प्रस्तावना / Introduction –

अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेसोलुशन (ADR) यह एक कानून बनाकर व्यवस्था बनायीं गयी हे, जो पहले गांव में पंचायत काम करती थी। इसकी जरुरत हमें क्यों पड़ रही है ? विवाद के दो प्रकार के मुख्यतः मामले होते हे सिविल और क्रिमिनल, ADR यह व्यवस्था सिविल मामले के लिए बनाई गई जिससे कोर्ट की कार्यवाही पूरी होने में सालो लग जाते हे इसलिए कोर्ट के बाहर सिविल प्रकार के कम खर्चे में और कम समय में मसले या विवाद सुलझाए जा सकते है।

इसके लिए १९९६ से पहले १९४० में कानून बनाया गया था मगर १९९० में भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था दुनिया के बाजार के लिए खुली करदी थी इसलिए जो भी बाधाए अंतराष्ट्रीय स्तर पर निर्माण होती थी उसको दूर करने के लिए नया कानून लाया गया जिसे ” THE ARBITRATION AND CONCILIATION ACT 1996 कहा जाता हे हाल ही में २०१९ ,में इसके कुछ एक्ट्स में बदलाव किये गए है।

यह कानून कंपनियों के लिए काफी फायदे मंद हे लेकिन बड़ी कंपनियों के इस कानून के बारे में पता हे, क्यूंकि उनके पास बड़ी लीगल टीम होती हे मगर छोटी छोटी कम्पनिया इस कानून के बारे में ज्यादा नहीं जानती हे इसलिए यह आर्टिकल हिंदी में लिखने का कारन न केवल कम्पनिया मगर बहुत सारे आर्थिक मामले आर्बिट्रेशन के तहत निपटाए जा सकते हे, इससे दोनों पार्टियों का समय और पैसा बच जाता है। यह प्रक्रिया कैसे की जाती हे इसके बारे में आगे विस्तार से बताया गया है।

ADR क्या है ? / What is ADR ? –

ADR का मतलब होता हे अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेसोलुशन / वैकल्पिक विवाद समाधान जिसे ” THE ARBITRATION AND CONCILIATION ACT 1996″ इस कानून के तहत लाया गया, पहले यह कानून १९४० में ब्रिटिश इंडिया में बनाया गया था जिसे आगे कंटिन्यू रखा गया। १९९० के बाद भारत ने अपनी आर्थिक पॉलिसी में बदलाव किये उसके तहत “UNCITRAL” संस्था के गाइड लाइन के तहत अंतराष्ट्रीय कानून को ध्यान में रख के कानून बनाया गया जिसके तहत आर्बिट्रेशन को ज्यादा मजबूत किया गया जिससे कोर्ट के बाहर सिविल मामले सुलझाए जा सके।

इसका महत्वपूर्ण कारन था भारतीय न्यायव्यवस्था पर बहुत सारा पेंडिंग केसेस की समस्या थी। उसपे सिविल मामलों पर ज्यादा ध्यान देना न्यायव्यवस्था के लिए मुश्किल हो रहा था इसलिए ADR को बढ़ावा देना एक अच्छा निर्णय था मगर समाज में इसके बारे में जागरूकता न होने के कारन इसका प्रभाव ज्यादा नहीं है।

लोग कोर्ट में जाना मतलब पैसा और समय देना पड़ता हे इसलिए बहुत लोगो को न्याय नहीं मिलता इसलिए कानून व्यवस्था का विश्वास बरक़रार रहे और लोगो को न्याय भी मिल सके इसलिए यह व्यवस्था बनाई गयी है।

ALTERNATIVE DISPUTE RESOLUTION (ADR) के मुख्य प्रकार / Types of ADR –

  • ARBITRATION /मध्यस्थता पंच
  • CONCILIATION/सुलह ,समझौता
  • MEDIATION /मध्यस्थता
  • NEGOTIATION / बातचीत
  • जुडिशल सेटलमेंट
  • लोक अदालत

आर्बिट्रेशन और कॉंसिलिएशन इस में क्या अंतर है / Difference between Arbitration & Counciling –

आर्बिट्रेटर यह नियुक्त किया जाता हे जो पंच की तरह काम करता हे और कोई विवाद होने पर उसपे निर्णय देकर याने अवार्ड देकर मामले का निपटारा करता है। आर्बिट्रेशन अपना जजमेंट एनफोर्स कर सकता है. कानून के तहत उसे शक्तिया दी जाती है। आर्बिट्रेटर यह सुलह करने के लिए नहीं होता वह न्याय करने के लिए होता है।

वही कॉंसिलिएटर यह केवल दोनों पार्टियों के बिच समझौता करने के लिए नियुक्त किया हुआ एक्सपर्ट होता हे, जो सुलह करने में मदत करता हे उसके हात में कोई पावर नहीं होती केवल एक कानूनी एक्सपर्ट के तौर पर दोनों पार्टियों में सुलह करनेवाला व्यक्ती या व्यक्ती समूह होता है।

कॉंसिलिएटर यह गाइड करने का काम करता है जिससे विवाद ख़तम करने में मदत हो जाये। कॉंसिलिएटर को केवल सलाह देनी होती हे उसे मानना या न मानना यह दोनों पार्टियों पर निर्भर होता है।

मेडिएशन और कॉंसिलिएशन इस में क्या अंतर है / Mediation & Counciling –

मेडिएशन एक थर्ड पार्टी होती हे जो कॉन्ट्रैक्ट में बनी हुई दोनों पार्टी उसे अपने विवाद को निपटने के लिए बिच में लाती है। मेडिएशन की रेगुलेटरी अथॉरिटी यह सिविल प्रोसीजर कोड यह कानून है। मेडिएशन यह प्रक्रिया एनफोर्स बाय लॉ होती है।

कॉंसिलिएटर यह ADR के तहत विवादित मामले को ख़तम करने के लिए नियुक्त किया हुवा एक्सपर्ट व्यक्ती या व्यक्ती समूह होता हे जो एग्रीमेंट के हिसाब से विवाद को निपटाने की कोशिश करता है। कॉंसिलिएशन इस प्रोसीजर की अथॉरिटी यह THE ARBITRATION AND CONCILIATION ACT 1996 इस कानून के तहत होती है। कॉंसिलिएशन में कोर्ट की डिक्री यह बाध्य होती है।

नेगोसीएशन क्या होता है / What is Negociation –

जब दोनों पार्टी अपना समय और पैसा बचाना चाहती हे और एग्रीमेंट के हिसाब से दोनों पार्टियों का विवाद निपटाना चाहती हे मगर दोनों में सहमति हो नहीं रही तो इसको निपटाने के लिए एक्सपर्ट निगोशिएर नियुक्त किया जाता हे जिससे विवाद में जो भी समस्या हे वह चर्चा से सुलझ जाये।

इसमें अगर भविष्य में कोई समस्या आ सकती हे तो उसे एग्रीमेंट बनाकर सुलझाया जाता है। निगोसीएशन में कोई विनर या लूसर नहीं होता बल्कि दोनों पार्टी दो कदम पीछे आती हे ताकि दोनों पार्टियों का नुकसान न हो सके और किसी एक निर्णय पर सहमती करके मामले को निपटा दिया जाता है।

जुडिशल सेटलमेंट / Judicial settlement –

यह प्रोविजन सिविल प्रोसीजर कोड के सेक्शन ८९ के तहत मामला कोर्ट में जाने से पहले कोर्ट के बाहर निपटारा किया जाये ताकि कोर्ट का भी समय महत्वपूर्ण मामलों को दिया जाये और दोनों पार्टियों को न्याय मिल सके इसलिए अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेसोलुशन की यह व्यवस्था महत्वपूर्ण मानी जाती हे जो केवल सिविल मामले निपटारा करने के लिए होती हे मुख्यतः आर्थिक मामले इसमें ज्यादा होते है।

लोक अदालत / Lok Adalat –

Legal Services Authorities Act, 1987 इस कानून के अंदर इस न्याय प्रक्रिया को बढ़ावा दिया हे जिससे शांति पूर्ण तरीके से विवादित मामलो को ख़तम किया जाये। जिससे कोर्ट का भी समय बच जाये और दोनों पार्टियों का खर्चा और समय बच जाता हे और मानसिक परेशानी से भी बचा जाता हे इसके लिए सरकारी केंद्र , राज्य और स्थानिक स्तर की लीगल अथॉरिटी इसके लिए कैंप लगाती हे जिससे ऐसे मामले निपटाए जाते है।

THE ARBITRATION AND CONCILIATION ACT 1996 कानून की विशेषताए –

  • इस कानून की विशेषता यह थी की अंतराष्ट्रीय कम्पनिया भारत के काम कर रही थी या बाहर से भारत में अपने कंपनी को ऑपरेट कर रही हे तो इस कानून के तहत सभी प्रावधान इसमें रखे गए।
  • आर्बिट्रेटर को विवाद में अवार्ड देने का अधिकार कानून के तहत दिया गया जो पहले पुराने कानून में नहीं था।
  • आर्बिट्रेशन दो पार्टिया अपने अग्रीमेंट में प्रोविजन करके या अलग से कॉन्ट्रैक्ट करके नियुक्त कर सकती है।
  • अगर कॉन्ट्रैक्ट या एग्रीमेंट में अगर आपने आर्बिट्रेशन की प्रोविजन की हे तो आप डायरेक्ट कोर्ट में नहीं जा सकते पहले आर्बिट्रेटर नियुक्त करके मामले को सुलझाना पड़ेगा और उस अवार्ड से कोई एक पार्टी संतुष्ट नहीं होती तो कोर्ट में जा सकते है।
  • आर्बिट्रेटर दोनों पार्टी खुद नियुक्त कर सकती हे या किसी आर्बिट्रेशन संस्था को हायर कर सकती है।
  • आर्बिट्रेशन प्रोविजन करने से दोनों पार्टियों का खर्चा और समय बच जाता हे और दोनों पार्टी सहमती से विवाद को ख़तम कर सकते है।
  • आर्बिट्रेटर कितने होने चाहिए यह दोनों पार्टिया अपने आर्थिक हित कितने महत्वपूर्ण और विस्तारित हे इसपर मिलकर तय कर सकते है।
  • कॉंसिलिएशन में जो भी अवार्ड दिया जायेगा वह दोनों पार्टियों को कॉन्ट्रैक्ट के तहत मानना होगा।
  • अगर आर्बिट्रेशन में कोई भी समस्या आती हे तो दोनों पार्टियों में से एक पार्टी कोर्ट में जा के आर्बिट्रेशन प्रोविजन को रद्द कर सकती है।
  • कोई भी पार्टी या कंपनी इस आर्बिट्रेशन में लीगल प्रोफेशनल के आलावा उनके फील्ड के एक्सपर्ट आर्बिट्रेशन टीम में रख सकते हे जिससे भविष्य में विवाद सुलझाने में कोई समस्या न आये।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेसोलुशन यह प्रक्रिया के तहत कानूनी विवाद कोर्ट के बाहर निपटाए जाये। इसके लिए अंतराष्ट्रीय एग्रीमेंट किये गए हे जिसके तहत अगर डिस्प्यूट दो देशो की पार्टिया इन्वॉल्व हे उस मामले में UNCITRAL इस यूनाइटेड नेशन के अंतर्गत बनी संस्था और अंतर्राष्ट्रीय एग्रीमेंट्स के तहत विवादों का निपटारा किया जाता है।

हमारे देश के अंतर्गत विवादित मामले बहुत सारे होते हे जिसमे कंपनी का पेमेंट इशू होता हे, आर्डर इशू होता हे, ऐसे कई सारे मामले निरंतर कंपनी को व्यवसाय करते समय आते हे। इसलिए बार बार न्यायलय में जाना कंपनी के विकास के हित में नहीं होता। इसलिए यह प्रक्रिया सभी कंपनियों के लिए लाभदायक है मगर इसके बारे में बहुत सारे छोटे छोटे कंपनियों को इसकी जानकारी नहीं हे । इसलिए यह लेख लिखने का कारन था, दूसरा व्यक्तिगत विवादित सिविल याने आर्थिक मामले भी आप इस व्यवस्था से निपटा सकते है।

कोर्ट की पारम्परिक प्रक्रिया बहुत खर्चीली और समय लेने वाली होती हे इसलिए ADR यह व्यवस्था का इस्तेमाल सभी ने करना चाहिए जब आर्थिक या सिविल विवाद सामने आ जाता है। इससे कंपनी अपना पूरा ध्यान अपने कंपनी के व्यवसाय पे लगा सकती हे और केवल कोई भी आर्थिक व्यवहार करते समय कॉन्ट्रैक्ट या एग्रीमेंट में आर्बिट्रेशन की प्रोविजन करके रखे जिससे अगर भविष्य में कोई विवाद दोनों पार्टियों में होता हे तो उसका निपटारा कोर्ट के बाहर कम खर्चे में और कम समय में हो जाये।

ADR कानून में बदलाव करने से भारत में विदेशी कंपनी भारत में निवेश करने के लिए प्रोस्ताहित होने लगी हे क्यूंकि उनकी पहली सबसे बड़ी समस्या यही होती हे की भारत में न्याय मिलने में देरी लग जाती है। इसलिए न्यायव्यवस्था की और भारत सरकार की यह महत्वपूर्ण पहल है।

ऐसे भी सामान्य आदमी कोर्ट के नाम से डरता हे क्यूंकि अगर वह किसी मामले में कोर्ट के चक्कर काटता हे तो कोर्ट का खर्चा उसकी हैसियत से बहुत होता हे इसलिए ज्यादातर मामले रजिस्टर ही नहीं होते और न्याय के बगैर ही रह जाते हे इसलिए सरकार और न्यायव्यवस्था की यह पहल सराहनीय है।

 

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