प्रस्तावना / Introduction –

निकोलो मैकियावेली के राजनितिक विचारधारा ने १६ वी सदी में सभी को चौका दिया था। क्यूंकि इससे पहले राजनीती शास्त्र के बारे में सभी दार्शनिक नैतिकता के साथ देखते थे। वास्तविक तौर पर राजनीती का दर्शनशास्त्र और वास्तविक राजनीती इसमें बहुत विसंगति हजारो साल के मानव सभ्यता में हमें दिखती है। निकोलो मैकियावेली कोई दार्शनिक नहीं थे जो तर्क और तथ्यों के आधारपर कोई दर्शन दुनिया के सामने रखे।

वह एक डिप्लोमेट रहे हे इटली के फ्लोरेंस राज्य के रिपब्लिक सरकार में इसलिए उन्होंने जो अपने १५ साल के अपने राजनितिक डिप्लोमेसी के अनुभव को अपने किताबो द्वारा दुनिया के सामने रखने कोशिश की है। इससे पहले प्लेटो और एरिस्टोटल जैसे दार्शनिक हमें बताते हे की राज्य किसे कहते हे और वह कैसे प्रस्थापित करना हे। निकोलो मैकियावेली ने अपना राजनितिक अनुभव से राजा को अपने राज्य को कैसे चलाना चाहिए यह दर्शनशास्त्र उन्होंने बताया जो अपने वास्तविक अनुभव से उन्होंने निर्माण किया।

इससे पहले यह शास्त्र राजनीती में नहीं था यह नहीं हे मगर लिखित स्वरुप में राजनीती और नैतिक इसका क्या सम्बन्ध हे इसके बारे में लिखने का साहस इससे पहले किसी ने नहीं किया था। इसलिए हम यह मैकियावेली के राजनितिक शास्त्र के बारे में विस्तृत रूप से जानने की कोशिश यहाँ करेंगे। जिसमे उनके समय में जो यूरोप में जाग्रति चल रही थी उसका उनपर क्या प्रभाव था और उनका दर्शनशास्त्र कितना प्रभावशाली रहा यह जानने की कोशिश करेंगे।

निकोलो मैकियावेली का जीवन दर्शन (१४६९ -१५२७)/ Life story of Machiavelli –

निकोलो मैकियावेली का परिवार १३ वी सदी से इटली के सधन परिवार से माने जाते थे भले ही उनके पिताजी बाकि रिश्तेदारों से उतने सधन नहीं थे। उनके पिताजी बरनार्डो डॉक्टर ऑफ़ लॉ इस पदवी के साथ पेशवर वकील के तौर पर कार्य कर रहे थे मगर उनका यह पेशा इतना सफल नहीं हो सका। फिर भी उनके पिताजी की खुद की किताबो की लाइब्रेरी थी। निकलो मैकियावेली अपने शुरुवाती दिनों में मार्सेलो वीरगिलिओ एड्रिआनी के विचारो से काफी प्रभावित हुए थे।

वह फॉरेन्स के रिपब्लिक सरकार में एक अधिकारी के तौर पर काम करते रहे और टेन ऑफ़ वॉर जैसी महत्वपूर्ण संघ के वह सदस्य रह चुके थे जो एक विदेश निति पर कार्य करने वाला विभाग बनाया गया था। इसके विपरीत जब मेडीची फॅमिली ने सत्ता अपने हात में ली तो उनको निष्कासित किया गया और कई दिनों तक कारावास में भी रखा गया। इसी समय उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण किताबो को लिखना शुरू किया जिसमे सबसे महत्वपूर्ण किताब दी प्रिंस को लिखा।

जिसमे राजा को अपना शासन कैसे करना चाहिए यह सिख वह अपने किताब के माध्यम से देने की कोशिश करते है। भले ही वह रिपब्लिक सरकार में कार्य करते रहे हो मगर राजनीती के लिए उन्होंने राजतन्त्र को प्राथमिकता देना पसंद किया। क्यूंकि उनका मानना था की इटली को ब्रिटेन ,फ्रांस और जर्मनी जैसा एकसंघ और ताकदवर होना चाहिए। इटली में उस समय मुख्य रूप से पांच अलग अलग राज्य शासन कर रहे थे जो आपस में और देश के बाहर भी लढ रहे थे।

मैकियावेली की राजनितिक विचार /Political Thoughts on Machiavelli –

राजनीती में १६ वी सदी यह यूरोप में जाग्रति का समय माना जाता हे, चर्च के अधिकार सिमित हो गए थे लोग वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने लगे थे। इससे हम देखते हे की दुनिया के मुकाबले यूरोप वैचारिक दृष्टी से काफी विकसित बन रहा था। इंग्लैंड में लोकतंत्र की नीव पार्लियामेंट के माध्यम से पड़ चुकी थी और इसका प्रभाव पुरे यूरोप पर होने लगा था।

इसके चलते निकोलो मैकियावेली ने राजा को अपने राज्य पर कैसे नियंत्रण रखना चाहिए इसके लिए दी प्रिंस नाम की छोटी किताब लिखी जो उनके मरणोपरांत प्रकाशित कर दिए गई। जिसमे उन्होंने राजा को समय के साथ साथ अनैतिक तरीकेसे सत्ता को कायम रखने के लिए जरुरत पड़े तो इस्तेमाल करना चाहिए यह मत व्यक्त किए। जिससे उस समय के कई दार्शनिक को यह विचार पसंद नहीं आए।

परन्तु उन्होंने सत्ता को निरंतर रखने को प्राथमिकता देने की कोशिश की और इसके माध्यम से राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह करना जरुरी हे ऐसा माना। सत्ता को हासिल करने के लिए एलिट वर्ग से ज्यादा सामान्य लोगो के हित के बारे राजा को सोचना चाहिए यह उनका मत था। प्रजा को प्रेम साथ भय में रखना वह जरुरी मानते थे और प्रेम और ख़ुशी में जनता जितना राजा के लिए घातक होती हे उतना वह भय में रखने से नहीं होती यह उनका मानना था।

मैकियावेली और यूरोप का पुनर्जागरण का समय/Enlighten period of Europe –

१६ वी सदी से पहले इस्लामिक देश आर्थिक और सामाजिक तौर पर दुनिया से काफी आगे चल रहे थे मगर इसके बाद यूरोप में सामाजिक बदलाव देखने को मिलते है। जिसमे ब्रिटेन इसका नेतृत्व करता हे जहा सबसे पहले सामाजिक क्रांति देखने को मिलती है। इंग्लैंड में चर्च का महत्त्व कम करके राजनीती को ताकदवर बनाया गया जिससे राष्ट्रवाद जैसी संकल्पना के माध्यम से इंग्लैंड , फ्रांस जैसे देश यूरोप के बाकि देशो पर अपना प्रभाव रखने लगे।

अफ्रीका और एशिया में अबतक शिक्षा और सामाजिक अधिकार यह संकल्पना अबतक देखने को नहीं मिलती थी। इसी दौर में मैकियावेली चाहते थे की इटली को एकसंघ बनाया जाए जिससे बाहरी आक्रमण से हमेशा जो डर लगा रहता हे वह ख़त्म हो और राष्ट्रवाद में के माध्यम से राज्य को सुरक्षित किया जाए। फ्रांस, स्पेन और इंग्लैंड जैसे एकसंघ राष्ट्र से इटली के छोटे छोटे राज्यों को हमेशा खतरा लगा रहता था।

अपनी १५ साल की डिप्लोमेसी के दौरान उन्होंने कई राजनितिक सुलह तथा घटनाए देखि जिससे उन्हें लगा की इटली के इन सभी राज्यों को एकसंघ होकर एक संयुक्त इटली की स्थापना करनी चाहिए। इस वक्त तक चर्च के अधिकारशाही को समाज से आव्हाहन मिलने लगा था और लोग तर्क के आधारपर चर्च से सवाल करने लगे थे। मैकियावेली का मानना था की जब समाज चर्च के अधीन था तब वह अनैतिक बनाने लगा था इसलिए समाज को और राजनीती को अलग होना जरुरी है।

मैकियावेली अपने युग का शिशु / Machiavelli -Child of his Age –

वैसे तो सभी दार्शनिक जिस दौर में जीते हे उसी परिस्थिति के अनुरूप उनके विचार होते हे, वैसे ही निकोलो मैकियावेली के साथ भी हुवा मगर जिस दौर में वह जी रहे थे वह मानव इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण समय माना जाता है। आज जो हम औद्योगिक क्रांति , इनफार्मेशन और टेक्नोलॉजी का युग देख रहे हे इसका मूल आधार १६ वी सदी का यह दौर रहा है।

इसलिए मैकियावेली को अपने युग का शिशु कहा जाता हे क्यूंकि वह अपने समय में जो बदलाव हो रहे थे उससे काफी प्रभावित हुए थे। सामंतवाद का अंत हो रहा था , चर्च के एकाधिकार का खत्म हो रहा था और लोग तर्कबुद्धि का इस्तेमाल करने लगे थे और सवाल पूछना शुरू कर रहे थे। राजनीती और समाजकारण में बदलाव होने लगे थे। राजनितिक में नैतिकता का महत्त्व वह नहीं रखना चाहते थे वह सामान्य जनता के लिए नैतिकता होनी चाहिए मगर राजा को राज्य करने के लिए किसी भी हद तक जाना वह सही मानते थे।

इस दौर को मैकियावेली बड़ी ही बारीकी से अध्ययन कर रहे थे और इसलिए उन्हें लगा की स्थिर और शांत राज्य के लिए राजा को कुछ नियमो का पालन करना होगा तभी वह ऐसा शक्तिशाली राज्य निर्माण कर सकेगा जिसमे कोई संघर्ष नहीं होगा और सुरक्षा का महत्त्व होगा। उनके राजनितिक विचार कोई दर्शनशास्त्र नहीं माना जा सकता मगर उन्होंने जो अपने राजनितिक अनुभव से जो राजनीती देखि उससे सिख लेकर एक राजनितिक विचारधारा का निर्माण वह करना चाहते थे।

मानव स्वाभाव पर मैकियावेली के विचार / Machiavelli Thoughts on Human Beings –

जो नैतिकता राज्य को कमजोर करती हो ऐसी नैतिकता का क्या महत्त्व हे ऐसा उनका मानना था इसलिए वह समय आने पर राजा को कठोर होना चाहिए यह उनका मानना था। इसलिए इंसान के स्वाभाव पर उनके विचार काफी नकारात्मक देखने को मिलते हे। उनका मानना हे की इंसान जैसा खतरनाम प्राणी पूरी दुनिया में देखने को मिल नहीं सकता जो महत्वकांक्षी होता हे और इसके लिए वह किसी भी हदतक जाने को तैयार होता है।

मेडीची परिवार द्वारा पुनः सत्ता हतियाने के बाद पुराने शासकीय अधिकारियो को निष्कासित किया गया था। मैकियावेली पर मेडीची परिवार के विरुद्ध षडयंत्र करने के आरोप में बंदी बनाया गया और काफी टॉर्चर किया गया था। बाद में उनको छोड़ा गया मगर सार्वजनिक जीवन में वह कदम नहीं रखेंगे इस आश्वासन के बदले उन्हें छोड़ा गया। जिसके बाद उन्होंने अपना बाकि जीवन अपने पिताजी के गांव में जिया।

वास्तविक जीवन में उन्होंने काफी उतार चढाव अपने जीवन में झेले और अपने डिप्लोमेसी कार्य के दौरान उन्होंने लगबघ ४० मिशन को पूरा किया जिसमे अलग अलग राज्यों के अलग अलग लोगो से उनका सम्बन्ध आया था। इसके अनुभव से उन्होंने मानवी स्वाभाव को और राजनीती को बड़ी नजदीकी से देखा था। इसलिए मानवी स्वाभाव के लिए वह काफी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए हमें देखने को मिलते है।

राज्य के शासन करने के नियम / Rules of Governing State –

उन्होंने राज्य की व्याख्या में अपनी किताब प्रिंस लिखी जिसमे मुख्य रूप से ऐसे राजा के बारे वह कल्पना करते हे जो परिवार वाद के माध्यम से सत्ता नहीं चला रहे हो। वह रिपब्लिक राजतन्त्र के बारे में भी नहीं कह रहे हे , मगर वह ऐसे राजतन्त्र की कल्पना कर रहे हे जहा नए सिरे से कोई राजा बना हे जिसको अपने राज्य को सुरक्षित करने के लिए क्या करना चाहिए यह सिख वह अपने इस किताब के माध्यम से देना चाहते है।

Virtu और Fortuna यह दो विचार के माध्यम से वह राजा को अपना आचरण कैसा रखना चाहिए यह वह सिखाते है। नैतिकता और किस्मत यह राजा के सफल शासन के लिए काफी महत्वपूर्ण सिद्धांत वह मानते है। इससे पहले नैतिकता यह केवल धर्म से समबन्धित विचार और आचरण माना जाता था और वह राजनीती से जोड़कर इससे पहले कई दार्शनिक दिखा चुके थे। तक़दीर राजा के लिए कभी अच्छी हो सकती हे और कभी ख़राब हो सकती हे इसलिए राजा को भविष्य के इन सभी परिणामो के लिए तैयार रहना चाहिए यह उनका मानना था।

निकोलो मैकियावेली ने अपने विचार में पहली बार राजा को नैतिकता से बाहर निकलकर कभी कभी राज्य को सुरक्षित रखने के लिए कठोर होना चाहिए यह कहा जिससे काफी विवाद निर्माण हुवा था। वास्तविक राजनितिक में यह नियम साधारण रूप से हमें देखने को मिलता था मगर लिखित स्वरुप में राजनीती को अनैतिक तरीके से चलाना चाहिए यह सहस इससे पहले किसी ने नहीं दिखाया था। एलिट वर्ग और सामान्य जनता इसमें राजा को हमेशा सामान्य लोगो पर भरोसा रखना चाहिए और पूरी राजनीती उनके आधारपर पर करनी चाहिए।

आधुनिक राजनीती में मैकियावेली का योगदान / Contribution of Machiavelli in Modern Politics –

देश की अंतर्गत राजनीती में निकोलो मैकियावेली नैतिकता को काफी महत्त्व देते हे मगर राज्य को सुरक्षित रखने के लिए जो भी करना जरुरी हे वह राजा को करना चाहिए यह उनका मानना था। सामान्य लोगो के हित के लिए अनैतिक राजनीती करना कोई बुरी बात नहीं हे यह उनका मानना था। इसलिए हम आज उनके राजनितिक और कूटनीतिक विचार अंतरराष्ट्रीय राजनीती में बड़ी आसानी से देखते है।

जिस दौर में निकोलो मैकियावेली ने अपने विचार रखे वह दौर धर्म सत्ता और सामंतवाद का आखरी दौर था। राजतन्त्र और लोकतंत्र को लोग समझने लगे थे और पुरे यूरोप में यह दौर जाग्रति का दौर माना जाता है। यही से आधुनिक लोकतंत्र की नीव रखी गई और राष्ट्रवाद के माध्यम से देश को अखंड होना चाहिए यह उनका विचार आज बड़ी आसानी से देखने को मिलता है। राजा की पूरी राजनीती समाज के साधारण और बहुसंख्य लोगो पर आधारित होनी चाहिए यह उनका मानना था , जिसे हम आज लोकतंत्र कहते है।

यूरोप की १६ वी सदी की जाग्रति में निकोलो मैकियावेली का खुद का भी काफी योगदान रहा हे जिसके आधार पर आज जो बदलाव हम देखते हे वह इसके साथ जोड़कर देखना होगा। क्यूंकि मानव सभ्यता में मैकियावेली का दौर यह सबसे महत्वपूर्ण दौर माना जाता हे जिसके हमें शिक्षा , औद्योगीकरण और विज्ञानं का विकास देखने को मिलता है। तर्क के आधारपर सोचने की विचारधारा हमें इसी युग से देखने को मिलती है।

निकोलो मैकियावेली की किताबे / Books of Niccolo Machiavelli –

  • The Art of War (1521)
  • The Prince (1532 )
  • Discourses of Livy (1531)
  • Florentine Histories (1532)
  • The Golden Ass (1517)

निकोलो मैकियावेली की वैसे तो काफी किताबे प्रकशित हुई हे जिसमे ड्रामा और फिलॉसफिकल वर्क हमें देखने को मिलता है। उनके महत्वपूर्ण साहित्य में हमें राजनीतिशास्त्र के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देखने को मिलती है। मेडीची परिवार द्वारा सत्ता हासिल करने के बाद उन्होंने अपने पुरे अनुभव को लिखना शुरू किया जब उन्हें राजनीती से मेडीची राज्य द्वारा निष्कासित किया गया।

मैकियावेली की मुख्य रूप से प्रिंस और दी आर्ट ऑफ़ वॉर यह किताबे काफी प्रसिद्द हुई और उनका यह सब साहित्य उनके मरणोपरान्त प्रकाशित किया गया। आज पूरी दुनिया में राजनीती के अध्ययन का सम्बन्ध आता हे तो उनके साहित्य को पढ़ना जरुरी होता हे उसके बगैर राजनितिक अध्ययन पूरा नहीं हो सकता है। उनके दी प्रिंस इस किताब की काफी आलोचना की गयी मगर उन्होंने जो बड़ी सहस से वास्तविक राजनीती को लिखित रूप में दुनिया के सामने रखा यह सबसे बड़ी क्रांति कही जा सकती है।

इससे पहले जितना भी राजनितिक साहित्य देखने को मिलता हे वह नैतिकता का पाठ सिखाता था मगर वास्तविक राजनितिक इसके विपरीत देखने को मिलती थी। सही मायने में एक संशोधन के रूप में राजनितिक कैसे होनी चाहिए इसके दायरे मैकियावेली के साहित्य ने तोड़ने की कोशिश की हे ऐसा लगता है। वह १६ वी सदी में जो जाग्रति का दौर चल रहा था इसका वह महत्वपूर्ण हिस्सा बने और समाज के परिवर्तन को अपना योगदान दिया।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की निकोलो मैकियावेली ने अपने जीवन में कैसे राजनीती को अपने अनुभव के माध्यम से और रिपब्लिक सरकार में डिप्लोमेट के तौर पर अलग अलग राज्यों से राजनीती और कूटनीति के अनुभव हासिल किए थे उन्हें किताब के माध्यम से दुनिया के सामने अपने मृत्यु पश्चात लाया। जिसका परिणाम दुनिया के राजनीती में हमें देखने को मिलता है।

राजा को अपने राज्य को कैसे सफलता पूर्वक चलाना चाहिए इसके लिए क्या नियम होने चाहिए इसके बारे में वह अपनी किताब के माध्यम से हमें सिखाते है। वास्तविक जीवन में नैतिक रूप से राज्य को चलाना कितना मुश्किल होता हे यह वह उदहारण देकर समझाते है। राजा के जीवन में भाग्य कभी कभी साथ भी देता हे और कभी कभी सत्ता से बाहर भी रखता हे इसलिए राजा ने हमेशा खुद को ऐसे स्थिति के लिए तैयार रखना चाहिए यह उनका मानना था।

अनैतिक और कठोर शासन के लिए मैकियावेली की काफी आलोचना हमें देखने को मिलती है। वह कोई दार्शनिक नहीं थे मगर उन्होंने जो अपने राजनितिक सिद्धांत रखे हे वह अपने अनुभव से जो उन्होंने सीखा था उसके आधारपर और जो निरिक्षण उन्होंने निकाले उसके आधारपर पर देखे जाते है। इसलिए दुनिया के राजनीती में निकोलो मैकियावेली के राजनितिक सिद्धांत हमें अंतरराष्ट्रीय राजनीती में आज भी देखने को मिलते है।

विल्फ्रेड परेटो 80-20 प्रिंसिपल सिंद्धांत

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