प्रस्तावना / Introduction –

कानूनी जागृती के संदर्भ में भारत में काफी अज्ञानता देखने को मिलती है, जीवन में कभी कोर्ट के चक्कर में नहीं पड़ना है यह साधारण नागरिको की अपेक्षा होती है। २०१८ के जानकारी के हिसाब से भारत में हर १८०० नागरिको पर एक वकील देखने को मिलता है अमरीका जैसे विकसित देश में यह प्रमाण २०० नागरिको पर एक वकील यह है। इससे हम अंदाजा लगा सकते है की कानूनी व्यवस्था में हमें कितना विकसित होना है।

भारत में कोर्ट के माध्यम से अपनी समस्याए सुलझाना यह प्रमाण बहुत कम है, इसके लिए कई कारन है जिसमे न्याय के लिए लगने वाली देरी तथा भ्रष्टाचार यह हमारी सबसे बड़ी समस्या है। सामान्य नागरिक अपनी समस्या लेके कोर्ट जाने से डरते है अथवा वह कोर्ट पर न्याय मिलने के लिए भरोसा नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई बार न्यायिक व्यवस्था में कई कर्मचारी नियुक्त करना बाकि है मगर सरकार यह जगह नहीं भर रही है, जिसकी वजह से कानूनी प्रक्रिया को देरी होती है।

इसलिए कानून व्यवस्था के बारे में जानकारी रखना यह लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण होता है जिसमे अपने अधिकार क्या है ? तथा सरकारी व्यवस्था कैसे चलती हे और उनके कर्तव्य क्या है ? यह जानकारी बगैर कानून के ज्ञान के संभव नहीं है। इसलिए हम भारत में लीगल शिक्षा की व्यवस्था कैसी है और वह कितनी हद तक सफल रही है यह आलोचनात्मक विश्लेषण से हम जानने की कोशिश करेंगे।

लीगल शिक्षा व्यवस्था क्या है ? / What is Legal Education in India –

यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC), बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया तथा यूनिवर्सिटीज यह लीगल शिक्षा की व्यवस्था हमें देखने को मिलती है। जिसमे पुरे भारत के २२ लीगल यूनिवर्सिटीज पुरे भारत में क्लैट (CLAT) इस परीक्षा के माध्यम से एडमिशन देती है। वही कई सारे निजी संस्थाओ द्वारा लीगल कॉलेज चलाए जाते है वह अलग अलग राज्यों में यह अलग एंट्रेंस परीक्षा के माध्यम से एडमिशन देती है। यह अंडर ग्रेजुएट कोर्सेज तथा पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के माध्यम से वकील हमें देखने को मिलते है।

हर राज्य की बार कौंसिल अपनी रजिस्टर्ड खुद रखती है जो उस राज्य में अपनी कानूनी प्रैक्टिस करते है, अगर हमें पुरे भारत में प्रैक्टिस करनी हो तो बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया की परीक्षा देनी होती हे जो साल में दो बार होती है। लीगल शिक्षा का अभ्यासक्रम क्या होना चाहिए यह बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया के मार्गदर्शन में सभी यूनिवर्सिटी को करना होता है, जिसमे समय समय पर बदलाव किए जाते है।

सुप्रीम कोर्ट यह लीगल व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण अंग है जो सभी कानून व्यवस्था को पुरे भारत में नियंत्रित करता है, जिसके अंतर्गत सभी राज्यों के उच्च न्यायालय आते है। जिला न्यायालय तथा उसके अंतर्गत आने वाले कोर्ट ऐसी पूरी कानून व्यवस्था भारत के बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया तथा राज्यों के बार कौंसिल ऑफ़ राज्य ऐसे चलाई जाती है। १९९० के बाद ट्रिब्यूनल के माध्यम से भारत में कानून व्यवस्था का वर्क लोड कम करने की कोशिश की जा रही है। जिसमे ट्रिब्यूनल के माध्यम से कई कानूनी विवाद निपटाए जाते है, जिसमे वकीलों का रोल अहम् होता है।

भारतीय लीगल शिक्षा का इतिहास / History of Legal Education in India –

हमारी आज की कानून व्यवस्था यह ब्रिटिश इंडिया के प्रभाव से बनी हुई हे जिसमे भारतीय दंड संहिता से लेकर साक्ष्य अधिनियम जैसे कई कानून हे जो ब्रिटिश इंडिया में बने है जो आज भी कार्यरत है। सर्वोच्च न्यायालय,उच्च न्यायलय और जिला न्यायालय यह व्यवस्था ब्रिटिश इंडिया में प्रस्थापित की गयी है। अंग्रेज भारत में आने से पहले मुग़ल काल में यह व्यवस्था मनुस्मृती के आधारपर चलाई जाती थी, मुसलमानो के लिए अलग से कानूनी व्यवस्था थी।

सम्राट अशोक के समय काफी विकसित कानून व्यवस्था देखने को मिलती थी जिसके साबुत आज भी हमें देखने को मिलते हे जो दुनिया में सबसे विकसित कानून व्यवस्था मानी जाती थी। मौर्य वंश के अंत के बाद मनुस्मृती पर आधारित कानून व्यवस्था चलाई जाने लगी, आज की कानून व्यवस्था यह धर्म से अलग तर्क पर और तथ्यों पर आधारित होती है जिसमे सबूतों को काफी महत्त्व होता है।

१८५५ से पहले सिविल और क्रिमिनल मामलों में ब्रिटिश इंडिया में काफी टकराव देखने को मिलते थे इसलिए अंग्रेजो ने क्रिमिनल कानून को पहली बार भारत में प्रस्तुत किया, जो धर्म से अलग करके ब्रिटिश कानून व्यवस्था पर आधारित था। अंग्रेजो के व्यवस्था को कानून व्यवस्था प्रस्थापित करके चलाना यह इस कानून व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य रहा है इसलिए भारत के ज्यादातर एलिट वर्ग ब्रिटेन जाकर अपनी कानून की डिग्री लेकर भारत में प्रैक्टिस करने लगे।

स्वतंत्र भारत में बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया की स्थापना की गयी और आधुनिक लीगल शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया जो आज हमें देखने को मिलती है।

लीगल क्षेत्र में करियर / Career in Legal Field –

  • क्रिमिनल वकील /Criminal Lawyer
  • कॉर्पोरेट वकील / Corporate Lawyer
  • दिवालिया पेशेवर वकील / Insolvency Professional
  • सरकारी न्यायिक सर्विस /Judicial Government Services
  • लीगल पत्रकारिता / Legal Journalism
  • सिविल वकील / Civil Lawyer
  • लीगल सलाहकार / Legal Adviser
  • लीगल विश्लेषक / Legal Analyst
  • लीगल शिक्षा प्राध्यापक / Legal Professor
  • लीगल संशोधक / Legal Researcher

लीगल शिक्षा का महत्त्व / Importance of Legal Education –

लोकतंत्र में लीगल शिक्षा का महत्त्व काफी ज्यादा होता है , मुलभुत अधिकार तथा लीगल कर्तव्य यह लोकतंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होते है। जनता के चुने हुए प्रतिनिधी जनता के लिए राज्य चलाते है, राजतन्त्र में राजा जो कहे वही कानून होता था मगर लोकतंत्र में यह कानून जनता के हित में बनाने होते है। इसलिए लोकतंत्र में लीगल शिक्षा प्राथमिक तौर पर सभी लोगो को होनी चाहिए यह जरुरी है। अगर प्रोफेशन की बात करे तो बाकि क्षेत्र से कई अधिक प्रकार लीगल क्षेत्र में देखने को मिलते है जहा परीक्षा पास करके अच्छा पैसा और प्रतिष्ठा प्राप्त की जा सकती है।

कानून के प्रति हमारा अज्ञान व्यवस्था को दुरूपयोग करने के लिए प्रोस्ताहित करता है इसलिए हम देखते हे की इंग्लैंड का संविधान लिखित न होते हुए भी वह कानून व्यवस्था भारत से बेहतर है। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है तथा एक आदर्श संविधान हे मगर इसका अमल पूरी तरीके से क्या होता है ? यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल है ? जिसका कारन हे लोग जागृत न होने की वजह से शासक अपने शासन का दुरूपयोग करने में कामयाब होता है। भारत की राजनीती तथा स्वतंत्रता आंदोलन में वकीलों का अहम् भूमिका रही है इसलिए इस पेशे का महत्त्व राजनीती और समाजनीति में काफी ज्यादा है।

भारत में यूरोपीय तथा अमरीका जैसे कानून का इस्तेमाल लोगो द्वारा नहीं होता है, लोग पुलिस और कोर्ट से खुद को दूर रखना पसंद करते है तथा वह इससे डरते है। कानून व्यवस्था लोगो के सुरक्षा के लिए होती है मगर भारत में इससे डरते है, इसलिए लीगल शिक्षा का महत्त्व भारत में काफी ज्यादा प्रसार करने की जरुरत है। अपराध होते हे मगर लोग केस दर्ज करने से कतराते है, इसलिए भारत में अपराध कम दिखते हे मगर वास्तविकता में ऐसी परिस्थिति नहीं है। अमरीका की तरह भारत में २०० लोगो पर एक वकील यह प्रमाण निर्माण करने के लिए लीगल शिक्षा का स्तर और बढ़ाना पड़ेगा।

लीगल शिक्षा और टेक्नोलॉजी / Legal Education & Technology –

सबसे अधिक स्थर पर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मेडिकल क्षेत्र में दिखता है तथा इंजीनियरिंग क्षेत्र मे, मगर लीगल क्षेत्र इससे अछूता नहीं रहा है। अल्गोरिदम यह तकनीक लीगल क्षेत्र में विकसित देशो में इस्तेमाल होने लगी है, यही तकनीक इन्वेस्टीगेशन में काफी सटीक तरीके से इस्तेमाल हो सकती है। कानून व्यवस्था का भ्रष्टाचार और राजनीती यह लीगल क्षेत्र में इस्तेमाल करने के लिए सबसे बड़ी बाधा है।

मेडिकल तथा इंजीनियरिंग क्षेत्र में बड़ी मात्रा में पैसे की जरुरत होती है अगर चाहे आप इस पेशे में कितने भी माहिर हो मगर यह स्थिति अभी तक लीगल क्षेत्र में नहीं दिखती है। टेक्नोलॉजी से लीगल क्षेत्र में कुछ खास लोगो का प्रभाव रखना काफी मुश्किल काम है इसलिए लीगल क्षेत्र में खास कर के भारत में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल इतनी बड़ी मात्रा में नहीं हो रहा है। इन्वेस्टीगेशन में जितना मेडिकल साइंस का हिस्सा है वहा बड़ी मात्रा में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है।

कोर्ट्स और ट्रिब्यूनल्स में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भारत में बहुत ज्यादा नहीं किया जाता है। इंवेस्टगेशन में बहुत सारे केसेस बिना सोल्व किये बंद किए जाते है जिसको टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके सटीक तरीके से सॉल्व किए जा सकते है। भारत की लीगल अभ्यासक्रम में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अभी तक प्रभावी तरीके से नहीं किया जा रहा है। विकसित देशो में टेक्नोलॉजी अभ्यासक्रम में इस्तेमाल होने लगी है जिनका टेक्नोलॉजी में एक्सपेर्टीस है और लीगल डिग्री हे वह व्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण संपत्ति हो सकते है।

लीगल शिक्षा का उद्देश्य / Object of Legal Education –

  • लीगल शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है की “सामाजिक इंजीनियरिंग ” जिसमे लीगल शिक्षा से नेतृत्व निर्माण होता है जो समाज को नयी दिशा देने के लिए महत्वपूर्ण होता है।
  • देश में समानता प्रस्थापित करना जो हमारे संविधान का सबसे अहम् उद्देश्य माना जाता है इसको प्रस्थपित करने के लिए लीगल शिक्षा का होना जरुरी होता है।
  • भ्रष्टाचार और सत्ता का दुरूपयोग यह शासक करता है जिसका कारन होता हे की जनता गलत प्रतिनिधी चुनती है जिसके लिए लीगल शिक्षा का होना जरुरी है जिससे सही प्रतिनिधि संसद और विधानसभा में पहुंचे।
  • जागृत जनता शासक को अपने नियंत्रण में रखती है अगर वह जागृत हो तो मगर जनता अगर जागृत नहीं हो तो को भ्रमित करके सत्ता पे निरंतर काबिज रहता है और जनता का शोषण करता है।
  • किसी भी लोकतान्त्रिक राज्य में अपने हक्क और अधिकार हासिल करने के लिए लेगा शिक्षा का होना काफी जरुरी है नहीं तो वह व्यवस्था का शिकार बन जाते है।
  • इंग्लैंड में लिखित संविधान नहीं है मगर दुनिया की बेहतरीन कानून व्यवस्था हमें इंग्लैंड में देखने को मिलती है, भारत में सबसे ज्यादा कानून बनाए जाते है मगर फिर भी लोग इस कानून को तोड़ने के लिए कोई न कोई रास्ता ढूंढ लेते है। यह जनता का जागृत न होने का सबसे बड़ा लक्षण माना जाता है।
  • भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का कहना है की अमरीका में हर २०० नागरिको पर १ वकील मिलता है वही भारत में यह प्रमाण १८०० लोगो पर एक वकील है इसको कम करना होगा।
  • लीगल शिक्षा से भारत की कानून व्यवस्था पर लोगो का विश्वास कानून के प्रति जाग्रति निर्माण कर सकेगी इसलिए लीगल शिक्षा को बाकि शिक्षा प्रणाली की तरह महत्त्व मिलना चाहिए।

बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया / Bar Council of India –

बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया की स्थापना एडवोकेट एक्ट १९६१ के धारा ४ के अनुसार की गयी है, जिसका मुख्या उद्देश्य देश की कानून शिक्षा व्यवस्था तथा लीगल प्रैक्टिस को रेगुलेट करने के लिए किया गया है । बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया के प्रतिनिधि देश भर के प्रैक्टिसिंग वकीलों में से प्रक्रिया के माध्यम से चुना जाता है। लीगल शिक्षा का स्थर भारत में कैसा होना चाहिए यह बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा निर्धारित किया जाता है।

लीगल शिक्षा संस्था द्वारा डिग्री हासिल करने वाले विद्यार्थियों के लिए बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया की परीक्षा पास करने के बाद पुरे भारत में लीगल प्रैक्टिस करने संमती मिल जाती है। बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया के अंतर्गत देश के सभी राज्यों के बार कौंसिल को रेगुलेट किया जाता है। बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया तथा सुप्रीम कोर्ट की कानूनी व्यवस्था यह समांतर एक दूसरे के सहयोग से काम करती है। १९५३ में All India Bar Council Committee जो एस आर दास के नेतृत्व में बनाई गयी थी जिसके माध्यम से हर राज्यों में बार कौंसिल की स्थापना की गयी जो बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया से सहयोग करेगी।

लॉ कमीशन के माध्यम से भारत में समानता तथा न्यायिक व्यवस्था प्रस्थापित करने के लिए बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया बहुत अहम् भूमिका अदा करता है जो न्यायिक व्यवस्था को चलाने वाले वकीलों का स्थर कैसा होना चाहिए यह निर्धारित करता है। वकीलों का बर्ताव कोर्ट और क्लाइंट के प्रति कैसा होना चाहिए यह रेगुलेट करने का कार्य बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया के माध्यम से चलाया जाता है। भारत के सभी निजी तथा सरकारी लीगल शिक्षा संस्थानों का लीगल ऑडिट बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा किया जाता है, इसलिए यह भारत के लीगल शिक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

भारत में लीगल शिक्षा का विकास/ Development of Legal Education in India –

भारत में १९९० के बाद खुली अर्थव्यवस्था के माध्यम से सभी क्षेत्रो में निजीकरण को देखा है, इसका परिणाम हमारी लीगल व्यवस्था में को मिला है। वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन GATT करार के माध्यम से लीगल सिस्टम को पूरी दुनिया से अंतरराष्ट्रीय कानून के माध्यम से जोड़ा गया था। फोरेंसिक साइंस तथा जांच पड़ताल के कानूनी प्रक्रिया में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल आज बड़े पैमाने में देखने को मिलता है।

इसलिए आज टेक्नोलॉजी हर पांच साल में बड़ी मात्रा में बदलते देखि जाती है जिससे लीगल शिक्षा व्यवस्था में यह बदलाव करना जरुरी हुवा है। साक्ष्य अधिनियम में इसके कई बदलाव देखने को मिलते है, जिससे सबूतों की व्याख्या पूरी तरह से आज के दौर में बदल गयी है। अगर हम पिछले २० सालो में लीगल शिक्षा व्यवस्था को देखते है तो हमें टेक्नोलॉजी और समय के साथ बहुत सारे बदलाव लीगल शिक्षा में करने होंगे यह दिखता है।

हमारी कानून व्यवस्था तथा न्यायिक व्यवस्था इसमें काफी सारे बदलाव पिछले चालीस साल से देखे जाते है। ज्यादातर सरकारी लीगल शिक्षा संस्थानों से निकले विद्यार्थियों को कॉर्पोरेट क्षेत्र में ज्यादा रूचि होती है बजाय पारम्परिक बार कौंसिल को जॉइंट करके लीगल प्रैक्टिस करे। कॉर्पोरेट क्षेत्र में पारम्परिक लीगल प्रैक्टिस से बहुत सारा पैसा मिलता है इसलिए शुरुवाती करियर में बहुत सारे विद्यार्थी लीगल स्किल का इस्तेमाल कॉर्पोरेट क्षेत्र को सामने रखकर करते है।

कोविड -१९ का लीगल शिक्षा पर क्या प्रभाव रहा / Impact of Covid -19 on Legal Education in India –

जैसे की हम सभी जानते है की पूरी दुनिया में कोविड का परिणाम हमें देखने है जिससे स्कूल और कॉलेज पिछले दो सालो के लिए पूरी तरह से बंद रहे है। जिसका परिणाम हमें लीगल शिक्षा पर भी देखने को मिला है। लीगल शिक्षा में मूट कोर्ट , डिबेट जैसे प्रैक्टिकल कई गतिविधिया होती है जिसपर लॉक डाउन का बुरी तरह से प्रभाव देखने को मिला है। इसमें भी आखरी दो सालो में जो भी विद्यार्थी पढ़ रहे थे उनपर इसका काफी बुरा प्रभाव रहा है, क्यूंकि सबसे ज्यादा प्रैक्टिकल गतिविधिया लीगल शिक्षा में आखरी दो सालो में देखने को मिलती है।

ऑनलाइन तरीके से लीगल शिक्षा को पिछले दो सालो से चलाया जा रहा है मगर जितना वास्तविक शिक्षा प्रणाली का प्रभाव विद्यार्थियों के प्रोग्रेस पर रहता है वह ऑनलाइन शिक्षा में नहीं रहता है। ऑनलाइन शिक्षा का प्रभाव दुनिया की पूरी शिक्षा व्यवस्था पर देखने को मिला है मगर फिर भी हमें इस परिस्थिति को टेक्नोलॉजी की दृष्टी से देखना होगा। कोविड के परिस्थिति में हमें लीगल शिक्षा में कई बदलाव करने जरुरी हे यह हमें सिखाया है।

लीगल शिक्षा की विशेषताए / Features of Legal Education in India –

  • जैसे इंजीनियरिंग तथा मेडिकल शिक्षा में एंट्री और एग्जिट दोनों समय विद्यार्थियों को परीक्षा देनी होती है।
  • भारत में २१ लीगल सरकारीयूनिवर्सिटी में ७० कॉलेज में एडमिशन हासिल करने के लिए क्लैट यह परीक्षा देनी होती हे जिसमे पास होने केवल ३-५ प्रतिशत है।
  • निजी लीगल शिक्षा संस्थानों से भी हजारो विद्यार्थी हर साल वकील बनते है जिनका लीगल प्रैक्टिस तथा कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करने के लिए काफी अवसर मिलते है।
  • लीगल शिक्षा को UGC तथा बार कौंसिल इंडिया के माध्यम से रेगुलेट किया जाता है जिसमे सरकारी और निजी लीगल स्कूल शामिल है।
  • सरकारी लीगल स्कूल आलावा बाकि निजी तथा अन्य लीगल शिक्षा संस्थानों में CET परीक्षा के माध्यम से एंट्री परीक्षा लिए जाते है।
  • क्लैट के माध्यम से २४०० सीटे पुरे भारत के सरकारी स्कूलों में भरे जाते है, जिनका डिग्री पूरी करने के बाद कॉर्पोरेट क्षेत्र में नौकरी पाने का प्रतिशत १५० प्रतिशत है।
  • हर राज्य में लीगल डिग्री हासिल करने के बाद स्टेट बार कौंसिल को रजिस्टर करना होता है अगर राज्य के किसी कोर्ट में लीगल प्रैक्टिस करनी हो।
  • बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया की परीक्षा देने के बाद पुरे भारत में लीगल प्रैक्टिस करने का अधिकार किसी भी वकील को मिलता है।
  • भारत में हर १८०० नागरिको के लिए एक वकील उपलब्ध है वही अमरीका में यह प्रमाण २०० नागरिको पर एक वकील यह है।
  • १९९० के बाद न्यायिक व्यवस्था का ८० प्रतिशत काम यह ट्रिब्यूनल के माध्यम से चलाया जाता है जिसके लिए बार कौंसिल को रजिस्टर्ड करने नहीं होती है।
  • लीगल प्रोफेशन में मेट्रो शहरों में पैसे कमाने वाले वकीलों की संख्या सबसे ज्यादा है वही दुय्यम शहरों में यह प्रमाण काफी कम है।

लीगल शिक्षा का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of Legal Education –

  • लीगल शिक्षा का अभ्यासक्रम और वास्तविक लीगल प्रैक्टिस इसमें काफी फर्क दिखता है इसलिए बाकि शिक्षा प्रोफेशन की समस्या की तरह ज्यादातर लीगल डिग्री धारक कार्यक्षम बनने के लिए काफी प्रशिक्षण की जरुरत होती है।
  • लीगल प्रोफेशन पर सामान्य लोगो का विश्वास हासिल करने में लीगल शिक्षा व्यवस्था आजतक असफल रही है क्यूंकि लीगल सेवा सामान्य लोगो को हासिल करना बहुत महंगा है।
  • न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार यह मूल समस्या है जिसमे नैतिक शिक्षा का आभाव नए तैयार होने वाले वकीलों में देखने को नहीं मिलता।
  • लॉ कमीशन ने यह सुझाव दिए थे की लीगल कॉलेजों में स्थाई प्रोफेसर नियुक्त करेंगे तो ही लीगल शिक्षा का स्थर बेहतर हो सकता है मगर आज हम देखते है की अस्थाई प्रोफेसर की नियुक्ति बड़े पैमाने पर की जाती है।
  • सरकारी स्कूल में डिग्री हासिल करने वाले विद्यार्थी यह ज्यादातरकॉर्पोरेट क्षेत्र में नौकरी करना पसंद करते है जहा काफी पैसा होता है जिससे सामाजिक दायित्व का उद्देश्य पीछे रह जाता है।
  • लीगल सहायता का प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया में हे मगर इसका प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करने में हम असफल रहे है।
  • लीगल शिक्षा में लॉजिकल तथा तथ्यों पर आधारित शिक्षा प्रणाली हम यूरोप और अमरीका की तरह प्रस्थापित करने में अभी तक सफल नहीं हुए है।
  • संशोधन के मामलों में हम लीगल शिक्षा प्रणाली में पूरी तरह से पश्चिमी संशोधन पर अवलम्बित है।
  • लीगल शिक्षा यह केवल अंग्रेजी में हासिल कर सकते है तथा न्यायिक व्यवस्था का सभी मटेरियल यह अंग्रेजी में उपलब्ध है जिससे कई होशियार विद्यार्थी जो अंग्रेजी में कच्चे होते है वह लीगल शिक्षा में सफल नहीं हो पाते।

निष्कर्ष / Conclusion –

लीगल शिक्षा व्यवस्था यह लोकतान्त्रिक देश में समानता और न्यायिक प्रक्रिया को प्रस्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण होती है, जिसमे न्यायाधीश से लेकर वकीलों तक सभी इसका हिस्सा होते है। लीगल शिक्षा को बेहतरीन करने की जिम्मेदारी यह बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया के माध्यम से होती है। भारत में लीगल शिक्षा अभ्यासक्रम केवल अंग्रेजी में सिखाया जाता है जो मूल रूप से पश्चिमी न्यायिक आधार पर बनाया गया है, जिसमे आज भी अंतरराष्ट्रीय केस लॉ को रेफर किया जाता है।

न्यायिक शिक्षा में सामन्यतः वही लोग ज्यादातर शिक्षा हासिल करना चाहते है जिनके माता या पिता पहले से इस क्षेत्र में है बाकि जो विद्यार्थी इस क्षेत्र में आते हे उनको खुद को प्रस्थपित करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। लीगल शिक्षा में कई सारे क्षेत्र हे जिसमे अच्छा करियर बनाया जा सकता है मगर कम जानकारी के कारन यह क्षेत्र काफी अनदेखा रहा है। राजनीती से लेकर कॉर्पोरेट कंपनियों में लीगल अधिकारियो की मांग होती है मगर ज्यादातर विद्यार्थी अन्य क्षेत्रो की तरफ आकर्षित होते है।

अजेका कॉर्पोरेट क्षेत्र इतना बड़ा है की भारत में अगले कुछ सालो में बहुत सारा लीगल फ़ोर्स लगने वाला है, ज्यादातर सामान्य लोगो की धारणा यह है की लीगल शिक्षा का मतलब है कोर्ट में लीगल प्रैक्टिस करना। मगर लीगल क्षेत्र इससे काफी बड़ा है। इस आर्टिकल के माध्यम से हमने लीगल शिक्षा के बारे में बहुत सारी जानकारी अध्ययन करने की कोशिश की है। जिसमे लीगल क्षेत्र में डिग्री कैसे हासिल करनी है, तथा लीगल करियर कैसे सफल करना चाहिए यह हमने देखने की कोशिश इस आर्टिकल के माध्यम से की है।

शिक्षा में सफल होने का सबसे बेहतरीन सूत्र

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