प्रस्तावना / Introduction –

कम्युनिस्ट किसे कहते हे ? जिसने कार्ल मार्क्स को पढ़ा और समझा है।

एंटी कम्युनिस्ट किसे कहते हे ? जिसने कार्ल मार्क्स और लेनिन को समझा है।

रोनाल्ड रीगन – पूर्व अमरीकी राष्ट्रपती

कार्ल मार्क्स की विचारधारा को सामान्य लोगो को समझना काफी मुश्किल काम है, समाज में बुद्धिजीवी वर्ग ही यह विचारधारा को समझ सकता है। कार्ल मार्क्स की विचारधारा का निर्माण औद्योगिक क्रांति के बाद निर्माण हुई जिसका मूल आधार इंडस्ट्रियल वर्कर्स और इंडस्ट्रियलिस्ट यह रहा हे जिसमे इंडस्ट्रियलिस्ट यह ताकदवर हे उसके पास काफी पैसा हे और वह अपने कर्मचारियों का शोषण करता है।

कार्ल मार्क्स ने अपने वास्तविक जीवन में कोई क्रांति प्रत्यक्ष रूप में कभी नहीं की है पहली बार इस विचारधारा के माध्यम से दुनिया में पहली क्रांति व्लादिमीर लेनिन ने रशिया में की है। मार्क्सवाद के अनुसार सारे कर्मचारियों को एक होकर पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ क्रांति करनी चाहिए मगर रशिया में यूरोप की तरह औद्योगीकरण नहीं हुवा था और ज्यादातर समाज कृषिपर आधारित था।

रशिया में अद्योगीकरण की बस शुरुवात ही हुई थी रशिया में सामान्य लोग को मार्क्सवाद क्या हे यह पता नहीं था समाज के मध्य वर्ग तथा एलिट वर्ग को पता था जो झार के राजतन्त्र को ख़त्म करना चाहता था जिसमे पांच प्रतिशत लोगो में पास रशिया की जमींदारी थी। लेनिन ने बोल्शविक पार्टी के माध्यम से लोगो को मार्क्सवाद के बारे में समझाना शुरू किया। इससे रशिया में क्रांति हुई और पहली बार मार्क्सवाद के माध्यम से दुनिया में किसी ने सत्ता हस्तांतरित की थी।

हम यहाँ लेनिन के बारे में जानने की कोशिश करेंगे और कैसे उनकी विचारधारा ने रशिया के क्रांति की और इसका परिणाम पुरे दुनिया पर क्या रहा यह जानने की कोशिश करेंगे तथा लेनिनिस्म की क्या कमिया रही यह जानेगे।

व्लादिमीर लेनिन (१८७० -१९२४) / Vladimir Lenin (1870 -1924) –

व्लादिमीर इलिच उल्यानोव यह व्लादिमीर लेनिन का मूल नाम हे जिन्होंने १९१७ में रशियन कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की जिसे बोल्शविक भी कहा जाता है। अगर रशियन क्रांति को २० वी सदी की सबसे महत्वपूर्ण घटना कहे तो व्लादिमीर लेनिन को २० वी सदी का सबसे प्रभावशाली राजनितिक नेता कह सकते है।

वह न केवल केवल एक राजनीतिज्ञ थे बल्कि एक प्रभावशाली बुद्धिजीवी थे जो कार्ल मार्क्स के साथ इस शतक के सबसे प्रभावशाली व्यक्तिमत्व बनकर उभरे जिन का प्रभाव पूरी दुनिया पर काफी दिनों तक रहा है। वह एक सधन और बुद्धिजीवी परिवार से थे और उनको ६ भाई बहन थे जिसमे वह अपने माता पिता के तीसरे नंबर के बेटे थे।

उनके पिताजी ने खुद को काफी गरीबी से खुद को बनाया था और वह शुरुवाती दिनों में स्कूल टीचर के तौर पर काम करते थे जो बाद में स्कूल के प्रमुख पद पर रहे थे । रशियन क्रन्तिकारी बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारन बना उनकी भाई को झार द्वारा फांसी पर चढ़ाया गया जिसका उनके जीवन पर काफी प्रभाव रहा है।

लेनिन की विचारधारा / Ideology of Lenin –

व्लादिमीर लेनिन १८८९ को कार्ल मार्क्स की विचारधारा के संपर्क में आये जब उन्होंने कार्ल मार्क्स की किताबे पढ़ना शुरू किया और रशिया के अनुभवी आंदोलनकारियो के संपर्क में वह आए। १८९१ में उन्होंने अपनी कानून की डिग्री लेने के बाद गरीब किसानो के लिए काम करना शुरू किया, वह उन्होंने कानून व्यवस्था की खामिया देखना शुरू किया जो सामान्य लोगो के नहीं थी ।

कार्ल मार्क्स की विचारधारा के अनुसार कर्मचारियों को एक होकर शोषणकारी पूंजीवादी व्यवस्था से लढना चाहिए मगर लेनिन ने देखा की रशिया में सामान्य लोगो को कार्ल मार्क्स के बारे में कोई जानकारी नहीं है। कार्ल मार्क्स को समझने वाले लोग यह बुद्धिजीवी और एलिट वर्ग के लोग थे इसलिए रशिया में मार्क्सवाद से अगर क्रांति करनी हे तो राजनितिक पार्टी की स्थापना करनी होगी और इसके माध्यम से रशिया के समाज को मार्क्सवाद समझाना होगा यह उन्होंने तय किया।

उनका आंदोलन सफल हो पाया और लोगो का उन्हें समर्थन मिला इसका प्रमुख कारन था रशिया की सत्ता हासिल करने के बाद उन्होंने रशिया में लैंड रिफॉर्म्स लाए और जमींदारों से जमीने लेकर भूमिहीन लोगो में उसका बटवारा किया। लेनिन वह काफी तानाशाह थे, हत्यारे थे यह बाते कहना मतलब उनकी असली इतिहास को छुपाना, यह नहीं हो सकता इसलिए हमें लेनिन को तटस्थ भूमिका से देखना होगा।

लेनिनवाद का भारत में प्रभाव / Influence of Leninism in India –

भारत में १९९० के दशक तक रशिया का और रशिया के साम्यवाद का प्रभाव रहा है मगर आर्थिक संकट के चलते तथा रशिया के विघटन ने रशिया से मिलने वाली मदत रशिया ने बंद कर दी थी यह निर्णय भारत के अर्थव्यवस्था के लिए काफी प्रभावशाली रहा और भारत ने समाजवादी पूंजीवाद की व्यवस्था को प्रस्थापित करने का निर्णय लिया था। अंग्रेजो के समय भारत में लेबर यूनियन तक लेनिन का साम्यवादी प्रभाव देखने को मिलता हे मगर वह समाज के सामान्य वर्ग तक नहीं पंहुचा जो बहुत बड़ा रहस्य और संशोधन का विषय है।

रशिया में १९१७ में साम्यवादी क्रांति हुई जिसका परिणाम भारत में बड़े पैमाने पर लेबर यूनियन पर हमें देखने को मिलता हे वह भी मुंबई और कोलकत्ता जैसे उस समय के महत्वपूर्ण शहरों पर जहा साम्यवादी साहित्य पर अंग्रेजो द्वारा प्रतिबन्ध लगाया गया था। इसलिए लेबर यूनियन के साम्यवादी लोगो पर लेनिन की विचारधारा का खासा प्रभाव काफी दिनों तक रहा है।

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हमने देखा की लेबर यूनियन को दूर रखा गया था जिसका सबसे महत्वपूर्ण कारन था इनपर लेनिन के विचारो का खासा प्रभाव था और भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में जो गांधीजी के सहकारी वर्ग था वह कैपिटलिस्ट वर्ग से ज्यादातर आता था जिनको इस विचारधारा से परहेज था और डर था की स्वतंत्र भारत में लेनिन का प्रभाव हमारे लिए नुकसान दायक रहेगा इसलिए गांधीजी द्वारा लेबर यूनियन को दूर रखा गया था।

लेनिनवाद और चीन का माओवाद / Leninism & Maoism –

रशिया की क्रांति में प्रमुखतः मध्यम वर्ग और बुद्धिजीवी वर्ग ने मार्क्सवाद को रशिया के सामान्य समाज तक पहुंचाया और रशिया में क्रांति के लिए उन्हें तैयार किया। इसका मतलब था रशिया की राजनितिक क्रांति यह शहरों से शुरू होकर गावो तक पहुंची थी। वही चीन में माओवाद की क्रांति का मूल ढांचा यह चीन का किसान वर्ग तथा मास्सेस रहे हे जिसके कारन चीन की क्रांति और रशिया की क्रांति में काफी मुलभुत अंतर रहा है।

मार्क्सवाद का मूल आधार औद्योगिक कंपनी के कर्मचारी वर्ग यह रहा हे जो शहरों में पूंजीवादी ताकद से लड़ेगा और देश की सत्ता को नियंत्रित करेगा वही चीन की क्रांति का प्रमुख विचारधारा थी की समाज के सामान्य लोग सत्ता को अपने हाथो में लेकर व्यवस्था निर्माण करेंगे जिसमे मुख्य रूप से किसान और खेतो में काम करने वाला समाज था।

चीन का अंतर्गत युद्ध रशिया से काफी हिंसक रहा हे तथा वह शुरुवाती दिनों में काफी विफल रहा मगर आज इसमें कुछ पूंजीवादी बदलाव करके चीन ने उसको संतुलित करने की कोशिश की हे वही रशिया ने अपनी विचारधारा में कभी ऐसे सफल बदलाव नहीं किये। १९९० में जो बदलाव किए थे तबतक बहुत देर हो चुकी थी और रशिया आर्थिक दृष्टि से काफी कमजोर हो चूका था।

कार्ल मार्क्स और लेनिनवाद / Karl Marx & Leninism –

कार्ल मार्क्स का मृत्यु हुवा १८८३ में तबतक मार्क्सवाद का पुरे दुनिया पर प्रभाव पड़ चूका था कार्ल मार्क्स ने नारा दिया था ” दुनिया के सभी वर्कर्स एक हो जाओ ” याने की वह यह आंदोलन अन्तराष्ट्रीय स्तर का बनाना चाहते थे। जिससे डरकर पुरे यूरोप के देशो ने राष्ट्रवाद की मोहिम अपने अपने देश में चलाई ताकि मार्क्सवाद उनके देश में न फैले।

मुलभुत रूप से यूरोप में फ्रेंच क्रांति ने लोकतंत्र तो प्रस्थापित किया मगर उसपर पूंजीवाद का प्रभाव रहा है इसलिए कार्ल मार्क्स चाहते थे की सत्ता वर्किंग क्लास संभाले। लेनिन ने जब मार्क्सवाद को रशिया में क्रांति करने के लिए इस्तेमाल करना चाहा तब रशिया यूरोप से काफी अलग थी क्यूंकि औद्योगीकरण की बस शुरुवात ही हुई थी वह पूरी तरह से प्रस्तापित नहीं हुवा था ,

इसलिए उन्होंने राजनितिक पार्टी बनाई जिसमे सभी बुद्धिजीवी लोग थे जिन्होंने कार्ल मार्क्स को पढ़ा था समझा था। लेनिन की विचारधारा का मतलब था की सामान्य लोगो को कार्ल मार्क्स समझाना यह हमारी पार्टी का काम रहेगा इसके माध्यम से हम रशिया में परिवर्तन लाएगे। लेनिन की विचारधारा में मुख्य रूप से माध्यम वर्ग तथा बुद्धिजीवी वर्ग था जो किसान नहीं था मगर वह साम्यवाद रशिया में चाहता था और राजतन्त्र को ख़त्म करना चाहता था।

जोसफ स्टालिन और लेनिन / Joseph Stalin & Lenin –

जोसफ स्टालिन और लेनिन की विचारधारा में मुलभुत कोई फर्क नहीं था मगर जोसफ स्टालिन लेनिन से काफी ज्यादा आक्रामक रहे थे तथा लेनिन को सत्ता हासिल करने के बाद ज्यादा राजनीती करने का मौका नहीं मिला जैसे जोसफ स्टालिन को मिला था। रशिया में इनकम का मुख्य जरिया यह खेती था और उसपर समाज के लगबघ पांच प्रतिशत लोगो का अधिकार था जिसको ख़त्म करने का वादा लेनिन ने किया था।

वह सत्ता हासिल करने के बाद उन्होंने पूरा किया और रशिया में बड़े पैमाने पर लैंड रिफॉर्म्स हुवा जिसका फायदा समाज को हुवा, रशियन क्रांति को सफलता मिली जिसमे यह वादा काफी महत्वपूर्ण था। स्टालिन के सत्ता हासिल करने के बाद पूरी तरह राजनीती को उन्होंने अपने हिसाब से बदलने की कोशिश की और लेनिन के करीबी जो राजनीती में काफी बड़े हुए थे उन्हको स्टालिन ने किनारे कर अपनी राजनीती शुरू की जो जार राजनीतिज्ञ करता है।

वैसी भी दोनों की प्रतिमा पुरे दुनिया में एक तानाशाह की तरह प्रस्थपित हुई हे जिसमे सत्य क्या हे यह हर एक को विश्लेषण करके समझना होगा क्युकी किसी एक तरीके से कोई विचार को हम प्रस्थापित नहीं कर सकते । स्टालिन के आने के बाद रशिया में पांच वार्षिक योजना का इस्तेमाल आर्थिक नियोजन करने की लिए शुरू किया गया। ऐसा माना जाता हे की स्टालिन के कार्यकाल में रशिया उसके उच्च स्थर पर दुनिया के सामने खड़ा था जो ताकद हमें द्वितीय विश्व युद्ध में देखने को मिली है।

रशियन क्रांति और यूरोप / Russian Revolution & Europe –

रशिया की भौगोलिक दृष्टी से देखे तो ७५ प्रतिशत हिस्सा एशिया में आता हे और २५ प्रतिशत हिस्सा यूरोप में आता हे पीटर दी ग्रेट से लेकर निकोलस झार तक सभी राजा खुद को यूरोपीय मानते थे और रशिया का प्रमुख हिस्सा यह यूरोप से नजदीक रहा है। फ्रांस में १८ वी सदी से राजतन्त्र और लोकतंत्र के लिए संघर्ष चल रहा था , इंग्लैंड में काफी पहले से संसद की स्थापना की गई थी और राजा केवल नाममात्र के लिए था।

इसलिए रशिया में लोकतंत्र के विचार तथा कार्ल मार्क्स के विचार पहुंच चुके थे मगर झार की व्यवस्था को काफी दिनों तक कोई खतरा नहीं था। मगर यूरोप से नजदीक होने की कीमत झार राजा को जल्द ही झेलनी पड़ी और उन्हें लोगो के दबाव में पार्लियामेंट की स्थापना करनी पड़ी मगर वह राजा के हिसाब से चलती थी इसलिए विरोध अभी भी शुरू था।

इसलिए रशिया में झार की व्यवस्था ख़त्म होने के बाद भी गृह युद्ध काफी दिनों तक चला जो बोल्शविक और मेंशेविक में रहा है। मुख्य रूप से मेंशेविक यह रशिया के कैपिटलिस्ट लोगो को अपने सत्ता में हिस्सेदार बनाना चाहते थे मगर बोल्शविक ने इसके लिए विरोध किया और वह सत्ता का नियंत्रण केवल निचले स्तर के लोग ही करेंगे यह निश्चित किया।

लेनिन का महत्वपूर्ण साहित्य / Major Literature of Lenin –

  • The Development of Capitalism in Russia – 1899
  • What is to be done – 1902
  • One Step Two Step Back – 1904
  • Two Tactics of Social Democracy in the democratic Revolution – 1905
  • Materialism Impirio Criticism – 1909
  • The Three Sources & three Component parts of Marxism – 1913
  • The Right of Nation to self Determination – 1914
  • Socialism & War – 1915
  • Philosophical Notebook – 1916
  • April theses – 1917
  • Imperialism the highest stage of Capitalism – 1917
  • The State and Revolution – 1917
  • Will the Bolsheviks maintain power ? – 1917
  • Left Wing communism An Infantile disorder – 1920
  • Marx – Engels Marxism – 1925

लेनिनवाद का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical analysis of Leninism –

कोई भी विचारधारा तभी सफल हो सकती हे जब उसमे तार्किक तथ्यों को और वास्तविकता को ईमानदारी से शामिल किया जाए, अगर ऐसा नहीं होता हे तो वह विचारधारा काफी दिनों तक नहीं टिक पाती है। रशिया की साम्यवादी सत्ता का १९९० के बाद असफल हुवा इसका सबसे महत्वपूर्ण कारन रहा हे उनकी आर्थिक विकास की तरह ध्यान न देना यह रहा है।

चीन ने साम्यवादी विचारधारा को पूरी तरह से इस्तेमाल करने की बजाय आर्थिक विकास पर ध्यान देने का निर्णय लिया और वह शीत युद्ध से दूर रहकर अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने लगे। लेनिन को खुद को सत्ता को विकसित करने का ज्यादा मौका नहीं मिला इसलिए उनके बाद स्टालिन से लेकर पुतिन तक अपने हिसाब से लेनिन की विचारधारा को इस्तेमाल किया है।

नैसर्गिक दृष्टी से रशिया काफी संपन्न देश हे तथा सुरक्षा के मामले में वह दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश हे मगर राजनितिक रणनीति के तहत अमरीका उन्हें दुनिया की राजनीती से अलग रखने में सफल हुवा हे। रशिया की सबसे बड़ी खामी यह रही हे की उन्हें चीन की तरह राजनितिक संबंध पश्चिमी देशो से करने चाहिए तथा उन्हें विश्वास दिलाना चाहिए की उनकी विस्तारवाद की कोई मंशा नहीं है और अपने आर्थिक योजनाओ में सुधार करने चाहिए।

निष्कर्ष / Conclusion –

व्लादिमीर लेनिन पेशे से एक वकील थे जिन्होंने अपना प्रोफेशन लोगो के लिए किया जिसमे उन्होंने पाया की कानून व्यवस्था राजा के मर्जी से चलाई जाती है। लेनिन की राजनितिक पार्टी का प्रमुख अख़बार था इस्क्रा जिसका मतलब होता है चिंगारी जिसमे लेनिन द्वारा काफी प्रभावशाली लेख लिखे जाते थे और सामान्य लोगो के लिए यह काफी आकर्षण भरे विचार थे जिन्हे मार्क्सवाद पता नहीं था।

लेनिन की सफलता में उनकी पत्नी नादेजदा क्रुप्सकाया का काफी योगदान रहा हे जो खुद भी एक क्रन्तिकारी थी जिन्हे निष्कासित किया गया था जहा उनकी मुलाकात लेनिन से हुई थी। लेनिन की राजनितिक पार्टी पर उनका काफी प्रभाव था जो स्टालिन के सत्ता पर आने के बाद उन्होंने ख़त्म करने की कोशिश की थी। लेनिन को काफी पढ़ने का लिखने का शौक था जो हर एक मार्कवादी को होता हे।

जितना हम लेनिन को समझते हे वह रशियन क्रांति से पहले के लेनिन हे मगर सत्ता हासिल करने के बाद वह क्या हे यह समझने के लिए उन्हें समय नहीं मिला। उनपर कई बार हत्या का प्रयास करने की कोशिश हुई थी क्यूंकि सत्ता हासिल करने के बाद कई दुश्मनो को उन्होंने ख़त्म किया था ऐसे आरोप उनपर लगते रहे है। तथा भारत में उनके विचारो का काफी प्रभाव रहा हे मगर गांधीजी ने एक रणनीति के तहत साम्यवाद को अपने आंदोलन से दूर रखा था।

कार्ल मार्क्स कौन है ?

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