प्रस्तावना / Introduction –

आधुनिक पूंजीवादी लोकतंत्र में शिक्षा के दो महत्वपूर्ण उद्देश्य होते हे, लोकतंत्र को कानून का पालन करने वाले आदर्श नागरिक निर्माण करे तथा जिसके बल पर देश की अर्थव्यवस्था चलती हे ऐसे उद्योगों को अच्छे कर्मचारी मिले। इन दो उद्देशो में अगर एक भी उद्देश्य को शिक्षा व्यवस्था हासिल नहीं करती तो वह शिक्षा व्यवस्था देश के लिए बदलनी जरुरी होती है। इनफार्मेशन और टेक्नोलॉजी के आज के युग में ऐसा माना जाता हे की जो देश टेक्नोलॉजी पर आत्मनिर्भर नहीं बनेगा वह दूसरे देशो का एक तरह से गुलाम बनेगा।

तर्क पर आधारित शिक्षा व्यवस्था और संशोधन के मुख्य आधारपर स्थापित शिक्षा व्यवस्था यह शिक्षा व्यवस्था के अच्छे होने का प्रमाण माना जा सकता है। वास्तव में देखे तो जिस देश का बौद्धिक संपत्ति में दुनिया में सबसे ज्यादा उपलब्धि हे वह देश शिक्षा में अव्वल माना जा सकता है। इसमें पेटेंट ,कॉपीराइट और ट्रेडमार्क जैसे बौद्धिक संपत्ति का समावेश है। पेटेंट के हर साल रजिस्ट्रेशन के मामले में अमरीका दुनिया का अव्वल देश माना जाता है। इसका मतलब हे की अमरीका का निजी शिक्षा संस्थान का मॉडल आदर्श माना जा सकता है ?

अमरीका एक विकसित देश हे और भारत एक विकासशील देश हे जो विकासशील देशो की सूचि में निचले स्तर पर है। इसका मतलब हे प्रतिव्यक्ति आय के मामले में काफी पिछड़ा है। इसलिए अमरीका का निजी शिक्षा का मॉडल भारत में जैसे के वैसा अनुकरण करना सही नहीं होगा। निजी शिक्षा की विशेषता होती हे -प्रॉफिट और स्पर्धा जिसपर यह व्यवस्था आधारित होती है। भारत में आज इतना खरीद क्षमता लोगो की नहीं हे की वह तुरंत इस व्यवस्था को स्वीकार कर सके। इसलिए हम निजी शिक्षा व्यवस्था के फायदे और नुकसान देखने की कोशिश करेंगे।

आदर्श शिक्षा व्यवस्था क्या होनी चाहिए / What is idle Education System –

पूंजीवाद की दृष्टी से आदर्श शिक्षा व्यवस्था वही होती हे जो इंडस्ट्री को अच्छे कर्मचारी निर्माण करके दे सके वही आदर्श लोकतंत्र की शिक्षा व्यवस्था यह देश के नागरिक नैतिक दृष्टी से कैसे आदर्श बन सकते हे यह देखती है। अगर ऐसी शिक्षा का निर्माण किया जाए की वह केवल पैसा कैसे कमाना हे और अपने घर परिवार का पेट कैसे पालना हे तो यह शिक्षा व्यवस्था आदर्श नहीं मानी जा सकती है। हमारे चुने हुए प्रतिनिधि कैसे जाने चाहिए इसकी समाज सभी पेशेवर शिक्षा में होना जरुरी है।

आज के आधुनिक युग में हम प्रोफेशनल शिक्षा को काफी महत्त्व देते है और देना भी चाहिए क्यूंकि पहले हमारी आर्थिक स्थिति को सुरक्षित करना हमारा सबसे पहला कर्तव्य है। मगर केवल प्रोफेशनल शिक्षा हासिल करके हम हमारे जीवन से सम्बंधित महत्वपूर्ण निर्णय अगर नहीं ले सकते तो ऐसे शिक्षा प्रणाली का कुछ फायदा नहीं है। भारत में हर कोई व्यक्ति पैसे देकर किसी कार्य को करने के लिए नियुक्त नहीं कर सकता, इतनी उसकी आय नहीं होती।

दुनिया में सबसे ज्यादा पेटेंट हर साल अमरीका और चीन रजिस्टर करता है। अमरीका पूंजीवादी व्यवस्था हे और चीन में साम्यवादी व्यवस्था है इसलिए अगर दोनों का अध्ययन करेंगे तो ही हमें एक आदर्श शिक्षा व्यवस्था निर्माण करने में कामयाबी हासिल होगी। भारत की लोकसंख्या दुनिया में चीन के बाद सबसे ज्यादा हे और सबसे ज्यादा युवा वर्ग भारत में हे इसे हमें संपत्ति के रूप में देखना चाहिए और इसका मूल्य अच्छी शिक्षा से निर्धारित होगा।

भारत में शिक्षा का निजीकरण क्यों किया जा रहा है ?/ Why Education in India is Privatized –

१९९० से पहले भारत में लोकतंत्र का सोशलिस्ट मॉडल था जो असफल हुवा और देश पर आर्थिक संकट के कारन देश को पूंजीवादी लोकतत्र का मॉडल स्वीकार करना पड़ा। जिसके तहत व्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप धीरे धीरे कम करना था। शिक्षा का निजीकरण करना उसी पॉलिसी का हिस्सा है, जो वर्ल्ड बैंक के मार्गदर्शक तत्वो पर हमें स्वीकार करना पड़ा और इसके बदले जो आर्थिक संकट देश में था वह ख़त्म हुवा।

भौगोलिक और राजनितिक दॄष्टि से देखे तो अमरीका लोकतंत्र पूंजीवाद को बढ़ावा देता हे क्यूंकि अमरीका के अमरीका बनने में यूरोपीय व्यापारियों का काफी महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। इसलिए हम देखते हे की MIT और हार्वर्ड जैसे निजी शिक्षा संस्थान काफी सफल रहे हे क्यूंकि अमरीका की प्रति व्यक्ति इनकम भारत से काफी ज्यादा है। भारत में सरकारी शिक्षा संस्थान असफल रहे हे क्यूंकि शिक्षा का स्थर और सिखाने वाले शिक्षक इनकी कार्यक्षमता पर सवाल खड़े किए गए।

भारत सरकार हो अथवा राज्य सरकारे उन्होंने शिक्षा के लिए कितना बजेट रखना चाहिए इसमें हमेशा शिक्षा को प्राथमिकता में पीछे रखा है। भ्रष्टाचार यह दूसरी सबसे बड़ी समस्या हे सरकारी व्यवस्था की जिसके कारन शिक्षा का स्थर नहीं बढ़ पाया है। मार्किट को जो कर्मचारी चाहिए वह भारत की शिक्षा प्रणाली देने में असफल रही हे। इसमें शिक्षा व्यवस्था का अभ्यासक्रम यह सबसे बड़ी असफलता रही है। निजी शिक्षा व्यवस्था यह पॉलिसी की मज़बूरी हे या सही निर्णय हे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

भारत की शिक्षा निति और आर्थिक परिणाम / Education Policy in India & Economical Effect-

शिक्षा का मूल उद्देश्य होता हैं, शिक्षा से देश को अनुशासित, नैतिक और साक्षर नागरिक मिले जिसका फायदा समाज को मिल सके। पूंजीवादी लोकतंत्र में शिक्षा का मूल उद्देश्य होता हैं, भारतीय अर्थव्यवस्था में जो व्यवसाय निर्माण होते हैं उसके लिए प्रशिक्षित कर्मचारी उपलब्ध हो सके । भारत  की उद्योग को प्रशिक्षित कर्मचारी मिले यह अच्छी बात हैं परन्तु शिक्षा का केवल यही उद्देश्य नहीं हो सकता हैं । इंजीनियरिंग, डॉक्टर तथा वकील जैसे पेशे सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था चाहिए होते हैं इसलिए शिक्षा क्या होनी चाहिए यह निति बनाई जाती हैं ।

1990 के बाद भारतीय लोकतंत्र में पूंजीवादी आर्थिक नीतियों को स्वीकार किया गया और भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खुला कर दिया गया । जिसमे शिक्षा का निजी कारन यह भी एक हिस्सा मान सकते हैं परन्तु इसके लिए लोगो की निजी शिक्षा को हासिल करने की क्षमता निर्माण करना बहुत महत्त्व पूर्ण होता हैं । नागरिको के आर्थिक क्षमता को बढ़ाए बगैर शिक्षा का निजी करन यह गलत निति माननी चाहिए । केवल उद्योगों को निजीकरण से फायदा होगा मगर इससे अर्थव्यवस्था सक्षम होगी यह मानना गलत होगा ।

भारत की लोकसंख्या को देखते हुए हम यूरोप और अमेरिका जैसे आर्थिक निति को जैसे के वैसा भारत में नहीं इस्तेमाल कर सकते इसके लिए हमें सामाजिक स्थिति को देखना होगा । इसलिए वैश्विक आर्थिक निति को दुनिया भर के देश अपने देश की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थिति को देखते हुए हमें शिक्षा निति को स्वीकार करना होगा । हार्वर्ड और ऑक्सफ़ोर्ड जैसे अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सस्थान भारत में होने चाहिए मगर वह दुनिया भर से पढ़ने के लिए विद्यार्थी आते हैं इसलिए वह निजी संस्थाए सफल हैं । भारत में यह करने के लिए हमें विदेशी विद्यार्थियों को आकर्षित करना पड़ेगा और देश के विद्यार्थीओ को भी आर्थिक सुरक्षा देनी होगी ।

आदर्श शिक्षा व्यवस्था कैसे समझे / How to Identify Idle Education –

  • तर्कशील शिक्षाप्रणाली
  • संशोधन पर आधारित
  • प्रचलित मार्किट से सुसंगत
  • विश्लेषण और तथ्यों पर आधारित
  • समाज के सभी वर्गों के लिए सहज उपलब्ध
  • आर्थिक सुलभ शिक्षा प्रणाली
  • काल्पनिक और इतिहास का फर्क बताने वाली शिक्षाप्रणाली

विकसित देशो से तुलना करे तो शिक्षा के लिए हम काफी कम पैसा खर्च करते हे। हमारा अभ्यासक्रम और आर्थिक बाजार इसमें काफी अंतर होने के कारन डिग्री लेने के बाद भी हमारे विद्यार्थी कंपनियों के लिए उतना कुशल नहीं होते जितना वह चाहते है। राजनीती और सामाजिक समस्या कहे इसके कारन हमारा अभ्यासक्रम अंतराष्ट्रीय स्थर हासिल करने के लिए अभी काफी मेहनत करनी पड़ेगी तथा भविष्य में हार्वर्ड और ऑक्सफ़ोर्ड जैसी शिक्षा संस्थानों से भारत की निजी शिक्षा संस्थानों को स्पर्धा करनी पड़ेगी।

केवल व्यावसायिक सक्षम शिक्षा प्रणाली किसी भी देश में अच्छे कर्मचारी निर्माण तो करेगी मगर अच्छे नागरिक बनाने के लिए तर्कशील शिक्षा व्यवस्था बनाना काफी महत्वपूर्ण है। इनफार्मेशन और टेक्नोलॉजी के इस युग में जिसके पास आधुनिक टेक्नोलॉजी हे वही आर्थिक और राजनितिक वर्चस्व हासिल करने में सफल होगा। इस दॄष्टि से शिक्षा प्रणाली विकसित करना जरुरी है। भारत की कम्पनिया संशोधन के मामलों में अंतराष्ट्रीय कंपनियों से काफी पीछे है।

भारतीय कम्पनिया केवल प्रस्थापित टेक्नोलॉजी को इस्तेमाल करने में खुद को एक्सपर्ट बनाती है। इससे कुछ होने वाला नहीं हे टेक्नोलॉजी तथा पेटेंट के मामले में हमें विकसित होना जरुरी है। जिसके लिए तर्कशील शिक्षा प्रणाली होना जरुरी है। यूरोप ने विज्ञानं में क्रांतिकारक तरीके सफलता हासिल की इसका महत्वपूर्ण कारन हे १६ वी सदी में हुए सामाजिक बदलाव जिसमे चर्च को विज्ञान के दोनों हाथो से स्वीकारना पड़ा और अपना वर्चस्व छोड़ना पड़ा। यह बड़प्पन दिखने में दुनिया के बाकि धर्म पीछे रह गए।

दुनिया की बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था / Best Education System of the World –

दुनिया की बेहतरीन शिक्षा प्रणाली में मुख्य रूप से यूरोप और अमरीका की शिक्षाप्रणाली सबसे ज्यादा विकसित है। पेटेंट रजिस्ट्रेशन के मामलो में अमरीका और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा पेटेंट रजिस्टर करता है। चीन की राजनितिक व्यवस्था अमरीका की राजनितिक व्यवस्था से अलग होने की वजह से वह बेहतरीन शिक्षा प्रणाली में हमें नहीं दिखती है। मगर जो शिक्षा प्रणाली सफल नतीजे देती हे वही सफल शिक्षाप्रणाली मानी जाती है।

यूरोप और अमरीका की शिक्षा प्रणाली पिछले पचासो साल पुराणी होने के कारन वह भारत से काफी विकसित है। भारत की बात करे तो ज्यादा से ज्यादा हमारी पिछली दो पीढ़िया पढ़ी लिखी दिखती हे मगर यूरोप में यह परंपरा काफी पुराणी हे जहा डॉक्टर , वकील हमें देखने को मिलते है। यह देश विकसित होने के कारन यहाँ की सरकार शिक्षा पर काफी पैसा खर्च करती है। यहाँ के नागरिको की आर्थिक आय काफी ज्यादा होने के कारन वह निजी शिक्षा संस्थानों में शिक्षा पर होने वाला खर्चा सह सकते हे।

भारत में बहुसंख्य लोगो का संघर्ष प्राथमिक जरूरतों में ही सारा पैसा खर्च हो जाता है। निजी शिक्षा प्रणाली में खर्च करना एक तो मज़बूरी होगी अथवा कानून होगा। भारत में निजी शिक्षा प्रणाली अभी प्राथमिक अवस्था में हे और इसमें स्पर्धा निर्माण होकर बेहतर शिक्षा मॉडल निर्माण होने में काफी समय लगाने वाला है। इसलिए अमरीका और यूरोप के शिक्षा मॉडल को कॉपी करना उतना आसान नहीं है।

भारत की सरकारी शिक्षा व्यवस्था/ Government Education system –

भारत की शिक्षा प्रणाली यह लार्ड मेकाले द्वारा ब्रिटिश इंडिया में स्थापित की गयी थी। इससे पहले शिक्षा का मतलब होता था, पारम्परिक व्यवसाय की शिक्षा जो पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार के बुजुर्ग लोग देते थे। यह शिक्षा केवल दो वक्त की खाने की व्यवस्था कैसे करनी हे यह निर्धारित करती थी। जीवन में क्या सही हे और क्या गलत हे यह व्याख्या करने का अधिकार धर्म के पास होता था। जिसके तहत हम देखते हे की कुछ बाते अच्छी होती थी तो कुछ बुरी भी होती थी मगर किसी को सवाल पूछने का अधिकार नहीं होता था।

ऐसा नहीं हे की यह किसी एक धर्म के साथ होता हो , मगर यह समस्या पूरी दुनिया भर में देखि जाती है। इसलिए इंग्लैंड और यूरोप से जो शिक्षा प्रणाली विकसित हुई जिसे हम ऑक्सफ़ोर्ड और हार्वर्ड जैसे शिक्षा संस्था में सीखे हुए लोगो को जो आदर देते हे वह उनकी शिक्षा प्रणाली के कारन। भले ही हम देखते हे की भारत के कई लोग पश्चिमी शिक्षा प्रणाली का विरोध करते हे मगर उनकी बनाई टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल करते हे जिसमे इंटरनेट से लेकर मोबाइल तक सभी चीजे इस्तेमाल करते है।

भारत की स्वंत्रता के बाद कई महत्वपूर्ण शिक्षा भारत में स्थापित की गई जिसमे IIT से लेकर आईआईएम तक सभी शिक्षा संस्थान द्वारा तैयार हुए विद्यार्थी विदेशो में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे है। १९९० में वर्ल्ड बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय नीतियों के तहत हमें अपनी व्यवस्था में निजीकरण का निर्णय लेना पड़ा। सरकारी कंपनियों से लेकर सरकारी शिक्षा संस्थानों तक धीरे धीरे निजीकरण करना आज शुरू हे जो एक दिन में यह बदलाव करना काफी मुश्किल है।

भारत के विकास में शिक्षा का महत्त्व / Importance of Education in India’s Growth –

भारत के पास दुनिया का सबसे ज्यादा युवा वर्ग आज मौजूद हे जिसका हमें संपत्ति की तरह इस्तेमाल करना होगा। हर एक युवा को अच्छी शिक्षा के माध्यम से दुनिया की मार्किट में अच्छी वैल्यू मिलना जरुरी है। इसके लिए साधारण शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी प्रकार के जॉब्स के लिए अमरीकी तथा यूरोपीय कंपनियों को कम कीमत पर कर्मचारी और सेवाए उपलब्ध हो सकती हे और यह प्रमाण भविष्य में बढ़ने वाला है।

TCS, इनफ़ोसिस जैसी भारतीय कम्पनिया इसका फायदा काफी क्षमता से उठा रही हे और देश के लिए सबसे ज्यादा इनकम कर के स्वरुप में दे रही है। जितना ज्यादा शिक्षा का स्तर बढ़ेगा उतना इन कम्पनीओ को फायदा होगा और उनके कर्मचारियों को फायदा होगा। इसका दूसरा अर्थ हे की देश को फायदा होगा और देश में और रोजगार निर्माण होगा। इसलिए भारत की आर्थिक स्थिति को सुधारणे के लिए शिक्षा प्रणाली को सुधारना काफी जरुरी है।

रतन टाटा और नारायण मूर्ति द्वारा कई बार यह समस्या सार्वजनिक रूप से बताई गई हे की सक्षम कर्मचारी उन्हें भारत की शिक्षा प्रणाली से नहीं मिल रहा है। शिक्षा का निजीकरन करना यह एक मात्र उपाय बिलकुल नहीं है। इसके लिए सरकार को पॉलिसी बनाकर निजी शिक्षा संस्थानों पर प्रॉफिट कमाने के लिए अंकुश बाजार में स्पर्धा बढ़ने तक रखना होगा। एक बार स्पर्धा निर्माण होने पर अर्थशास्त्र के नियम के अनुसार इन संस्थाओ को खुद में सुधार करने पड़ेगे जिससे शिक्षा का स्तर अपने आप बढ़ेगा।

शिक्षा के निजीकरण के नुकसान / Disadvantages of Privatization of Education –

  • भारत में बहुसंख्य समाज मेडिकल तथा अन्य उच्च शिक्षा में करोडो रूपए खर्च नहीं कर सकता , जिससे काफी विद्यार्थी आर्थिक क्षमता न होने से ऐसी शिक्षा से वंचित रह जाएगी , यह देश का नुकसान है।
  • आर्थिक कमजोर बच्चो के लिए सुविधाए होगी मगर वह काफी मर्यादित होगी जिसके सामने ऐसे बच्चो की संख्या काफी ज्यादा होगी जिससे सभी को यह लाभ नहीं मिलेगा।
  • जिनके पास पैसा होगा वही महँगी शिक्षा लेने लायक होगा चाहे वह शिक्षा में कितना भी कमजोर क्यों न हो।
  • विदेशी शिक्षा संस्थान भारत में आने से शिक्षा का स्थर जरूर बढ़ेगा मगर वह लाभ केवल आर्थिक सधन लोग ही उठा पाएगे।
  • निजीकरण में हमें बहुत सारी शिक्षा संस्थान देखने को मिलती हे जो फीस लाखो रूपए लेती हे मगर शिक्षा का स्थर काफी दुय्यम दर्जे का है।
  • निजी शिक्षा संस्थान में पढ़ाने वाला स्टाफ यह कितना काबिल हे यह कहना मुश्किल हे क्यूंकि उनको मिलने वाली तन्खा बड़ी साधारण होती हे जिससे वह खुद की प्रोग्रेस नहीं कर सकता तो विद्यार्थियों की क्या करेगा।
  • भारत की शिक्षा संस्थान दुय्यम दर्जे की शिक्षा देती हे इसका सबसे महत्वपूर्ण कारन हे अभ्यासक्रम जो काल्पनिक कथा को इतिहास के रूप में विद्यार्थियों को परोसता हे जिससे तार्किक बुद्धि कैसे निर्माण होगी।
  • विदेशी शिक्षा संस्थान के स्पर्धा करने के लिए क्या भारत के शिक्षा संस्थान तैयार है ?
  • निजी संस्थाए साधारण वार्षिक फीस के आलावा विद्यार्थियों से अलग अलग माध्यम से बड़ी मात्रा में पैसा लेती हे जो बाहर काफी सस्ती मिलती है।
  • भारत की शिक्षा व्यवस्था एकदम से निजी शिक्षा प्रणाली को स्वीकार करने के लिए सक्षम नहीं हे, इसलिए इसमें बदलाव काफी सावधानी से करने होंगे।

शिक्षा के निजीकरण के फायदे / Benefits of Privatization of Education –

  • निजी शिक्षा संस्थानों से बाजार में स्पर्धा निर्माण होगी और लोगो को इससे चॉइस निर्माण होगी की कौनसी स्कूल में एडमिशन लेना चाहिए ।
  • अभ्यासक्रम कौनसा होना चाहिए यह तय करने का अधिकार शिक्षा संस्थानों को मिलेगा जिससे अव्वल दर्जे का अभ्यासक्रम निर्माण होने में सहयता होगी।
  • सरकार की जिम्मेदारी शिक्षा का स्थर बढ़ाने के कम होगी और वह दूसरे महत्वपूर्ण चीजों के लिए वह पैसा खर्च कर सकेंगे।
  • निजीकरण में भ्रष्टाचार और अकार्यक्षमता जैसी चीजों के लिए कोई जगह नहीं हे और शिक्षकों को अपडेट रहना जरुरी होगा जिससे पढ़ाने के स्थर उचा होगा।
  • आर्थिक दुर्बल घटको के लिए इस शिक्षा प्रणाली में कुछ सीटे खाली रखी जाएगी।
  • जो भारतीय विद्यार्थी कर्ज लेकर विदेश पढ़ने जाते थे वह भारत में ही उन्ही शिक्षा संस्थानों में कम खर्च में अपनी शिक्षा पूरी कर सकेंगे।
  • आर्थिक बाजार को जो कर्मचारी चाहिए वह कर्मचारी वर्ग यह शिक्षा देने में सफल होगी क्यूंकि जो संस्था यह परफॉरमेंस देगी वही ज्यादा एडमिशन होंगे।
  • रिसर्च और डेवलपमेंट में भारत काफी पीछे हे जो निजीकरण के शिक्षा निति कुछ बदलाव देखने को मिलेंगे और भारत में भी टेक्नोलॉजी बनने में हम सफल होंगे।

निष्कर्ष / Conclusion –

शिक्षाप्रणाली यह किसी भी देश की विकास में महत्वपूर्ण काम करती है, इसमें भी अव्वल दर्जे की शिक्षा प्रणाली दुनिया पर प्रभाव रखने में सबसे महत्वपूर्ण काम करती है। इसका सबसे बड़ा उदहारण हे। अमरीका और चीन जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । जो देश दूसरे देशो पर अपनी आर्थिक व्यवस्था चलाने के होती हे उसकी शिक्षा प्रणाली कमजोर होती है। अमरीका में दुनियाभर से विद्यार्थी सीखने के लिए आते हे।

इसलिए उनका निजी शिक्षा का मॉडल दुनिया में सफल हे चाहे वह यूरोप का कोई भी देश हो खास करके इंग्लैंड और फ्रांस तथा अमरीका हो वह अपना शिक्षा का निजी मॉडल प्रॉफिटेबल बना सकते है। दुनिया भर के आमिर लोग ज्यादा से ज्यादा फीस देकर ऐसे शिक्षा संस्थानों में एडमिशन लेते है। भारत में ऐसे शिक्षा मॉडल खड़ा करना काफी मुश्किल काम हे क्यूंकि अमरीका और इंग्लैंड जैसे विकसित देशो से विद्यार्थी भारत में शिक्षा लेने के लिए क्यों आएगी।

जो शिक्षा सुविधा उन्हें अपने देश में मिल रही हे वह अपने देश में एडमिशन लेना पसंद करेंगे । भारत ८० प्रतिशत से ज्यादा लोग अपनी मुलभुत सुविधा के भर संघर्ष करते हे और ऐसे लोगो से शिक्षा के लिए लाखो रूपए यह काफी कठिन बात है। इसलिए पूरी तरह से अमरीकी शिक्षा का मॉडल भारत में नहीं चल सकता। इसे अंशतः लागु करना होगा तथा इन निजी संस्थाओ पर जबतक स्पर्धा बढती नहीं तबतक कड़े नियम बनाने होंगे। इसतरह से हमने निजी शिक्षा का भारतीय मॉडल कैसा होगा इसपर अपने विचार रखे है।

 

दुनिया की दस बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था

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