प्रस्तावना / Introduction –

शाह बानो केस यह भारत के कानून व्यवस्था के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण केस माना जाता हे जिसके कॉग्रेस की ४०९ सीटों वाली स्थिर सरकार को भी मुश्किल में डाला था। हम भारत के न्यायिक इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण केस का साधारण भाषा में अध्ययन करने की कोशिश करेंगे। जिससे भारतीय समाजपर इसका काफी गहरा परिणाम हमें देखने को मिलता है। लोकतंत्र में जितने नागरिक जागरूक होंगे उतने अधिकार वह हासिल कर सकेंगे इसलिए हमें लोकतंत्र की बारीकियां समझना बहुत महत्वपूर्ण है।

केवल अपने परिवार और अपना जीवन भर पालन पोषण करना यह हमारा काम नहीं हे , बल्कि लोकतंत्र में हर एक नागरिक की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है। इसलिए हमें यह केस समझने होंगे जिससे सामाजिक बदलाव कैसे होने चाहिए यह हमें समझ में आएगा। ऐसा कहा जाता हे की हमारा अज्ञान सामने वाले का फायदा होता हे जिसे हमें ख़त्म करना होगा और लोकतंत्र को मजबूत करना होगा।

भारत के संविधान में आर्टिकल ४४ के माध्यम से सामान नागरिक संहिता होनी चाहिए यह कहा हे जो आजतक हम इसे लागु करने में सफल नहीं हुए हे। इसके लिए किसी भी सरकार को इसे ईमानदारी से लागु करना होगा बिना द्वेष भावना के तभी लोगो का विश्वास इससे बढ़ेगा। विषमता और गैर बराबरी यह हमारी समस्या हे और समान नागरिक संहिता यह इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है जो समानता प्रस्तापित करेगा। धर्म जाती से ऊपर उठकर हमें देश को सर्वोच्च रखकर यह बदलाव करने होंगे।

इसलिए हम यहाँ इस केस के माध्यम से भारत की विवाह संस्था और अलग अलग धर्मो की अलग अलग प्रस्थाए इसपर अध्ययन करके समान नागरिक संहिता का महत्त्व समझने की कोशिश करेंगे।

शाह बानो केस की पृष्ठभूमि / Background of Shahbano Case –

इंदिरा गांधीजी की मृत्यु के बाद बड़े बहुमत से राजीव गाँधी की सरकार १९८५ में आयी थी और वह राजनीती में इतने सक्रीय नहीं थे मगर वह देश के सबसे महत्वपूर्ण पद कर बैठे थे। उसी दौरान सुप्रीम कोर्ट में यह मामला आया था और कोर्ट ने पर्सनल कानून से आगे जाकर एक निर्णय दिया। जिसमे शाह बानो को अपने शौहर से महीना पचासो रूपए खर्चा मिलना चाहिए यह आदेश दिया।

अगर संविधान के हिसाब से देखे तो यह निर्णय काफी महत्वपूर्ण था जो संविधान मार्गदर्शक तत्व के आर्टिकल ४४ के हिसाब से था। सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को जल्द से जल्द समान नागरिक संहिता बनाने का आदेश दिया। जिससे पर्सनल कानून से होने वाली विसंगति को ख़त्म किया जा सके। जो अधिकार हिन्दू विवाह अधिनियम से मिल रहे थे और जो अधिकार मुस्लिम पर्सनल कानून से मिल रहे थे।

इसमें काफी विसंगति थी जिसके कारन कई मामले सुप्रीम कोर्ट में आते रहे हे जिसको दूर करने का आदेश कोर्ट ने सरकार को कानून बनाकर करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से पुरे भारत में विरोध देखने को मिला जिससे भारत सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को शून्य करने के लिए नया कानून बनाना पड़ा जो बाद में कितना सही था यह हमें समझमे आता है। अयोध्या मामला इसी गतिविधि का परिणाम रहा जो अगले चालीस साल तक भारतीय राजनीती को परिणाम करने वाला था, जिसे हम भाजपा का उदय कहते है ।

शाह बानो केस क्या है / What is Shahbano Case –

१९७८ का यह मामला हे जिसमे शाह बानो यह इंदौर मध्यप्रदेश की एक मुस्लिम महिला थी जिनके शौहर एक नामी वकील थे जिन्होंने इस शादी को ४३ साल बाद ख़त्म किया और अपने से काफी कम उम्र की लड़की से शादी की थी। शुरुवात में उन्होंने शाहबानो को महीना २०० रूपए खर्च देना शुरू किया मगर बाद में अचानक इसे बंद कर दिया। जिसके कारन शाहबानो ने इसके लिए कोर्ट जिला न्यायालय में इसके लिए केस दाखिल किया और उन्हें महीना २५ रूपए मेंटेनन्स देने का निर्णय मिला जो उनके पति ने स्वीकार किया।

शाहबानो ने यह रकम बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय में केस दाखिल दिया जिसमे उन यह रकम बढाकर मिली जो १८९ रूपए थी जिसके विरोध में मोहम्मद अहमद खान सुप्रीम कोर्ट गए जहा यह मुहफ्जा बढ़ाया गया जो एक बहुत ही विवादित निर्णय था। राजीव गाँधी के मंत्री मंडल के मंत्री इस निर्णय से नाखुश थे और भारत सरकार पर इसका काफी दबाव बढ़ने लगा। दूसरी तरफ मुसलमानो का तुस्टीकरण सरकार कर रही हे ऐसे आरोप सरकार पर होने लगे।

शुरुवात में जो भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से सहमत थी उसको अपना निर्णय बदलना पड़ा और संसद में मुस्लिम महिला सुरक्षा के लिए नया कानून बनाया गया जिसमे कुछ सकारात्मक बदलाव किये गए। यह निर्णय कितना प्रभावी था यह तो भविष्य में देखने को मिला और अयोध्या मामला तूल पकड़ने लगा और हिन्दू मुस्लिम मामला समाज में प्रभाव डालने लगा जो आगे जेक पूरी राजनीती को बदलने वाला निर्णय बना था।

शाहबानो केस के तथ्य / Facts of Shahbano Case –

पांच जजों की बेंच ने २३ अप्रैल १९८५ में शाहबानो के पक्ष में निर्णय देते हुए CRPC की धारा १२५ के अंतर्गत मुस्लिम महिला भी अपने पति से मेंटेनन्स की हक़दार हे यह कहते हुए हर महीने ५०० रुपए खर्चा पति को देने का निर्णय दिया गया। इन पांच जजों की बेंच में सभी जज अलग अलग धर्म के रखे गए थे जिससे निष्पक्ष निर्णय हो सके। शुरुवाती दौर में केवल दो जजों की बेंच यह मामला देख रही थी।

मगर अवदान करता यह खुद एक वकील होने के कारन उन्होंने मुस्लिम पर्सनल कानून का आधार लेकर इसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को लेने का आग्रह किया जो कोर्ट द्वारा माना गया। मुस्लिम पर्सनल कानून में जो मिहिर की रकम तलाक के बाद दी जाती हे जिसके बाद कोई भी मदत हराम मानी जाती हे यह उनके पति का आर्गुमेंट था। मगर कोर्ट ने संविधान को आगे करके यह बताया की सभी नागरिको को सामान न्याय यह हमारी ड्यूटी हे इसके तहत शाहबानो को न्याय मिलना चाहिए यह उनका मानना था।

शाहबानो के इस केस का मुख्य आधार धारा १२५ ले तहत भारत की किसी भी महिला को अपने विवाह से मेंटेनन्स प्राप्त करने का अधिकार हे यह कोर्ट ने माना है। तथा आर्टिकल ४४ के तहत भारत सरकार द्वारा जल्द से जल्द पर्सनल कानून और संविधान के बिच जो विसंगति हे इसे समान नागरिक संहिता का अमल किया जाए यह माना जिससे यह समस्या कम हो सकती है।

शाह बानो केस और समान नागरिक संहिता / Shahbano Case & Uniform Civil Code –

ब्रिटिश इंडिया में अंग्रेजो ने अपने शुरुवाती समय में भारत पर्सनल कानून में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए थे जिसमे सतीप्रथा और बाल विवाह जैसे मामलो में कानून बनाकर प्रतिबन्ध लगाए। जिसका अनुभव अंग्रेजो को मिला जो काफी विरोध का सामना करना पड़ा जिससे सबक लेकर उन्होंने पर्सनल कानूनों में हस्तक्षेप करना बंद किया। जिससे हम हम जो स्ट्रक्चर पर्सनल कानून देखते हे वह अंग्रेजो के द्वारा किया गया जिसमे किसी भी धर्म के मामलों में छेड़छाड़ करना बंद किया।

क्रिमिनल और सिविल मामलो के लिए उन्होंने कॉमन कानून बनाए जिसमे भारतीय दंड संहिता जैसे कानून महत्वपूर्ण है। भारत की संविधान सभा में ऐसा कानून होना चाहिए जो सामायिक हो सभी धर्मो के विवाह के मामलो में इसके लिए पहल हुई थी मगर कुछ सदस्यों के विरोध के चलते इसे संविधान के मार्गदर्शक तत्व में रखा गया। संविधान निर्माता यह आशा कर रहे थे की समय के साथ समाज में कुछ अच्छे बदलाव होंगे और भविष्य में हम समान नागरिक संहिता को लागु कर सकेंगे।

शाहबानो केस के मामले को देखे तो उस समय की राजीव गाँधी सरकार पर मुसलमानो के तुष्टिकरण के आरोप किये गए जिसको सुधारने के लिए अयोध्या मंदिर का ताला सरकार के प्रभाव में खोला गया और हिन्दू समाज को समाज को खुश करने की कोशिश की गई। यह गतिविधिया कितनी कारगर सिद्ध हुई यह तो हर एक राजनितिक विश्लेषक अपने हिसाब से इसको बताएगा। शाहबानो केस के चलते सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान नागरिक अधिनियम को जल्द से जल्द सरकार को लागु करना चाहिए यह सलाह दी थी।

मुस्लिम महिला अधिनियम १९८६ / Muslim Women Act 1986 –

शाहबानो केस के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के दिए गए निर्णय के परिणाम स्वरुप भारत सरकार द्वारा यह कानून संसद में लाया गया जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को शून्य घोषित किया गया। इसके लिए महत्वपूर्ण कारन रहा उसी समय उत्तर भारत के कुछ राज्यों के चुनाव पर इसका परिणाम देखने को मिला जिसमे कॉग्रेस को नुकसान हुवा था जिसको देखते हुए यह कानून लाया गया ऐसा कहा जाता है।

इस कानून के तहत मिहिर की रकम देने का बाद तलाक शुदा महिला को उसकी आगे की जिंदगी गुजर बसर के लिए उस महिला का परिवार तथा वक्फ बोर्ड को यह जिम्मेदारी दी गयी। इसके कई कारन थे क्यूंकि ज्यादातर महिलाए पुरुषो पर निर्भर होती थी और अगर उनका तलाक होता हे तो आगे उनके लिए काफी परिशानी का सामना करना पड़ता था। इसलिए इस कानून के तहत इन खामियों को इस कानून के माध्यम से दूर करने की कोशिश की गई।

इस कानून को बनाकर मुस्लिम समाज के असंतोष को शांत करने की कोशिश भारत सरकार द्वारा की गयी। मगर यह भारतीय समाज को आगे जाने की बजाय और पीछे ले जाने जैसा निर्णय हे ऐसे काफी जानकारों का कहना था। कई महिला संघटन द्वारा यह महिलाओ पर अन्याय हे ऐसा माना गया। सही मायने में भारत में महिलावाद यह आंदोलन अभी तक सही तरीके से आया नहीं हे मगर भविष्य में पुरुष और महिला यह संघर्ष हमें देखने को मिल सकता है।

शाहबानो केस की विशेषताए / Features of Shahbano Case –

  • शाहबानो केस यह भारत में यूनिफार्म सिविल कोड के लिए काफी महत्वपूर्ण केस बना जिसके तहत एक सामायिक कानून होना चाहिए यह मांग उठाई गई।
  • २३ अप्रैल १९८५ को पांच जजों की बेंच द्वारा CRPC की धारा १२५ के तहत देश की किसी भी जाती धर्म की महिलाओ को मेंटेनन्स प्राप्त करने का अधिकार हे यह निर्णय कोर्ट द्वारा दिया गया।
  • मुस्लिम पर्सनल कानून के विसंगति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मुलभुत अधिकारों को सामने रखते हुए यह निर्णय लिया।
  • शाहबानो केस यह आज भारत में यूनिफार्म सिविल कोड के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण केस रहा जिसके बाद ट्रिपल तलाक और बहु विवाह पद्धति पर भारत के बाकि समाज द्वारा विरोध दर्शाया गया।
  • यूनिफार्म सिविल कोड का निर्माण करने का उद्देश्य भारत में किसी भी सरकार द्वारा किया जाए वह ईमानदारी से और बिना किसी बायस से होना जरुरी है।
  • मुसलमानो का विरोध यह राजनीती करने का मुद्दा कतई नहीं होना चाहिए मगर भारत के सभी समाज को समय के साथ बदलना उतनाही जरुरी है।
  • अयोध्या मंदिर का टाला इसी दौरान खोला गया जो हिन्दू और मुसलमान दोनों को खुश करने के लिए यह निर्णय लिया गया ऐसा कहा जाता है।
  • शाहबानो केस में मोहम्मद अहमद खान यह एक नामी वकील थे जिन्होंने अपनी पत्नी शाहबानो को ४३ साल की शादी के बाद तलाक दिया।
  • शाहबानो और मौहम्मद अहमद खान को पांच बच्चे थे जिनको सँभालने से उनके द्वारा इंकार किया गया और मेंटेनन्स को नाकारा गया।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने यहाँ शाहबानो केस मामले को और समान नागरिक अधिनियम को अध्ययन करने की कोशिश की है। क्यूंकि कई लोगो द्वारा हमें समान नागरिक अधिनियम के बारे में जानकारी पूछी गई इससे हमें लगा की हमें इसपर लिखना चाहिए। २०२१ में इसके लिए समान नागरिक अधिनियम पर हमें काफी चर्चाए देखने को मिलती हे। यह कानून जरूर बनाना चाहिए मगर इससे किसी समाज विशेष को प्रताड़ित करना यह हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए।

मुस्लिम समाज को तथा भारतीय कई अन्य समाज को समय के साथ नैतिकता को सामने रखकर खुदको बदलना जरुरी हे और समय के साथ जो प्रथाए महिलाए अथवा पुरुषो को गलत तरीके से देखती हे ऐसे प्रथाओं को ख़त्म करना होगा। अच्छी प्रथाओं को स्वीकार करके हमें आगे जाना चाहिए तथा विषमतावादी मानसिकता को ख़त्म करना चाहिए जो एक दूसरे को द्वेष की भावना से देखती है।

इसलिए हमारा संविधान हमें समान नागरिक संहिता के बारे में कहता हे जिससे समाज में समानता प्रस्तापित होने में सहायता मिलेगी। हमने शाहबानो केस के माध्यम से मुस्लिम पर्सनल कानून को देखा तथा इसे सुधारने की सरकार की पहल को देखा जिससे हमें समझ में आता हे की समाज में कोई बदलाव करने कितने मुश्किल होते हे मगर यह बदलाव किए बगैर हम आगे नहीं बढ़ सकते यह भी वास्तविकता है।

 

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