प्रस्तावना / Introduction –

अगर हमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार को समझना हे तो हमें WTO को समझना होगा तथा आने वाले भविष्य में बिज़नेस की सीमाए ख़त्म होने वाली हे और एक जगह बैठकर दुनिया के किसी भी कोने में हम बिज़नेस कर सकगे। जिसके लिए हमें अंतरराष्ट्रीय कानून तथा एग्रीमेंट्स मालूम होने जरुरी है। इस आर्टिकल के माध्यम से हम WTO की शुरुवात कैसे हुई और इसका इतिहास क्या हे यह जानने की कोशिश करेंगे।

WTO यह अंतरराष्ट्रीय संघटन अलग अलग देशो में व्यापार सुलभ बनाने के लिए किया गया संघटन हे मगर इसपर ऐसे भी आरोप लगाए जाते हे ही यह विकसित देशो के हित के लिए बनाया गया संघटन है। हम WTO का आलोचनात्मक विश्लेषण भी करने की कोशिश करेंगे और देखेंगे की सचमुच इससे विकासशील और गरीब देशो को कितना फायदा होता है। क्यूंकि द्वितीय विश्व के बाद वसाहतवाद ख़त्म होने के बाद एक नई विश्व व्यवस्था निर्माण की गई जिसे जागतिकीकरण कहा जाता है।

जागतिकीकरण का ईमानदारी से इस्तेमाल करे तो सचमुच गरीब देश तथा विकासशील देश खुद को फायदा पंहुचा सकते हे मगर वास्तविकता में यह सब होता हे या नहीं यह हम देखने की कोशिश करेंगे। ऐसा कहा जाता हे की पूंजीवादी लोकतंत्र का मॉडल ही सही मायने में अच्छा आर्थिक विकास का मॉडल हे मगर यह धारणा हम देखते हे की चीन ने गलत साबित कर दी हे और पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था गरीब तथा विकासशील देशो में कैसे सफल हो सकती हे यह संशोधन का विषय है।

वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन क्या है / What is WTO –

WTO यह एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार को दुनिया के सभी देशो के बिच सुलभ व्यापार करने के लिए बनाया गया संघटन हे जो अलग अलग वस्तु अथवा सेवाओं का दर निर्धारित करना , बौद्धिक संपत्ति को सुरक्षा प्रदान करना तथा दो देशो के बिच होने वाली आर्थिक समस्याओ के लिए समाधान मुहैया कराने के लिए प्लेटफार्म देना। ऐसे व्यापार सम्बंधित सभी चीजों के लिए बनाया गया संघटन हे जो एक एग्रीमेंट से चलता हे जिसमे पुराण GATT यह मुख्य एग्रीमेंट है।

१९४७ से लेकर १९९४ तक General Agreement on Te riff & Trade ( GATT) यह एग्रीमेंट अंतराष्ट्रीय व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था जिसमे १९९४ में काफी संशोधन करके WTO की स्थापना की गई जिसके अंतर्गत सेवा तथा बौद्धिक सम्पदा यह दो सकल्पनाए इस संघटन के माध्यम से अतिरिक्त नियमावली थी जिसमे इनफार्मेशन और टेक्नोलॉजी के माध्यम से काफी बदलाव हमने देखे थे। जिसकी वजह से अंतराष्ट्रीय व्यापार की व्याख्या को हमें बदलना जरुरी था।

इस संघटन के माध्यम से विकसित देशो के आर्थिक व्यवस्था का फयदा गरीब तथा विकाशशील देशो को मिल सके इसके लिए यह पहल थी ऐसा कहा जाता है। इसका फायदा दुनिया के इन बाकि देशो को मिला है , मगर इसके विपरीत विकसित देश अपने फायदे के लिए इन देशो की सम्पदा को इस्तेमाल करती हे तथा मार्किट पर कब्ज़ा करती हे ऐसा कहा जाता हे परन्तु इसमें सभी देशो को कूटनीति के तहत अपने हितो का संरक्षण करना होगा यह भी उतनाही जरुरी है।

WTO के स्थापना का इतिहास /History of World Trade Organization –

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मॉनिटरी फण्ड जैसी महत्वपूर्ण संघटनो की स्थापना की गयी तथा GATT जैसे एग्रीमेंट के माध्यम से अंतराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने की कोशिश की गयी। इंटरनेशनल ट्रेड आर्गेनाइजेशन की स्थापना इससे पहले की गई थी मगर अमरीका जैसे महत्वपूर्ण देश ने इसपर कुछ कारणों से सदस्य बनने से इंकार कर दिया था। इस वजह से यह संघटन बाद में बंद करना पड़ा था।

१९४७ से लेकर १९९४ तक General Agreement on Te riff & Trade ( GATT) यह एग्रीमेंट अंतराष्ट्रीय व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था। जिसको १९९४ में बदलकर WTO के माध्यम से शुरू किया गया। जिसपर यूरोप और अमरीका जैसे विकसित देशो का काफी प्रभाव देखने को मिलता है। १९३० की आर्थिक मंदी यह इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण करना था जिसने अंतराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना चाहिए यह विकसित देशो की और से मांग उठने लगी।

१९३० की आर्थिक मंदी ने अमरीका के बड़े बड़े वित्तीय संस्थाए तथा उत्पादन कम्पनिया दिवालिया हुई थी और बेरोजगारी काफी बढ़ गई थी जिससे जागतिकीकरण के माध्यम से ऐसे आर्थिक संकट से बचा जा सकता हे यह बात सामने आयी और अपने उत्पादन को अंतराष्ट्रीय बाजार उपलब्ध होना कितना जरुरी हे यह अमरीका को समझ में आया। इसी दौरान द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुवा और इसके आर्थिक और राजनितिक परिणाम देखने को मिले जिसके बाद अंतराष्ट्रीय व्यापार की जरुरत यूरोपीय देशो को भी महसूस हुई।

WTO और भारत में एलपीजी रिफॉर्म्स/LPG Reforms in India & WTO –

शीत युद्ध की समाप्ति और WTO की स्थापना यह परस्पर सम्बंधित दुनिया की राजनीती की प्रमुख घटनाए है, जिसमे भारत में १९९१ में एलपीजी रिफॉर्म्स किए गए यह भी एक महत्वपूर्ण राजनितिक और आर्थिक दृष्टी से महत्वपूर्ण घटना भारत की दृष्टी से मानी जाती है। जो देश अमरीका के लोकतंत्र के मॉडल पर चल रहे थे उनको यह आर्थिक संकट नहीं झेलना पड़ा लेकिन जो लोकतंत्र को चला रहे थे उनको आर्थिक मज़बूरी के कारन पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था का स्वीकार करना पड़ा।

यह एलपीजी पॉलिसी भारत के लिए कितनी किफ़ायत भरी रहेगी यह तो वक्त ही बताएगा मगर इससे उस समय की विदेशी मुद्रा की समस्या का समाधान भारत को मिल गया और इसके बदले भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को अंतराष्ट्रीय बाजार को खुली करनी पड़ी थी। वैसे देखा जाए तो भारत GATT का सदस्य १९४८ रहा हे और WTO का सदस्य वह इसकी स्थापना के समय ही बना है।

जिसके तहत भारत ने WTO की सभी नियमो का पालन करने के लिए खुद को बांध लिया हे और एलपीजी पॉलिसी के माध्यम से वर्ल्ड बैंक तथा आईएम एफ जैसी संस्था के रेगुलेशन में खुद को बांध लिया और इसके माध्यम से आर्थिक सहायता ली गयी। जिससे देश का फायदा हो सके मगर आज तक इसका हमें कितना फायदा हुवा हे यह तो अकड़े ही बता सकते हे। मगर इससे विकसित देशो को भारत जैसा एक बड़ा मार्किट व्यापार के लिए उपलब्ध हुवा है।

मोस्ट फेवर नेशन सिंद्धांत / Most Favored Nation Principle –

WTO इस सिद्धांत का इस्तेमाल अंतराष्ट्रीय व्यापार को रेगुलेट करते समय करता हे जिसमे किसी भी देश को अलग से व्यापार में सुविधाए नहीं मिलनी चाहिए और सभी देशो को समान व्यवहार मिलना चाहिए यह इसके पिछेका का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। अगर किसी एक देश को स्पेशल दसुविधाए देनी हे तो अलग से एग्रीमेंट करके यह सुविधा दी जा सकती हे ,इसमें किसी एक देश को यह सुविधा दी जा सकती हे अथवा देश के समूह को यह सुविधा दी जा सकती है।

WTO का महत्वपूर्ण उद्देश्य यह बनाया गया हे की गरीब और विकासशील देशो को यूरोप और अमरीका के विकास का फायदा मिल सके इसलिए मोस्ट फेवर नेशन का सिद्धांत इस व्यापार में लागु नहीं किया जाता हे और ऐसे देशो को अलग से सुविधाए दी जाती हे जिससे उनकी अर्थव्यवस्था बढ़ने में मदत मिल सके। इसलिए यह यह अपवाद इस सिद्धांत के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

तीसरा महत्वपूर्ण अपवाद हे, अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस जिसमे कोई देश अपने देश के उत्पादक कंपनियों को सब्सिडी के माध्यम से मदत कर रही हे जिसके कारन जिस देश में वह प्रोडक्ट एक्सपोर्ट किए जाते हे वहा के उत्पादक कंपनियों के लिए यह सही स्पर्धा नहीं हे इसलिए ऐसे एक्सपोर्ट पर प्रतिबन्ध लगाने के अधिकार उस देश के पास WTO के मोस्ट फेवर नेशन के सिद्धांत पर दिए गए है।

जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज / GATS –

GATS यह सर्विसेज पर किए गए अंतराष्ट्रीय एग्रीमेंट होते है जिसमे मुख्य रूप से सर्विसेज कवर होती है जिसके लिए यह एग्रीमेंट किए जाते है जिसमे मुख्य रूप से चार प्रकार के एग्रीमेंट्स होते है। १९४७ के GATT एग्रीमेंट में केवल प्रोडक्ट्स से सम्बंधित व्यापार शामिल था जिसमे १९९५ में बदलाव करके GATT के एग्रीमेंट वैसे ही रखकर सर्विसेज तथा बौद्धिक संपत्ति के एग्रीमेंट को बढ़ाया गया है।

GATS एग्रीमेंट्स को मुख्य रूप से चार भाग में विभाजित किया गया है

  • मोड १ सर्विसेज – क्रॉस बॉर्डर सप्लाई ऑफ़ सर्विसेज उदा. BPO
  • मोड २ सर्विसेज – कंसम्पशन अब्रॉड उदा विदेशी शिक्षा
  • मोड ३ सर्विसेज – कमर्शियल प्रेसेंस उदा FDI
  • मोड ४ सर्विसेज – मूवमेंट ऑफ़ नेचुरल पर्सन /प्रोफेशनल्स

ऊपर दिए गए चार माध्यमों से सर्विसेज में WTO के माध्यम से एग्रीमेंट किए जाते हे जो केवल सर्विसेज के लिए अंतराष्ट्रीय व्यापार से सम्बंधित होते हे। भारत में सबसे ज्यादा सर्विसेज विदेशो में मोड १ और मोड २ के माध्यम से दिए जाते हे क्यूंकि विदेशी कंपनियों को भारत से कम मूल्य में यह सेवाए प्राप्त होती है। इस एग्रीमेंट का फायदा विकासशील और गरीब देशो को रोजगार के मामले में ज्यादा होता है।

विदेशी और विकसित देशो की कंपनियों में सर्विसेज काफी महँगी होती हे जिसके लिए वह यह सेवाए विकासशील देशो से कम खर्च में प्राप्त करती है तथा भारत में पढ़े हुए प्रोफेशनल विदेशो में नोकरिया करते हे जिसमे डॉक्टर्स की संख्या काफी ज्यादा है। मोड ३ की बात करे तो भारत से यूरोप और अमरीका में भारत से विद्यार्थी पढ़ने के लिए जाते हे मगर वहा से भारत में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या न के बराबर होती है।

GATT एग्रीमेंट और WTO / GATT Agreement & WTO –

जैसे की हमने देखा की अंतराष्ट्रीय व्यापार की पहल अमरीका और यूरोप के देशो से क्यों होने लगी इसके कई कारन रहे हे जिसमे द्वितीय विश्व युद्ध के कारन पुरे यूरोप की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बर्बाद हुई थी। जिसको सुधारना काफी महत्वपूर्ण था लिए अंतराष्ट्रीय व्यापार यह सबसे महत्वपूर्ण था। अमरीका की भी वही स्थिति थी मगर द्वितीय विश्व युद्ध से उनकी आर्थिक हानि नहीं हुई थी बल्कि में जो युद्ध सामुग्री की मांग थी वह अमरीका की कंपनियों द्वारा पूर्ण की हुई थी।

इसके बावजूद १९३० की आर्थिक मंदी ने अमरीका के व्यापार को बढ़ाना काफी जरुरी हे यह उनको समझमे आया था। इसी दौरान यूनाइटेड नेशन और वर्ल्ड बैंक और अंतराष्ट्रीय मॉनिटरी फण्ड की भी स्थापना की गई थी। दुनिया में शांति बनाए रखना और आर्थिक स्थिति को सुधारना यह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा सब देशो के लिए बन चूका था। एशियाई और अफ़्रीकी देशो यूरोपीय देशो के अधीन थे जिनको स्वतंत्र किया गया और अंतराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा दिया गया।

इंटरनेशनल ट्रेड आर्गेनाईजेशन की स्थापना की मगर इसको अमरीका द्वारा विरोध जिसकी वजह से GATT के माध्यम से १९९५ तक पूरी दुनिया में व्यापार होता रहा जो कोई संघटन नहीं था मगर एक अंतराष्ट्रीय एग्रीमेंट था। WTO के स्थापना के बाद जो महत्वपूर्ण बदलाव हुए उनमे सबसे पहले सर्विस क्षेत्र को जोड़ा गया तथा बौद्धिक संपत्ति को अंतराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा प्रदान की गयी। दो देशो के होने वाली आर्थिक समस्याओ के लिए WTO द्वारा कोर्ट स्थापित किए गए।

विवाद निवारण और WTO / WTO & Dispute Redressal –

GATT यह एक एग्रीमेंट के तौर पर १९४७ से १९९४ तक दुनिया के व्यापार को रेगुलेट करने के लिए बनाया गया एक एग्रीमेंट था जिसको WTO में शामिल किया गया और इसके साथ अन्य सुविधाए इसमें बधाई गई। जिसमे विवाद निवारण यह WTO का सबसे महत्वपूर्ण घटक माना जाता हे जिसमे पहले अगर दो देशो में अथवा देशो के समूह में कोई विवाद हे तो इसे चर्चा से समाप्त करने की कोशिश की जाती हे।

अगर चर्चा से यह मसला नहीं सुलझ रहा हे तो तीन सदस्यीय समिति के माध्यम से इसकी इन्वेस्टीगेशन की जाती हे और इसका जो भी रिपोर्ट बनाया जाता हे इसको दोनों पार्टियों को मानना होता है। इसमें WTO के जितने भी रेगुलेशंस हे इसके उलंघन की जाँच की जाती हे और तथ्योंके साथ रिपोर्ट पेश की जाती हे। टेर्रिफ उलंघन के मामले में अमरीका भारत के खिलाफ WTO के विवाद समिति में गया था जहा उसने WTO के टेर्रिफ कानून के उलंघन का आरोप भारत पर किया था।

WTO की स्थापना के समय ही सदस्य देशो के हित का संरक्षण करने विवाद समिति का गठन इसके माध्यम से किया गया था जिसके कारन सदस्य देशो का विश्वास WTO पर बना रहे। अंतराष्ट्रीय व्यापार में सभी देशो के वस्तु और सेवाओं पर नियंत्रण रखते समय जरूर विवाद होंगे यह देखते हुए स्पेशल ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे किसी देश की आर्थिक व्यापार को समस्या निर्माण न हो और जल्दी से जल्दी यह विवाद ख़त्म किए जाए यह इसका उद्देश्य रहा है। इससे WTO से अंतराष्ट्रीय व्यापार से सम्बंधित कानून व्यवस्था बरक़रार रहती है जिससे सदस्य देशो को सुरक्षा मिल जाती है।

बौद्धिक सम्पदा और WTO / WTO & Intellectual Property Rights –

Agreement on Trade related aspects of Intellectual Property Rights (TRIPS) इस एग्रीमेंट के तहत जितने संपत्ति से जुड़े अधिकार हे इनको सुरक्षित करने के लिए इस एग्रीमेंट को १९८६ – ९४ तक उरग्वे राउंड में इसको बनाया गया था। इनफार्मेशन और टेक्नोलॉजी के मामले में तथा दुनिया में गुड्स व्यापार के बराबर सर्विसेज सेक्टर तेजी से बढ़ रहा था इसलिए इसके सुरक्षा हेतु इस एग्रीमेंट को WTO का सबसे महत्वपूर्ण घटक माना जाता है।

इनोवेशन, क्रिएटिविटी और ब्रांडिंग यह अंतराष्ट्रीय व्यापार में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती हे जिसके माध्यम से जो देश टेक्नोलॉजी में विकसित हे ऐसे देश खुद भी फायदा ले सके और दुनिया के बाकि देशो को भी यह टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करने के लिए मिल सके इसके लिए यह रेगुलेशन बनाए गए थे। इसका सबसे ज्यादा फायदा अमरीका और यूरोप के देशो को ज्यादा मिला क्यूंकि संशोधन के मामले में वह दुनिया के बाकि देशो से काफी आगे रहे है।

आज हम देखते हे की टेक्नोलॉजी में विकसित होना सुरक्षा के दृष्टी से तथा आर्थिक दृष्टी से कितना महत्वपूर्ण हे, इसके लिए हम इजराइल जैसे छोटे देष को देख सकते हे जिसने टेक्नोलॉजी के ताकद पर पूर्वी एशिया के देशो पर अपना नियंत्रण रखने में कामयाबी हासिल की हे। भविष्य में आपके पास सैन्य शक्ति कितनी हे इससे ज्यादा महत्वपूर्ण आपके पास टेक्नोलॉजी कितनी आधुनिक हे इसपर आपकी महासत्ता बनने की शक्ति तय की जाती हे। जिसका उदहारण हे अमरीका जो बौद्धिक संपत्ति के मामले में सबसे आगे है।

वर्ल्ड ट्रेड संघटन की विशेषताए / Features of World Trade Organization –

  • वर्ल्ड ट्रेड संघटन यह संकल्पना यूरोप और अमरीका जैसे विकसित देशो की है जिसके माध्यम से वह अपना व्यापार एशिया और अफ्रीका तक फैलाना चाहते है।
  • १९४७ में GATT इस एग्रीमेंट के माध्यम से शुरू हुए इस समूह ने १९९४ में WTO के माध्यम से व्यापार के सभी प्रकार इसमें शामिल किए गए।
  • विवाद समिति की स्थापना WTO के माध्यम से की गई जिसमे व्यापार से सम्बंधित विवाद निपटने के लिए एक प्लेटफार्म निर्माण किया गया।
  • १९३० की अमरीका की आर्थिक मंदी के बाद सभी देशो ने अपने आतंरिक व्यापार को सुरक्षित करने की कोशिश की थी इसलिए दुनिया की व्यापार व्यवस्था को रेगुलेट करने वाली कोई व्यवस्था होनी चाहिए यह संकल्पना सामने आयी जिससे पहले GATT और बाद में WTO का निर्माण किया गया।
  • १९९४ से पहले GATT यह कोई संघटन नहीं था यह केवल सदस्य देशो के बिच एक एग्रीमेंट बनाया गया था।
  • १९९४ में WTO के माध्यम से गुड्स और सर्विसेज को एक ही छत के निचे लाया गया और बौद्धिक संपत्ति को भी इसमें शामिल किया गया।
  • सभी देशो के जनता को इससे प्रोडक्ट और सेवाओं के इस्तेमाल में अच्छी कीमत मिलने लगी और किसी एक कंपनी की तानाशाही को इससे लगाम मिल गया।
  • विकसित देशो की टेक्नोलॉजी का फायदा गरीब और विकासशील देशो को मिलने लगा और रोजगार की नहीं संधि निर्माण होने लगी।
  • WTO के माध्यम से सभी देशो के अंतर्गत दी जाने वाली सब्सिडी को ख़त्म करने की पहल शुरू की गयी और नियम भी बनाए गए।
  • किसी भी देश के साथ व्यापार करने समय कोई देश भेदभाव नहीं करेगा यह सिद्धांत इस्तेमाल किया गया।
  • कुदरती सम्पदा का इस्तेमाल करके पूरी दुनिया एक दूसरे के कुदरती सम्पाती का फायदा खुद के विकास के लिए उठा सकती है, जैसे अरब देशो के पास ऑइल और गैस के भंडार हे मगर खाने की चीजे नहीं हे ऐसे हालत में अंतराष्ट्रीय व्यापार प्रभावशाली होता है ।

निष्कर्ष /Conclusion –

इसतरह से हमने WTO का महत्त्व अंतराष्ट्रीय व्यापार में कितना ज्यादा हे यह समझने की कोशिश की है। इसका फायदा यूरोप और अमरीका के कंपनियों को तथा देशो को सबसे ज्यादा होता हे मगर उनके विकास का फायदा गरीब देश तथा विकासशील देश भी उठा सकते हे। टेक्नोलॉजी के मामले में अमरीका सबसे आगे हे जिसका फायदा WTO के माध्यम से विकासशील और गरीब देश उठा सकते है।

WTO को मुख्य उद्देश्य विकसित देशो की अर्थव्यवस्था को ज्यादा बल देना यह था जिसका फायदा दूसरे देशो को भी होता हे और इन विकसित देशो को भी होता है। हमने देखा की WTO का निर्माण किस परिस्थिति तथा इससे पहले अंतराष्ट्रीय वव्यापार कैसे चलता था यह हमने देखा। १९३० का अमरीका का आर्थिक संकट तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था इसको बल देने के लिए GATT एग्रीमेंट के माध्यम से शुरुवात की गई।

इससे पहले इंटरनेशनल ट्रेड आर्गेनाइजेशन के माध्यम से संघटन बनाने की कोशिश की गयी थी मगर वह विफल हो गई। १९९५ में सही मायने में WTO की स्थापना की गयी और आज लगबघ दुनिया के सभी देश इससे सलग्न हो कर व्यापार कर रहे है। चीन जैसे देश ने आज समझा हे की आर्थिक दृष्टी से सक्षम होना कितना जरुरी हे इसलिए वह भी बाद में WTO से जुड़ा है। इसतरह से हमने WTO का महत्त्व अंतराष्ट्रीय व्यापार की दृष्टी से कितना महत्वपूर्ण हे यह जानने की कोशिश इस आर्टिकल के माध्यम से की है।

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