प्रस्तावना / Introduction –

दुनिया के इतिहास में भौगोलिक वर्चस्ववाद के कारन चगेज खान से लेकर नेपोलियन और हिटलर तक विस्तारवाद की राजनीती हमने देखि हैं, जिसका मूल कारन अधिक से अधिक जमीन पर कब्ज़ा हासिल करना यह रहा हैं । इस आर्टिकल के माध्यम से हम आधुनिक राजस्व प्रणाली को मुग़ल काल से आज तक कैसे रही यह जानने की कोशिश करेंगे । ऐसा नहीं हैं की मुग़ल काल से जमीन पर कर लगाने के लिए कोई कानून नहीं बनते थे, मगर राजतन्त्र में राजा जो चाहे वह कानून माना जाता था । इसलिए कर वसूलने के लिए अलग अलग माध्यमों का इस्तेमाल किया जाता रहा हैं ।

राजतन्त्र में भूमि का  मालिकाना कब्ज़ा यह राजा का होता था और प्रजा उस पर खेती करने का काम करती थी, जो भी उत्पादन / फसल होती थी इसका कुछ हिस्सा राजा को देना होता था । इसमें राजा अच्छा हो या बुरा किसानो का शोषण बीचमे नियुक्त किए गए लोगो द्वारा होता था । इसलिए शुरू से भारत में खेती यह व्यवसाय के रूप में कभी विकसित नहीं हो पायी । एडम स्मिथ अपनी किताब वेल्थ ऑफ़ नेशन में इसका जिक्र करते हुए, भारत की आर्थिक विकास में रूकावट का प्रमुख कारन यह बताते हैं ।

इसलिए आज हम भारत की स्वतंत्रता के बाद  भूमि सुधार के लिए क्या प्रयास होते रहे हैं  इस पर अध्ययन करने की कोशिश करेंगे । मुख्य रूप से 10 ऐसे कानून हैं जो भूमि कानून के रूप में जाने जाते हैं जो केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए हैं । भारत की स्वतंत्रता के बाद हर राज्यों को अपने लिए नीतिया बनाने का अधिकार दिया गया हैं जिसमे उनके भी खुद के भूमि कानून बनाए गए हैं । भूमि कानून की शुरुवात भारत में कैसे हुई और भूमि सुधार यह निति कितनी कारगर रही यह जानने की कोशिश करेंगे ।

भारत में भूमि कानून का इतिहास / History  of  the  Land  laws  in India –

मुख्यतः मुग़ल काल तथा ब्रिटिश इंडिया में आज के सर्वे सिस्टम का आधार निर्माण हुवा था जिसमे जमीन के खरीद और ब्रिक्री का व्यवहार ब्रिटिश इंडिया में देखने को मिलता हैं । 1540 में शहंशाह सूरी के राजपाट में पहली बार सर्वे शुरू हुवा जिसका मूल कारन था टैक्स वसूल करना । अकबर के राजपाट तक आते आते यह पद्धति और विकसीत हुवी  जिसमे यह कारोबार वित्त अधिकारी तोरडमल के माध्यम से पहली बार भारत के बहुत बड़े क्षेत्र का सर्वे किया गया था । कृषि क्षेत्र यह राजतन्त्र का महूसल का सबसे महत्वपूर्ण जरिया माना जाता था ।

जमीन मापने के लिए गज और बिगा जैसे प्रचलित शब्द इसी काल में देखने को मिलते हैं जो आज भी इस्तेमाल होते हैं और मुख्य रूप से उत्तरी भारत में ज्यादा देखने को मिलते हैं । राजतन्त्र में प्रत्यक्ष रूप से राजव्यवस्था सभी जगहों से कर वसूल नहीं कर सकती थी इसलिए धीरे धीरे जमींदार, जैसे अधिकारी नियुक्त करके यह व्यवस्था चलाई जाने लगी । शाहजहाँ  के समय में हमें खोत व्यवस्था हमें देखने को मिलती हैं जो काफी शोषणकारी व्यवस्था रही हैं । ब्रिटिश व्यवस्था में टैक्स सिस्टम अंग्रेजो द्वारा कई रिफार्म के माध्यम से हमें देखने को मिलती हैं,  जिसमे ईस्ट इंडिया कंपनी में काफी भ्रष्टाचार होने लगा और ब्रिटिश क्राउन द्वारा महलवारी, रैयतवारी जैसी महसूल व्यवस्था हमें देखने को मिलती हैं ।

ब्रिटिश इंडिया में अंग्रेजो द्वारा कई रिफॉर्म्स लाए गए मगर सभी असफल रहे क्यूंकि यह महसूल पद्धति किसानो से लगबघ 50 % से भी ज्यादा महसूल लेने लगी जिससे ज्यादातर किसान यह महसूल देने में असमर्थ होने लगे जिससे ऐसी जमीनों को बेचने का तथा गिरिवारी रखने का चलन हमें इसी समय देखने को मिलता हैं । इससे पहले जमीनों का इस्तेमाल केवल खेती के लिए होता था परन्तु अंग्रेजी हुकूमत में जमीनों के व्यवहार होने लगे । जमीनदार यह किसान और ब्रिटिश सरकार के बिच में मध्यस्थ के रूप में कार्य करता था जो ज्यादातर जमीनों का मालिक होता था और वह किसानो से खे/ ती जोतकर कर अंग्रेजो को महसूल देता था ।

भारत के भूमि सुधार के महत्वपूर्ण कानून / Important  Land Laws in India –

  • भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 /  the indian stamp act 1899
  • पंजीकरण अधिनियम 1908 / the registration act 1908
  • संपत्ति हस्तान्तर अधिनियम 1882 / Transfer of Property Act, 1882
  • भारतीय सुखाचार अधिनियम 1882 / Indian Easement Act, 1882
  • भारतीय अनुबंध नियम 1872 / Indian Contract Act, 1872
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 / the land aquisition act 1894
  • रियल एस्टेट ( विनियमन और विकास ) अधिनियम 2016 /  Real Estate (Regulation and Development) Act, 2016 (RERA)
  • भूमि अधिग्रहण पुनर्वसन अधिनियम 2013 / Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013

स्वतंत्र भारत में भूमि सुधार कानून / Land Reforms in Indipendent India –

स्वतत्र भारत में 70 %  से ज्यादा समाज कृषि क्षेत्र से जुड़ा हुवा था मगर पिछले महसूल व्यवस्था ने कृषि क्षेत्र को कभी उभरने नहीं दिया और इससे ज्यादातर भूमिहीन लोगो द्वारा पालन पोषण के लिए स्थलांतर होने लगा । औद्योगीकरण के कारन शहरों में लोगो को रोजगार मिलने लगा और खेती यह ज्यादातर नुकसान का सौदा हमें देखने को मिला हैं । इसलिए भारत सरकार को भूमि सुधार की सबसे बड़ी समस्या लगी वह थी समाज में जमीन के आसमान रूप से बटवारा  जिसमे जमींदारी, जागीरदारी जैसे लोग हजारो एकर जमीन के मालिक हुवा करते थे ।

भूमि सुधार के लिए दुसऱ्या सबसे महत्वपूर्ण कारन बना वह था पीढ़ी दर पीढ़ी खेती के होने वाले बटवारे ने कृषि उत्पन्न में गिरावट देखने को मिली जिससे ज्यादातर किसान खेती नुकसान में करने लगे और उनका खेती का क्षेत्र छोटा होता गया । भारत के विकासदर में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी केवल 13 % थी जिसको बढ़ाना सरकार के लिए काफी जरुरी था इसलिए मुख्य रूप से बदलाव किए गए ।

  • भूमि अधिग्रहण के लिए मर्यादा तय की गयी जिसे सीलिंग कहा जाता हैं ।
  • भूमि का कंसोलिडेशन / एकत्रीकरण  यह तकनीक कानून बनाकर की गयी ।
  • भूमि का इस्तेमाल कोआपरेटिव /सहकार  पद्धति के माध्यम से सुधार लाए गए ।
  • जो जमीन ज्योतेगा वही जमीन का मालिक ऐसे मध्यस्थ व्यवस्था ( जमींदार)  को ख़त्म कर दिया गया ।
  • भूमि किराएदार कानून बनाए गए ।

1990 के बाद भारत में आर्थिक सुधार हुए और जमीन का इस्तेमाल केवल कृषि क्षेत्र के लिए मर्यादित नहीं रहा वह शहरीकरण और औद्योकीकरण के माध्यम से जमीन का इस्तेमाल होने लगा और एकदम से जमीन की अहमियत काफी बढ़ने लगी वैसे वैसे समस्याए, डिस्प्यूट बढ़ने लगे । जिससे हम देखते हैं की भारत की स्वतंत्रता के बाद जैसे रिफॉर्म्स की जरुरत भूमि कानून में देखने को मिलती हैं वैसे ही आर्थिक उदारीकरण के बाद हमें देखने को मिलती हैं । आर्थिक उदारीकरण के बाद कृषि क्षेत्र का दायरा कम होते गया और  फैक्ट्री लगाने के लिए शहरीकरण में घर बनाने के लिए जमीन का इस्तेमाल होने लगा और सरकार को महसूल में अचानक से ऐसे अन्य क्षेत्रो से महसूल बढ़ने लगा ।

भूमि सुधार कानून  का उद्देश्य  / Objectives of Land Law Reforms –

  • जमीन के मालिकाना हक़ के सम्बन्ध में भूमि सुधार से पहले काफी विषमता देखने को मिलती थी, जमींदारों के पास हजारो एकर जमीन और दूसरी तरफ बड़े पैमाने पर भूमिहीन लोगो की संख्या इसको दूर करने के लिए जमीन सुधार की जरुरत थी ।
  • ब्रिटिश इंडिया में भूमि सम्बन्धी बने कानून यह केवल महसूल इखट्टा करने के लिए थे जो स्वतंत्रता के बाद सामाजिक हित को देखते हुए कानून सुधार की जरुरत थी ।
  • पीढ़ी दर पीढ़ी पारिवारिक हिस्सेदारी बढ़ने से जमीन के काफी हिस्से बन रहे थे जिससे जमीन की उत्पादकता काफी घट रही थी इसलिए कई रिफॉर्म्स लाने जरुरी थे ।
  • 1990 के बाद केवल कृषि जमीन का अर्थव्यवस्था से महत्व नहीं रहा बल्कि औद्योगिक जमीन, शहरीकरण के कारन रहने लायक जमीन ऐसे कैसे उत्पादन के स्त्रोत सरकार को मिले जिससे कृषि क्षेत्र पर उत्पादन निर्भरता को ख़त्म करने के लिए अलग अलग कानून बनाने थे ।
  • भारत की स्वतत्रता के बाद जमींदारी जैसी मध्यस्थ प्रथा को बंद करना था तथा जोतने वाले लोगो को अधिकार देने थे इसलिए टेनेंट कानून तथा सक्सेशन कानून में बदलाव जरुरी थे ।
  • जमीन का समानता के आधारपर पर बटवारा करना तथा कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कई सारि योजनाओ का अमल करना था जिससे कृषि क्षेत्र की भारत की आर्थिक विकास में बढ़ोतरी हो सके ।
  • लैंड सेलिंग कानून के तहत जमीन के खरीद पर मर्यादा रखने की जरुरत थी जिससे प्रॉपर्टी रखने के लिए मर्यादा लायी जाए और विषमता को दूर किया जाए जिससे सामाजिक रचना को विकसित करने के लिए प्रोस्ताहन मिल सके ।
  • कृषि क्षेत्र की जमीन दूसरे किसी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने के लिए मर्यादा लाना जरुरी था क्यूंकि भारत की बढाती हुई आबादी को सही मात्रा के अन्न उपलब्ध होने के लिए यह जरुरी था ।
  • भूमि क्षेत्र के सभी रिकॉर्ड को 1990 के बाद टेक्नोलॉजी के माध्यम से सुरक्षित और एकछत्र लाने के लिए उदारवाद के समय कई सारे रिफार्म करने जरुरी थे ।
  • आर्थिक उदारीकरण के बाद खुली आर्थिक व्यवस्था के कारन भारत भूमि सम्बन्धी कानून को अंतराष्ट्रीय कानून के मुताबित ढालना जरुरी था जिसके लिए अंतराष्ट्रीय करार तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य को अमल में लाना था ।

भूमि सुधार कानून  की विशेषताए / Features of Land Law Reforms –

  • राजतन्त्र में किसी भी राज्य क्षेत्र की भूमि राजा की होती थी और कृषि क्षेत्र में जमीन जोतने वाले लोगो को उस राजा को टैक्स के रूप में रकम देनी होती थी, कोई भी यह टैक्स चुकाने में असमर्थ होने पर दूसरे व्यक्ति को वह जमीन जोतने के लिए दिए जाती थी ।
  • ब्रिटिश राज में ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश क्राउन ऐसे दो हिस्सों में भूमि कानून देखने को मिलते हैं जिसमे ईस्ट इंडिया कंपनी के भ्रष्टाचार को देखते हुए ब्रिटिश क्राउन को नए रिफॉर्म्स लाने पड़े ।
  • स्वतंत्र भारत में रिफॉर्म्स के मुख्य रूप से दो हिस्से होते हैं जिसमे स्वतंत्रता के बाद का समय तथा दूसरा 1990 के बाद उदारीकरण में हुए बदलाव ।
  • ब्रिटिश इंडिया में पहली बार जमीन की खरीद, विक्री तथा गिरवी रखने की प्रथा हमें देखने को मिलती हैं तथा जमीन का स्वामित्व यह ब्रिटिश इंडिया में शुरू हुवा ।
  • शेर शाह सुरु तथा अकबर के समय में आधुनिक भूमि आलेख की व्यवस्था का विकास हमें देखने को मिलता हैं, जो आज के भूमि आलेख का मूल आधार माना जाता हैं ।
  • ब्रिटिश इंडिया में ख़राब भूमि सुधार की योजनाओ के कारन पश्चिम बंगाल के 19 वि शताब्दी में हुए सूखे के कारन लाखो लोगो की जान चली गयी तथा कृषि उत्पादन और देश के विकास में कृषि क्षेत्र के महत्त्व को प्राथमिकता नहीं मिली ।
  • भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के सामने सबसे बड़ी समस्या थी जमीन की आसमान रूप से होने वाला स्वामित्व जिसमे जमींदारी जैसे खोत व्यवस्था जैसे शोषण कारी व्यवस्था को चलाया गया जिससे कृषि क्षेत्र का कभी भी विकास नहीं हुवा ।
  • 1990 के बाद आर्थिक उदारीकरण के कारन भारत में केवल कृषि क्षेत्र के आधार पर चलने वाली अर्थव्यवस्था में बदलाव देखने को मिले और औद्योगिक, टेक्नोलॉजी और सेवा क्षेत्र से सरकार बड़ी मात्रा में टैक्स उत्पादन मिलाने लगा ।
  • कृषि क्षेत्र को बचने के लिए कृषि सुधार लाए गए जिसमे कृषि भूमि खरीद पर मर्यादा, सहकार के माध्यम से कहते और टुकड़ो में खेती करने की बजाय किसी एक जगह खेती का क्षेत्र देकर उत्पादन बढ़ने के लिए कानून बनाए गए ।
  • स्वतंत्र भारत में कृषि क्षेत्र के उत्पादन को काफी साडी छूट दी गयी हैं जिसका मूल उद्देश्य पिछले कई सालो से हो रहा किसानो का शोषण और उसकी भरपाई किसानो को मिले और उनका विकास हो ।
  • कृषि क्षेत्र की आज की स्थिति देखे तो ज्यादातर किसान अपनी जमीन बेचकर कृषि क्षेत्र को कम कर रहे हैं जिसमे औद्योगीकरण और शहरी कारन का अहम् भूमिका रही हैं जिससे कृषि उत्पादन पर काफी मर्यादा देखने को मिलती हैं ।

भूमि सुधार कानून  का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of Land Law Reforms –

  • भारत की स्वतंत्रता के बाद कानून बनाकर जमींदारी तथा मध्यस्थ व्यवस्था को ख़त्म कर दिया गया मगर वास्तविकता में जमींदारों ने अपने ही रिश्तेदारों में जमीन का स्वामित्व देकर इस कानून के प्रभाव को ख़त्म कर दिया ।
  • कृषि क्षेत्र के उत्पादन क्षमता पर, आधुनिकीकरण पर, आर्थिक नियोजन पर ज्यादातर राजावो ने , ब्रिटिश सरकार ने अथवा भारत सरकार ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया जिससे हमें बड़ी मात्रा में दूसरे देशो पर कृषि उत्पादन के लिए भविष्य में निर्भर होना पद सकता हैं ।
  • औद्योगीकरण, शहरीकरण के कारन कृषि क्षेत्र का दायरा धीरे धीरे कम होते गया जिससे कृषि क्षेत्र की देश के विकास में हिस्सेदारी बढ़ने की बजाय कम होते गयी ।
  • भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार द्वारा कई सारे महत्वपूर्ण कानून बनाए गए जिसका जमीनी स्तर पर कितना प्रभाव रहा यह संशोधन का विषय रहा हैं ।
  • हाल ही में हमने देखने की कृषि सुधार लाए गए थे जिसका काफी विरोध हुवा जिसमे मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा के और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से से काफी विरोध हुवा, जो कृषि क्षेत्र का पुराण सरकारी ढांचा ख़त्म करकर निजी हाथो में यह सपना चाहते हैं ।
  • पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तरी क्षेत्र को छोड़कर हम देखते हैं की किसानो के पास जोतने के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी क्षेत्र कम होते गया हैं जिससे कृषि क्षेत्र पर निर्भरता कम हुई हैं ।
  • अल्पभुधारक किसान केवल कृषि उत्पादन से अपने परिवार को नहीं चला सके इसलिए कुछ लोगो ने शहरों की तरफ स्थलांतरित करना शुरू हुवा जिससे कृषि क्षेत्र का उत्पादन पिछले 70 सालो से काफी गिरा हैं, भले ही हरित क्रांति के कारन उत्पादन क्षमता कुछ हदतक बढ़ी हैं ।
  • हरित क्रांति में ज्यादातर किसानो ने गेहू, चावल और गन्ने की खेती को ज्यादा प्राथमिकता देने के कारन भारत की कुदरती उतपदकता पे काफी असर हुवा और जमीन की उपजाऊ क्षमता में हमें गिरावट देखने को मिली जिसमे कृषि सुधार के लिए कार्य करने वाले कृषि विद्यालय बड़ी हदतक नाकाम रहे हैं ।
  • रासायनिक खेती के लिए किस हदतक प्रोस्ताहन देना चाहिए इसमें भारत के कृषि कानून नाकाम दीखते हैं जिसमे बड़ी मात्रा में रसायन कृषि उत्पादन में करने की वजह से नयी गंभीर समस्याए कड़ी हुई हैं ।

निष्कर्ष / Conclusion  –

भारत में भूमि सुधार निति और भूमि सुधार  कानून यह दोनों अलग अलग विस्तारित विषय हैं जो काफी जटिल हैं परन्तु  दोनों विषय एक दूसरे से परस्पर सम्बंधित हैं । राजतन्त्र शासन व्यवस्था में बहुत कम  भूमि सुधार की निति का इस्तेमाल हमें देखने को मिलता हैं, क्यूंकि भूमि सुधार का मतलब हैं सभी नागरिको में समानता और सामाजिक न्याय जो इस शासन व्यवस्था में बहुत कम देखने को मिलता हैं । वही दूसरे विश्व युद्ध के बाद एशियाई देशो में हमें आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था देखने को मिलती हैं जहा बहुसंख्य कमजोर वर्ग के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा होनी चाहिए यह सामने आया ।

आज हम जिन विकसित यूरोपीय देशो देशो को एक आदर्श लोकतान्त्रिक मॉडल के रूप में देखते हैं वह जमीन के लिए सबसे ज्यादा हिंसा और हत्याए इतिहास में देखने को मिलती हैं । एशियाई देशो में ऐसा कोई इतिहास  इतना हिंसक नहीं देखने को मिलता हैं । चीन और भारत की जमीन दुनिया में सबसे उपजाऊ जमीन मानी जाती हैं जो कुदरती वातावरण का पूरक होना बताता हैं । जमीन का महत्त्व शासन करने के लिए तथा कृषि उत्पादन के लिए पहले से काफी महत्वपूर्ण रहा हैं । भारत में कई शासक आए परन्तु मुग़ल और ब्रिटिश शासको का प्रभाव हमें ज्यादा देखता हैं ।

मुग़ल और ब्रिटिश शासको द्वारा कई तरह के कृषि सुधार  हमें देखने को मिलते हैं परन्तु वह उनके आय को सामने रखते हुए बनाए गए थे । असली भूमि सुधार हमें स्वतंत्रता के बाद देखने को मिलता हैं जहा समाज के कमजोर वर्ग को सामने रखकर भूमि सुधार किए गए । भूमौ सुधार कितने कारगर साबित हुए वह एक विश्लेषण का विषय हैं परन्तु समाज के कमजोर लोगो को भारत में भूमि स्वामित्व के लिए सोचा गया यह बहुत बड़ी बात थी । इसलिए भूमि से सम्बंधित कई सारे कानून  हमने देखे जो ब्रिटिश इंडिया से चले आए हैं तथा स्वतंत्र भारत में कई मोड़ पर भूमि सुधार निति को देखते हुए अलग अलग कानून बनाए गए । इसतरह से हमने देखा की कैसे भूमि सुधार व्यवस्था देखने को मिलती हैं तथा भूमि सम्बंधित कानूनों को हमने देखा जो काफी महत्वपूर्ण हैं ।

सहकारी आवास समिती कानून

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