Training nurses. Woman nurse demonstrates the medical mannequin to a group of medical student nurses .

प्रस्तावना / Introduction –

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के स्वास्थ्य मानांकन में भारत ६६ वे स्थान पर आता हे तथा भारत में डॉक्टरों की संख्या यह सबसे बड़ी समस्या है। २०१९ के आकड़ो के हिसाब से भारत में १४४५ लोगो पर एक डॉक्टर इस हिसाब से भारत में कुल ११.५९ लाख डॉक्टर्स है, जिसमे ९.२७ लाख डॉक्टर्स वास्तविक तौर पर प्रैक्टिस कर रहे है, जो WHO के मानकों से अभी भी काफी पीछे है। इसमें भी ज्यादातर डॉक्टर्स यह भारत के मुख्य शहरों में अपनी सेवा देते हे, जिससे बाकि क्षेत्रो में हमें झोला छाप डॉक्टरों की संख्या काफी ज्यादा देखने को मिलती है। इसमें हम अलोपथी की बात कर रहे है, इसके सपोर्ट में होमियोपैथी तथा आयुर्वेद जैसे डिग्री के लिए हमें अलग से लिखना पड़ेगा।

भारत में स्वास्थ्य से सम्बंधित मामले कितने गंभीर हे यह २०१९ के कोरोना संकट में देखने को मिली है, तथा यूक्रैन युद्ध ने हमें डॉक्टर बनने के लिए हमारी शिक्षा निति में क्या खामिया हे यह सामने लायी है। मेरा पहले से मानना हे की अमरीका यह पूरी तरह पूंजीवादी देश हे जो यूरोपियन विकसित लोगो की वजह से देखने को मिलता है, जो मूल रूप से व्यापारी रहे है। अमरीका यह दुनिया का सबसे विकसित देश हे जो इनकम के मामले में भारत से काफी आगे हे, इसलिए उनकी शिक्षा निति भारत में जैसे की वैसी लागु करना यह आत्महत्या करने जैसा है।

यूक्रैन युद्ध में हमने देखा की कई सारे भारतीय विद्यार्थी यह मेडिकल शिक्षा लेने के लिए जाते है, जिससे यह मुद्दा पुरे भारत में उठा की क्यों वह लोग पढ़ने के लिए वहा गए थे। इसलिए हम यहाँ मेडिकल क्षेत्र का ब्रिटिश इंडिया से सफर कैसा रहा और आज के आधुनिक दौर में यह कैसा हे, यह जानने की कोशिश करेंगे। भारत में मेडिकल रिफॉर्म्स लाए गए हे। जो कितने कारगर होंगे यह देखेंगे तथा इस निति को आलोचनात्मक विश्लेषण से जानने की कोशिश करेंगे।

भारत का युवा यह हमारी सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति हे जो दुनिया के किसी इतनी संपत्ति नहीं है इसलिए इसका इस्तेमाल प्रभावी तरीके से कैसे करना चाहिए यह मेडिकल शिक्षा के माध्यम से देखने की कोशिश करेंगे।

भारत की शिक्षा व्यवस्था / Medical Education in India –

“E-Learning” के बारे में मैंने एक अंग्रेजी किताब पढ़ी थी जिसमे आधुनिक शिक्षा व्यवस्था कैसी होगी इसके बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है। जिसमे कहा गया की आज जो किसी भी यूनिवर्सिटी को बसाने में ३००-४०० करोड़ रूपए लगते हे यह अब नहीं लगेंगे , काफी कम राशि में यूनिवर्सिटी बनायीं जाएगी। डिजिटल लर्निंग के माध्यम से कॉलेज कम से कम जाकर घरसे ही अपनी डिग्री हासिल कर सकेंगे। मेडिकल क्षेत्र में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में देखने को मिलता हे।

जिसमे आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस को हम देखते है, जो इंसान से कई अच्छी क्षमता से ऑपरेशन तथा रिपोर्ट और विश्लेषण रिपोर्ट हमें देता है। इसलिए मेडिकल शिक्षा में अभ्यासक्रम क्या होना चाहिए इसके मायने काफी बदल गए हे और समय समय पर इसमें कैसे बदलाव करने हे, यह हमें सोचना होगा। इससे पहले दस साल अथवा बीस साल बाद अभ्यासक्रम में बदलाव किए जाते थे मगर आज यह बदलाव काफी तेजी से समय समय पर करने होते है तभी हम अच्छी शिक्षा व्यवस्था मार्किट के हिसाब से दे सकते है।

भारत की शिक्षा व्यवस्था में आज २०२१ के आकड़ो के हिसाब से देखे तो भारत में ५६२ मेडिकल कॉलेजेस हे जिसमे २८६ सरकारी कॉलेजेस हे तथा २७५ निजी मेडिकल संस्थाए है। यह आकड़े स्वास्थ राज्य मंत्री अश्विन कुमार चौबे द्वारा संसद में दीए गए है। जिसमे ८४६४९ कुल MBBS मेडिकल सीटे है जिसमे १७ लाख विद्यार्थी एप्लीकेशन करते हे जिससे बहुत कम विद्यार्थी सरकारी संस्थाओ में दाखिला लेने के लिए सफल होते हे। निजी संस्थाओ में यह शिक्षा हासिल करने के लिए एक करोड़ के आसपास खर्चा होता हे जो सामान्य परिवार नहीं दे सकता इसलिए कई बच्चे यूक्रेन , चीन जैसे देशो में यह डिग्री हासिल करना चाहते है।

भारत में शिक्षा व्यवस्था का इतिहास / History of Medical Education in India –

ब्रिटिश इंडिया में लार्ड मेकाले द्वारा भारत में शिक्षा निति कैसी होनी चाहिए ऐसा अध्ययन किया गया तथा ब्रिटिश आर्मी में अप्रैंटिस के माध्यम से मेडिकल शिक्षा को पहली बार भारत में परिचित कराया गया। १८३५ में कलकत्ता में पहला मेडिकल कॉलेज कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गयी थी। १८४६ में पहले यह कोर्स दो साल का किया गया जो आगे जाकर तीन साल का कोर्स बनाया गया था। १८५७ के बाद शिक्षा रिफॉर्म्स के माध्यम से मद्रास ,कलकत्ता और बॉम्बे यह यूनिवर्सिटी की स्थापना की गयी और इसके माध्यम से मेडिकल शिक्षा की निति बनाना शुरू हुवा।

लायसेंटिएट ऑफ़ मेडिसिन एंड सर्जरी ( L.M.S.) तथा बैचलर ऑफ़ मेडिसिन एंड मास्टर ऑफ़ सर्जरी (MBCM) नाम से डिग्री कोर्सेज शुरू किए गए थे। आगे जाकर इन कोर्सेज को ख़त्म किया गया और MBBS कोर्स को शुरू किया गया जिसको जनरल मेडिकल कौंसिल जो इंग्लैंड के संस्थान द्वारा संचालित किया जाता था। इंडियन मेडिकल सर्विसेज की स्थापना १८९६ को स्थापित किया गया जिसको प्रोविंशियल राज्यों की स्थापना के बाद वह इन राज्यों के अधीन किया गया।

१९१२ में ब्रिटिश इंडिया द्वारा नया डिपार्टमेंट बनाकर मेडिकल शिक्षा निति को निर्धारित किया गया। १९२२ में कोलकत्ता में स्कूल ऑफ़ ट्रॉपिकल मेडिसीन की स्थापना ब्रिटिश इंडिया में की गयी। १९३३ में मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया की स्थापना की गयी जिसने जनरल मेडिकल कौंसिल की जगह ली जो इंग्लैंड से संचालित की जाती थी। समय के साथ आज हम देखते हे की पूरी दुनिया में भारत के डॉक्टर्स और नर्सेज की काफी डिमांड देखने को मिलती है जिसको टेक्नोलॉजी से जोड़कर हम देख सकते है।

भारत की मेडिकल शिक्षा प्रणाली और यूक्रेन / Indian Medical Education & Ukraine –

2022 को फेब्रुवरी महीने में जो परिस्थिति यूक्रेन में निर्माण हुई थी जिसके चलते भारत के कई विद्यार्थियों को डॉक्टर बनने में चार महीने बचे थे। यह हालत निर्माण होने से उन सभी विद्यार्थियों का प्रोफेशनल भविष्य संकट में फस गया है । भारत के हजारो विद्यार्थियों को यूक्रेन से बाहर निकालने के लिए जब भारत सरकार ने शुरुवात की तब यह मुद्दा मीडिया में आया की भारत के हजारो विद्यार्थी यूक्रेन में मेडिकल की शिक्षा ले रहे है। इसपर कई सारे बहस हमने न्यूज़ चैनलों पर देखे हे और यह विद्यार्थी यूक्रेन पढ़ने के लिए क्यों जाते हे यह सवाल लोगो के सामने आने लगे।

सरकारी मेडिकल संस्थानों में मर्यादित जगह और निजी संस्थानों में बढ़ाई गयी फीस जो भारत के सामान्य परिवारों के क्षमता से बाहर हो ऐसे स्थिति में यूक्रेन , चीन तथा पूर्वी यूरोपीय देशो में कम खर्च में मेडिकल क्षेत्र में करियर बनाने वाले विद्यार्थियों के लिए यह अच्छा पर्याय था। इसलिए हम देखते हे की विदेश में मेडिकल की डिग्री लेने का चलन पिछले कुछ सालो से काफी बढ़ा है। इससे भारत की मेडिकल शिक्षा प्रणाली पर काफी सवाल उठ रहे है जो यूक्रेन और रशिया विवाद के समय से मीडिया द्वारा लोगो को पता चला ।

ऐसा नहीं के की भारत सरकार ने इसके लिए कुछ प्रयास नहीं किए हे, निजीवाद के माध्यम से प्राइवेट संस्थानों को पहले जो नियम बनाए उसको शिथिल कर दिया मगर प्राइवेट संस्थानों को पूरा सेटअप लगाकर प्रॉफिट कमाना यह फीस को बढ़ाने के बाद ही संभव था। भारत के लोगो की सामान्य आय यूरोप और अमरीका जैसे विकसित देशो की तरह नहीं हे जिससे वह एक मेडिकल डिग्री के लिए एक करोड़ खर्च कर सके। इसलिए यह पॉलिसी पूरी तरह से सफल नहीं हो रही हे और इसमें सामान्य लोगो के क्षमता से फीस की पॉलिसी बनानी होगी।

मेडिकल शिक्षा व्यवस्था की समस्याए / Problems of Medical Education –

भारत में जागतिकी करन के माध्यम से निजीकरण लाया गया जिसके तहत शिक्षा संस्थानों को भी निजी क्षेत्र में लाने की योजना बनायीं गयी और यह रिफॉर्म्स भारत में पिछले कुछ दिनों से शुरू किए गए । मेडिकल क्षेत्र से तैयार होने वाले विद्यार्थी यह मुख्यतः इलीट वर्ग के होते हे ऐसी धारणा आज भी हमें देखने को मिलती हे। जिसकी वजह से आरक्षण पर बनने वाले डॉक्टरों को गलत नजर से देखा जाता है। आर्थिक रूप से भारत में ज्यादातर लोग निजी मेडिकल संस्थानों में फीस नहीं भर सकते जो करोडो रूपए होती है।

इसलिए काबिल डॉक्टर भारत में तैयार करना एक बात हे और जिनके पास पैसे हे वही डॉक्टर बन सकते हे यह दूसरी बात हे जिससे अच्छे डॉक्टर्स मिलना भविष्य में आसान नहीं होगा। दूसरी तरफ WHO के मानकों के अनुसार हर हजार व्यक्तियों में एक डॉक्टर होना चाहिए जो सरकारी आंकड़े कहते हे की है। मगर जमीनी स्तर पर यह आंकड़े पूरी तरह से शहरी भागो में देखे जाते है जिससे हमारी शिक्षा व्यवस्था को भारत के सभी क्षेत्र में डॉक्टर्स उपलब्ध हो ऐसी योजनाए बनानी होगी।

संशोधन के मामलों में ज्यादातर तैयार हुए डॉक्टर्स काफी कमजोर देखने को मिलते हे तथा विकसित देशो की शिक्षा प्रणाली से वह काफी पीछे दिखते है। ज्यादातर मेडिकल विद्यार्थियों का उद्देश्य पैसे कमाना होता हे, जिससे संशोधन पर कोई ध्यान नहीं देता इसलिए आज हम दवाओं के निर्माण में तथा मेडिकल टेक्नोलॉजी के मामलो में विदेशी संशोधन पर निर्भर होते हे। प्रस्थापित शिक्षा प्रणाली को अनुसरण करना तथा पैसे कमाना यह ज्यादातर डॉक्टरों का उद्देश्य बन जाता है।

स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्याए / Health Related Issues in India –

जैसे की हमने देखा की अलोपथी यह मूल रूप से मेडिकल क्षेत्र में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली स्वास्थ्य थेरेपी हे जो काफी कारगर हे मगर इसके आलावा भारत में ७.८८ लाख आयुर्वेदिक यूनानी तथा होमिओपेथिक डॉक्टर है जिसमे ८० प्रतिशत प्रैक्टिस करते है। जिससे हम ८६० मरीजों पर १ डॉक्टर यह प्रमाण हासिल करने में सफल हुए हे यह अरुण कुमार चौबे जो स्वास्थ्य राज्य मंत्री द्वारा दिए गए आकड़े बताते है। केंद्रीय राज्य मंत्रीजी का मानना हे की स्वास्थ्य यह राज्यों की सूचि का विषय हे इसलिए डॉक्टरों की कमी यह समस्या राज्यों को दूर करनी चाहिए।

२०१९ के कोरोना आपदा में हमने स्वास्थ्य से सम्बंधित काफी गलत व्यवस्थापन के प्रकार भारत के सभी राज्यों से देखे है। चिकिस्ता शिक्षा में स्पेशलिसशन यह काफी महत्वपूर्ण स्किल हे जिसके माध्यम से हम इसकी कमी देखते हे वही भारत शहरों को छोड़कर डॉक्टर्स बाकि जगह जाने से कतराते है। इसलिए केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार को मिलकर अच्छी निति पर कार्य करना होगा। झोला छाप डॉक्टरों के लिए कड़े कानून तो हे मगर जनता जागृत नहीं हे जिसकी वजह से कौनसे डॉक्टर के पास चिकिस्ता चाहिए यह आज तक पढ़े लिखे लोगो में भी अज्ञानता देखने को मिलती है।

सरकारी अस्पतालों की समस्या हमें पता हे जो भ्रष्टाचार तथा गैरजिम्मेदारी जैसी घटनाए हमें देखने को मिलती है। इसलिए जो लोग आर्थिक रूप से मजबूर होते हे वही सरकारी अस्पतालों में अपना इलाज करते है। वही निजी अस्पतालों में सुविधाए अच्छी मिलती हे मगर अस्पताल प्रॉफिट बेस होने के कारन सामाजिक सेवा तथा नैतिकता के मानक यह प्राथमिकता से बाहर हो जाते हे और लोगो का शोषण यह परिणाम हमें देखने को मिलता है। इसलिए पिछले कुछ सालो से डॉक्टरों के प्रति जो विश्वास देखने को मिलता था वह आज देखने को नहीं मिलता है।

मेडिकल शिक्षा सुधार / Medical Education Reforms –

अमरीका में भारतीय मूल के लगबघ १० प्रतिशत डॉक्टर्स काम कर रहे है वही इंग्लैंड में भारतीय मूल के लगबघ २०००० डॉक्टर्स नेशनल हेल्थ सर्विसेज के लिए काम कर रहे है। सऊदी अरब, जर्मनी , फिलीपींस जैसे देशो में भारत की नर्सेज सफलता पूर्वक सेवाए दे रही हे इसलिए हमें भारत के युवा वर्ग को दुनिया के लिए एक संपत्ति की तरह देखना होगा। यही देखते हुए भारत सरकार ने दुनिया भर से अच्छे काबिल डॉक्टर्स भारत दे सकता हे यह देखते हुए मेडिकल क्षेत्र में सुधार करने का निर्णय लिया है।

इसलिए आगे दिए गए समय समय पर शिक्षा सुधार हमें भारत की मेडिकल शिक्षा प्रणाली में देखने मिलेगी।

  • मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन की स्थापना की गयी है।
  • कम्पीटन्सी बेस मेडिकल एजुकेशन (CBME) यह शिक्षा प्रणाली बनायीं गयी जिसमे प्रैक्टिकल स्किल्स को ज्यादा महत्त्व दिया गया है।
  • निजी क्षेत्र को मेडिकल हॉस्पिटल स्थापित करने के लिए प्रोस्ताहित करने की योजनाए बनाई गयी जिसके माध्यम से काम जगह पर मेडिकल कॉलेज स्थापित किया जा सके।
  • पहले दो साल निजी अस्पताल चलाने के बाद कॉलेज स्थापित करने का परमिशन दिया जाएगा यह निर्धारित किया गया।
  • सरकारी मेडिकल कॉलेजों की फीस चार गुना बधाई गयी जिससे निजी मेडिकल कॉलेज को स्पर्धा करना सहज हो जाए।
  • एंटेरन्स परीक्षा के लिए नीट के माध्यम से विद्यार्थियों का कोटा निर्धारित किया गया जिसमे निजी क्षेत्र की मेडिकल कॉलेजों का शिक्षा स्थर अच्छा बना रहे।
  • नेशनल मेडिकल कमीशन के माध्यम से निजी क्षेत्र के लिए सरकारी प्रक्रिया को पारदर्शक बनाया गया, जिससे भ्रष्टाचार तथा सरकारी बाबू की तानाशाही से इन संस्थाओ को सुरक्षा मिल सके ।
  • मेडिकल शिक्षा क्षेत्र को पूरी तरह से धीरे धीरे निजी संस्थानों के माध्यम से प्रस्थापित करना यह सरकार का मुख्य उद्देश्य हे इसलिए मेडिकल कॉलेज का पूरा सेट उप स्थापित करने के लिए जितना खर्च कम हो सके यह पॉलिसी बनाए।
  • भारत में मेडिकल शिक्षा के लिए ज्यादा खर्च यह हमारी समस्या हे इसको सुलझाने के लिए निजी संस्थानों की फीस पर नियंत्रण रखने के लिए पॉलिसीस बनाई गयी।
  • २०२३ से नेशनल एग्जाम टेस्ट के माध्यम से भारत से विदेश पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों को यह परीक्षा देनी होगी, इससे पहले FMGE परीक्षा के माध्यम से प्रैक्टिस के लिए पात्रता निर्धारित की जाती थी जो इसमें काफी खामिया देखने को मिली है। जिससे भारत की मेडिकल शिक्षा का स्थर अच्छी तरह रखा जा सके।
  • डॉक्टरों की कम संख्या को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा मेडिकल कॉलेज स्थापित किए गए जिसके माध्यम से पिछले कुछ सालो से हमने WHO के १००० मरीजों पर १ डॉक्टर के मानक को पूरा करने में सफलता हासिल की है।

NEET परीक्षा के विवाद / Controversies over NEET Exam –

” National Eligibility Entrance Test” नीट एग्जाम भारत में २०१६ से पुरे भारत में नोटिफिकेशन द्वारा २०१० में पुरे भारत में लागु किया गया था। इसका अमल २०१३ में ही मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा लाया गया था मगर सुप्रीम कोर्ट में इसके विरोध में पुरे भारत से ११५ याचिकाए दाखिल की गयी थी। जिसके कारन उस समय का नीट की परीक्षा को भारत सरकार को रद्द करना पड़ा था। २०१६ में MCI द्वारा पुनः यह परीक्षा में कुछ सुधार करके पुरे भारत में सफलता पूर्वक लागु कर दिया था जिसका पूर्ण अभ्यासक्रम CBSC द्वारा बनाया गया था।

नीट परीक्षा का सबसे ज्यादा विरोध करने वाले राज्य यह मुख्य रूप से गैर हिंदी भाषिक राज्य रहे हे तथा दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्य रहे है। नीट परीक्षा की सबसे बड़ी समस्या यह थी की CBSC स्कूल में पढ़ रहे बच्चो के लिए इस परीक्षा का ज्यादा लाभ मिलने लगा और राज्यों के स्कूल में पढ़ रहे बच्चो को ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही हे की इस परीक्षा में पास होने का प्रतिशत काफी कम रहा है। लगबघ २०२० में १६ -१७ लाख विद्यार्धियों ने इस परीक्षा के लिए आवेदन दिया था और मेडिकल कुल सरकारी सीट थी लगबघ ८४००० इससे हम अंदाजा लगा सकते हे की कितना कम्पटीशन विद्यार्थियों को झेलना पड़ता है।

इससे हमें पता चलता हे की निजी मेडिकल कॉलेज में खर्चा औसतन एक करोड़ तक जाता हे वही सरकारी कॉलेज में यह काफी कम होता है। भारत में ज्यादातर बच्चो के माता पिता निजी मेडिकल कॉलेज की फीस देने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते है। इसलिए निजी क्षेत्र में दाखिला हासिल करने वाले लोग आर्थिक रूप से सधन होते है और इससे अच्छे दर्जे के डॉक्टर्स इस क्षेत्र से मिले यह मुमकिन नहीं होता है। इसलिए सरकारी कॉलेज के सीट बढ़ाने चाहिए थे मगर सरकार ने निजी क्षेत्र को प्रोस्ताहित करके शिक्षा निति को और ज्यादा विवादित बना दिया है ऐसा वास्तविक परिस्थिति से दिखता है।

राष्ट्रिय चिकिस्ता आयोग / National Medical Commission –

अगस्त २०१९ को राष्ट्रिय चिकिस्ता आयोग की स्थापना करने के लिए संसद में पहली बार यह बिल लाया गया था जिसके माध्यम से भ्रष्टाचार को ख़त्म करना यह मूल कारन था। अछि अच्छी शिक्षा का स्थर सुधारने के लिए अच्छी सरकार संस्था होना जरुरी था जो इससे पहले काफी निष्प्रभ हो चुकी थी, शिक्षा प्रणाली की जिम्मेदारी निर्धारित और स्पष्ट करने के लिए इस आयोग को ज्यादा अधिकार दिए गए वही अपने कार्य में पारदर्शकता रखने के प्रावधान बनाए गए ।

राष्ट्रिय चिकिस्ता आयोग के लिए मुख्य उद्देश्य रखा गया की भारत में स्वास्थ्य सेवा को बेहतर करने के लिए डॉक्टर बनने के लिए ज्यादा सीट बढ़ाए जाए। निजी क्षेत्र के संस्थानों को अस्पताल और कॉलेज को स्थापित करने के लिए लगबघ ४०० करोड़ खर्च आता हे जिसको प्रॉफिट के साथ यह संस्थान चला ना काफी मुश्किल काम था इसलिए इस संस्था को यह खर्च कैसे कम हो सकता हे तथा निजी क्षेत्र को आकर्षित करने के लिए पॉलिसी निर्धारित करने का अधिकार दिया गया।

राष्ट्रिय चिकिस्ता आयोग को सहयोग करने के लिए अन्य चार रेगुलेटरी संस्थाए बनाई गयी जिसमे अंडर ग्रेजुएट एजुकेशन बोर्ड , पोस्ट ग्रेजुएट एजुकेशन बोर्ड, मेडिकल असेसेमेंट एंड रेटिंग बोर्ड ,एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड इसके माध्यम से पूरी शिक्षा व्यवस्था मेडिकल शिक्षा को नियंत्रित करेगी जो स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन रहती है। इससे पहले मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया के माध्यम से पूरी मेडिकल शिक्षा व्यवस्था चलायी जाती थी जो पूरी तरह से उद्देश्य को हासिल करने में असफल रही थी।

निष्कर्ष / Conclusion –

आधुनिक शिक्षा प्रणाली में पश्चिमी यूरोप तथा अमरीका के शिक्षा संस्थान दुनिया के बाकि देशो की शिक्षा प्रणाली से काफी आगे हे इसका सबसे महत्वपूर्ण कारन हे पैसा और टेक्नोलॉजी जिसपर इन देशो का पूरी तरह से प्रभुत्व है। मेडिकल क्षेत्र में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बाकि प्रोफेशन से सबसे ज्यादा देखने को मिलता हे क्यूंकि काफी सारी बीमारियों के लिए चिकिस्ता प्रणाली काफी जटिल होती हे, जिसको सरल बनाने के लिए ऑटोमेशन का इस्तेमाल हमें मेडिकल क्षेत्र में देखने को मिलता है।

२०१९ के बाद न केवल मेडिकल शिक्षा प्रणाली बदल गयी हे बल्कि सभी क्षेत्रो की शिक्षा प्रणाली में बदलाव हम देख रहे है। इ लर्निंग के माध्यम से कई संस्थाए भविष्य में शिक्षा व्यवस्था को विकसित करने की कोशिश कर रहे हे। जिससे निजी क्षेत्र के मेडिकल संस्थानों के खर्च में काफी कटौती आएगी और मेडिकल डिग्री का खर्च कम करने में आसानी हो सकती है। भारत में मेडिकल संस्थानों के लिए अच्छे प्रोफेसर मिलना काफी मुश्किल हो रहा है, जिसको टेक्नोलॉजी के माध्यम से सुधारा जा सकता है।

सामान्य विद्यार्थियों के लिए मेडिकल की शिक्षा हासिल करना आज की स्थिति में काफी महंगा हे, इसे सुधारना होगा तथा भारत के डॉक्टरों का स्थर सुधारना होगा। झोला छाप डॉक्टरों के लिए कड़े कानून बनाकर प्रतिबंधित करना होगा तथा डॉक्टरों की सही जरुरत मुख्य शहरों से ज्यादा भारत के पिछड़े इलाको में ज्यादा हे जिसे कड़े नियम बनाकर तथा आर्थिक नियोजन करके सुधारना होगा। संशोधन और टेक्नोलॉजी के मामलो में न केवल मेडिकल शिक्षा में बल्कि इंजीनियरिंग क्षेत्र में सुधार करने होंगे।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *