प्रस्तावना / Introduction –

विंस्टन चर्चिल को सबसे पहले ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री के तौर पर जाना जाता हे, तथा नोबल पुरस्कार विजेता साहित्यिक के तौर पर देखा जाता है। व्यक्तिगत जीवन में वह इतने सफल नहीं रहे जितने वह अपने राजनीतक जीवन में रहे परन्तु ब्रिटेन की राजनीती में उनको सबसे महान राजनीतिज्ञ के तौर पर देखा जाता है। भारत की बात करे तो उन्होंने गांधीजी से लेकर भारत की स्वतंत्रता पर काफी तीखी प्रितिक्रिया दी थी, तथा बंगाल की भुखमरी की १९४३ की समस्या के लिए उनको जिम्मेदार माना जाता है।

किसी भी व्यक्ति को समाज के लिए उसकी उपयुक्तता क्या होती है, यह उसकी महानता की केवल व्याख्या नहीं मानी जा सकती है। नैतिकता के दॄष्टि से वह कैसे रहे है, यह भी जानना जरुरी होता हे मगर इतिहास की समस्या यह हे की एक समाज के दृष्टी से जो नैतिक होता हे वह दूसरे समाज के दृष्टी से नैतिक हो यह जरुरी नहीं होता। इसलिए इतिहास के सन्दर्भ में कई विवाद देखने को मिलते है। चर्चिल के बारे में कहे तो ब्रिटेन की राजनीती में उनका द्वितीय विश्व युद्ध में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा हे।

इसलिए हम यहाँ उनके जीवनी के माध्यम से उनके व्यक्तिगत जीवन से लेकर राजनितिक और साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को देखने की कोशिश करेंगे। वह एक कुशल वक्ता रहे हे और ब्रिटिश संसद में उनके कई भाषण प्रसिद्द रहे हे तथा विश्वयुद्ध से पहले प्रधानमंत्री बनने के बाद का उनका भाषण काफी सहारा जाता है। किसी के भी जीवनी का अध्ययन करने का हमारा काम होता हे की जो अच्छा हे उसे स्वीकारना और जो गलत हे उससे सिख के तौर लेना। इस सिद्धांत पर हम हमारे जीवनी के सन्दर्भ में आर्टिकल के लिए सरंचना रखते है जो आगे हम देखगे।

विंस्टन चर्चिल (१८७४ -१९६५ )/Winston Churchill (1874- 1965) –

विंस्टन चर्चिल का इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्डशायर में जन्म हुवा था और वह एक सधन परिवार से रहे थे, जिसमे उनके पिताजी रैन्डोल्फ चर्चिल यह संसद सदस्य रहे थे। उनकी माताजी यह मूल अमरीकन परिवार से थी, जिनका नाम जेनी जेरोम था और वह भी सधन परिवार से थी। विंस्टन चर्चिल के पिताजी ने उनको रॉयल मिलिटरी अकादमी एडमिशन किया था जहा से उन्होंने अपनी डिग्री की शिक्षा पूरी की थी।

विंस्टन चर्चिल का बचपन काफी संघर्षपूर्ण रहा हे तथा उनके मातापिता से उनके बचपन से टकराव रहा है। वह बचपन से जिद्दी स्वाभाव के होने के कारन स्कूली जीवन में उनके दोस्त नहीं बन पाए और वह अकेले जीने की आदत से खुद को ढाल लिया था। अपने व्यक्तिगत जीवन में वह कई समय पर डिप्रेशन में चले गए थे। उनकी संतानो से भी उनके संबंध कुछ खास अच्छे नहीं रहे थे। इसी अकेले पन से उन्हें बचपन से पढ़ने की आदत पड़ी थी जिसका उपयोग उन्होंने अपनी आगेकी जीवन में एक प्रसिद्द लेखक के तौर पर किया तथा एक उत्तम राजनितिक वक्ता के तौर पर खुद को प्रस्थापित किया।

द्वितीय विश्व युद्ध के समय वह प्रधानमत्री के तौर पर उनकी भूमिका काफी अहम् थी क्यूंकि उनके स्वाभाव के अनुरूप निर्णय उन्होंने उस युद्ध के समय लिए थे। जिसके कारन मुश्किल समय में वह इंग्लैंड को उस युद्ध से और हिटलर के संकट से बाहर निकालने में सफल हुए। इस सफलता के कारन वह आनेवाले चुनाव में जित की आशा रख रहे थे, मगर आश्चर्यकारक तरीके से वह चुनाव हार गए। जिसका मुख्य कारन भारत के भुखमरी से मरे लाखो लोगो की जान चली गयी थी और इसकी वजह से मीडिया द्वारा उनपर काफी आलोचना की गयी और चुनाव हारने का यही कारन बना ।

विंस्टन चर्चिल का व्यक्तिगत जीवन / Personal Life of Winston Churchill –

विंस्टन चर्चिल काफी सधन परिवार के होने के कारन उनका बचपन काफी अकेले में और वेदनादायी गुजरा क्यूंकि माता पिता अपने काम में व्यस्त रहते थे। उनकी शुरुवाती स्कूली शिक्षा में वह एक औसतन विद्यार्थी रहे थे और उनको आर्मी स्कूम में शिक्षा देना यह उनके पिताजी का निर्णय था, जिससे वह अपने जीवन को अनुशासन से जिए। अपने बचपन के दिनों में वह अपने पिताजी से काफी घृणा करते थे मगर बाद में अपनी राजनितिक जीवन में उन्ही की शिक्षा को वह अपने जीवन में अनुसरण करने लगे थे और आदर्श मानने लगे थे ।

विंस्टन चर्चिल और उनकी पत्नी की पहली मुलाकात १९०४ में हुई थी मगर असली जानपहचान १९०८ के बाद बढ़ी और दोनों ने शादी करने का फैसला लिया। १२ सितम्बर १९०८ को दोनों ने शादी की और इससे उनके पांच बच्चे थे जिसमे डायना ,रैन्डोल्फ ,सराह, मारिगोल्ड और मैरी, जिसमे रैन्डोल्फ यह एक मात्र लड़के थे और चार लड़किया थी। जिसमे से एक बच्ची केवल तीन साल की उम्र में बीमारी के कान गुजर गयी थी, जिसका नाम मेरीगोल्ड था और मैरी यह आखरी लड़की सबसे ज्यादा उम्र तक जीवित रही थी ।

विंस्टन चर्चिल का व्यक्तिगत जीवन काफी दुखभरा रहा, भले ही वह इंग्लैंड के प्रधानमंत्री थे और आर्थिक दृष्टी से काफी सधन थे मगर वह खुद अपने जीवन में कई बार डिप्रेशन का शिकार रह चुके है। उनके और उनके बच्चो से उनके संबंध इतने अच्छे नहीं रहे थे तथा उनके दो बेटियों के जीवन में वही घटनाए देखने को मिली जो विंस्टन चर्चिल को मिली वह हे डिप्रेशन तथा डायना और सराह यह अपने आखरी दिनो तक इसी कारन आत्महत्या की शिकार बनी थी।

विंस्टन चर्चिल का राजनितिक जीवन / Political Life of Winston Churchill –

वैसे तो राजनीती उनके खून में ही थी उनकी पिछली पीढ़िया राजदरबार में अपना योगदान दे चुकी थी तथा उनके पिताजी एक सांसद थे, मगर उन्होंने अपनी राजनीती की शुरुवात अपने जीवन के काफी देर से शुरू की थी। आर्मी स्कूल से शिक्षा हासिल करने बाद कुछ दिनों तक अलग अलग जगह काम करने के बाद उन्होंने १८९९ में राजनीती में आने का निर्णय लिया था। चर्चिल ने अपना पहला चुनाव कंज़र्वेटिव पार्टी की तरफ ओल्डहम से लढा था जो थोड़े अंतर से यह चुनाव हार गए।

इसके कुछ दिन बाद वह साउथ अफ्रीका आए थे, जहा उन्हें साउथ अफ्रीका युद्ध के दौरान उनको बंधक बनाया गया था। कुछ दिनों बाद वह वहा से खुद को छुड़ाने में सफल हुए और सीधा इंग्लैंड पहुंचे जहा मीडिया द्वारा उनको देश का हीरो बनाया गया। इसका फायदा उन्हें १९०० के चुनाव में मिला और वह पहली बार संसद बने जो राजनीती में प्रवेश करने का पहला मौका था। राजनीती में वह अपने पिताजी को आदर्श मानते थे जिनकी तरह वह एक कड़े निंदक राजनितिक के तौर पर ब्रिटिश पार्लियामेंट में प्रसिद्द थे।

विंस्टन चर्चिल अपने उम्र के ६५ वे साल में पहली बार प्रधानमंत्री बने जब इंग्लैंड के हालत कुछ खास नहीं थे ,तथा हिटलर ने फ्रांस पर अपना कब्ज़ा हासिल कर लिया था और वह इंग्लैंड पर हमले की तैयारी में था। द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड को जैसा कठोर लीडर चाहिए था वह चर्चिल के पास हुनर था जो हिटलर से टक्कर ले सकता था नहीं तो बाकि सारे राजनीतिज्ञ उन्हें हिटलर से न उलझने की सलाह दे रहे थे। मगर उन्होंने उसको चुनौती देने का निर्णय लिया था।

विंस्टन चर्चिल और साहित्य जीवन/Winston Churchill & Literature –

विंस्टन चर्चिल ने खुद एक राजनीतिज्ञ और आर्मी अधिकारी के तौर पर प्रस्थपित करने के बाद १८९५ में डेली ग्राफ़िक इस साप्ताहिक को लिखना शुरू किया। जिसके तहत वह क्यूबा क्रांति का अध्ययन करके उसपर आर्टिकल लिखने लगे थे। यह काम करते हुए उन्होंने उपन्यास और छोटी छोटी कथाए लिखना शुरू किया। बाद में उन्होंने इतिहास से लेकर उनके पार्लिअमेंटली भाषणों को छापना शुरू किया था।

चर्चिल के ऐतिहासिक ,जीवनी तथा मानवी मूल्यों पर आधारित साहित्य के लिए उन्हें १९५३ में साहित्य के उपलब्धि के लिए नोबल किताब से नवाजा गया था। १८९५ में ४ थी क्वीन ओन हुस्सार में कॉर्नेट (सेकंड लेफ्नेंट) पद पे नियुक्त किया गया था और उनकी एक साल की सैलरी थी ३०० पौंड जो उनकी जीवन शैली के हिसाब से काफी काम थी। इसलिए ऊपर दिए गए साप्ताहिक के लिए उन्होंने लिखना शुरू किया।

विंस्टन चर्चिल की पहली किताब ” The Story of Malakand Field force” १८९८ में प्रकाशित की गयी जो इन्ही साप्ताहिकों के लिए लिखे गए आर्टिकल का संग्रहन था। “Savrola” यह उनका एकमात्र उपन्यास हे जो यूरोप के लॉरनिया क्रांति पर आधारित है। उनके कुछ महत्वपूर्ण साहित्य है …

  • The Story of Malkand Field Force – 1898
  • The Rive War – 1899
  • Savrola – 1899
  • London to Ladysmith via Pretoria – 1900
  • IAN Hemilton’s March – 1900
  • Mr. Brodrick’s Army – 1903
  • Lord Randolph Churchill – 1906
  • For Free Trade – 1906
  • My American Journey – 1908
  • Liberalism and the social Problem – 1909
  • The Peoples Rights – 1910
  • The world Crises – 1923
  • My Early Life (Roving Commission) – 1930
  • India -1931
  • Thoughts and adventures -1932
  • Great Contemporaries -1937
  • The Second world War – 1948
  • The War Speeches Definitive Edition – 1951
  • A history of English speaking Peoples – 1956
  • The Collected Essays of Sir Winston Churchill – 1975

१९४३ की बंगाल का सूखा और चर्चिल / 1943 Bengal Famine & Winston Churchill –

ब्रिटिश मीडिया द्वारा कहा गया की जितने लोगो को हिटलर ने मारा हे उसके बराबर लोगो की हत्याए विंस्टन चर्चिल द्वारा की गयी है, इसके लिए उनके द्वारा भारत के लिए बनाई गयी नीतिया कारन रही है। कुछ लोगो का मानना हे की बंगाल भुखमरी तथा सूखे के लिए कई कारणों में एक साथ आना यह भी रहा है। जिसमे बर्मा पर जापान का कब्ज़ा तथा ब्रिटिश पॉलिसी के तहत पूरी सिमा की नाकाबंदी की थी, जिसकी वजह से ट्रांसपोर्ट के माध्यम से होने वाली आयत पूरी तरह से बंद थी ।

पिछले चालीस सालो से बंगाल की लोकसंख्या ४० प्रतिशत बढ़ी थी वही ज्यादातर लोग खेती के उत्पादन पर निर्भर थे जो काफी सिमित था। किसी भी आपदा के कारन यह संकट कभी भी आने वाला था ऐसा कुछ लोगो को मानना था। ब्रिटिश आर्मी को खाद्य से सम्बन्ध में सबसे पहले प्राथमिकता दी गयी थी तथा इसके बाद जो सेवाए काफी महत्वपूर्ण थी उसके कर्मचारियों के लिए इसका स्टोरेज रखा गया था जो ऐसा कहा जाता हे की युद्ध के भय से काफी ज्यादा मात्रा में रखा गया था।

इसलिए भुखमरी और बीमारिया यह दोहरा संकट १९४३ में बंगाल में देखा गया था। खेती की व्यवस्था यह शोषणकारी व्यवस्था थी जिसमे जमीनदारी तथा साहूकार वर्ग के माध्यम से छोटे किसानो का शोषण हो रहा था यह भी एक महत्वपूर्ण कारन माना जाता है। ब्रिटिश मीडिया द्वारा यह संकट को रोका जा सकता था मगर उन्होंने इसको नहीं रोका ऐसे आरोप किए गए। उसपर विंस्टन चर्चिल द्वारा ऐसे कुछ बयान भारत के लोगो के बारे में दिए गए थे जो काफी विवादित रहे थे। इसपर गांधीजी की असहकार आंदोलन से चर्चिल आहात थे जिसका परिणाम उनके भारत के पॉलिसी पर देखने को मिला।

विंस्टन चर्चिल का द्वितीय विश्व युद्ध में योगदान / Contribution of Churchill for World War -II –

नेवेल चेम्बरलीन के १९४० में इस्तीफे के बाद गठबंधन वाली सरकार द्वारा विंस्टन चर्चिल को प्रधानमंत्री बनाया गया था। परिस्थिति एकदम विपरीत बन गयी थी और और एक ऐसे नेता की ब्रिटेन को जरुरत थी जो बिना डरे कठोर निर्णय ले सके और वह व्यक्तिमत्व पूरी संसद में विंस्टन चर्चिल के आलावा किसीमे नहीं था। नेवेल चेम्बरलीन अपने इस कार्य में पूरी तरह विफल हो गए थे इसलिए विंस्टन चर्चिल के पिछले प्रथम विश्वयुद्ध के युद्ध सामग्री मंत्री के तौर पर कार्य को देखते हुए प्रधानमंत्री किया गया।

द्वितीय विश्व के दौरान हिटलर द्वारा फ्रांस पर आक्रमण करके पुरे यूरोप पर अपना वर्चस्व स्थापित किया था और इनका दूसरा टारगेट यह इंग्लैंड पर आक्रमण करना था। यह समय पूरा विश्व हिटलर और जर्मन सेना के ताकद से खौफ में था और इसी दौरान विंस्टन चर्चिल द्वारा युद्ध निति के ऐसे फैसले लिए गए जिससे हिटलर को ब्रिटेन पर आक्रमण का निर्णय पीछे लेकर रशिया पर आक्रमण करने का निर्णय लेना पड़ा जो उसके हार के लिए शुरुवात थी।

अपने प्रेरणादाई भाषणों द्वारा ब्रिटिश सेना तथा जनता को प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने प्रभावित किया मगर भारत में जो सूखा पड़ा और इससे लाखो लोगो का मृत्यु हुवा। इस खबर को चर्चिल सरकार द्वारा दबाने की कोशिश की गयी थी। विंस्टन चर्चिल के नेतृत्व में हिटलर की जर्मन सेना पर शिकस्त हासिल करने के बाद चर्चिल १९४५ के बाद आनेवाले चुनाव के लिए काफी आत्मविश्वास में थे मगर वह चुनाव हार गए। जिसका प्रमुख कारन ब्रिटिश इंडिया में लाखो लोगो के सामूहिक हत्या का आरोप चर्चिल पर लगाया गया जिनके पॉलिसी के कारन इन लोगो का मृत्यु हुवा हे ऐसा मीडिया का मानना था।

विंस्टन चर्चिल के जीवन का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of Winston Churchill –

ऐसा कहा जाता हे की उन्होंने दुनिया की काफी सारी किताबो का अध्ययन किया था और उनकी काफी सारी लिखी हुई किताबे दुनियाभर में पढ़ी जाती है। मगर एक व्यक्ति के तौर पर उन्हें एक सनकी नेता के तौर पर देखा जाता हे जिनके अपने ही पार्टी में कई आलोचक थे। चर्चिल के पारिवारिक जीवन से ज्यादा सुख उन्हें कभी मिला नहीं तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चुनाव हारने के बाद वह डिप्रेशन में चले गए थे।

प्रधानमंत्री के तौर पर अपने दूसरे टर्म में वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और अपने उम्र के कारन बीचमे ही उनको पद से इस्तीफा देना पड़ा था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांधीजी के नेतृत्व में भारत में जो आंदोलन चलाया गया जिसके तहत असहकार आंदोलन के वह कड़े विरोधक थे जिससे उन्होंने गांधीजी की काफी आलोचना की थी और बंगाल सूखे को भारत की जनसंख्या को कारन बताया था।

भारत की स्वतंत्रता को उन्होंने विरोध किया था और कहा था की क्या यह लोग देश खुद के बलबूते पर अकेले चला सकते है ? तथा ब्रिटिश वसाहत वाद के वह समर्थक थे जिससे उनके लिबरल सोच पर आलोचना की जाती है। भले ही द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड ने जर्मनी को शिकस्त दी थी और अमरीका को युद्ध में सहभाग लेने के लिए गुजारिश की थी मगर वह पर्ल हार्बर घटना के बाद इस युद्ध में शामिल हुए जो आर्थिक हित के कारन इस युद्ध के बाद अमरीका महान शक्तिशाली देश बना वही इंग्लैंड आर्थिक संकट में फस गया था जिसके जिम्मेदार चर्चिल को माना जाता है।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की कैसे था विंस्टन चर्चिल का जीवन और इससे हम क्या सिख सकते हे और कौनसी चीजे हमें सिखाती हे की क्या न करे। वैसे तो भारत की स्वतंत्रता के वह कड़े आलोचक थे और उनका मानना था की यह लोग खुद से देश चलाने के लिए अभी सक्षम नहीं है। द्वितीय विश्व युद्ध में सफल नेतृत्व करने के बाद भी वह अपना अगला चुनाव हारे इसमें सबसे अहम् भूमिका निभाई वह बंगाल का सूखा और इसकी वजह से मरे लाखो लोग जिसको ब्रिटिश मीडिया द्वारा इंग्लैंड में प्रकाशित किया गया था।

हिटलर की रणनीति को उत्तर देने के लिए उनका आर्मी में काम करने का पिछले अनुभव काफी महत्वपूर्ण था तथा वह एक गहरे अभ्यासक होने के कारन हिटलर की चाल अच्छी तरह से समझने में कामयाब हुए थे। वह इस युद्ध में हिटलर की सेना के सामने अपने सैन्य को भाषण कला से प्रेरित करने में सफल रहे और जैसे ही इंग्लैंड की लोक बस्तियों पर हिटलर के आक्रमण शुरू हुए उन्होंने जर्मनी पर आम बस्तियों पर हमला करने के आदेश दिए थे।

व्यक्तिगत जीवन में वह काफी जिद्दी किस्म के इंसान थे जो कभी हारना नहीं जानता था मगर असल जिंदगी में ऐसा कभी होता नहीं हे, इसलिए उनके जीवन में डिप्रेशन के मौके आए जहा वह असफलता को सह नहीं सके थे। वह इंग्लैंड के दो बार प्रधानमंत्री बने और आखरी टर्म में उम्र के कारन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। हमने उनके राजनितिक जीवन से लेकर उनके पारिवारिक जीवन तक सभी अंगो का अध्ययन करने की कोशिश इस आर्टिकल के माध्यम से हमने की है।

व्लादिमीर लेनिन

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