लोकतंत्र में सोशल मीडिया क्या भूमिका है? समाज को चलाने की व्यवस्था से संवाद का माध्यम इसमें पारम्परिक प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया

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प्रस्तावना / Introduction –

लोकतंत्र में सोशल मीडिया की क्या भूमिका है? समाज को चलाने की व्यवस्था से संवाद का माध्यम इसमें पारम्परिक प्रिंट मीडिया , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया । भारत के लोकतंत्र को आदर्श लोकतंत्र बनाने के लिए मार्टिन लूथर और वोल्टायर जैसे लोगो का निर्माण होना जरुरी हे जिन्होंने १५ वी सदी से लेकर १९ वी सदी तक अपने विचारो से पुरे यूरोप और अमरीका को बदल दिया । राजतन्त्र में कहा जाता था , राजा कभी गलत नहीं हो सकता और जो राजा के बनाए हुवे कानून कभी गलत नहीं हो सकते इसका का विरोध करने पर , ज्यादातर राजतन्त्र में उस व्यक्ती को सजा का पात्र माना जाता था। लोकतंत्र में यह नहीं हो सकता जिस लोकतंत्र में जनता राजा तय करती है इसे मीडिया का सहयोग मिलता हे लोकतंत्र को नियंत्रित रखने के लिए।

इस विषय का उल्लेख इस आर्टिकल में करने का उद्देश्य यह हे की हमारा देश, या यु कहे के दुनिया में आज के दौर में ज्यादातर देश लोकतंत्र से चलते है। जिसमे राजा कोण होगा यह लोग निर्धारित करते हे और राजा ने कैसा व्यवहार करना चाहिए यह समाज की जागृत जनता तय करती है। लोकतंत्र में मीडिया समाज के सवाल लोकतंत्र की व्यवस्था को बताने का काम करती है इसलिए उसे लोकतंत्र में बड़ी ऐहमियत है।भारत के संविधान की बात करे तो किसी एक संस्था को पूरी शक्ती संविधान प्रदान नहीं करता वह एक दूसरे पर नियंत्रण रखने का काम करते है। इसमें मुख्यतः संसद, न्यायव्यवस्था और कार्यपालिका यह तीन संस्थाए कार्य करती है और मीडिया को लोकतंत्र की आवाज माना जाता है।

इसलिए हमारे संविधान में बोलने की आझादी यह सभी नागरिको का मुलभुत अधिकार माना गया हे और इसे संविधानिक कोई भी संस्था दबा नहीं सकती। इसलिए मीडिया को हम लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मानते है। यहाँ हम जानेगे मीडिया क्या है , मीडिया का इतिहास क्या है,मीडिया कितने प्रकार का होता है और सोशल मीडिया ने हमारे समाज को कैसे प्रभावीत किया हे और उसका भविष्य लोकतंत्र के लिए क्या होगा यह जानने की कोशिश करेंगे।

मीडिया की शुरुआत कैसे हुई? –

अंग्रेजी में एक किताब प्रकाशित हुवी थी जिसका नाम है ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ ह्यूमन काइंड जिसके लेखक युवाल नोह हरारी इस किताब में कहते हे की समाज बनने की प्रक्रिया में समाज की आध्यात्मिक मान्यता ने अहम भूमिका निभाई जिसकारण समाज को उस समय के शासक एकजुट बांधकर रख सके।

अगर इस सिद्धांत को आज लागु करे तो मीडिया यह समाज की मान्यताए क्या होनी चाहिए यह निर्धारित करता है जिससे शासक को समाज पर नियंत्रण रखना संभव होता है। अगर शासक का एकछत्र समाज पर नियंत्रण नहीं होगा तो उसे लोकतंत्र चलाना बड़ा मुश्किल काम हो जाता है। समाज प्रस्थापित होने से पहले इंसान एक दूसरे के साथ संवाद करने के लिए भाषा का निर्माण किया।

ऐसा नहीं हे की सृष्टि में दूसरे जीव एक दूसरे से संवाद नहीं करते, वह जरूर करते हे मगर इंसान ने अपनी भाषा को कागज पर उतारा, उस ज़माने में पत्थरो पर और अनेक वस्तुओ पर लिखकर अथवा चिन्हित करके रखा इसलिए अपने आप को दूसरे जीवो से अलग करने में और प्रभुत्व प्रस्थापित करने में वह सफल रहा। जिससे मीडिया का जन्म हुवा और साथ ही साथ समाज का निर्माण भी हुवा जिससे लोग एक दूसरे से जानकारी का अदान प्रदान करने लगे और राजा को इसका इस्तेमाल अपनी राज व्यवस्था बनाए रखने के होने लगा।

मीडिया क्या है और इसका महत्व क्या है?

मीडिया का मतलब ऐसा माध्यम जिससे से लोग एक दूसरे की जानकारी रख सखे, मनोरंजन का साधन बन सके, समाज को चलाने की व्यवस्था से संवाद का माध्यम बन सके ऐसे कई सारे कारन मीडिया का निर्माण होने के रहे है और इसमें पारम्परिक लोककला , प्रिंट मीडिया , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , और आज का सोशल मीडिया हम जानते है।

जिसके माध्यम से हम एक दूसरे के विचार शेयर करते है। हमारा लोकतंत्र अमरीका जैसा इतना विकसित नहीं हुवा है इसके लिए मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है जो समाज की आवाज सरकार तक पहुँचती हे इसलिए लोकतंत्र की सफलता मीडिया के ईमानदारी पर निर्भर रहती है।

भारत के मीडिया का इतिहास / History of Media in India –

आधुनिक मीडिया यह अंग्रेजो की राज से प्रिंट मीडिया के माध्यम से समाज पर काफी प्रभावी रहा है जिसने भारत के आजादी में अहम भूमिका निभाई है । देश की स्वतंत्रता के बाद दूरदर्शन यह पहली बार इलेक्ट्रॉनिक माध्यम भारत में उपयोग में आया इससे पहले प्रिंट मीडिया का प्रभाव भारत में बहुत ज्यादा रहा है।

इसके साथ १९७० से पहले रेडियो यह बहुत ही प्रसिद्द माध्यम रहा है। १९९० के बाद पहली बार प्राइवेट चॅनेल भारत में शुरू हुवे जिसमे मनोरंजन , स्पोर्ट्स , न्यूज़ जैसे चॅनेल निर्माण हुवे। उसके बाद खबरों का सीधा प्रसारण हो या २४ घंटे चलने वाले चॅनेल इसने मीडिया पर कब्ज़ा कर दिया और पारम्परिक मीडिया के माध्यम पीछे पड़ने लगे।

मनोरंजन , स्पोर्ट्स , न्यूज़ और आज के दौर में कई विषयो पर अलग से टीवी चॅनेल हमें देखने को मिलते है। २०१७ के बाद इंटरनेट के ज्यादा इस्तेमाल से सोशल मीडिया यह काफी प्रभावी माध्यम बन रहा हे जिसके चलते यूट्यूब, व्हाट्सप , फेसबुक जैसे माध्यम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जगह लेने के लिए भविष्य में तैयार खड़े है।

दुनिया के मीडिया का इतिहास / History of world media –

इंसान के बोलने की क्रांती से लेकर भाषा का निर्माण और लिखने की कला यह मीडिया के जन्म की कहानी कह सकते है। मीडिया यह शब्द मेडियम शब्द से निकला है जिसका अर्थ माध्यम जो समाज को एक दूसरे से संवाद करने के लिए निर्माण हुवा।

मानव समाज की स्थापना से लेकर धर्म और अध्यात्म यह भी एक मीडिया है जिससे समाज को जोड़कर रखने के लिए राजनीती इसका इस्तेमाल बरसो से करती आ रही है। प्रिंट मीडिया यह मानव समाज के लिए काफी दिनों तक महत्वपूर्ण मीडिया रहा है इसके साथ रेडिओ यह पहले और दूसरे महायुद्ध के दौरान खबरों का महत्वपूर्ण साधन रहा है।

आज इंटरनेट और कंप्यूटर ने दुनिया को इतना नजदीक लाया है की पूरी दुनिया में केवल एक क्लिक पर हम किसी भी इंसान से बात कर सकते है या कोई भी खबर पढ़ सकते है या देख सकते है। दुनिया भर में लोकतंत्र स्थापित हुवा इसका कारन ही मीडिया रहा है , इसलिए लोकतंत्र और मीडिया यह एक दूसरे के बगैर अधूरे है ऐसा कहा जा सकता है।

सरकारी मीडिया और निजी क्षेत्र का मीडिया / Government Media & Privatized Media –

१९९० से पहले दूरदर्शन यह एक मात्र मीडिया भारत में हमें देखने को मिलता था जिसपर न्यूज़ और धारावाहिक यह सभी इसी चैनल के माध्यम से दिखाया जाता था। उसमे कुछ विकास होकर दूरदर्शन के अन्य चैनल बनाए गए मगर मीडिया क्षेत्र पर केवल सरकारी मीडिया का प्रभाव था। रेडिओ यह उस समय का सबसे प्रभावी माध्यम सरकार के लिए तथा मनोरंजन के लिए देखा जाता था।

निजीकरण और जागतिकीकरण की पॉलिसी ने भारत में निजी चैनेलो का सिलसिला शुरू हुवा जिसका मुख्य उद्देश्य प्रॉफिट कमाना यह रहा है। सरकारी मीडिया का उद्देश्य पैसा कमाना यह न होकर खबरे चलना तथा मनोरंजन के लिए धारावाहिक चलाना यह रहा है। अब इसपर सरकार का कितना प्रभाव था यह हम जानते हे मगर मीडिया के लिए सबसे खतरनाक बात होती हे पैसे के आधारपर जब मीडिया चलने लगता है।

आज हम देखते हे की चाहे पत्रकार और संपादक कितना भी ईमानदार हो मगर उसको इस मार्किट में टिकना हे तो परफॉरमेंस दिखाना होता हे, इसका मतलब जिस मीडिया के लिए वह काम करता हे इसके लिए खबरे चलाना जो स्पर्धक मीडिया से अच्छी TRP दे और ऐसे न्यूज़ चॅनेल का प्रॉफिट सरकारी इस्तेहार पर निर्भर होता हे जिसके कारन वह तटस्थ भूमिका से कोई खबर नहीं चला सकता। इससे हमें यह सोचना होगा की ऐसे मीडिया को नैतिक रूप से कैसे तैयार किया जाए जिसकी क्रेडिबिलिटी आज खतरे में है।

टेलीविज़न मीडिया कैसे कमाता है ? / How Television Media Earn –

भारत में १९९० के बाद टेलीविज़न मीडिया ने पूरी तरह से खुद को व्यावसायिक तरीके से बनाया हे जिसमे पब्लिक लिस्टेड कंपनी बनाकर मीडिया हाउसेस चलाए जाने लगे। जिसका मतलब हे की मीडिया हाउस को बड़े पैमाने पर इन्वेस्टमेंट मिला जिसका इस्तेमाल स्तर बढ़ाने के लिए किया जाता हे तथा नए नए विषयो पर संशोधन करके लोगो को क्या चाहिए इसपर अध्ययन किया जाता है।

मनोरंजन , न्यूज़ चॅनेल , स्पोर्ट्स , शिक्षा से संबंधित ऐसे कई सारे विषयो पर टेलीविज़न मीडिया बनाया गया हे जिसका सबसे महत्वपूर्ण कमाने का जरिया इस्तेहार होता है। क्यूंकि जितने लोग इन चैनेलो को देखते हे उतना उनका इस्तेहार से कमाई ज्यादा होती है। कई सारे व्यावसायिक बिज़नेस , राजनीती , अथवा अन्य स्तरों पर प्रोमोशन करना तथा पेड कार्यक्रम प्रसारित करना इस माध्यम से यह चॅनेल पैसा कमाते है।

सरकारी इस्तेहार यह टेलीविज़न मीडिया का सबसे महत्वपूर्ण इनकम का माध्यम होता हे क्यूंकि यह बड़ी मात्रा में होता हे। सरकार टेलीविज़न मीडिया को यह इस्तेहार देती हे क्यूंकि वह अपने राजनीती को लोगो तक पहुँचाना चाहते हे इसलिए यहाँ दोनों का इंटरेस्ट पूरा हो जाता है। भारत की इतनी बड़ी आबादी में टेलीविज़न मीडिया यह लोगो का सबसे सरल और आसान माध्यम हे जिससे इन टेलीविज़न मीडिया पर दिखाए गए इस्तेहार काफी महंगे होते हे इसलिए कम्पनिया काफी पैसा कमाती है।

भारत की फिल्म इंडस्ट्री / Film Industry in India –

भारत का पूरा मीडिया यह पैसे में देखे तो ३० बिलियन अमरीकी डॉलर इतना बड़ा हे जिसमे फिल्म इंडस्ट्री यह सबसे महत्वपूर्ण और लीडर माध्यम हे जिसे हम मनोरंजन का माध्यम कहते है। हर साल पुरे भारत में अलग अलग भाषाओ में काफी सारी फिल्मे बनती है जिसमे केवल कुछ फिल्मे अच्छा प्रॉफिट कमाने में सफल होती है। बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री यह भारत की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री मानी जाती हे तथा साउथ इंडस्ट्री यह दूसरे नंबर की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री मानी जाती है।

फिल्म इंडस्ट्री का भारत की समाज पर काफी प्रभाव होता हे इसलिए यह सबसे महत्वपूर्ण मीडिया माना जाता हे भले ही यह दो प्रकारके विषय पर फिल्मे बनती हे जिसमे समान्तर फिल्मे यह वास्तविक समाज की परिस्थिति पर आधारित होती हे जो इतनी व्यावसायिक नहीं मानी जाती है। मनोरंजन करने वाली फिल्मे यह इस इंडस्ट्री को काफी पैसा कमाके देती हे इसलिए ज्यादातर फिल्मे हमें व्यावसायिक याने मसाला फिल्मे देखने को मिलती है।

फिल्मे समाज की सोच बनाने का सबसे प्रभावशाली माध्यम हे इसलिए राष्ट्रवाद , धार्मिक मान्यताए तथा समाज की सोच बनाने का काम यह मीडिया करता आ रहा है।फिल्म इंडस्ट्री विकसित होने से पहले भारत में लोक कलए काफी प्रसिद्द हुवा करती थी जो मनोरंजन के साथ साथ समाज की सोच बनाने का काम करती थे जिसकी जगह बाद में फिल्मो ने ली है। आज देखे तो नेटफ्लिक्स, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया ने यह जगह लेने की कोशिश की हे और फिल्मे आज कल सीधे ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रसारित होती है।

सोशल मीडिया का प्रभाव / Presence of Social Media –

हर दौर में टेक्नोलॉजी ने पिछले मीडिया को ख़त्म किया है, प्रिंट मीडिया आज अपनी आखरी सासे ले रहा है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खतरे में है इसका कारन हे सोशल मीडिया जिसको चलाने के लिए ज्यादा खर्चा करने की जरुरत नहीं पड़ती जैसे प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सेटअप को लगती है।
सोशल मीडिया लोगो में काफी प्रसिद्द हुवा हे इसका कारन प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने सामान्य लोगो को और उनकी समस्या को हमेशा नजर अंदाज किया है इसकारण सोशल मीडिया पर वही दर्शक अपना मत जाहिर करने लगा है।

सरकार को सोशल मीडिया पर नियंत्रण रखने में परेशानी आ रही हे इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया पर नियंत्रण रखना आसान रहा था। मगर सोशल मीडिया चलाने वाली ज्यादातर कम्पनिया विदेशी है और १९९० के खुली अर्थव्यवस्था के नीति के कारन उनपे ज्यादा बंदिशे भी सरकार नहीं लगा सकती इसलिए सोशल मीडिया को नियंत्रण करना मुश्किल हो रहा है।

प्रस्थापित मीडिया पर हमेशा से आरोप होते रहे हे की समाज के कुछ वर्ग इसपर नियंत्रण प्रस्थापित कर बैठे हे और पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने की वजह से प्रस्थापित मीडिया पर समाज का गुस्सा रहा है। सोशल मीडिया ज्यादा सफल होने का कारन यही रहा है इसलिए सोशल मीडिया का दुरूपयोग ज्यादा होते हुवे भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से ज्यादा सफल रहा है।

सोशल मीडिया विरुद्ध टेलीविज़न मीडिया / Social Media vs Television Media –

१९९० के बाद जागतीकरण हुवा, २००० के बाद मोबाइल इंडस्ट्री ने मीडिया में बदलाव देखने को मिले २०१७ के बाद हमें इंटरनेट सामान्य लोगो तक पंहुचा। टेलीविज़न मीडिया को प्रस्थापित करने के लिए काफी सारा पैसा जरुरी होता हे जो सोशल मीडिया में नहीं लगता है। काफी दिनों तक सामान्य लोगो की भावनाए थी की उनकी समस्याए टेलीविज़न मीडिया पर नहीं राखी जाती है जो वह सोशल मीडिया पर खुद लिखने लगा।

इसलिए आज हमें जो विषय टेलीविज़न मीडिया पर दिखते हे इसके बिलकुल विपरीत विषय हमें सोशल मीडिया पर देखने को मिलते है। टेलीविज़न मीडिया की विश्वसनियता पर इससे सवाल खड़े होने लगे है। टेलीविज़न मीडिया की भूतकाल में गलती यह रही हे की उन्होंने सामान्य लोगो को कभी भी यह प्लेटफार्म आसानी से कभी दिया नहीं है। सोशल मीडिया की भले ही कितनी भी बदनामी की जाए की वह विश्वसनीय नहीं हे मगर सोशल मीडिया के माध्यम से टेलीविज़न मीडिया का चरित्र समाज के सामने आया हे यह वास्तविकता हमें समझनी होगी।

इसलिए लोग सोशल मीडिया की तरफ आकर्षित हुए जिसका परिणाम आज सोशल मीडिया पर चलाए गए विषय टेलीविज़न मीडिया को उठाने पड़ते है।ओटीटी प्लेटफार्म के माध्यम से फिल्मे प्रसारित करना किसी भी साधारण फिल्म मेकर को संभव हुवा हे जो पहले काफी मुश्किल काम होता था। यूट्यूब जैसे माध्यम से साधारण लोग अपना चॅनेल बनाकर टेलीविज़न मीडिया को स्पर्धा करने लगे है। इसलिए मज़बूरी में टेलीविज़न मीडिया तथा फिल्म इंडस्ट्री को सोशल मीडिया का महत्त्व समझने लगा है।

मीडिया और लोकतंत्र / Democracy & Media –

आज के दौर में हम देखते है एक राजनितिक पार्टी का विरोध करने पर सामने वाला व्यक्ती उसे विरोधी पार्टी का समर्थक समझता है। समाज की मुख्य समस्याए जैसे बेरोजगारी , महंगाई , शिक्षा , गरीबी यह समस्या पर चर्चा नहीं करता मगर जो समस्या निचले स्तर की नहीं होती उसपर चर्चा करता है ।

इसलिए लोगो में प्रस्थापित मीडिया के प्रती द्वेष की भावना निर्माण होने लगी है। राजनीती मीडिया का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करना चाहती है इसलिए निष्पक्ष पत्रकारिता आज अंग्रेजो के भारत छोड़ने के बाद से देखने को नहीं मिली है।

दो प्रकार के विचार मीडिया हाउस चलाते हे जिसमे से एक भी साधारण लोगो की समस्या के लिए काम नहीं करता वह एक व्यवस्था के लिए काम करता है ऐसा कहा जाता है।इसलिए तटस्थ तथ्यों पर आधारित पत्रकारिता और मीडिया निर्माण होना भारत के लोकतंत्र के लिए बहुत जरुरी है।

मीडिया के प्रकार / Types of Media –

  • पारम्परिक मीडिया – नाटक , लोक कला
  • प्रिंट मीडिया – न्यूज़ पेपर्स , पुस्तक प्रकाशन , शिक्षा प्रणाली
  • इलेक्ट्रॉनिक मीडिया – टेलीविज़न , रेडियो
  • सोशल मीडिया – व्हाट्सप , फेसबुक , ट्वीटर
  • सिनेमा, थिएटर इंडस्ट्रीज
  • वेब मीडिया – ब्लॉग , वेब साइट्स, यूट्यूब

भारत का मीडिया और सरकार की पॉलिसी / Indian Media & Government Policy –

वैसे तो भारत के संविधान ने मुलभुत अधिकार के तहत देश के हर नागरिक को बोलने की आजादी दी है मगर कई बार इसे सरकार की तरफ से नियंत्रित करने की कोशिश की गयी है। संविधान में संशोधन करके मीडिया पर नियंत्रण करने की कोशिश की गयी है।

सरकार कोई भी हो उसे अपने विरोध में चलाए गए न्यूज़ पर नुकसान नजर आता है इसलिए वह हमेशा से मीडिया को किसी ना किसी तरह नियत्रण करना चाहती है। भारत में लोकतंत्र के प्रती लोगो की जाग्रती यूरोप या अमरीका जैसी नहीं है इसलिए कई सारी सरकारे अनियंत्रित सत्ता हासिल करना चाहती है।

जब तक इलेट्रॉनिक मीडिया था तबतक उसपर नियंत्रण रखना आसान था मगर सोशल मीडिया कहे या डिजिटल मीडिया यह अंतराष्ट्रीय कानून और एग्रीमेंट के तहत चलते है जिसपर नियंत्रण रखना उतना आसान नहीं होता इसलिए सरकार इसमें कानून बनाकर सुधार लाना चाहती है।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का तर्क हे की सोशल मीडिया द्वारा चलाई जाने वाली खबरे प्रस्थापित मीडिया जैसी अभ्यासपूर्ण नहीं होती और कई सारी गलत खबरे सोशल मीडिया द्वारा फैलाई जाती है मगर यह तर्क बिलकुल गलत हे क्यूंकि मुख्य मीडिया की अंतराष्ट्रीय खबरे और कई बार देश की खबरे बगैर अभ्यासपूर्ण होती है।

कोर्ट की करवाई से पहले मीडिया आरोपी को दोषी करार देती है जिसमे कई बड़े मीडिया हाउस यह गलती करते है। सोशल मीडिया की अनियंत्रित खबरों की बात करे तो इसके लिए सरकार को साइबर कानून को मजबूत करने की जरुरत है न की नियंत्रित करने की।

पारंपरिक मीडिया का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of Traditional Media –

शासक वर्ग हजारो सालो से मीडिया का इस्तेमाल अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए करता आया हे और आज भी दुनिया के लगबघ सभी देशो में इसका इस्तेमाल शासक वर्ग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता आया है। मीडिया द्वारा किसी विचारधारा को समाज में प्रस्थापित किया जाता हे जिससे समाज की सोच कैसी होनी चाहिए इसपर मीडिया के माध्यम से नियंत्रण रखा जाता है।

जिस लोकतंत्र में समाज राजनितिक दॄष्टि से जागृत होता हे इसपर इस मीडिया का कोई प्रभाव नहीं होता मगर जिस समाज में लोगो को राजनीती के बारे में कुछ ज्ञान नहीं होता वह मीडिया का दुरूपयोग किया जाता है। भारत की बात करे तो मुख्य मीडिया मुख्य समस्या पर कम और शासक वर्ग जिसपर चर्चा ज्यादा करना चाहता हे उसपर मीडिया प्लेटफार्म तैयार करता है।

अगर मीडिया चाहे तो किसी भी देश में क्रांति हो सकती हे इतना मीडिया प्रभावशाली होता हे मगर मीडिया का इस्तेमाल शासक वर्ग अपने हिसाब से करता हे। इसे अपने नियंत्रण में रखने के लिए चाहे जीतनी शक्ति लगनी पड़े वह लगाता है। सोशल मीडिया ने इस ट्रेडिशनल मीडिया का महत्त्व कुछ कम किया हे मगर फिर भी पैसा और शक्ति के माध्यम से वह अपना प्रभाव रखता है। नैतिक पत्रकारिता करना और पेट पालना बहुत कठिन कार्य हे।

निष्कर्ष / Conclusion –

आपके पास कितना ज्ञान हे कितनी डिग्रीया है इससे यह तय नहीं होता हे आप ईमानदार हो इसी तरह मीडिया कोई भी हो अगर इसमें समाज के सभी स्तरों का सहभाग अगर नहीं हे तो यह लोकतंत्र की नाकामी है। समाज के सभी बुद्धिजीवी लोगो ने इसपर विचार करना होगा और विषमता की मानसिकता छोड़नी चाहिए जैसे यूरोप और अमरीका में हुवा।

जितने जल्दी यह बात हमारे समाज के बुद्धिजीवी समझ जायेगे उतना देश का विकास होगा। दूसरे लोग विकसित हुए तो हमारा क्या होगा यह छोटी सोच हमें छोड़नी होगी और स्पर्धा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए इससे हमारे बुद्धि का विकास होता है और लीडर हमेशा ऐसे ही बनते है। दुसरो की अज्ञानता हमारी मेरिट कभी नहीं होनी चाहिए इसी कारन हम अंतराष्ट्रीय स्तर पर असफल रहते है।

निपक्ष मीडिया समाज के पर्याप्त प्रतिनिधित्व ,ईमानदारी और लोकतंत्र की जागृती से संभव है , भ्रष्टाचार यह बीमारी नहीं लक्षण है और इसकी मूल बीमारी हमारी विषमता की सोच है यह हमें समझना होगा । आज के इनफार्मेशन और टेक्नोलॉजी के युग में और जागतिकीकरण में सभी संस्थाए हमारे नियंत्रण में रहे यह कहना प्रैक्टिकल नहीं है। इसलिए इंटरनेट और सोशल मीडिया की स्वतंत्रता हमें आनंद से स्वीकार करनी चाहिए तभी एक सही लोकतंत्र प्रस्थापित हो सकेगा।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय की शिक्षा व्यवस्था 

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