मोंटेसकयु फ्रेंच दार्शनिके जो वोल्टायर के समकालीन हे, फ्रेंच क्रांति के जनक जिनके विचारो ने फ्रांस में लोकतंत्र की नीव रखी

प्रस्तावना / Introduction –

मोंटेसकयु एक प्रसिद्ध फ्रेंच दार्शनिक रहे हे जो वोल्टायर के समकालीन रहे हे और १७८९ के फ्रेंच क्रांति के मुख्य कारन रहे हे जिनके विचारो ने पुरे फ्रांस में एक आधुनिक लोकतंत्र की नीव रखी थी। मोंटेसकयु के विचारो पर अमरीका का अध्यक्षीय फ़ेडरल – लोकतंत्र खड़ा है जिसमे शक्ति का विकेन्द्रीकरण यह सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत इस्तेमाल किया गया है।

फ्रांस ने पुरे यूरोप में १८ वी सदी में एक से एक विचारक दिए जिसने राज्य की व्याख्या ही बदल डाली और आधुनिक लोकतंत्र दुनिया में प्रस्थापित होने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान किया। लुईस १४ तथा लुईस १५ ने फ्रांस में उनके राजतन्त्र के कारन काफी अशांती देखने को मिलती हे तथा वोल्टायर और मोंटेसकयु के विचारो का प्रभाव पुरे समाज पर देखने को मिलता है।

हम यहाँ मोंटेसकयु के सही मायने में क्या विचार रहे हे और उनका फ्रांस के समाज पर क्या प्रभाव रहा हे यह देखेंगे। अमरीका की स्वतंत्रता के बाद जो दुनिया का पहली लिखित संविधान दुनिया ने देखा जिसपर मोंटेसकयु का प्रभाव देखने को मिलता है। हम विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे की उनका शुरुवाती जीवन कैसा रहा और उन्होंने अपने विचारो को कैसे विकसित किया यह देखेंगे।

मोंटेसकयु (१६८९ -१७५५) / Montesquieu ( 1689 -1755) –

१९ जनवरी १६८९ को एक सधन परिवार में जन्मे मोंटेसकयु पेशे से एक वकील थे और १७१३ में उनके पिताजी के निधन के बाद वह अपनी शिक्षा पूरी करके वापिस अपने गांव ला ब्रेडे में आये थे जहा वह अपनी संपत्ति की देखभाल करते करते अपने अध्ययन में लगे रहते थे। १७१५ में उन्होंने जेनी डी लरटिग्यु से विवाह किया जो एक प्रोटोस्टेंट क्रिस्चियन थी जिनसे उन्हें एक लड़का और दो लड़किया हुई।

१७१६ में बोर्डेक्स पार्लियामेंट के कानूनी समिति में वह एक प्रतिनिधि के तौर पर चुने गए जो उनके अंकल द्वारा उन्हें प्रदान किया गया था जो खुद भी शहर के नामी व्यक्ति रहे थे, यह पद उन्होंने अगले ग्यारह साल तक चलाया। दौरान उन्होंने कई सारे कानून कार्य संभाले और अपना राजनितिक दर्शन शास्त्र का अध्ययन भी चालू रखा। उनके देहांत के बाद उनकी भी संपत्ति मॉन्टेस्क्यू के नाम पर हुई जिससे वह अपने आर्थिक रूप से काफी आमिर रहे है।

मोंटेस्कूयू के दो अध्ययन काफी प्रसिद्द रहे जिसमे पर्शियन लेटर्स और दी स्पिरिट ऑफ़ लॉज यह कार्य उनके मृत्यु के बाद काफी प्रसिद्द रहे और दुनिया के लिए एक राजनितिक विचारधारा कैसी होनी चाहिए और राज्य कैसे निर्माण करना हे इसके बारे में उन्होंने अपने अध्ययन के माध्यम से दुनिया के सामने रखा।

मोंटेस्कूयू का दर्शनशास्त्र / Philosophy of Montesquieu –

उनका मुख्य कार्य “राज्य” कैसा होगा और राज्य के प्रकार कितने होते हे इसका अध्ययन किया जिसमे डिस्पोटिस्म में सब शक्ति किसी एक व्यक्ति अथवा समाज के पास केंद्रित होती हे और इससे क्या दुष्परिणाम होते हे यह वह बताते है। उन्होंने रोमन कानूनों का और इतिहास का काफी अध्ययन किया।

जिससे उन्होंने शक्ति का विकेन्द्रीकरण यह सिद्धांत लिया और उसे विकसित करके आधुनिक लोकतंत्र में न्यायव्यवस्था , कार्यपालिका , और विधायका इसको सामान रूप से शक्ति का संचय दिया। अमरीका ने यह सिद्धांत अपने संविधान में पहली बार स्वीकार किया और आज यह सिद्धांत लघबघ सभी लोकतान्त्रिक देशो के संविधान में इस्तेमाल किया जाता है।

उनके बराबरी के कालखंड में वोल्टायर जैसे दर्शनशास्त्री हुए जो उनसे काफी प्रखर लिखते थे और राजतन्त्र पर खासा तंज कसते थे। उनके दो कार्य काफी प्रसिद्द हुए जिसमे पर्शियन लेटर यह नावेल काफी प्रसिद्द रहा और दूसरा दी स्पिरिट ऑफ़ लॉ यह किताब काफी प्रसिद्द रही। शक्ति का उपयोग लोकतंत्र में कैसे करना चाहिए यह वह काफी विस्तृत तरीकेसे बताते है।

पर्शियन लेटर्स और मोंटेस्कूयू / Persian Letters & Montesquieu –

पर्शियन लेटर्स यह एक मोंटेस्कूयू की नावेल हे जो गैर पश्चिमी लोगो का पश्चिमी देशो की तरफ देखने का नजरिया क्या हे यह दर्शाता है। इसमें पर्शियन उज़्बेक और उसका साथी रिका फ्रांस में आते हे और पीछे अपनी पांच पत्निया अपने गुलामो के पास छोड़कर चले आता है। फ्रांस में आने का बाद उसका हर चीज को देखने का नजरिया कैसा हे यह मॉन्टेस्क्यू ने काफी बेहतरीन तरीके से दर्शाया है। यह नॉवेल पश्चिमी देशो में तथा अमरीका में काफी प्रसिद्द रहा है।

इस नॉवेल में उज़्बेक और रिका द्वारा अपने देश में भेजे गए लेटर्स और इसके क्या जवाब पर्शिया से आते हे और वह फ्रांस के कल्चर को कैसे गलत तरीके से दर्शाते हे यह मोंटेस्कूयू दिखाते है। इस नॉवेल में लेटर्स के माध्यम से अलग अलग परिस्थितियों को दर्शाया गया है। रिका एक लेटर में कहते हे की यहाँ के धर्मगुरु एक जादूगर की तरह राजा को नाचते है और वह जैसा चाहते है वैसा वह करता है।

इसका वर्णन जिस तरह लेखक करते हे वह अकल्पनीय हे और फ्रांस की राजनीती के बारे में एक तरह से कैसे खामिया हे यह दिखाता है। धीरे धीरे फिर उनको वहा की परिस्थितिया समझमे आने लगती हे और कुछ चीजे उन्हें समझ से परे नजर आती है जिसका वर्णन वह अपने लेटर्स द्वारा करते है। इन लेटर्स के माध्यम से लेखक आभासी दुनिया की एक प्रतिमा एक अलग कल्चर के लोगो द्वारा फ्रांस के बारे में दिखाने की कोशिश करते है।

दी स्पिरिट ऑफ़ लॉ और मोंटेस्कूयू / The Spirit of Laws -Montesquieu –

१७४८ में पहली बार इस किताब को प्रकाशित किया गया जो एक राजनितिक सिद्धांत के बारे में लिखी गई किताब हे जिससे प्रभावित होकर अमरीका संविधान लिखा गया जो दुनिया का सबसे पहला लिखित संविधान माना जाता है। ब्रिटिश अधिकारी मेकाले उनके विचारो से काफी प्रभावित हुए और यह सिद्धांत उन्होंने अध्ययन किये और अपने किताब मचिवली में मोंटेकियु के इन विचारो का उल्लेख वह करते है ।

इस किताब में मोंटेस्कूयू इंसान के लिए कानून व्यवस्था कैसी होनी चाहिए और इसका समाजपर कैसा प्रभाव रहेगा इसके बारे में लेखक इस किताब में लिखते है। इंसान ने समाज के लिए कैसे मुर्खताभरे नियम बनाए और उसका इतिहास में दुरूपयोग किया हे इसका उल्लेख लेखक करते हे और इसमें कैसे बदलाव करने की जरुरत हे यह बताते है। राज्य की निर्मिति कैसे करनी चाहिए तथा शक्ति का विकेन्द्रीकरण क्यों करना चाहिए यह मोंटेस्कूयू इतिहास के दाखिले देते हुए बताते है।

मोंटेस्कूयू सत्ता के चेक्स और बैलेंस के बारे में बताते हे जहा सत्ता का संतुलन रहना कितना जरुरी होता हे और कार्यपालिक , न्यायपालिका और विधायिका को कैसे एक दूसरे पर नियंत्रण रखना हे यह वह दिखाते है। अगर इसमें से एक भी शक्ति दूसरे से शक्तिशाली बनती हे तो पुरे राज्य का संतुलन बिगड़ जाता हे इसलिए इन तीनो शक्तियों को संतुलित कैसे रखना हे यह इस किताब में दर्शाया गया है।

सरकार का स्वरुप / Form of Government –

इस किताब में मोटेस्कूयू कहते हे की तीन तरह की राज्य की व्यवस्थाए होती हे जिसमे रिपब्लिक , डिस्पोटिक और राजतंत्रीय जिसका वह अलग से विश्लेषण करके दिखाते है। वह कहते हे की रिपब्लिक राज्य में नागरिको के अधिकार काफी महत्वपूर्ण होते है उसके आधारपर यह कहा जा सकता हे की वह रिपब्लिक राज्य हे या नहीं यह कैसे देखा जाए ? तो वह नागरिको के अधिकार किस हदतक हे इसपर निर्भर होता है।

राजतन्त्र और डिस्पोटिस्म के बारे में कहते है की शासक के अधिकार कानून द्वारा कितने सिमित किये जाते हे उसपर निर्भर होता हे की वह राजतन्त्र हे या किसी तानाशाह का राजतन्त्र है। अति सत्ता का केन्द्रीकरण एक व्यक्ति अथवा एक समाज के पास हो जाए तो मोंटेस्कूयू उसे डिस्पोटिस्म कहते है। राजतंत्र में जहा राजा के अधिकारों पर कानून द्वारा नियंत्रण रखकर एक सही राजतन्त्र चलाया जा सकता हे यह उन्होंने देखा। वह दौर था राजतन्त्र का उस समय लोकतंत्र का विकास होना शुरू ही हुवा था।

सही मायने में राजतन्त्र में अगर कानून व्यवस्था ठीक से चल रही हे ऐसा माना जाए फिर भी इसका नियंत्रण समाज के कुलीन वर्ग के हाथो में हो तो समाज के निचले स्तर के लोगो के साथ अन्याय होने लगता है। इसलिए सत्ता में संतुलन होना जरुरी है। किसी भी स्वरुप के सरकार का राज्य में क्या भूमिका होनी चाहिए यह लेखक हमें अपने सिद्धांतो द्वारा बताते है।

मोंटेस्कूयू और स्वतंत्रता / Montesquieu & Liberty –

मोंटेस्कूयू का मानना था की व्यक्ति की विचार प्रदर्शित करने की स्वतंत्रता राज्य में काफी महत्वपूर्ण माननी चाहिए क्यूंकि उस दौर में धर्म और कुलीन वर्ग का समाज पर वर्चस्व था और धर्म के विरुद्ध कोई भी बात स्वीकारी नहीं जाती थी। इसलिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए मोंटेस्कूयू काफी आग्रही रहे थे। स्वतंत्रता का मतलब किसी को चोट पहुंचना नहीं हे वह केवल अपने व्यक्तिगत हित के लिए हे और लोगो को आपके स्वतंत्रता से कोई चोट नहीं पहुचानी चाहिए यह वह आग्रह से मानते थे।

मोंटेस्कूयू का मानना था की राज्य के कानून लोगो को मानाने होंगे जिससे लोगो के व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए होते है। इसके लिए उन्होंने शक्ति के ज्यादा दुरूपयोग को इतिहास में अध्ययन किया और जाना की शक्ति को अलग करना होगा जिससे किसी एक व्यक्ति अथवा समाज के पास शक्ति का संचय न हो जाए।

राज्य की सुरक्षा तथा कानून व्यवस्था को प्रस्थापित करने के लिए हमें कुछ अपने अधिकार राज्य को अधीन करने होते हे इसके बदले कई सारे अधिकार हमें मिल जाते हे जिसका हम उपयोग कर सकते है। मॉन्टेस्क्यू का मानना था की व्यक्ति के स्वतंत्रता के लिए हमें अपने कुछ अधिकार राज्य को प्रदान करने होते है जिससे वह राज्य की कानून व्यवस्था तथा सुरक्षा के लिए वह अधिकार इस्तेमाल करते हे और आपके व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा करते है।

मोंटेस्कूयू और भारत का लोकतंत्र / Indian Democracy & Montesquieu –

मोंटेस्कूयू के विचारो का पुरे दुनिया पर प्रभाव रहा हे उनके सेपेरशन ऑफ़ पावर का सिद्धांत को आज के तारीख में पूरी दुनिया के गणतंत्र और लोकतान्त्रिक व्यवस्था ने स्वीकार किया है। इसके लिए उन्होंने काफी अध्ययन किया और उन्हें यह सिद्धांत रोमन साम्राज्य में मिला जिसको उन्होंने विकसित फॉर्म में दुनिया के सामने १८ वी सदी में रखा।

वह दौर लोकतंत्र तथा गणतंत्र का नहीं था मगर उन्होंने राज्य कैसा होगा इसके बारे में परिकल्पना बनाकर राखी थी और तबतक ब्रिटेन में राजव्यवस्था को नाममात्र रखकर प्रतिनिधिक लोकतंत्र की नीव राखी गई थी। इसलिए उन्हें लगता था की किसी भी तानाशाह राजतन्त्र तथा कुलीन वर्ग के प्रभाव वाला राज्य किसी का भला नहीं कर सकता।

इसलिए उन्होंने तीन शक्तियों को सामान रूप से अलग करके एक दूसरे पर अंकुश रखने का कार्य किया। भारत के संविधान में यह गन देखने को मिलता हे और महत्वपूर्ण संस्थाओ को हमारे संविधान में स्वतंत्र रखा गया हे तथा काफी शक्ति प्रदान की गई हे जिससे कोई भी संस्था अगर ज्यादा शक्तिशाली बनने की कोशिश करे तो दूसरी संस्थाए उसपर अंकुश रख सके। यह विचार हमें मोंटेस्कूयू के सिद्धांतो से मिलते है।

मोंटेस्कूयू और वोल्टायर / Montesquieu & Voltair –

मोंटेस्कूयू यह वोल्टायर से समकालीन रहे है फिर भी मोंटेस्कूयू थोड़े वरिष्ठ माने जाते हे मगर फ्रांस में जो सामाजिक और राजनितिक परिवर्तन हुए हे उसमे दोनों के विचारधारा का काफी महत्त्व रहा है। वोल्टायर काफी दिनों तक इंग्लैंड थे और उन्होंने वहा की पार्लिअमेंटरी लोकतंत्र देखा और लोगो के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बारे में उन्होंने देखा और उससे वह काफी प्रभावित हुए जिससे उन्होंने फ्रांस के राजतन्त्र पर तीखे प्रहार किये।

मोंटेस्कूयू ने राज्य के जो सिद्धांत दुनिया के सामने रखे उस समय लोकतंत्र ठीक से विकसित नहीं हुवा था तथा ब्रिटेन के राजव्यवस्था के अधीन प्रतिनिधितक राज्य का निर्माण तबतक हो चूका था इसलिए लुईस १४ वे राजा का राज्य के प्रति कैसे आचरण होना चाहिए इसके बारे में कई सारा विचार लिखा गया। जिसका राजा पर कोई प्रभाव नहीं हुवा वह एक तानाशाह तथा कुलीन वर्ग के साथ मिलकर लोगो का शोषण कर रहा था।

इसलिए मोंटेस्कूयू ने इसके लिए रोमन साम्राज्य का काफी अध्ययन किया और सत्ता को कैसे अलग करके तीन हिस्सों में बाटना चाहिए यह उन्होंने दुनिया के सामने रखा जिसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहा जाता है। आज यह चीज काफी प्रचलित दिखती हे मगर उस समय वह एक क्रांतिकारक विचार रहे थे , जिसमे राजा के अधिकारों को कैसे कम किया जा सकता है तथा शक्ति के केंद्र कैसे विभाजित करने चाहिए यह मोंटेस्कूयू बताते है।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की कैसे फ्रांस में सबसे ज्यादा दार्शनिक निर्माण हुए जिन्होंने फ्रांस की क्रांति में अहम् भूमिका निभाई तथा राजनितिक और सामाजिक बदलाव हुए जिसका परिणाम हुवा की पुरे यूरोप में यह बदलाव हमें देखने को मिले। आज जो आधुनिक लोकतंत्र हमें देखने को मिलता हे हे यह इन महान विचारोंको के मेहनत का नतीजा है जिन्होंने फ्रांस की राजनितिक और सामाजिक बदलाव के लिए संघर्ष किया।

मोंटेस्कूयू यह १७ वि सदी में जन्मे सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक रहे हे जिनका कार्य पर्शियन लेटर्स तथा दी स्पिरिट ऑफ़ लॉज यह किताबे दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण राजनितिक और सामाजिक धरोहर मानी जाती है। इस आर्टिकल में हमने मोंटेस्कूयू के व्यक्तिगत जीवन का परिचय देने को कोशिश की हे तथा कैसे वह एक साधन परिवार से होते हुए भी समाज के लिए उनका कार्य महत्वपूर्ण रहा हे यह हमने देखा है।

हमने देखा की वोल्टायर यह एक दुनिया के महान अर्थशास्त्री तथा राजनितिक फिलोसोफर के साथ हमने मोंटेस्कूयू के विचारो को जाना के समकालीन होते हुए फ्रांस के समाज के लिए कैसे उनके विचार महत्वपूर्ण रहे हे यह हमने जाना है। उनके विचारो से फ्रांस में हमने एक नया माध्यम वर्ग निर्माण होते हुए देखा हे जो बाद में जाकर व्यक्तिवाद तथा व्यक्तिस्वातंत्र्य का क्या महत्त्व हे इसके बारे में दुनिया के सामने नए विचार हमें फ्रांस के माध्यम से देखने को मिले।

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