प्रस्तावना / Introduction –

ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा स्थापित की गयी संविधान सभा में हिन्दू कोड बिल पेश किया गया था, मगर काफी प्रतिनिधियों द्वारा विरोध के कारन वह कानून पास हो सका जो बाद में १९५५ से चार भाग में पारित किया गया जिसमे हिन्दू विवाह अधिनियम यह १९५५ में लागु किया गया। इस कानून के अंतर्गत सीख, जैन ,बुद्ध ,लिंगायत तथा आर्य समाज के लोगो को इस कानून के तहत लिया गया और विवाह के लिए एक सामायिक कानून बनाया गया।

ईसाई और इस्लाम में शादी यह एक विवाह कॉन्ट्रैक्ट होता हे मगर हिन्दू पद्धती में विवाह एक पवित्र बंधन माना जाता हे जो सात जन्मो का बंधन माना जाता है। जिससे ईसाई और इस्लाम की तरह इसमें कोई विभक्त प्रक्रिया के लिए यह कानून बनाने से पहले कोई विधि नहीं थी। जो यह कानून बनाने के लिए सबसे बड़ी समस्या थी। मगर संविधानिक ढांचा देखते हुए यह प्रावधान हिन्दू विवाह अधिनियम में रखना जरुरी था।

इसलिए हम यहाँ इस कानून से सम्बंधित जानकारी साधारण भाषा में प्रस्तुत करने करेंगे। जिसमे शादी की विधि क्या होती हे , अवैध्य शादी क्या होगी तथा विभक्त होने की प्रक्रिया क्या होगी ऐसे कई सारे विषयो पर जानकारी देने की कोशिश हम करेंगे। इसे पर्सनल कानून कहा जाता हे जिसके अंतर्गत भारतीय दंड संहिता के कुछ प्रावधान इस कानून के लिए इस्तेमाल किए जाते है।

हिन्दू विवाह अधिनियम का इतिहास / History of Hindu Marriage Act –

भारत का संविधान लागु होने के बाद भारतीय समाज की व्यवस्था पूरी तरह से संविधान के अधीन हुई थी मगर यह कानून लागु होने से पहले भारतीय विवाह नियमन करने का अधिकार धर्मशास्त्र के अनुसार होता था। ऐसा नहीं हे की यह आज नहीं होता हे मगर जितना प्रभाव धर्म के अधिकारी वर्ग का इस विधि पर पहले था वह कम हुवा और भारत की कानून व्यवस्था के अधीन यह कानून बनाया गया।

भारत की स्वतंत्रता से पहले भारत की काफी प्रथाओं में ब्रिटिश इंडिया द्वारा कानून बनाए गए जिसमे बाल विवाह प्रतिबन्ध कानून तथा सती प्रथा पर पाबंदी लगाई गई मगर इसके लिए उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा और बाद में उन्होंने धर्म के मामलो में कानून बनाने का विषय अलग रखा। इसलिए हिन्दू कोड बिल संविधान सभा में पेश किया गया था मगर इसके लिए नेहरू सरकार को काफी विरोध का सामना करना पड़ा।

इलसिए बाद में हिन्दू कोड बिल को लागु करने की बजाय इसे चार भाग में विभाजित कानून थोड़े बदलाव करके १९५५ के बाद लागु कर दिया गया। १९५४ में स्पेशल मैरिज एक्ट १९५४ बनाया गया जिसके तहत भारत का किसी भी धर्म का विवाह कोई भी जोड़ा इस कानून के अंतर्गत कर सकता है। जो संविधान के मुलभुत अधिकार के माध्यम से भारत के सभी नागरिको को समान मानता है।

हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५ / Hindu Marriage Act 1955 –

संविधान सभा में हिन्दू कोड बिल के माध्यम से पर्सनल कानून को बनाया जा रहा था मगर इसके लिए काफी विरोध के कारन इसमें कुछ बदलाव करके चार कानून को अलग अलग करके उनमे से एक हिन्दू विवाह अधिनियम को १९५५ में बनाया गया। इसमें मुख्य रूप से हिन्दू की व्याख्या की गई हे जिसमे सीख , जैन , लिंगायत , आर्य समाज इन तथा ईसाई इस्लाम और पारसी समाज को छोड़कर जो भी समाज भारत में रहता हे उनको हिन्दू माना गया।

इस कानून के तहत विवाह के लिए क्या पद्धति होगी यह तय किया गया जिसमे मुख्य रूप से सप्तपदी , कन्यादान और विवाह विधी को मान्यता दी गयी जो कानूनी विवाह माना जाएगा। हिन्दू विवाह पद्धति में विवाह यह पवित्र बंधन माना जाता हे और पत्नी को पति की अर्धांगिनी माना जाता हे जो जन्मो जन्मो तक वही पति की मनोकामना करे यह धरना धर्म के अनुसार मानी जाती है।

भारतीय विवाह पद्धति में विभक्त होना यह प्रथा लगबघ नहीं के बराबर होती थी मगर समय के साथ स्त्रियों का आर्थिक दॄष्टि से स्वतंत्र होने का प्रमाण भारतीय समाज में बढ़ा हे, इसके चलते विभक्त होने का प्रमाण भी बढ़ा हे इसलिए समय समय पर इस कानून में बदलाव हमें देखने को मिलते है। इसके साथ साथ भारत का कोई भी नागरिक स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपना विवाह कर सकता हे यह पर्याय भी भारत सरकार द्वारा किया गया।

वैध्य विवाह के लिए आधार / Grounds for Valid Marriage –

  • एक ही बार विवाह करने का प्रथा ( Monogamy) यह नियम पति के लिए और पत्नी के लिए भी है।
  • विवाह के लिए लड़की और लड़का यह मानसिक दॄष्टि से सक्षम (Sanity) होने चाहिए।
  • विवाह के लिए लड़की की उम्र १८ होनी चाहिए और लड़के २१ साल होनी चाहिए।
  • अपनी परिवार की पिछली पीढ़िया और अगली पीढ़ियों में हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा ५ के अनुसार विवाह नहीं होंगे ( Beyond Prohibited Degree )
  • एक ही खानदान में धारा ५ के अनुसार विवाह प्रतिबंधित किए हे जिसे Beyond Sapind Relations कहा जाता है, जिसमे पिताजी के तरफ से पांच पीढ़िया और माँ की तरफ से तीन पीढ़िया यह मानक पकड़ा जाता है ।
  • हिन्दू विवाह अधिनियम में ऊपर दिए गए प्रावधान अगर किसी विवाह में नहीं पाए जाते तो वह विवाह इस कानून के तहत अवैध्य घोषित किया जाता है। इसके पीछे मानवता का कारन हे तथा व्यक्ति स्वतंत्रता का कारन हे और वैज्ञानिक कारन भी हे जो संतती के लिए समस्याए निर्माण होती है। इसलिए यह प्रावधान इस कानून के अंतर्गत दिए गए है।

वास्तविक तौर पर यह नियम कितने पालन किए जाते है यह संशोधन का विषय हे मगर कानून में यह व्यवस्था बनाई गई है। सामन्यतः सामाजिक तौर पर जो विवाह को मान्यता मिल जाती हे वहा कानून व्यवस्था ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करती है तथा सामाजिक तौर पर विवाह के जोड़े पर सामाजिक दबाव काफी होता हे इसलिए कोई ऐसे विवाह पर हस्तक्षेप नहीं लेता यह साधारणता देखने को मिलता है।

जैसे जैसे समाज में बदलाव होते जा रहे हे वैसे वैसे आने वाली पीढ़ियों में हमें बदलाव देखने को मिल रहे हे। इसलिए इस कानून की बनाई प्रथाओं से परे विवाह हमें देखने को मिलते हे जहा दोनों व्यक्तियों की स्वतंत्रता परंपरा से बढ़कर देखि जा रही है तथा न्यायालय द्वारा किसी ऐसे कानून की मांग होने लगी हे जिससे यह विसंगति दूर हो जाए।

विवाह से विभक्त होने के लिए आधार / Grounds for Divorce in Marriages –

  • विवाह बाह्य संबंध ( Adultery)
  • विवाह के संबंध में किसी एक का शोषण करना ( Cruelty)
  • समाज का त्याग करना ( Desertion)
  • विवाह में किसी एक का धर्म परिवर्तन करना ( Conversion)
  • विवाह में किसी एक का मानसिक संतुलन ख़राब होना (Unsound Mind)
  • विवाह में किसी एक को फैलने वाली बीमारी होना ( vulnerable Decease )
  • विवाह में किसी एक का मृत्यु हुवा हे ऐसा मानना ( Presumption of Death )
  • विवाह में जोड़ा अगर एक साथ न रहता हो (Judicial Separation )
  • विवाह में किसी एक द्वारा एक दूसरे के अधिकारों का उलंघन किया जाए ( Failure of Conjugal Right )
  • महिलाओ के लिए अलग से विभक्त होने के आधार बनाए गए है (Special rights of divorce for Women)

इस तरह से हिन्दू विवाह अधिनियम में विभक्त होने के लिए धारा १३ (१ ) अनुसार यह आधार दिए गए हे जिसके तहत विभक्त होने के लिए मान्यता कोर्ट द्वारा दी जाती है। महिलाओ के लिए इसमें खास प्रावधान किए गए हे क्यूंकि भारतीय समाज में महिलाओ को समाज का प्रताड़ित और कमजोर घटक माना जाता हे इसलिए यह प्रावधान अलग से दिए गए है।

विभक्त होने के लिए काफी बार लोग मानसिक रूप से काफी पीड़ा महसूस करते हे जिसमे एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करना इससे बचने के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम में दोनों की सहमति से विभक्त होने का प्रावधान दिया गया हे जिससे विवाह में दोनों पति पत्नी शांति से एक दूसरे की सहमति से अलग होने का निर्णय लेते हे और जो भी आर्थिक और बच्चो निर्णय हे वह एक दूसरे की सहमति से लेते है।

हिन्दू विवाह अधिनियम में विभक्त होने की प्रक्रिया / Process of divorce in Hindu Marriage Act –

वैसे तो भारत में विभक्त होते समय दोनों परिवारों के बिच झगड़े, आरोप प्रत्यारोप होते हे से विभक्त होने की प्रक्रिया को काफी विलम्ब होता हे क्यूंकि कोई भी एक पार्टी दूसरे के साथ एडजस्ट नहीं करना चाहती और तकलीफ देना चाहती हे इसकी वजह से विभक्त होने के लिए काफी देर लगती है।

इसलिए आज के रफ़्तार भरे जीवन में सामूहिक संमति से विभक्त होने की प्रक्रिया ज्यादातर हमें दिखती हे जो कम समय में एक दूसरे के सहमति से यह प्रक्रिया ख़त्म की जाती हे और आगे जीवन में बढ़ने के लिए यह काफी महत्वपूर्ण निर्णय होता है। इसलिए पति पत्नी के सहमति से विभक्त होने की प्रक्रिया क्या हे यह हम आगे देखेंगे।

आपसी सम्मति से विभक्त प्रक्रिया / Process of Mutual Consent Divorce Process –

सबसे पहले कौनसे फॅमिली कोर्ट में केस दर्ज करना हे।

  • जहा पर पति पत्नी की शादी हुई है।
  • जहा पति पत्नी शादी के बाद एक साथ रहे हो।
  • जहा पति पत्नी आखरी बार रहे हो।

विभक्त होने के लिए धारा १३(बी) के अनुसार पति पत्नी का कम से कम एक साल अलग रहना जरुरी है।

  • पति पत्नी का विभक्त होने के लिए अलग रहने का मतलब हे वह एक साथ एक घर में नहीं रह सकते है। एक ही अपर्टमेंट में रहे तो चलता हे, इस बिच वह एक दूसरे से शारीरिक संबंध नहीं रख सकते।
  • दोनों पार्टी की विभक्त होने के लिए आपसी सहमति बिना किसी दबाव के होने चाहिए।
  • आपसी सहमति से विभक्त होने के लिए दो स्तर पर प्रक्रिया होती हे जिसे फर्स्ट मोशन और सेकंड मोशन कहा जाता है।

फर्स्ट मोशन में डाइवोर्स प्रक्रिया

  • फॅमिली कोर्ट तय होने के बाद धारा 13 (1) B के अंतर्गत divorce की अर्जी पेश करनी होती है।
  • दोनों पार्टियों के एफिडेविट इस अर्जी को जोड़ने होते हे जिसमे यह आपसी सहमति से divorce ले रहे हे यह लिखना होता है।
  • जो कोई लेन देन होने वाली हे इसकी एग्रीमेंट बनाकर उसकी कॉपी अर्जी के साथ जोड़नी होती है।

सेकंड मोशन में डाइवोर्स प्रक्रिया

  • दोनों पार्टियों के शादी से पहले के नाम और पता तथा फर्स्ट मोशन की डिटेल्स ली जाती है।
  • फर्स्ट मोशन और सेकंड मोशन में ६ महीने का अंतर होता हे जो १८ महीने के अंदर यह प्रक्रिया करनी होती है।
  • अगर आप यह प्रक्रिया जल्दी ख़त्म करना चाहते हे तो CPC की धारा १५१ के तहत अर्जी देकर यह प्रक्रिया ख़त्म कर सकते है।
  • यह सब प्रक्रिया करते समय दोनों पार्टियों को Memorandum of Understanding (MOU) बनाकर लेना चाहिए जिसमे एक दूसरे के खिलाफ अगर क्रिमिनल केसेस लगे हे तो उसको वापस कैसे लेने हे और बाकि आपसी समझौता विस्तृत लिखना होता है। इस तरह से यह प्रक्रिया आपसी सहमति से एक महीने में आप ख़त्म कर सकते है।

हिन्दू विवाह अधिनियम की विशेषताए / Features of Hindu Marriage Act –

  • मुस्लिम पर्सनल कानून तथा अन्य पर्सनल कानून की तरह हिन्दू विवाह अधिनियम में विवाह कॉन्ट्रैक्ट नहीं माना जाता, इसे एक पवित्र बंधन माना जाता है।
  • सप्तपदी , धार्मिक विधि तथा कन्यादान यह हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार कानूनी विवाह के मानक तय किये गए है।
  • हिन्दू विवाह अधिनियम में सीख , जैन , लिंगायत और जो मुस्लिम , पारसी और ईसाई नहीं हे उनको हिन्दू माना गया हे और वह सभी विवाह इस कानून के तहत किए जाएगे।
  • विवाह के लिए जोड़ा यह पहले किसी का भी पहले विवाह नहीं चाहिए अन्यथा यह विवाह अवैध्य घोषित किया जाएगा।
  • विवाह के लिए सपिंडा संबंध धारा ३ के अनुसार निर्धारित किये गए हे, जिसमे पिता की और माँ की पीढ़िया तय की गयी है जिसके तहत विवाह अवेध घोषित किया जएगा।
  • विवाह के लिए दोनों हिन्दू होने चाहिए तथा लड़की की उम्र १८ और लड़के की उम्र २१ होनी चाहिए।
  • हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा ८ के अनुसार विवाह का रजिस्ट्रेशन अगले ३० दिनों के बाद विवाह अधिकारी के दफ्तर में कर सकते है।
  • हिन्दू विवाह अधिनियम के धारा १३ के तहत विभक्त होने के प्रावधान दिए गए है।
  • हिन्दू विवाह अधिनियम में बहुविवाह की अनुमती नहीं हे बल्कि उसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
  • अलीमोनी या मेंटेनन्स यह जोड़े की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को देखकर रकम तय की जाती हे जो हर महीने हो सकती है।
  • हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत जोड़े में किसी का भी पुनर विवाह हो सकता हे मगर इसके लिए एक का निधन हो जाए अथवा विभक्त प्रक्रिया पूर्ण हुई हो तो हो सकता है।

विशेष विवाह अधिनियम १९५४ / The Special Marriage Act 1954 –

भारत की संविधान में सभी नागरिको को समान समझा गया हे बजाय किसी धर्म तथा जाती विशेष को कोई अलग से प्रावधान रहे इसलिए संविधान अपने मार्गदर्शक तत्व हिस्से में भारत की व्यवस्था को ऐसा कानून बनाने को कहता हे की वह सभी धर्मो को एक साथ जोड़े। इसलिए १९५४ में हिन्दू विवाह अधिनयम बनाने से पहले विशेष विवाह अधिनियम इस कानून को बनाया गया था।

इस कानून का उद्देश्य था की जो लोगो धर्म और जाती से उठकर अपना वैवाहिक जीवन शुरू करना चाहते हे उनके लिए कोई कानून होना चाहिए इसलिए यह कानून बनाया गया था। जिसके तहत दो अलग अलग धर्म के लोग तथा अलग अलग जाती के लोग विवाह कर सकते है। भारत की जाती व्यवस्था तथा धार्मिक व्यवस्था यह कानून को ज्यादा सफलता नहीं मिली हे मगर इस कानून के तहत विवाह होते है।

इस कानून के तहत विवाह एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट होता हे जैसे की हिन्दू विवाह अधिनियम में विवाह सिविल कॉन्ट्रैक्ट नहीं माना जाता है। अगर विशेष विवाह अधिनियम में भले ही जोड़ा हिन्दू हो मगर उसका विवाह कानूनी तरीके से होता हे जिसमे विवाह अधिकारी की उपस्थिति तथा साक्ष्य के समक्ष यह विवाह किया जाता है।

समान नागरिक संहिता / Uniform civil Code –

भारत के संविधान की आर्टिकल ४४ के तहत संविधान द्वारा निर्देशित किया जाता हे की पुरे भारत में एक ऐसा कानून होना चाहिए जिसके तहत सभी जाती धर्म से उठकर एक समान कानून विवाह के लिए होना चाहिए। पिछले सत्तर सालो में कई सारे मामलो में हम देखते हे की दूसरे पर्सनल कानून का हवाला देकर लोग अपना न्याय पाना चाहते है।

कई उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई बार सरकार को आदेश दिया गया हे की समान नागरिक संहिता यह कानून बनाया जाए जिससे विवाह संबंधी मामले तथा प्रॉपर्टी के अधिकार और एडॉप्शन जैसी प्रक्रिया के लिए एक कानून होना चाहिए जिससे अलग अलग पर्सनल कानूनों की जटिलता ख़त्म हो सके।

हमने देखा हे की कई मामलों में इस्लाम में तलाक की विधि हो अथवा बहु विवाह की प्रथा हो इससे हिन्दू विवाह के मामलो में कई बार समस्या उत्पन्न हो जाती है। कई बार समानता का अधिकार की मांग भी उठ जाती हे इसलिए यूनिफार्म सिविल कोड यह कानून लाना चाहिए इसके लिए कई बार पहल होती हे। यह कानून लाना मतलब काफी सामाजिक बदलाव हमें देखने को मिलेंगे और ऐसा माना जाता हे की राजनितिक इंटरेस्ट की वजह से भी यह कानून बनने में देरी हो रही है।

निष्कर्ष / Conclusion –

हिन्दू विवाह अधिनियम यह कानून बनने के पीछे काफी सारी समस्याओ से झूझ्कर यह कानून बनाया गया था तथा सभी पर्सनल कानूनों को मिलकर एक यूनिफार्म सिविल कोड बनाना चाहिए यह मांग काफी दिनों से उठ रही है। सर्वोच्च न्यायलय ने भी माना की अलग अलग पर्सनल कानूनों की वजह से कई सारी विसंगती हमें पर्सनल कानून व्यवस्था में देखने को मिलती हे। इसलिए सभी को मिलकर एक यूनिफार्म कानून की जरुरत हे ऐसा कोर्ट भी कहता हे और संविधान भी कहता है।

हिन्दू विवाह अधिनियम की विशेषताए हमने जानने की कोशिश की हे तथा भारतीय समाज में इतनी विविधता हमें देखने को मिलती हे की कई सारी जातियों की अलग से कई सारी परंपरा देखने को मिलती है। जिससे कई सारे मामलो में काफी समस्याए निर्माण होती हे जिससे कोर्ट को फिलहाल हिन्दू विवाह अधिनियम के कानून को प्रमाण मानना पड़ता है, जो कोर्ट के हिसाब से अधूरा कानून हे इसमें काफी सारे बदलाव करने की जरुरत है।

कई मामलो में दूसरा विवाह करने के लिए लोग धर्म परिवर्तन करते हे जिससे न्यायिक प्रक्रिया में काफी जटिलता निर्माण होती है। मुस्लिम पर्सनल कानून तथा हिन्दू विवाह अधिनियम इसमें काफी फर्क देखने को मिलता है जिसके कारन कई बार कोर्ट को यूनिफार्म कानून की अहमियत को समझना पड़ता है। राजनितिक पार्टियों के लिए यूनिफार्म सिविल कानून यह राजनितिक दृष्टी से जोखिम भरा लगता हे इसलिए हमें इस कानून की पहल में देरी दिखती है।

 

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