प्रस्तावना / Introduction –

भारत की संविधान सभा यह ब्रिटिश भारत से जाने के बाद भारत की पहली संसद थी और भारत का संविधान बनाने वाली सभा भी थी। द्वितीय विश्व युद्ध १९३९ -१९४५ तक चला जिसमे जर्मनी, जापान और इटली को अमरीका, रशिया और इंग्लैंड जैसे देशो ने हराया। इस युद्ध का मुख्य केंद्र बिंदु यह यूरोप रहा हे और इंग्लैंड इसमें आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावित हुवा जिसके कारन उसे अपनी सभी कॉलोनी एक एक करके छोड़नी पड़ी थी।

इसी कड़ी में भारत यह ब्रिटिश कॉलनी थी और सबसे बड़ी कॉलनी थी जिसे संभल पाना उस वक्त ब्रिटेन को काफी मुश्किल हो गया था जिसके संकेत विश्व युद्ध के दौरान ही दिखाई देने लगे थे। प्रधानमत्री विंस्टन चर्चिल की युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण रोल रहा था मगर फिर भी वह उसके बाद इलेक्शन हर गए और नए प्रधानमंत्री चुने गए जिनका नाम था क्लेमेंट एटली हुए थे।

गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट १९३५ इस ब्रिटिश पार्लियामेंट के तहत भारत के संविधान सभा का गठन हुवा जिसके लिए कॅबिनेट मिशन ने काफी महत्वपूर्ण रोल अदा किया था। इससे पहले क्रिप्स मिशन के सूचनाओं को भारत में विरोध किया गया जिससे किया गया था। इसतरह से हम संविधान सभा का भारत के व्यवस्था के लिए क्या महत्त्व हे यह हम आगे देखेंगे।

भारत की संविधान सभा / Constituent Assembly of India –

संविधान सभा का गठन स्वतंत्र भारत का संविधान बनाने के लिए किया गया था जिसमे भारत पाकिस्तान के विभाजन से पहले के सभी सभासद चुने गए थे। कॅबिनेट मिशन ने इसके लिए दस लाख लोकसंख्या के लिए एक प्रतिनिधि इसके हिसाब से संविधान सभा का गठन किया था। इसमें ब्रिटिश इंडिया से २९२ प्रतिनिधि चुने गए जिसके लिए प्रतिनिधिक चुनाव के माध्यम से लाया गया।

संविधान सभा में दूसरा हिस्सा प्रतिनिधिक तौर पर था वह ९३ प्रतिनिधि ब्रिटिश शासन को कर के रूप में उत्पन्न देकर ब्रिटिश शासन के अधीन राजव्यवस्था चलाने वाले संस्थान, और चार कमिशनरेट ऐसा करके संविधान सभा का गठन किया गया था जो संविधान निर्माण के लिए कार्य करता था। दूसरी और दिन के दूसरे सत्र में यही संविधान सभा भारत की पहली संसद बनके देश के लिए कानून बनाने का कार्य करती थी।

संविधान सभा की शुरुवात ७ दिसंबर १९४६ को की गयी तथा इसकी आखरी सभा २४ जनवरी १९५० को ख़त्म हुई। मुस्लिम लीग ने इस संविधान सभा पर बहिष्कार डाला था और वह मानते थे की यह संविधान सभा हमें न्याय नहीं देंगी, जिसके फलस्वरूप संविधान सभा के मध्य में ही भारत और पाकिस्तान का विभाजन प्रस्ताव मंजूर किया गया और मसूदा समिति के अध्यक्ष तथा संविधान निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले डॉ।

आंबेडकर जी का प्रतिनिधित्व पूर्वी बांग्लादेश में होने के कारन रद्द हुआ मगर कुछ विवादित ऐतहासिक तथ्यों के साथ वह पुनः मुंबई प्रान्त से चुने गए और बाद में उन्होंने संविधान के पूर्ण करने में एहम भूमिका निभाई थी।

संविधान सभा के पूर्व पृष्ठभूमि / Back Ground of Constituent Assembly –

१९३४ में संविधान सभा होनी चाहिए यह संकल्पना कम्युनिस्ट नेता एम् एन रॉय ने पहली बार ब्रिटिशर्स के सामने राखी जिसको १९३५ में कांग्रेस ने अपने अजेंडे में शामिल किया। प्रौढ़ मताधिकार तबतक ब्रिटेन ने प्रस्थापित हो गई थी जिसके कारन जल्द ही भारत में भी इसकी मांग उठाने लगी। १९४५ के बाद ब्रिटेन में सरकार बदल चुकी थी और उनकी आर्थिक हालत काफी खस्ता हो गयी थी।

इसी बिच नए सरकार ने भारत में १९४६ में कॅबिनेट मिशन प्लान भेजकर यह संकेत दिए की वह जल्द ही भारत छोड़ कर जाने वाले है। इसके लिए चुनाव प्रक्रिया कॅबिनेट मिशन प्लान के अंतर्गत करवाए गए और संविधान लिखने के लिए संविधान सभा का निर्माण किया गया। इसके लिए ब्रिटिश इंडिया की प्रांतिक विधानसभा से अप्रत्यक्ष चुनाव करकर संविधान सभा के प्रतिनिधि चुने गए।

३ जून १९४७ को भारत के ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड माउंट बैटन ने यह घोषित किया की कॅबिनेट मिशन को रद्द किया जाता है जिससे The Independence Act 1947 के तहत भारत पाकिस्तान का विभाजन हुवा और भारत के संविधान सभा को फिर से १४ ऑगस्ट १९४७ को पुनर्घटीत किया गया, जो एक सार्वभौम देश बना जिसने संविधान पूर्ण होने के बाद आर्टिकल ३९५ में ब्रिटिश इंडिया के कानून को ख़त्म कर दिया ।

भारत की संविधान सभा और संसद / Constituent Assembly & Indian Parliament –

स्वतंत्र भारत में पहला चुनाव १९५१ -५२ में करवाया गया इससे पहले बगैर चुनाव के संविधान सभा ही संसद के रूप में भी कार्य करती रही और कई कानून भी बनाए गए। संविधान सभा तथा संसद यह दोनों एक साथ चलती रही जिसके प्रमुख नेता पंडित नेहरू रहे जो संसद में प्रधानमंत्री के तौर पर कार्य करते रहे। संविधान सभा की १३ कमिटियां बनाई गई थी जैसे आज के संसद में मंत्रालय होते है।

भारत का संविधान २६ नवंबर १९४९ को पूर्ण हुवा, मगर उस दिन अंशतः लागु किया गया और २६ जनवरी १९५० को पूर्ण रूप से लागु किया गया। भारत की संविधान सभा के अंतर्गत पहला संविधान संशोधन १९५१ में किया गया और ९ वी अनुसूची बनाकर संसद की कानून संशोधन की शक्ति को बढ़ाया गया। इस संविधान सभा में कॉग्रेस का प्रभुत्व ज्यादा रहा है जिसकी वजह से मुस्लिम लीग के बहिष्कार का सबसे महत्वपूर्ण कारन रहा है।

दिसंबर १९४६ में संविधान सभा का गठन हुवा और १९४७ आते आते भारत और पाकिस्तान का विभाजन किया गया, तबतक मुस्लिम लीग ने इस संविधान सभा का बहिष्कार किया था जिसके सदस्य ९३ थे। १५ ऑगस्ट १९४७ को पुनः भारत की सार्वभौम संविधान सभा को घठित किया गया और संविधान निर्माण तथा संसद का कार्य चलता रहा।

संविधान सभा की मसौदा समिती / Drafting Committee of Constituent Assembly –

२९ अगस्त १९४७ को मसौदा समिती का गठन किया गया और इसका अध्यक्ष डॉ. अम्बेडकर जी को किया गया जिसमे मसौदा समिति का कार्य यह था की संविधान का हर एक भाग मसौदा बनाकर संविधान सभा में चर्चा के लिए रखा जाए, जिसपर संविधान सभा में चर्चा करके उसको संविधान का हिस्सा बनाया जाता था।

मसौदा समिति में अन्य ६ मेंबर्स थे मगर डॉ आंबेडकर जी ने इसके लिए सबसे ज्यादा मेहनत की इसलिए उन्हें भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है। उन्होंने दुनिया के बहुत सारे संविधानो का अध्ययन किया और भारत के लिए एक बेहतरीन संविधान दिया जिसके कुछ प्रावधान रखने के लिए उन्होंने संविधान सभा में काफी मेहनत की है।

मसौदा समिति के अध्यक्ष के नाते उन्हें संविधान सभा में संविधान के हर एक विषय पर अपने मत रखने पड़ते थे और वह किस व्याख्या में बैठते हे यह उन्हें संविधान सभा में सभी प्रतिनिधियों को विश्लेषण करना होता था। इसलिए कानून के अभ्यासक तथा न्यायाधीशों को संविधान सभा की चर्चाए तथा उनके मत एक व्याख्या के तौर पर आज के न्यायव्यवस्था में इस्तेमाल करने पड़ते है।

भारत के संविधान सभा की विशेषताए / Features of Indian Constituent Assembly –

  • २६ नवंबर १९४९ को अंशतः और २६ जनवरी १९५० को पूर्णतः भारतीय संविधान लागु कर दिया गया।
  • भारत का संविधान यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और प्रजासत्ताक संविधान बना जिसमे ३९२ अनुच्छेद है।
  • मसौदा समिती के अध्यक्ष डॉ बी आर आंबेडकर रहे तथा संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद रहे।
  • संविधान सभा की नियुक्ति ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा की गयी थी और अनुच्छेद ३९५ द्वारा इस कानून को रद्द कर दिया गया और भारत को सार्वभौम किया गया।
  • अनुच्छेद ३९४ द्वारा अंशतः संविधान २६ नवंबर १९४९ को लागु कर दिया गया जिसमे मुख्यतः नागरिकता के अनुच्छेद लागु कर दिए गए।
  • भारत यह लोकतांत्रिक तथा गणतांत्रिक घोषित किया गया जिसमे राष्ट्रपती यह गणतंत्र के प्रमुख बने और प्रधानमंत्री लोकतंत्र के प्रमुख बनाए गए।
  • दिसंबर १९४६ को संविधान सभा का गठन ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजे गए कैबिनेट मिशन द्वारा बनाया गया था।
  • मुलिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किया था, उनका मानना था की इस सभा पर कांग्रेस का वर्चस्व है।
  • संविधान सभा में ९३ भारत की ५६५ राज व्यवस्था से प्रतिनिधि भेजे गए थे।
  • कैबिनेट मिशन द्वारा संविधान सभा पर भारत के दस लाख नागरिको पर एक प्रतिनिधि इस तरह से नियम बनाकर ३८९ प्रतिनिधि चुने गए थे, तब भारत की लोकसंख्या ३५ करोड़ थी और तब से लेकर आज तक संसद में यह प्रतिनिधि बढ़ाए नहीं गए हे।
  • संविधान सभा यह देश के लिए संविधान बनाने का काम भी कर थी और संसद के रूप में कानून बनाने का काम भी कर रही थी।

भारत के संविधान की विशेषताए / Features Indian Constitution –

  • भारत के संविधान में ३९५ अनुच्छेद हे और यह दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है।
  • अनुच्छेद १२ – ३५ तक संविधान में नागरिको की मुलभुत अधिकार क्या होंगे यह निर्धारित किया, जिसके तहत संविधान इसके विपरीत कानून नहीं बना सकते ।
  • अनुच्छेद ३२ और अनुच्छेद २२६ के तहत भारत के हर नागरिक को अपने मुलभुत अधिकारों को सुरक्षितता के लिए प्रावधान किये गए जिसके सुरक्षितता के लिए न्यायव्यवस्था को अधिकार दिए गए।
  • अनुच्छेद ३५ – ५१ तक भारत सरकार को कैसे कार्य करना हे इसके लिए गाइड लाइन निर्धारित की गई हे, जिसका मतलब हे इससे ज्यादा पॉलिसी निर्धारित करने का अधिकार हे मगर इससे कम पॉलिसी नहीं कर सकते ऐसी व्याख्या कर सकते है।

भारत के संविधान सभा का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of Constituent Assembly of India –

  • पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने इस संविधान सभा को विशेष जाती की सभा कहा था।
  • मुस्लिम लीग और कई सारे संस्थानों ने जहा राजतन्त्र चलाया जाता था उन्होंने इस सभा का विरोध किया था।
  • संविधान सभा पर कॉग्रेस का प्रभुत्व था जिसके कारन भारत के वंचित समाज के प्रतिनिधि इस संस्था में नहीं हे ऐसा कई सारे विचारो का मानना था।
  • भारत का संविधान बनाने वाले प्रतिनिधि यह प्रत्यक्ष रूप से चुनकर नहीं आए थे जिन्होंने भारतीय संविधान को मान्यता दी थी।
  • भारत का पहला चुनाव १९५१ में लिया गया और पंडित नेहरू देश के पहले चुने हुए प्रधानमंत्री बने मगर संविधान सभा ने उन्हें बगैर चुनाव के भारत का प्रधानमंत्री १९४७ में नियुक्त किया था।
  • संविधान निर्माता ने संविधान सभा के अपने भाषण में कहा था की संविधान लागु होने के बाद हम विरोधाभास की दुनिया में प्रवेश कर रहे हे जहा समाज की परिस्थिति और नियम अलग हे और संविधान के नियम अलग है।
  • भारत का संविधान लागु होने के बाद भी हम मूलभूत समस्याए , जैसे अन्न वस्त्र , निवारा , स्वास्थ, शिक्षा और रोजगार जैसे समस्याओ पर खड़े है।
  • लोकतंत्र का प्राणतत्व होता हे प्रतिनिधित्व जिसको हम भारत के संसद में पहुंचाने में असफल हुए हे और चुनाव यह सामान्य लोगो का प्रतिनिधि बनने के लिए नहीं रहा है।
  • संविधान की ७ वी अनुसूची द्वारा राज्यों को और केंद्र को कानून बनाने का अधिकार दिया गया जिसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते है, राज्योंका प्रतिनिधिक नेतृत्व मुख्यमंत्री करते हे और देश का प्रतिनिधिक नेतृत्व प्रधानमंत्री करते है ।
  • भारत में संविधान लागु होने के बाद लोकतंत्र और गणतंत्र एक साथ लागु कर दिया गया।
  • संविधान ने भारत की संसद को सबसे ज्यादा अधिकार प्रदान किये जिसमे लोकसभा , राज्यसभा और राष्ट्रपती आते है।
  • संविधान द्वारा भारत के शिक्षा और सामाजिक वंचित लोगो को आरक्षण का प्रावधान किया गया जिसमे , नौकरी , शिक्षा तथा राजनितिक प्रतिनिधित्व शामिल है।
  • संविधान द्वारा न्यायव्यवस्था , चुनाव व्यवस्था , कानूनी सुरक्षा व्यवस्था इसके लिए संविधानिक संस्थाए बनाई गई जो संविधान के अधीन रहकर काम करेगी।

निष्कर्ष / Conclusion –

हमारा लोकतंत्र यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता हे मगर लोकतंत्र की नीव रखने वाले विचारको का मानना था की लोकतंत्र के लिए सामाजिक और राजनितिक समझ होना जरुरी हे, जिससे सही प्रतिनिधि चुने जा सके। कई सारे ब्रिटिश इंडिया द्वारा लागु कानून आजतक निरंतर लागु हे जिसमे भारतीय व्यावस्था द्वारा दुरूपयोग हो सकता है और हो रहा है।

मगर देश के नागरिको की लोकतंत्र के प्रति समझ ज्यादा विकसित न होने के कारन गलत प्रतिनिधि चुने जाते है। जिस उद्देश्य से हमने ब्रिटिश इंडिया से हमारा सार्वभौमत्व हासिल किया था वह १९९० में आर्थिक संकट की वजह से नष्ट होने को हे यह हमें समझना है।

आर्थिक व्यापार बढ़ाना चाहिए यह वास्तविकता समझते हुए अंतराष्ट्रीय व्यापार बढ़ना चाहिए मगर इसके लिए आयत से ज्यादा निर्यात होना जरुरी हे जिससे देश आत्मनिर्भर बनेगा मगर आर्थिक नीतिया और अंतर्गत जातीय संघर्ष यह हमारी सबसे बड़ी समस्या हे जिसके कारन विदेशी देश भारत पर फिर से आर्थिक तरीके से नियंत्रण प्राप्त करने में सफल हुए हे ऐसा माना जा सकता है।

इस लिए हमें हमारे संविधान का महत्त्व समझना होगा जिसमे ” हम भारत के लोग ” यह जिम्मेदारी हमें समझनी होगी।

भारतीय संविधान की विशेषताए

 

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