दो अलग टर्म हे जिसको हमें सावधानी से इस्तेमाल करना होगा क्यूंकि इसमें दो तरह से इस केस को देखना होगा। सिविल अपराध और क्रिमिनल अपराध यह दो तरह से इस केस को देखना होगा जिसमे सीबीआई स्पेशल कोर्ट में जो मामला चला था वह क्रिमिनल चार्जेज के लिए चलाया गया था। २०१२ में सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम लाइसेंस रद्द किए थे, वह एक सिविल अपराध का मामला था जिसमे पारदर्शकता के आभाव को देखते हुए स्पेक्ट्रम आवंटन को दुबारा अमल में लाने के आदेश दिए गए।

भारत में सिविल रॉंग के लिए आज तक कोई कानून नहीं बनाया गया हे जिसमे सरकार के कोई गलत निर्णय की वजह से कोई नुकसान हुवा है इसको साबित किया जाए। कंस्यूमर राइट्स तथा संविधान द्वारा दिए गए मुलभुत अधिकारों के माध्यम से नागरिको को अधिकार दिए गए हे जिसके आधार पर वह सरकार से लड़ सकते है। सरकार की गलत पॉलिसी की वजह से अगर कोई नुकसान होता हे तो इसे सिद्ध करना बड़ा मुश्किल काम होता है। 2G स्पेक्ट्रम आवंटन केस में देश को २.७६ लाख करोड़ का नुकसान हुवा था यह अकड़ा एक अंदाजा हे जिसे मीडिया द्वारा चलाया गया।

इस आर्टिकल के माध्यम से हम 2G स्पेक्ट्रम केस के सभी दॄष्टिकोण से देखने की कोशिश करेंगे। क्यूंकि हम यह आर्टिकल लिख रहे हे जिसमे एक बायसनेस हमेशा रहता हे जो कम ज्यादा मात्रा में हर किसी में होता है। हर व्यक्ति में पूर्वाग्रहित दॄष्टिकोण होते हे चाहे आप कितने भी बुद्धिजीवी क्यों रहे इसलिए कानूनी प्रक्रिया के सिद्धांत को समझते हुए हम सभी दॄष्टिकोण को आपके सामने रखने की कोशिश करेंगे। इसलिए हम इसे 2G घोटाला न कहते हुए 2G स्पेक्ट्रम केस के माध्यम से देखने की कोशिश करेंगे और तथ्य पेश करेंगे।

2G स्पेक्ट्रम केस की पाश्वर्भूमी / Background of 2G Spectrum Case –

UPA सरकार में तमिलनाडु की DMK पार्टी के ए राजा इस सरकार में टेलीकॉम मिनिस्टर थे जिसके माध्यम से यह स्पेक्ट्रम आवंटन किया गया था। इससे पहले नीलामी के माध्यम से स्पेक्ट्रम की अथवा अन्य सेवाओं की नीलामी होती रही हे। २००८ में यह आवंटन करने के लिए कुछ खास कंपनियों को प्राथमिकता दी गयी हे ऐसे आरोप किए गए है। जिन कंपनियों को टेलीकॉम क्षेत्र में कुछ अनुभव नहीं था ऐसे कंपनियों को लाइसेंस दिया गया ऐसे आरोप किए गए। साधारणतः शैल कम्पनिया बनाकर नीलामी के द्वारा कम कीमत पर स्पेक्ट्रम मिलने के लिए बड़ी कम्पनिया इस्तेमाल करती है।

टेलीकॉम मिनिस्टर ए राजा द्वारा कैबिनेट की मंजूरी के बैगर टेलीकॉम स्पेक्ट्रम आवंटन का निर्णय लिया गया ऐसा चित्र देखने को मिलता है मगर खुद ए राजा की माने तो उन्होंने प्रधानमंत्री को तथा वित्त मंत्री प्रणय मुखर्जी से कैबिनेट बैठक में यह बात बताई थी ऐसा कहा गया। जब CAG के आरोप पत्र में आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शकता का भाव बताया गया और इससे देश का १. ७६ लाख करोड़ का नुकसान हुवा हे ऐसा कहा गया। पीएमओ ऑफिस के प्रशासकीय अधिकारियो द्वारा टेलीकॉम मिनिस्ट्री के स्पेक्ट्रम आवंटन प्रक्रिया की जानकारी गलत तरीके से पेश की गयी ऐसे आरोप लगे।

ए राजा के साथ साथ करुणानिधी की बेटी तथा सांसद कनिमोझी को जिस कंपनी में शेयर्स हे इसमें आवेदन करने वाली कंपनी के द्वारा पैसे ट्रांसफर किए गए ऐसे आरोप सीबीआई द्वारा किए गए। २००८ की यह स्पेक्ट्रम आवंटन प्रक्रिया के आरोप के लिए कई सामाजिक संस्थाए तथा विपक्ष द्वारा याचिका दायर की गयी थी। प्रधानमंत्री जी को सुब्रमणियम स्वामी द्वारा इसके लिए हस्तक्षेप करने के लिए गुजारिश की गयी थी। UPA सरकार पर 2G स्कॅम मामले में दखल लेने में देरी की गयी ऐसे आरोप विपक्ष द्वारा किए जाते है।

क्या हे २ जी स्पेक्ट्रम केस ? / What is 2G Spectrum Case ? –

2G का मतलब होता है सेकंड जनरेशन मोबाइल नेटवर्क जो एक टेक्नोलॉजी हे जिसके माध्यम से टेक्स्ट मेसेज और फोटोज दूसरे मोबाइल पर भेजे जाते है। जिसमे आज 4G मोबाइल नेटवर्क टेक्नोलॉजी इस्तेमाल होती है जो हवा में तरंगे इस्तेमाल करके हमें इंटरनेट की सेवा टेलीकॉम कंपनियों के माध्यम से मिलती है। स्पेक्ट्रम यह इन तरगो इस्तेमाल करना हे इसका नियंत्रण सरकार को मिलता हे जिसके माध्यम से यह स्पेक्ट्रम पुरे देश के लिए कंपनियों को बेचा जाता है। १२२ स्पेक्ट्रम लाइसेंस के लिए २००७ में आवेदन मँगाए गए जिसके लिए पुरे भारत से ४६ कम्पनियो द्वारा आवेदन दिए गए जिसमे ९ कंपनियों को यह स्पेक्ट्रम लाइसेंस दिए गए।

इसमें विवाद कहा निर्माण होते हे यह हमें जानना होगा, स्पेक्ट्रम के लिए पहले जो आवेदक आता हे उसे स्पेक्ट्रम दिया जाएगा यह सिस्टम का इस्तेमाल किया गया। इससे पहले ज्यादातर सरकारों द्वारा नीलामी के माध्यम से ऐसे स्पेक्ट्रम लाइसेंस दिए जाते थे, मगर १९९५ में भाजप गठबंधन वाली सरकार द्वारा भी इस सिस्टम का इस्तेमाल किया गया था। ९ कंपनियों को यह स्पेक्ट्रम देने पर आक्षेप लिया गया जिसमे यूनिटेक और स्वान टेलीकॉम इन जैसे कुछ कंपनियों के स्पेक्ट्रम विवाद में रहे है। कुछ कंपनियों को टेलीकॉम क्षेत्र का कुछ अनुभव नहीं था मगर फिर भी उनको लाइसेंस दिए गए ऐसा दावा किया गया।

भारत सरकार की रेगुलेशन भाषा इतनी टेक्निकल थी की वह न आवेदन करने वाली कंपनी को समझमे आयी और न प्रशासकीय अधिकारियो को यह स्पेशल कोर्ट का निरिक्षण रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस आवंटन को रद्द कर दिया गया और नए से आवंटन प्रक्रिया पारदर्शक बनाने को सरकार को कहा गया। २०१७ में सीबीआई स्पेशल कोर्ट द्वारा १७ आरोपियों को निर्दोष करार किया जिसमे सीबीआई कोई भी ठोस सबूत नहीं दे सकी यह टिपण्णी दी गयी। 2G स्पेक्ट्रम घोटाला हुवा था ? यह महत्वपूर्ण सवाल फिर भी वैसे ही रहता है जिसको हम अंत में निष्कर्ष के माध्यम से देखगे।

2G स्पेक्ट्रम केस और टेलीकॉम मिनिस्टर ए राजा / 2G Spectrum Case & Telecom Minister A. Raja –

टेलीकॉम स्पेक्ट्रम के लाइसेंस आवंटन के कारन CAG प्रमुख विनोद राय के द्वारा कहा गया की इस आवंटन से देश को १.७६ लाख करोड़ रूपए का नुकसान हुवा था। भारत की प्रमुख मीडिया द्वारा इस खबर को बखूबी उछाला गया जिससे सुप्रीम कोर्ट तथा सीबीआई जैसी इन्वेस्टीगेशन एजेंसी पर इसका काफी दबाव रहा। २०१७ को जब स्पेशल कोर्ट द्वारा ए राजा और बाकि आरोपियों को सबूत न होने के कारन छोड़ा गया तब उन्होंने विनोद राय के उस स्टेटमेंट की काफी आलोचना की है। मीडिया द्वारा ए राजा का इंटरव्यू कई टेलीविज़न द्वारा किया गया जिसमे उन्होंने विनोद राय को सामने आकर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया था।

इन्वेस्टीगेशन के दौरान ए राजा को अपने मंत्रिपद का इस्तीफा देना पड़ा था और उन्हें १५ महीने जेल में रहना पड़ा था। जेल से जमानत मिलने के बाद सबसे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री को पात्र लिखकर अपनी नाराजी बयान की थी। कैबिनेट मिनिस्ट्री के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी तथा पि चिताम्बरम जैसे मंत्री इस इन्वेस्टीगेशन के दौरान चुप रहे यह उनको समझमे नहीं आया। ए राजा का मानना था की कैबिनेट मिनिस्टरी द्वारा कोई स्टैंड लेना जरुरी था जो उन्होंने नहीं लिया तथा प्रधानमंत्री से मिलकर उन्होंने ३० मिनट तक चर्चा की और कहा की समय आने पर यह भी बताउगा की यह क्या बातचीत हुई।

ए राजा द्वारा “2G SAGA UNFOLDS” यह किताब लिखी गयी जिसमे उन्होंने कैसे उनको फसाया गया यह कहानी लिखी हुई हे। वह खुद एक कानून विद्यार्धी रहे हे इसलिए उन्होंने कानूनी व्याख्या देकर कैसे सुप्रीम कोर्ट ने विनोद राय के प्रभाव में आकर स्पेक्ट्रम लाइसेंस रद्द कर दिए यह कहा। टेलीकॉम मिनिस्टर के तौर पर उनका मानना था की उन्होंने पहले आओ और लाइसेंस पाओ यह सिस्टम लेकर क्रांतिकारक निर्णय लिया था। क्यूंकि नीलामी में उनका मानना था की प्रस्थापित कम्पनिया छोटे कंपनियों पर अपना प्रभाव डालती हे और लाइसेंस लेती है। वह शुरू से लेकर आखिर तक यह कहते रहे की वह निर्दोष हे तथा वह किसी के साथ भी चर्चा करने के लिए तैयार है।

2G स्पेक्ट्रम केस और राजनीती / 2G Spectrum Case & Politics –

२०१४ में भाजप सरकार बहुमत से जीती थी इससे पहले अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल का दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन पुरे भारत में हमें देखने को मिला। कांग्रेस सरकार को कोयला घोटाला , 2G स्पेक्ट्रम घोटाला जैसे कई आरोपों का सामना करना पड़ा। वैसे तो भाजपा का चुनावी मुद्दा यह भ्रष्टाचार मुक्त भारत और विकास यह रहा था और हमें यह नहीं भूलना चाहिए की विदेशी बैंको में भारत का काला धन भारत में आना चाहिए इसके लिए बड़ी मोहिंम देखने को मिली थी।

सुप्रीम कोर्ट की देख रेख में स्पेशल कोर्ट के माध्यम से 2G स्पेक्ट्रम केस की कार्यवाही लगबघ सात सालो तक चली जिसमे १७५३ सवाल ए राजा को पूछे गए। कोर्ट ने सभी आरोपियों को निर्दोष सिद्ध करते हुए मीडिया द्वारा चलाए गए अभियान पर तंज कसा और बगैर किसी आधार की खबरे चलाने के लिए उसकी आलोचना की गयी। सरकार के उस समय के अटॉर्नी जनरल रहे मुकुल रोहतगी ने सीबीआई के सबूत इखट्टा करने की असफलता को आलोचना से उत्तर देते हुए कोर्ट के निर्णय को स्वीकार किया।

२०१७ में स्पेशल कोर्ट ने यह निर्णय दिया जिससे कपिल सिब्बल द्वारा “जीरो लॉस थेओरी ” को फिर से दोहराया जिसके लिए २०१२ सोशल मीडिया पर आलोचना होती रही है। उन्होंने इसके लिए नोटबंदी का दाखिला देते हुए कहा की क्या नोटबंदी के फैसले से देश का नुकसान हुवा है ? क्या इससे भाजप सरकार कटघरे में नहीं लेना चाहिए। वही अरुण जेटली द्वारा सुप्रीम कोर्ट के स्पेक्ट्रम आवंटन को रद्द करने के निर्णय की कांग्रेस को याद दिलाई। ऐसे ही 2G स्पेक्ट्रम आवंटन प्रक्रिया में हमें राजनीती देखने को मिलती है जिसमे घोटाला हुवा था ? यह बात अनुत्तरित रहती है।

2G स्पेक्ट्रम केस और कोर्ट का निर्णय / 2G Spectrum Case & Court Virdict –

2G केस के सभी १७ आरोपियों को स्पेशल कोर्ट ने सबूत न होने के कारन २०१७ में निर्दोष करार दिया। कैसे तो सीबीआई द्वारा ८०००० हजार पन्नो की चार्ज शीट स्पेशल कोर्ट में सादर की थी, मगर कोर्ट ने पाया की कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं हे जिसमे इन आरोपियों पर क्रिमिनल चार्जेज लगते है। यह केस सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में तथा ओ पी सैनी के माध्यम से सात सालो तक चलाया गया जिसमे ए राजा को लगबघ १७५३ सवाल पूछे गए। स्पेशल कोर्ट ने अपने निरिक्षण में यह पाया की पीएमओ ऑफिस द्वारा प्रधानमंत्री को सही जानकारी नहीं पहुंचाई।

सीबीआई द्वारा पिछले सात सालो से जज साहब को लगता था की अब सबूत पेश होंगे वह इंतजार करते रहे मगर आखिर तक कोई ठोस सबूत सीबीआई द्वारा नहीं पेश किए गए। ज्यादातर आरोप यह CAG रिपोर्ट पर आधारित थे जिसमे कोई कानूनी सबूत नहीं होते वह एक ऑडिट प्रक्रिया होती है, जो एक सिमित दायरे में होती है। CAG प्रमुख विनोद राय द्वारा १.७६ लाख करोड़ के नुकसान की थेओरी यह अंदाजे पर आधारित थी जिससे आरोपियों पर कोई कानूनी क्रिमिनल चार्जेज सिद्ध नहीं होते यह कोर्ट का मानना रहा है।

२०१२ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कैंसिल किए गए 2G स्पेक्ट्रम आवंटन का स्पेशल केस में चलने वाले क्रिमिनल चार्जेज से कोई संबंध नहीं हे यह ओ पी सैनी ने कहा है। 2G स्पेक्ट्रम केस यह सिविल मामला तथा क्रिमिनल मामला ऐसे दो तरह से चलाया गया जिसमे स्पेशल कोर्ट में क्रिमिनल चार्जेज के साथ आरोपियों को निर्दोष सिद्ध किया गया है। सीबीआई तथा ED यह मामला उच्च न्यायलय में लेकर जा सकती है यह कहा गया। परन्तु हाई कोर्ट में भी सबूत पेश करने होंगे जो काफी कमजोर लग रहे हे, सीबीआई को पिछले सात सालो में काफी समय था सबूत जुटाने के लिए जिसमे वह असफल रही है।

२जी स्पेक्ट्रम केस की विशेषताए / Features of 2G Spectrum Case –

  • २००८ में टेलीकॉम मिनिस्टर ए राजा द्वारा ९ कंपनियों को “First come First Give ” माध्यम से ४६ कंपनियों के आवेदनों में से सेलेक्ट किए गए।
  • स्पेक्ट्रम लाइसेंस देने की दो पद्धतिया होती हे जिसमे एक नीलामी के माध्यम से और दूसरी प्राथमिकता और इंटरव्यू के माध्यम से जिसमे टेलीकॉम मंत्रालय ने प्राथमिकता और इंटरव्यू की पद्धती के माध्यम से कम्पनिया चुनी।
  • २०१० में CAG ने २००८ में हुए टेलीकॉम स्पेक्ट्रम आवंटन मामलो में एक रिपोर्ट पेश की जिसमे कुछ सवाल उठाए गए जिसमे देश का २.७६लाख करोड़ का नुकसान हुवा हे ऐसा अदांजन अकड़ा बताया गया।
  • भारतीय मीडिया द्वारा तथा विपक्ष द्वारा भ्रष्टाचार अभियान के माध्यम से इस प्रक्रिया को जनता में राजनितिक मुद्दा बनाया।
  • सरकार की किसी पॉलिसी को अगर अमल में लाना होता हे तब कैबिनेट की मंजूरी जरुरी होती है, जिसमे टेलीकॉम मंत्री ए राजा पर यह आरोप लगाए गए की उन्होंने यह मंजूरी नहीं ली मगर उनका मानना इससे विपरीत रहा है।
  • पीएमओ ऑफिस के अधिकारोयो पर प्रधानमंत्री को सही जानकारी न पहुंचाने के निरिक्षण सीबीआई विशेष कोर्ट द्वारा पाए गए।
    पहले आओ और लाइसेंस पाओ तथा नीलामी यह 2G स्पेक्ट्रम केस का विवाद का मुख्य मुद्दा रहा है।
  • २०१२ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपलब्ध सबूतों के आधारपर 2G स्पेक्ट्रम मामलो में १२२ लाइसेंस रद्द किए और इसकी पारदर्शक फिर से आवंटन किया जाए ऐसे आदेश दिए गए।
  • २१ दिसंबर २०१७ को सीबीआई स्पेशल कोर्ट द्वारा जो सुप्रीम कोर्ट के निगरानी घटित किया तो इसने सभी १७ आरोपियों को निर्दोष घोषित किया और कारन दिया की सीबीआई पिछले सात सालो में कोई ठोस सबूत नहीं साबित कर सकी जिसपर आपराधिक मामला बनता हो।
  • सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने १५५३ पन्नो की अपनी रिपोर्ट में सुनी हुई बातो पर बहुत सारे आरोप गड़े हुए देखने को मिलते है तथा इसमें प्रशासनिक लोगो की जिम्मेदारी से नाकारा नहीं जा सकता यह भी कहा।
  • कंपिल सिब्बल जो कांग्रेस के प्रवक्ता हे उनके द्वारा जीरो लॉस थेओरी के माध्यम से इस केस को एक राजनितिक मुद्दा बताया और देश का कोई नुकसान नहीं हुवा हे यह कहा।
  • भाजप जो उस समय विपक्ष में थी उनका दावा था की २००१ के दामों पर २००८ में स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटित किए गए।
  • भाजप सांसद सुब्रमणियम स्वामी द्वारा 2G केस को सबसे ज्यादा लड़ा गया और आजतक वह इस मामलों में घोटाला हुवा हे यह दावा कर रहे है।
  • CAG प्रमुख विनोद राय जिनके २.७६ लाख करोड़ के आकड़ो को मीडिया द्वारा खूब उछाला गया जिसमे वह आज भी यह एक ऑडिट रिपोर्ट के तहत अंदाजन नुकसान का अकड़ा हे ऐसा दावा करते है।
  • टेलीकॉम मिनिस्टर शुरू से लेकर आजतक खुद को बेहगुनह कह रहे हे और गलत तरीके से इस केस को मीडिया ट्रायल के माध्यम से चलाया गया ऐसा उनका आरोप है।

२ जी स्पेक्ट्रम केस का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of 2G Spectrum Case –

भ्रष्टाचार यह भारत की व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग रहा हे, सरकारे चाहे कोई भी आए सिस्टम वही देखने को मिलता है। जो विपक्ष सत्ताधारी पार्टियों पर भ्रष्टाचार के आरोप करता है वह सत्ता में आने के बाद उसके चरित्र में बदलाव हमें देखने को मिलता है। इसलिए भारत की राजनीती से बुद्धिजीवी अलग रहना चाहता है और अनपढ़ नागरिक इस देश में बदलाव नहीं ला सकता। 2G स्पेक्ट्रम में स्पेशल कोर्ट द्वारा १७ आरोपियों को निर्दोष छोड़ दिया गया, तो सवाल खड़ा होता हे की सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम आवंटन रद्द कर दिया गया था।

इसका मतलब हे की स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया यह पारदर्शक नहीं थी ऐसे तथ्य सुप्रीम कोर्ट के सामने आए होंगे। गलत चीजों की एक विशेषता होती हे की वह बड़ी सहजता से समाजमे की जाती है, ऐसे ही भ्रष्टाचार यह सिस्टम में बड़ी सहजता से देखने को मिलता है। इसमें प्रशासकीय अधिकारी भी अलग नहीं कर सकते हे और सभी भ्रष्ट नहीं होते यह भी कहना एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करता हे। क्यूंकि सिस्टम में रहकर सामने भ्रष्टाचार होते हुए देखना क्या अपराध में सहभाग नहीं होता ? भले किस भ्रष्टाचार का पैसा इस्तेमाल नहीं किया हो मगर यह रोकने की जिम्मेदारी किसकी है ? ऐसे कई सवाल खड़े होते है।

2G स्पेक्ट्रम केस में ए राजा जो टेलीकॉम मिनिस्टर थे उनका शुरू से दावा रहा हे की वह निर्दोष है वही CAG के प्रमुख विनोद राय आजतक अपने उस बयान पर अटल हे जो उन्होंने दिया था की भारत सरकार को २.७६ लाख करोड़ का नुकसान हो सकता था। सुब्रमणियम स्वामी ने इस केस को पूरी ताकद से आगे लेकर जाने की कोशिश की गयी तथा २०१४ में जो राजनितिक परिवर्तन हमें देखने को मिला। भाजप सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्ता में प्रमुख रूप से आयी ऐसा दावा कांग्रेस द्वारा किया जाता है। आज अगर हम देखे तो क्या भारतीय सिस्टम में भ्रष्टाचार ख़त्म हुवा है ? विदेशी काला धन भारत आया है ? ऐसे कई सवाल खड़े होते है।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की 2G स्पेक्ट्रम केस में घोटाला कैसे हुवा हे यह स्पेशल कोर्ट में सिद्ध नहीं हुवा मगर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2G स्पेक्ट्रम आवंटन प्रक्रिया को फिर से पारदर्शक तरीके से करने के आदेश दिए गए। सीबीआई स्पेक्ट्रम मामलो में सबूत पेश करने में असफल रही है, तथा प्रशासकीय अधिकारियो का इस विवाद में सबसे अहम् भूमिका रही हे यह निरिक्षण अपने १५०० पन्नो वाली निर्णय में दिया गया। याचिका दायर करते समय सरकार की पॉलिसी पर सवाल उठाने का अधिकार न्यायपालिका को नहीं हे मगर इसमें अगर देश का आर्थिक नुकसान होता हे तो कोर्ट इस मामलो में हस्तक्षेप कर सकती है यह देखने को मिला।

ए राजा जो मुख्य आरोपी रहे हे इस मामलो में जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को न्यायिक प्रक्रिया में न्यायिक सिद्धांतो का इस्तेमाल नहीं हुवा ऐसा दावा किया गया। राजनितिक दॄष्टि से इस केस का इस्तेमाल किया गया हे ऐसे आरोप लगाए जाते है तथा सुब्रमणियम स्वामी द्वारा अटर्नी जनरल रहे मुकुल रोहतगी के सरकारी पक्ष रखने में तथा स्पेशल कोर्ट के निर्णय के बाद आलोचना करी गयी। वास्तविक मुकुल रोहतगी ने कोर्ट के निर्णय में सीबीआई सबूत जुटाने में विफल रही इसपर टिपण्णी की थी।

इस आर्टिकल के माध्यम से हमने सबका पक्ष इस स्पेक्ट्रम केस में क्या रहा हे तथा तथ्यों को जांचने की कोशिश की है। सरकारी व्यवस्था में भ्रस्टाचार होता हे यह वास्तव हमें देखना होगा जिसके कारन नागरिको को जो सुविधाए मिलनी चाहिए उससे वंचित रहना पड़ता है। न्यायिक प्रक्रिया में स्पेशल कोर्ट द्वारा इन आरोपियों को निर्दोष मुक्त किया हे मगर सीबीआई उच्च न्यायलय में यह मामला २०१८ में सदर कर चुकी हे इसके ED संस्था द्वारा भी यह मामला लड़ा जाएगा। मगर ऐसे भ्रटाचार के आरोप राजनितिक डील के लिए बड़ी सहजता होते रहे हे यह हमें भूलना नहीं चाहिए।

सत्यम कंप्यूटर स्कॅम क्या हे ?

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *