भारत में हरित क्रांति और आर्थिक बदलाव, आधुनिकीकरण, उत्पादकता में वृद्धि, आर्थिक विकास अतिरिक्त उत्पादन के माध्यम से मिला हैं।

प्रस्तावना / Introduction –

भारत में हरितक्रांति और आर्थिक बदलाव : कृषि आधुनिकीकरण, उत्पादकता में वृद्धि, आर्थिक विकास अतिरिक्त उत्पादन के माध्यम से देखने को मिला हैं । एडम स्मिथ की किताब वेल्थ ऑफ़ नेशन के अनुसार भारत और चीन यह कृषि के मामले में दुनिया में सबसे अनुकूल देश माने जाते थे और अतिरिक्त उत्पादन के माध्यम से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यूरोप से पहले बन सकते थे। नोबल पुरस्कार विजेता अर्थ विशेषज्ञ अमर्त्य सेन के अनुसार दो हजार साल पहले भारत का विकास दस दुनिया के विकास दर में ३० प्रतिशत हिस्सा देता था। इन सभी बातो से यह स्पष्ट होता हे की भौगोलिक दृष्टी से भारत कृषि क्षेत्र में सबसे उपजाऊ जमीन का देश माना जाता है।

भारत में हरितक्रांति यह क्या हे इसकी वास्तविकता जानने की कोशिश हम करेंगे और ब्रिटिश इंडिया से लेकर आजतक इसके परिणाम क्या देखने को मिले यह जानेगे। ब्रिटिश इंडिया में अंग्रेजो ने भारत के कृषि क्षेत्र को पूरी तरह से बदल दिया और उनके अर्थव्यवस्था को पोषक उत्पादन कृषि क्षेत्र में अमल करना शुरू किया। इसका परिणाम यह हुवा की भारत की स्वतंत्रता के बाद खाद्य के मामलों में भारत स्वयंपूर्ण नहीं बन सका और इसके लिए वह आयत पर निर्भर हुवा।

हरितक्रांति का निर्णय लेने की पार्श्वभूमि क्या थी यह जानने की कोशिश करेंगे तथा कृषि क्षेत्र में इससे क्या परिणाम देखने को मिले और लिब्रलाइजेशन के दौरान इसमें फिर से हमें निजी कारन के माध्यम से बदलाव करने पड़े। आज की स्थिति देखे तो कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा रोजगार उपलब्ध होता हे मगर भारत की अर्थव्यवस्था में इसका हिस्सा काफी कम है। इसलिए कृषि क्षेत्र में तीसरी क्रांति करना जरुरी हुवा हे मगर कृषि कानून के विरोध को देखते हुए सरकार को यह करना काफी कठिन कार्य होने वाला है।

हरितक्रांती का इतिहास / History of Green Revolution –

भारत की जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही थी और उसके हिसाब से अन्न उत्पादन नहीं हो रहा था। इसका परिणाम भुखमरी और असंतुलित उत्पादन का परिणाम पुरे देश में देखने को मिला। दूसरी तरफ दूसरे विश्व युद्ध के बाद साम्यवाद और पूंजीवाद संघर्ष शुरू हुवा जिसको देखते हुए अमरीका ने भारत को गेहू जैसे मुलभुत खाद्य अन्न देना शुरू किया जो एक राजनितिक कदम था और पाकिस्तान युद्ध के दौरान यह सेवा देना बंद करने की धमकी दी। जिससे सबक लेकर लाल बहादुर शास्त्री की सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में बदलाव करने का निर्णय लिया।

औद्योगिक क्रांति तथा वैज्ञानिक बदलाव ने मानव समाज के जीवन पद्धति को पूरी तरह से बदल दिया। जिसका सबसे ज्यादा परिणाम हमें यूरोप और अमरीका में देखने को मिला। हरितक्रांति की शुरुवात हमें सबसे [पहले मेक्सिको से देखने को मिलती हे जो काफी सफल रही जिसमे रासायनिक पद्धति का इस्तेमाल करके तथा बीज की नहीं प्रजाति निर्माण करके उत्पादन बढ़ाने की कोशिश की गई।

भारत की लोकसंख्या और अन्न उत्पादन इसमें काफी ज्यादा अंतर पड़ रहा था जो चिंता का विषय बन गया था। नार्मन बोरलॉग जैसे अमरीकी कृषि संशोधक के इसके लिए रॉकफेलर फाउंडेशन की माध्यम से यह संशोधन किया। मैक्सिको तथा भारत में इसका सबसे सफल प्रयोग किया गया और भारत की होने वाली समस्या को ख़त्म कर दिया। इसके लिए आलोचकों का मानना हे की इस तकनीक से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुवा हे , जो हम आगे विश्लेषण करेंगे।

भारत में हरितक्रांती / Green Revolution in India –

1960 का दशक भारत के लिए काफी उतर चढाव भरा रहा हे जिसमे चीन और पाकिस्तान से युद्ध और दूसरी तरफ अकाल की स्थिति इससे दोहरे संकट में भारत की अर्थव्यवस्था फस गई थी। ऐसा नहीं हे की भारत में कृषि उत्पादन अच्छा नहीं कर रहा था, मगर जबसे अमरीका द्वारा अतिरिक्त दुय्यम दर्जे का गेहू भारत में देना शुरू किया गया। यह कारन बना इसके उत्पादन को छोड़कर किसानो ने दूसरे उत्पादन पर ध्यान देना शुरू किया।

जिससे पूरा उत्पादन का सिस्टम बदल गया और अचानक अमरीका ने यह निर्यात एकदम से बंद करने की धमकी देना शुरू किया। इससे भारत सरकार ने ठोस निर्णय लेने का कारन बना और यही कारन हरितक्रांति का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया जिसके लिए अमरीका के नार्मन बोरलॉग के मार्गदर्शन में यह पॉलिसी निर्धारित की गयी जिसके पीछे काफी राजनितिक कारन रहे है। इससे भारत की भुखमरी के समस्या ख़त्म करने में सरकार को बड़ी मात्रा में सफलता मिली और गेहू और चावल जैसे उत्पादनो का बड़ी मात्रा में उत्पादन बढ़ा।

हायब्रिड बीज की प्रजाति तथा रासायनिक खेती यह इस पॉलिसी का महत्वपूर्ण घटक रहे हे तथा इसके साथ ट्रेक्टर जैसे आधुनिक साधन कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होने लगे। इस हरित क्रांति का फायदा सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों ने ज्यादा उठाया क्यूंकि यह कृषि वातावरण के लिए भारत में सबसे समृद्ध प्रदेश पहले से थे। सरकार द्वारा इस योजना के अंतर्गत गेहू और चावल को आधारभूत कीमत प्रदान की जिसका फायदा पंजाब और हरियाणा के किसानो को भरपूर हुवा। बाकि प्रदेशो भी गेहू और चावल के उत्पादन बड़ी मात्रा में लेना शुरू किया मगर वह इन राज्यों का मुकाबला नहीं कर सके।

नार्मन बोरलॉग और हरितक्रांती / Norman Borlaug & Green Revolution –

नार्मन बोरलॉग यह अमरीकी नागरिक थे तथा हरितक्रांति के विशेष उपलब्धि के लिए उन्हें १९७० में नोबल शांति पुरस्कार दिया गया। वह एक कृषि वैज्ञानिक थे और पूरी दुनिया ने उन्हें कृषि क्षेत्र का “फादर ऑफ़ ग्रीन रेवोलुशन” यह उपाधि दी थी। नार्मन बोरलॉग ने जमीनी स्थर पर दुनिया की भुखमरी को ख़त्म करने के लिए कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के लिए काफी संशोधन किए जिसका परिणाम उन्होंने इसका पहला प्रयोग मैक्सिको में सफल रूप से किया जिसे देखते हुए उन्हें भारत में इसके लिए आमंत्रित किया गया।

नार्मन बोरलॉग ने अपनी पीएचडी प्लांट बायोलॉजी और फॉरेस्ट्री की शिक्षा मिन्नीसोटा विश्वविद्यालय में १९४२ में हासिल की और आगे जाकर उन्होंने वैज्ञानिक के तौर पर duepoint कंपनी में काम किया। आगे जाकर उन्होंने रॉकफेलर फाउंडेशन के लिए गेहू के उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए संशोधन करना शुरू किया। इस संशोधन के लिए सबसे पहले उन्होंने मैक्सिको को चुना और सफलतापूर्वक उत्पादन बढ़ाया।

Campo atizapan संशोधन केंद्र पर नार्मन बोरलॉग ने सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली गेहू की प्रजाति विकसित की इससे पहले की गेहू की प्रजाति बड़ी होने पर वजह के कारन टूट जाती थी मगर विकसित की गयी प्रजाति इससे छोटी बढ़ती थी मगर ज्यादा उत्पादन देती थी। हरितक्रांति की यह सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी जिसमे केमिकल फ़र्टिलाइज़र के इस्तेमाल से यह छोटी प्रजाति बड़ी मात्रा में उत्पादन देने में सक्षम बन गयी थी। भारत में यही प्रयोग करने के लिए नार्मन बोरलॉग की सहायता ली गयी और हरित क्रांति को सफल बनाया गया।

भारत में हरितक्रांती का महत्व / Importance of Green Revolution in India –

ब्रिटिश इंडिया में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बंगाल में भुखमरी से लाखो लोगो की मृत्यु हुई थी , जिससे निर्यात पर निर्भर रहना कितना मुश्किल होता हे यह देखने को मिला। ब्रिटिश इंडिया में जो पॉलिसी बनाई गई थी वह अंग्रेजो के हित को देखते हुई बनाई गई थी, जिसमे अंग्रेजो को उत्पादन के लिए जो कच्चा मटेरियल लगता था उस हिसाब से कृषि पॉलिसी बनाई गई थी । भारत की स्वतंत्रता के बाद पहले दो पंचवार्षिक योजना में कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के बजाय औद्योगीकरण को विकसित करने में प्राथमिकता दी गयी।

जिसका परिणाम लोकसंख्या का बढ़ना तथा उसके बराबर लोगो की अन्न सुरक्षा के लिए उत्पादन का निर्माण न होना यह भुखमरी के संकट को आमंत्रित कर रहा था। ऐसा नहीं हे की बगैर हरितक्रांति के कृषि उत्पादन नहीं हो रहा था, मगर जो उत्पादन ज्यादा होना चाहिए वह नहीं हो रहा था और अन्य उत्पादन बड़ी मात्रा में हो रहे थे। इसलिए एक सही नियोजित कृषि पॉलिसी बनाने की जरुरत भारत सरकार को महसूस हुई।

इस हरितक्रांति में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा पंजाब ,हरियाणा जैसे उत्तरी राज्यों ने ज्यादा उठाया और इसका फायदा भी इन्ही राज्यों के किसानो को ज्यादा मिला। गेहू और चावल को आधारभूत कीमत मिलने से इन किसानो को उत्पादन करने के लिए सुरक्षा मिली। बाकि राज्यों ने पंजाब और हरियाणा के मॉडल को कॉपी करने की कोशिश की मगर वह इसमें सफल नहीं हुए। प्राकृतिक परिस्थिति पंजाब और हरियाणा राज्य में अनुकूल होने के कारन वह इसमें सफल हो सके।

भारत की उदारवादी निति और हरितक्रांती / Green Revolution & India’s Liberal Policies –

हरितक्रांति का पहला दौर सफलपूर्वक पूर्ण करने के बाद १९९० के बाद आर्थिक संकट में भारत सरकार ने अपनी आर्थिक निति में वर्ल्ड बैंक द्वारा निर्देशित बदलाव करने का निर्णय लिया। यह दौर था हरितक्रांति का दूसरा चरण जिसमे निजी क्षेत्र में माध्यम से कृषि क्षेत्र में बदलाव देखने को मिलते है। पहले चरण में जमीनदारी को ख़त्म करने की कोशिश सरकार द्वारा की गयी मगर दूसरे चरण में बाजार को खुला करके डिमांड और सप्लाई पर आधारित कृषि उत्पादन करने की पॉलिसी बनाई गयी।

भारत में पहले से पारम्परिक तरीके से खेती की जाती हे, जिसमे एडम स्मिथ के अनुसार अतिरिक्त उत्पादन का व्यापार करने की कोशिश भारत में कभी हुई नहीं अन्यथा भारत १५ वी सदी में दुनिया महाशक्ति बन सकता था। मगर अपने जरुरत के अनुसार उत्पादन लेने की व्यवस्था भारत के कृषि व्यवस्था में नहीं थी। इसलिए वह विकसित नहीं हुई भले ही ७० प्रतिशत से ज्यादा आर्थिक उत्पादन कृषि पर आधारित था। हरितक्रांति के बाद उत्पादन खर्च बढ़ने लगा उसपर खुली अर्थव्यवस्था में बिजली और बीज के दाम बाजार के उतारचढ़ाव पर निर्भर होने लगे।

कृषि क्षेत्र को पहले से व्यावसायिक नजरिये से देखा नहीं गया इसलिए खेती करते समय उसका नियोजन कैसा करना चाहिए इसके बारे में कोई प्रशिक्षण अथवा परंपरा भारतीय समाज में निर्माण नहीं हुई। जिसका परिणाम किसानो की आत्महत्या यह मुद्दा दूसरी हरितक्रांति के बाद सबसे ज्यादा बढ़ा। कॉर्पोरेट क्षेत्र के कृषि क्षेत्र से उनसे सामान्य किसानो को स्पर्धा करना मुश्किल हुवा। इसलिए हरितक्रांति का यह दूसरा चरण किसानो के लिए सबसे बुरा समय माना जाता है।

बौद्धिक संपदा कानून और हरितक्रांती / Intellectual Property & Green Revolution –

भारत में हरितक्रांति और आर्थिक बदलाव के दूसरे पड़ाव पर निजीकरण के माध्यम से बौद्धिक संपदा जैसे कानून बनाए गए और पेटेंट के माध्यम से उत्पादन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बीज को निजी संपत्ति के रूप में रजिस्टर्ड किया जाने लगा जिसका परिणाम यह हुवा की सामान्य किसान कॉर्पोरेट कंपनियों के सामने स्पर्धा नहीं कर सकते।

जो बुद्धिक संपदा समाज के हित में इस्तेमाल होनी चाहिए उसका प्रॉफिट बनाने के उद्देश्य से उपयोग होने लगा मगर इसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिलते है। जिससे समाज को अच्छे बीज निर्माण होने लगे जो बाजार की स्पर्धा का नजीता है। बौद्धिक संपत्ति के पॉलिसी के कारन अन्न सुरक्षा का उद्देश्य हासिल करना यह काफी मुश्किल काम लगता है जिसे सरकार को संतुलित तरीके से पूर्ण करना होगा।

कॉर्पोरेट क्षेत्र में भारत में हरितक्रांति और आर्थिक बदलाव में आने से तथा सभी वस्तुओ मूल्य बाजार पर निर्भर होने से कॉर्पोरेट क्षेत्र से सामान्य किसानो को स्पर्धा करना काफी मुश्किल बन जाता है। दूसरे चरण में हरितक्रांति के जो परिणाम किसानो को देखने को मिले, यही कारन हे की २०२० में भारत सरकार ने कृषि कानून लाए थे उसपर किसानो का विश्वास हासिल करने में वह विफल हुई।

कृषि कानून २०२० और विवाद / Farm Laws 2020 & Controversies –

भारत में हरितक्रांति और आर्थिक बदलाव में सबसे अहम् भूमिका पंजाब और हरियाणा राज्य ने निभाई थी और भारत की अन्न सुरक्षा को पूर्ण किया था। रासायनिक खेती की वजह से पानी प्रदुषण और जमीन की उपजाऊ क्षमता पर परिणाम हुए थे उसकी कीमत यह किसान झेल चुके थे। १९९० के बाद हरित क्रांति के दूसरे चरण में निजीकरण के माध्यम से किसानो का काफी नुकसान हुवा था और खेती करना नुकसान देह गतिविधि बन चुकी थी इस अनुभव से मुख्य रूप से इन दोनों राज्यों के किसानो ने सरकार के कृषि कानून को पूरी ताकद से विरोध किया।

भारत में हरितक्रांति और आर्थिक बदलाव कृषि क्षेत्र में निजीकरण के माध्यम से बाजार खुला करना यह १९९० के बदले हुए पॉलिसी का परिणाम था। जबतक सरकारी कम्पनिया और बैंको का निर्जीकरण था तबतक लोगो पर इसका कुछ परिणाम नहीं हुवा। मगर जब निजीकरण की पॉलिसी कृषि क्षेत्र में बदलाव करने लगी तो सबको इसके परिणाम मालूम थे। बड़े बड़े कॉर्पोरेट कंपनियों के सामने पंजाब और हरियाणा के किसान भी नहीं टिक सकते, यह उनको पता हे और भारत के सबसे सधन किसान होने के कारन वह इस आंदोलन को ज्यादा दिनों तक कर सके।

सरकार को विश्वास में लेकर इन किसानो को कृषि कानून कितने महत्वपूर्ण हे यह समझना होगा जिसके लिए कुछ बदलाव करने हो तो वह सहमति से करने चाहिए। निजीकरण से केवल पूँजीवादी वर्ग का अगर फायदा हो रहा हे तो इसे संतुलित करके किसानो को विश्वास दिलाना होगा तथा उनको विकसित करना होगा। अंतराष्ट्रीय दबाव और राजनीती का नुकसान देश को अथवा देश के किसानो को नहीं होना चाहिए यह हमें देखना होगा।

हरितक्रांती के फायदे / Benefits of Green Revolution –

  • हरितक्रांति का सबसे महत्वपूर्ण फायदा हुवा हे १९६० के बाद अगले दस सालो में सात गुना गेहू का उत्पादन बढ़ा है और साल २००० तक भरा पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन गया है।
  • कृषि क्षेत्र में नियोजित उत्पादन की व्यवस्था कमजोर होने के कारन १९६० से पहले बार बार अकाल का सामना करना पड़ता था और लाखो लोगो की जिंदगी केवल भुखमरी से दाव पर लगती थी वह बंद हो गयी।
  • ब्रिटिश इंडिया में जो ब्रिटिश सरकार के हित में उत्पादन लिए जाते थे वही परम्परा १९६० तक देखने को मिलती थी वह बंद होकर सरकार द्वारा जिस उत्पादन की जरुरत देश को हे वह MSP के माध्यम से अमल में लायी जाती रही है।
  • १९६० से पहले जो किसान आर्थिक रूप से दुर्बल बनते जा रहे थे वह एकदम से आर्थिक सक्षम बनने लगे थे, इसमें सबसे ज्यादा लाभ पंजाब और हरियाणा के किसानो को हुवा ।
  • हरितक्रांति से पहले अन्न प्रोडक्ट के आयत पर पूरी तरह से निर्भर रहना पड़ता था वह बंद हुवा।
  • हरितक्रांति के कारन ट्रॅक्टर ,इलेक्ट्रिसिटी और मोटर जैसे आधुनिक वस्तुओ का इस्तेमाल खेती में होने लगा जिससे कम श्रमिकों के ज्यादा क्षमता से काम होने लगा।
  • औद्योगीकरण इससे पहले भारत में प्रस्थापित हुवा था और इसको भी किसी आधार की जरुरत थी जो कृषि क्षेत्र में डिमांड की वजह से इसको लगा और दोनों क्षेत्र के कारन भारत की आर्थिक व्यवस्था को एकतरह से फायदा हुवा।
  • कृषि क्षेत्र में मशीन का इस्तेमाल होने के बावजूद किसान आर्थिक रूप से सक्षम होने के कारन उत्तर प्रदेश , बिहार जैसे क्षेत्र से पंजाब और हरियाणा में बड़ी मात्रा में रोजगार निर्माण हुवा जो रासायनिक खाद तथा अन्य काम बढ़ने की वजह से खेती को लगने लगे।

हरितक्रांती के नुकसान / Disadvantages of Green Revolution –

  • हरितक्रांति ने गेहू और चावल के उत्पादन बढ़ने में मदद हुई मगर रासायनिक खाद के इस्तेमाल से जमीन की उत्पादन क्षमता पर आगे जाकर परिणाम देखने को मिले।
  • हरितक्रांति से पहले खेती को लगाने वाला खाद यह कुदरती तरीके से उपलब्ध होते थे जो खरीदने पड़ते थे जिससे उत्पादन खर्च बढ़ा।
  • रासायनिक खाद का इस्तेमाल कितना करना चाहिए इसका सही प्रशिक्षण न होने के कारन वह जमीन के तथा नदियों के पानी में मिश्रित हुवा जिसके परिणाम काफी खतरनाम थे जो पंजाब जैसे राज्य ने भोगे है।
  • हरितक्रांति के साथ साथ निजीकरण के कृषि क्षेत्र में प्रवेश करने से किसानो को एक ऐसा प्रतिस्पर्धी मिला जो उनसे काफी शक्तिशाली था।
  • हरितक्रांति का सबसे ज्यादा फायदा केवल पंजाब और हरियाणा को मिला बाकि राज्यों को इसका फायदा नहीं हुवा इससे बाकि राज्यों के किसान और पंजाब और हरियाणा के किसान इनमे आर्थिक रूप से काफी फर्क देखने को मिलता है।
  • ऐसे बीज निर्माण किए गए जो एक ही बार इस्तेमाल किए जा सकते थे , इससे पहले प्राकृतिक तरीके के बीज कई बार इस्तेमाल कर सकते थे।
  • बीज ,फ़र्टिलाइज़र ,जैसे चीजों के लिए किसानो का अतिरिक्त खर्च बढ़ने से उत्पादन खर्च बढ़ा मगर उत्पादन के लिए सुरक्षा केवल गेहू और चावल को मिलती थी और बाकि उत्पादन असुरक्षीत थे।

हरितक्रांति की विशेषताए / Features of Green Revolution –

  • नार्मन बोरलॉग जो अमरीकी वैज्ञानिक थे उनके सहयोग से भारत में हरितक्रांति की शुरुवात की गयी।
  • साम्यवाद का प्रभाव भारत पर नहीं पड़े इसलिए रणनीति के तौर पर भारत में फ़ूड सिक्योरिटी के लिए यूनाइटेड नेशन के सहयोग से यह अभियान चलाया गया।
  • हरितक्रांति में रासायनिक खाद ,फ़र्टिलाइज़र और आधुनिक मशीनरी का इस्तेमाल किया गया।
  • ऐसे बीज का इस्तेमाल किया गया जो सामान्य बीज से कई गुना उत्पादन दे सके तथा ऐसे बीज तैयार किए गए जिसकी उचाई कम हो और वह निर्माण होने वाले ऊपरी हिस्से का वजन झेल सके।
  • रासायनिक खाद की वजह से उत्पादन को सुरक्षा मिली और खेती में जो जोखिम बनी रहती थी वह काम हुई।
  • हरितक्रांति मुख्य रूप से दो पड़ाव में अमल में लायी गई जिसमे दूसरा चरण १९९० के उदारवाद के समय अमल में लाया गया।
  • हरितक्रांति का फायदा सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा के किसानो को हुवा क्यूंकि भौगोलिक परिस्थिति शुरू से खेती के लिए अनुकूल होने के कारन तथा सरकारी सुरक्षा उत्पादन को मिलने वह ज्यादा विकसित हुए।
  • तीसरे चरण में हरितक्रांति की शरुवात २०२० में कृषि कानून बनाकर की गयी थी मगर किसानो द्वारा इसे काफी विरोध के कारन भारत सरकार को इन कानूनों को पीछे लेना पड़ा।

निष्कर्ष / Conclusion –

भारत में हरितक्रांति और आर्थिक बदलाव इसतरह से हमने देखा की हरितक्रांति की वजह से अन्न सुरक्षा प्रस्थापित कारन था और इसके माध्यम से गेहू और चावल जैसे महत्वपूर्ण उत्पादन भारत में बड़ी मात्रा में किया गया। हरितक्रांति के जैसे कुछ अच्छे नतीजे देखने को मिले वही रासायनिक प्रकिया के कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल करने के कारन काफी बुरे नतीजे देखने को मिले। पंजाब जैसे राज्य में इसके परिणाम सबसे ज्यादा देखने को मिले यह रसायन पंजाब के पानी में देखने को मिले।

नार्मन बोरलॉग जो नोबल प्राइज विजेता कृषि वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपने संशोधन के माध्यम से मैक्सिको और भारत के अन्न सुरक्षा को निर्धारित करने के पॉलिसी बनाकर सफल बनाया है। इसके दुष्परिणाम बाद में देखने को मिले मगर अन्न सुरक्षा की मुख्य समस्या भारत ख़त्म करने में सफल रहा। दूसरे चरण में हरितक्रांति हमें १९९० में हमें देखने को मिली जो निजीकरण के पॉलिसी को कृषि क्षेत्र में समय समय पर अमल में लाना शुरू किया।

तीसरे चरण में भारत में हरितक्रांति और आर्थिक बदलाव कृषि कानून के माध्यम से हमें २०२० को देखने मिली जिसका विरोध काफी दिनों तक चला और मज़बूरी में सरकार को यह रिफॉर्म्स पीछे लेने पड़े। इसका महत्वपूर्ण कारन हरितक्रांति के दूसरे चरण में निजीकरण के माध्यम से किसानो का जो आर्थिक नुकसान हुवा और खेती करना कठिन होने लगा इसलिए यह विरोध देखने को मिला। इसलिए सरकार के रिफॉर्म्स भले ही किसानो के हित में हो मगर उसपर विश्वास हासिल करने में सरकार विफल रही।

डीडॉलराइजेशन क्या है?

 

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