Brief summery of Indian Constitution in Hindi

Table of Contents

प्रस्तावना / Introduction –

ब्रिटिश पार्लियामेंट में इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट १९४७ के तहत भारत को अलग पार्लियामेंट बनाकर स्वायत्तता दी गयी जिसमे संविधान सभा यह भारत की पहली संसद थी। जिसके माध्यम से कांग्रेस भारत की पहली सरकार बनी जो बिना लोकसभा चुनाव के नागरिको का प्रतिनिधित्व पंडित नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने किया। २६ नवंबर १९४९ को संविधान सभा के अध्यक्ष को सुपुर्द किया गया तथा २६ जनवरी १९५० को अमल में लाया गया। इस आर्टिकल के माध्यम से हम भारतीय संविधान की विशेषताए जानने की कोशिश करेंगे जिसमे प्रमुख मुद्दों से पूर्ण संविधान को समझने की कोशिश करेंगे।

१) भारतीय संविधान की प्रस्तावना / Preamble of Indian Constitution –

समानता -स्वतंत्रता -बंधुता और न्याय यह हमारे संविधान का प्रमुख उद्देश्य माना गया हे और भारत के न्याय व्यवस्था ने इसकी व्याख्या करते हुए संसद में कोई कानून संविधान के उद्देश्य के विपरीत नहीं बना सकते यह व्याख्या बनाई। “हम भारत के लोग ” यह वाक्य दर्शाता है की भारत के नागरिक भारत पर शासन कौन करेगा यह निर्धारित करेगा तथा भारत का संविधान यह निर्धारित करेगा की भारत की व्यवस्था चलाने के लिए क्या उद्देश्य रखा जाएगा। इसलिए भारत की प्रस्तावना यह संविधान के प्रस्तावना के विपरीत बनाए हुए कानून अवैद्य घोषित किए जाएगे ऐसी व्याख्या बनाई जाती है।

भारत की प्रस्तावना यह संविधान का उद्देश्य होता हे और इसे भारतीय नागरिक और यूनियन ऑफ़ इंडिया के बिच एक सामाजिक करार कहा जाता है । वैसे देखा जाए तो यह सामाजिक करार व्यवस्था को कोई जिम्मेदारी की न पूरा करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है। परन्तु सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्ट रूप से यह कह दिया हे की संसद ऐसे कोई कानून नहीं बनाएगी जो संविधान के प्रस्तावना के विसंगत है। सुप्रीम कोर्ट को भारतीय संविधान ने यह अधिकार दिया हे की अगर ऐसे कानून संसद बनाता हे जो प्रस्तावना से विसंगत हे तो इसे शून्य घोषित करने का अधिकार दिया है।

२)भारतीय लोकतंत्र में संविधान सर्वोच्च है /Supremacy of Constitution –

इसका मतलब हे की संविधान भारतीय लोकतंत्र में सबसे सर्वोच्च माना जाएगा इसके लिए गोलखनाथ केस और केशवानंद भारती केस के माध्यम से संविधान की वरिष्ठता स्पष्ट हुई है। भले ही संसद को आर्टिकल ३६८ के हिसाब संविधान में बदलाव करने का अधिकार दिया हे परन्तु आर्टिकल १३ के हिसाब से इसपर नियंत्रण रखने का काम भी किया है। सुप्रीम कोर्ट को संविधान के सुरक्षा की जिम्मेदारी सोपी गयी हे और संसद -न्यायपालिका और कार्यपालिका को एक दूसरे को नियंत्रित करने का अधिकार दिया गया है। सत्ता का केन्द्रीकरण न हो इसके लिए संविधान को सर्वोच्च माना गया।

एक व्यक्ति के विशेष अधिकारों के लिए समाज के समूह पर कोई अन्याय नहीं किया जा सकता यह सिद्धांत संविधान द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए संविधान के मूल तत्व को बदलने का अधिकार व्यवस्था के किसी भी घटक को नहीं दिया गया है। संसद को कानून बनाने के लिए जैसे मर्यादा है वही न्यायव्यवस्था पर संविधान ने प्रतिनिधिक न्यायिक प्रक्रिया का बंधन रखा हे तथा गैर संविधानिक तरीके से वह किसी दूसरे घटक पर नियंत्रण हासिल नहीं कर सकता। यही नियम कार्यपालिका पर रखा गया हे जिसमे सरकार के अधिकारी होते हे जो संसद द्वारा बनाई हुई पॉलिसी को अमल में लाते है।

३) सार्वभौम -लोकतान्त्रिक और गणतंत्र / Sovereign – Democratic & Republic –

सार्वभौम का मतलब हे की भारत की एक सिमा होगी जिसपर भारत के संविधान का कानून चलेगा और यह व्यवस्था जनता के द्वारा प्रतिनिधिक स्वरुप में चलाई जाएगी। भारत के सभी लोग संसद को नहीं चला सकते इसलिए प्रतिनिधिक स्वरुप में चुनाव के माध्यम से लोग अपने प्रतिनिधि संसद और विधानसभा में भेजेंगे और वह लोग सरकार के माध्यम से लोगो के हित के लिए कानून बनाएगे। इसलिए इसे गणतंत्र कहा गया जो भारत का पुराण इतिहास रहा है जिसमे गणव्यवस्था के माध्यम से हजारो साल पहले व्यवस्था चलाई जाती रही है।

ब्रिटिश भारत में आने से पहले राजतांत्रिक व्यवस्था भारत में चलाई जाती थी जिसमे राजा का बेटा राजा बनता था और वह जो बोलता था वही इस राज्य का कानून बनाया जाता था। भारत के इतिहास में राजतन्त्र से पहले गणतांत्रिक व्यवस्था को चलाया जाता था वही प्रणाली आज हम इस्तेमाल करते है। जिसमे राजा नागरिको के मत से बनता है और वह हर पांच साल बाद जनता के सामने चुनाव से नियुक्त किया जाता है, इसका मतलब हे लोकतंत्र में देश के नागरिक यह देश का राजा होते है। गणतंत्र का मतलब होता हे जनता का राज जिसमे जनता जब चाहे किसी भी व्यवस्था को उखाड़कर फेक सकती हे अगर वह व्यवस्था नागरिको के विरोध में कानून बनाने लगे।

४) संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र / Secular Character of Indian Constitution –

भाजप सरकार द्वारा तर्क दिया जाता हे की “धर्मनिरपेक्ष” यह सेक्युलर शब्द का अंग्रेजी पर्याय नहीं हे इसलिए भारत में सभी धर्म हिन्दू धर्म की शाखा है जो एक कानूनी रूप से विवाद का विषय बना हुवा है। परन्तु संविधान के चार सूत्र देखे तो धर्मनिरपेक्ष का सही अर्थ समझमे आता हे जो यह कहता हे की “समता -स्वतंत्रता -बंधुता और न्याय ” यह भारत के सभी नागरिको को उनके धर्म ,जाती और पंत से पहले होंगे। इसका मतलब हे की किसी भी कारन भारतीय नागरिको में इन विशेषताओं के कारन कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। अगर इसे सुप्रीम कोर्ट की भाषा में कहे तो इस चतुरसूत्री के विपरीत बनाए गए कानून शून्य घोषित किए जाएगे।

“equality before law” और “equal protection of law” यह मुलभुत अधिकारों से यह दर्शाता हे की धर्म और जाती से परे नागरिको का इंसानियत के तौर पर समान देखा जाता है। भारतीय संविधान के नुसार कोई भी सरकारी अधिकारी अथवा प्रतिनिधि किसी नागरिको को भेदभाव नहीं करेगा यह संविधान का उलंघन होगा। इसलिए चुनाव से लेकर सरकारी नोकरियो तक किसी भी गतिविधि में कोई भेदभाव नहीं कर सकता है। अल्पसंख्य समाज को व्यवस्था में प्रतिनिधित्व मिलने के लिए विशेष प्रावधान किए गए है जिससे लोकतंत्र का उद्देश्य सफल हो सके।

५) भारतीय संविधान और सत्ता का विकेन्द्रीकरण/ Indian Constitution & Separation of Power –

“सत्ता भ्रष्ट होती हे और अनियंत्रित सत्ता अनियंत्रित भ्रष्ट होती है ” यह सिद्धांत पश्चिमी विचारक द्वारा लोकतंत्र के स्थापना के लिए इस्तेमाल किया गया। इसका मतलब होता हे की भारत के लोकतंत्र में किसी एक व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह को ज्यादा शक्ति प्रदान नहीं होगी इसके लिए लोकतान्त्रिक व्यवस्था के प्रमुख तीन हिस्से किए गए जिसमे न्यायपालिका -कार्यपालिका और संसद को अलग अलग शक्तिया प्रदान की गयी और वह स्वतंत्र रूप से एक दूसरे के कार्य में बगैर हस्तक्षेप किए हुए कार्य करेगी ऐसा कहा गया। इसलिए हम देखते हे की सभी व्यवस्था को स्वतंत्र शक्ति प्रदान की गयी है।

संसद को न्यायपालिका के किसी भी न्यायाधीश पर संसद में महाभियोग के माध्यम से निष्कासित करने का अधिकार हे अगर वह न्यायाधीश संविधान के विरोध में जाकर निर्णय देता है। इसी तरह न्यायपालिका को यह अधिकार हे की संसद में बनाए गए कानून को न्यायिक समीक्षा (Judicial Review )के तहत बदलने के आदेश देने का अथवा वह कानून शून्य घोषित करने का जो संविधान के विपरीत है। न्यायिक व्यवस्था यह संविधान के प्रति जवाबदेही होती हे वही संसद में चुने हुए प्रतिनिधि यह भी व्यक्तिगत तौर पर संविधान के लिए जवाबदेही होते है। इसतरह से संविधान सभी अंगो पर एक दूसरे के माध्यम से नियंत्रण रखता है।

६) भारतीय संविधान की संघीय रचना / Federal Structure of Indian Constitution –

अमरीका में सभी ५० राज्यों को स्वायत्तता की गयी हे जिसके तहत वह खुद के कानून बना सकते है सरकार चला सकते हे, इसलिए भारतीय संविधान में हमने ब्रिटिश संविधान की संसदीय वर्चस्व की रचना को न लेते हुए अमेरिका के फ़ेडरल चरित्र को अपने संविधान में शामिल किया है। भारत में चारो दिशाओ में हमें अलग अलग कल्चर देखने को मिलता है तथा दक्षिण और उत्तर की संस्कृती एक दूसरे से काफी अलग हे। भाषा भी अलग हे इसलिए सभी राज्यों के स्वतंत्र अधिकार देते हुए भारतीय संविधान में अलग अधिकार दिए गए।

संविधान के ७ वे अनुसूची में आर्टिकल २४६ केंद्र के अधिकार , राज्यों के अधिकार और मिश्रित अधिकार जिसपर केंद्र का वर्चस्व रहेगा ऐसी लिस्ट बनाई गयी है। अमेरिका के संविधान का विकेन्द्रीकरण का सिद्धांत भारत के संविधान में शामिल किया गया हे जिससे हमारा संविधान यह केंद्रित और विकेन्द्रित सत्ता का सहयोग बनाया गया है। किसी भी अंग को ज्यादा शक्ति प्रदान नहीं की गयी है जिससे लोकतंत्र को संतुलित रखा जाए। राज्यों के बनाए हुए कानून को भी संविधान के उद्देश्य को सामने रखकर कानून बनाने होते हे और केंद्र को भी वही नियम का पालन करना होता है।

७) भारतीय संविधान और द्विदलीय संसदीय प्रणाली / Indian Constitution & Duel Party System –

भारतीय संसद यह लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था होगी तथा एक प्रस्थापित पार्टी होगी जो भारत सरकार के तौर पर जनता द्वारा चुनकर आएगी और दूसरा विपक्ष होगा जो संसद में सत्ता पार्टी के बनाए हुए कानून की समीक्षा करेगा।यही रचना संसद से लेकर गांव के पंचायत तक रखी गयी है जिससे सत्ता पर नियंत्रण रखा जाए। संसद में जिस पार्टी की संख्या बहुमत में होगी वह सत्ता स्थापित करेगा और जो पार्टी अपनी संख्या साबित नहीं करेगा वह विपक्ष के तौर पर जाना जाएगा। इसलिए लोकतान्त्रिक प्रणाली में विपक्ष को काफी महत्त्व दिया गया हे जिससे संविधानिक मूल्यों की सुरक्षा की जाए।

जैसे की हमने देखा की भारत के संविधान में सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया हे इसी सिद्धांत को जिन्दा रखते हुए द्विदलीय संसदीय प्रणाली में दो से ज्यादा राजनितिक पार्टियों को चुनाव में जनता के सामने वोट के लिए जाना पड़ता है। जनता इसमें से वही प्रतिनिधि चुनती हे जो नागरिको के प्रतिनिधि के तौर पर सही हे और अगर वह इस पांच साल के समय में जनता के आश्वासन नहीं पुरे करता तो जनता उसे वोट नहीं देती। इसी कारन इन प्रतिनिधियों का समूह राजनितिक पार्टी पर जनता के सामने जाता है और जिस पार्टी के ज्यादा सदस्य चुने जाते हे वह सरकार बनाते हे और जो दूसरे नंबर की पार्टी होती हे वह विपक्ष में बैठती है।

८) राष्ट्रपती यूनियन ऑफ़ इंडिया के प्रमुख के तौर पर कार्य करेगा / Head of Union of India – The President of India –

भारतीय संविधान के अनुसार दो प्रकार की सिस्टम व्यवस्था चलाई जाएगी जिसमे एक भारत सरकार होगी और दूसरी यूनियन ऑफ़ इंडिया होगी जिसका प्रमुख राष्ट्रपती होंगे। भारत देश के तौर पर जो भी एग्रीमेंट अथवा करार किए जाएगी वह राष्ट्रपती के प्रतिनिधिक रूप में होंगे तथा वह यूनियन ऑफ़ इंडिया के तौर कार्य करेगा जिसमे हर राज्य में वह अपने प्रतिनिधि को नियुक्त करेगा जिसे राज्यपाल कहते हे जो राष्ट्रपती के निर्देश में उस राज्य में कार्य करेगा। राष्ट्रपति यूनियन ऑफ़ इंडिया और भारत सरकार का प्रमुख के तौर पर कार्य करता हे परन्तु वह केवल अधिकृत प्रतिनिधि के स्वरुप में होता है।

राष्ट्रपती की नियुक्ति यह संसद और हर राज्य के विधानसभा और विधानपरिषद के प्रतिनिधियों के मत से होती है। राष्ट्रपति द्वारा सभी प्रशासकीय नियुक्तियां होती हे जिसमे सलाहकार के तौर पर अधिकारियो द्वारा राष्ट्रपती को इन नियुक्तियों के लिए कार्य किया जाता है। राष्ट्रपति यह संसद का प्रमुख होता हे जिसके अंतर्गत संसद की सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियां राष्ट्रपति के माध्यम से होती हे तथा कार्यपालिका और न्यायपालिका की नियुक्तियां राष्ट्रपति के माध्यम से होती है। संसद में महाभियोग के माध्यम से संसद को राष्ट्रपति को निष्कासित करने का अधिकार होता है।

९) भारतीय संविधान और कानून का राज्य / Article 13 Indian Constitution & Rule of Law –

भारतीय संविधान के आर्टिकल १३ के तहत जो भी कानून , परम्पराए और रूढिया रही हे जो संविधान के विचारो विसंगत है इसे शून्य घोषित किया गया। इसमें स्वतंत्रता से पहले के कानून और संस्कृती तथा स्वतंत्रता के बाद अमल में लाए गए कानून तथा कुरीतिया इसको प्रतिबंधित किया गया और संसद अथवा कोई राज्य की विधायिका ऐसे कानून बनाती है तो न्यायिक व्यवस्था उसे शून्य घोषित करेगी। किसी भी धर्म अथवा परंपरा के माध्यम से कोई समान्तर न्यायिक व्यवस्था चलाता है तो उसे प्रतिबंधित करने का अधिकार कानून व्यवस्था को होता है।

इसमें न्यायिक प्रक्रिया के लिए दुनिया के विकसित देश “due process of law” इस सिद्धांत का इस्तेमाल करती है जो तर्क पर और न्यायिक सिधान्तो आधारित होता है। भारत की संविधान में संशोधन करके “procedure established by law” यह आर्टिकल १३ में लाया गया जिससे संसद की आर्टिकल ३६८ के तहत संविधान संशोधन की शक्ति बरक़रार रहे। भारत की सिमा यह कानून व्यवस्था अमल में लाने के लिए मर्यादा होती हे वही समंदर और आकाश में यह कानून व्यवस्था तय करने के लिए अंतर राष्ट्रीय कानून के माध्यम से तय होती है। समंदर में अथवा हवाई सफर के दौरान अगर कोई अपराध होता हे तो वह न्यायिक क्षेत्र तय किए जाते है।

१०) भारतीय संविधान और आर्टिकल ३२ और आर्टिकल २२६ / Article 32 & 226 of Indian Constitution –

महत्वपूर्ण याचिकाए (Writ)

  • Habeas Corpus (To have the body of ) – कैद (डिटेंशन) में न रखने का अधिकार जो सरकार के विरुद्ध व्यक्ति को होता है।
  • Mandamus (We Command) – सरकारी अधिकारी अगर अपने कर्तव्य में लापरवाही करता है अथवा करने से इंकार करता है।
  • Prohibition ( to Forbid) – सुप्रीम कोर्ट अगर यह देखे की निचली अदालत अपने क्षेत्राधिकार से बहार जाकर काम कर रही है।
  • Certiorari ( to be Certified / to be informed) – क्षेत्राधिकार उलंघन , अथवा निर्णय प्रक्रिया में गलती के समय ऊपरी अदालत निचली कोर्ट के आदेश रद्द कर सकती हे अथवा दूसरे कोर्ट में ट्रांसफर कर सकती है।
  • Quo-Waranto ( by what authority/warrent) – सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट यह आदेश निचली कोर्ट को दे सकते अगर कानून का दुरूपयोग किया गया हो।
  • आर्टिकल ३२ और आर्टिकल २२६ के तहत देश की सर्वोच्च अदालत और २५ उच्च न्यायलय द्वारा संविधान में दिए गए नागरिको के मुलभुत अधिकारों का संरक्षण करने का काम करती है। आर्टिकल ३२ के तहत याचिका दाखिल करके देश का कोई भी नागरिक सुप्रीम कोर्ट में अपने अधिकारों के सुरक्षा के लिए लड़ सकता है। आर्टिकल २२६ के तहत उच्च न्यायलय में याचिका दायर करके देश का कोई भी नागरिक अपने अधिकारों का संरक्षण करने के लिए न्याय मांग सकता है।

सर्वोच्च न्यायलय तथा उच्च न्यायलय संज्ञान लेकर किसी भी मामले में जहा मुलभुत अधिकारों का उलंघन हुवा हे ऐसे मामलों और कानून को शून्य घोषित कर सकता है। सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दायर करके अथवा सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायलय संज्ञान लेकर ऐसे मामलों को खुद अपने हाथो में ले सकता हे। संविधान द्वारा यह शक्ति सर्वोच्च न्यायलय और उच्च न्यायलय को प्रदान की गयी है।

११) भारतीय संविधान और आर्टिकल १५ /Article 15 of Indian Constitution –

भारत की स्वतंत्रता से पहले कई सारे सामाजिक नियम रहे हे जिसके माध्यम से कुछ विशेष वर्ग के लोगो को समाज से अलग रखा गया तथा शिक्षा और व्यवसाय से वंचित रखा गया। इसलिए आर्टिकल १५ के माध्यम से ऐसे सामाजिक और शैक्षिणिक पिछड़े वर्ग के लिए अलग प्रावधान बनाए जाए ऐसा अधिकार संविधान द्वारा संसद को दिया गया। बच्चे और महिलाओ के लिए समानता प्रस्थापित करने के लिए विशेष प्रावधान किए जाए यह कहा गया। किसी भी नागरिको को किसी भी राज्यों में व्यापार करने का और रहने का अधिकार दिया गया।

अस्पृश्यता को इस आर्टिकल के माध्यम से पिछले हजारो सालो से चल रही परंपरा को ख़त्म किया गया। अनुसूचित जातीय , अनुसूचित जमाती , अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्प सांख्य समाज और महिलाए यह विशेष वर्ग संविधान के द्वारा मान्यता प्रदान करता हे जिसको प्रवाह में लाने के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है। यहाँ समानता का तर्क नहीं चल सकता क्यूंकि सभी को समान संधि नहीं मिल रही है। इसलिए आरक्षण यह भारतीय संविधान का विषय है जिसपर भारत की राजनीती पिछले ७० सालो से चल रही है। इसमें सभी के अलग अलग मत हे परन्तु इसके बारे में संविधान एकदम स्पष्ट रूप से इसके लिए आरक्षण का प्रावधान करने को कहता है।

१२) भारतीय संविधान और आर्टिकल २१ / Article 21 of Indian Constitution –

व्यक्तिगत सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता यह आर्टिकल २१ के माध्यम से दिया गया महत्वपूर्ण अधिकार है जिसमे कानूनी प्रक्रिया में इन चीजों का ध्यान रखना जरुरी है। भारत की न्यायिक व्यवस्था में कई बार चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया द्वारा न्यायिक व्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार द्वारा पहल होनी चाहिए यह कहा गया। जिसमे प्रमुख रूप से कम स्टाफ होने की वजह से लाखो केस न्यायिक प्रक्रिया में फसे रहते हे और अंडर ट्रायल आरोपियों की समस्या यह और एक मुद्दा हे जो हमारी न्यायिक प्रक्रिया को दोषी बनाता है। जिसमे लंबे ट्रायल जब निर्दोष छूटता है तो उसकी ख़राब हुई जिंदगी का कौन जिम्मेदार होगा यह प्रश्न खड़ा होता है।

इसलिए न्यायिक प्रक्रिया में अपने अधिकारों का इस्तेमाल जबतक आरोप सिद्ध नहीं होते तबतक वह इस्तेमाल कर सकता है ऐसे कई सारे मामलो में देखा गया है। न्यायपालिका किसी आरोपी को दोषी मानने से पहले मीडिया ऐसे आरोपियों को दोषी मानती हे और नागरिको में उस व्यक्ति की प्रतिमा ख़राब करती है। जिसके लिए ऐसे मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोई संज्ञान लिया गया हे ऐसे कोई उदहारण देखने को नहीं मिलती जिससे मीडिया पर अंकुश रखा जाए। कोर्ट की अवमानना यह नियम इसी कारन होता हे जिससे किसी केस पर समाज का दबाव डालके कोई निर्णय पर प्रभाव न रहे।

१३) भारतीर्य संविंधान और मुलभुत अधिकार / Fundamental Rights of Indian Constitution –

  • समानता का अधिकार आर्टिकल १४-१८
  • स्वतंत्रता का अधिकार आर्टिकल १९-२२
  • शोषण के खिलाफ अधिकार आर्टिकल २३ – २४
  • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार २५ – २८
  • कल्चर और शिक्षा का अधिकार आर्टिकल २९ -३०
  • संविधानिक अधिकार हासिल करने का अधिकार आर्टिकल ३२ & २२६

आर्टिकल १३ के माध्यम से मुलभुत अधिकारों को संरक्षण दिया गया है और भारत की कोई भी सरकार इन मुलभुत अधिकारों के विरोध में जाकर कानून नहीं बना सकती। १९७८ ँ ४४ वा संविधानिक संशोधन करके प्रॉपर्टी अधिकार को इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा ख़त्म किया गया क्यूंकि जमीनदारी व्यवस्था को ख़त्म किए बगैर प्रॉपर्टी का समाज में सही बटवारा नहीं हो सकता था इसलिए गोलखनाथ केस रहे अथवा केशवानंद भारती केस हो इसमें कहा गया की व्यक्तिगत हित की वजह से समाज का हित को नुकसान पहुँचता हे तो समाजहित प्राथमिकता में रहेगा।

इसलिए संविधान में मुलभुत अधिकार पर संसद को ख़त्म करने का अधिकार दिया गया परन्तु संविधान के मूल ढांचे को संसद हात नहीं लगा सकती जिसे प्रस्तावना (Preamble) कहा गया। मुलभुत अधिकारों में बोलने की आजादी इस अधिकार की वजह से मीडिया संविधान का चौथा महत्वपूर्ण स्तम्भ बना जो व्यवस्था के तीनो अंग पर अंकुश रख सके। इसलिए मुलभुत अधिकार के साथ साथ संविधान में नागरिको के लिए कर्तव्य क्या होंगे यह भी निर्धारित किया गया, जिसे Fundamental Duties कहा गया ।

१४)संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली / Parliamentary form of Government –

भारत के लोकतंत्र पर ब्रिटिश पार्लियामेंट सिस्टम का प्रभाव दिखता है मगर ब्रिटिश पार्लियामेंट को असीमित अधिकार दिए गए हे, बल्कि वह संविधान खुद हे लिखित कोई संविधान ब्रिटेन में नहीं है। अमेरिका में अध्यक्षीय लोकतान्त्रिक प्रणाली हे जिसमे एक बार राष्ट्रपति को चुना गया तो अपनी टर्म होने तक वह शक्तिशाली होता है। वही भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में संसद यह सर्वोच्च कानून बनाने वाली संस्था होती हे जिसके प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जाते है। यह प्रतिनिधि पांच साल तक सरकार चलाते है तथा संसद में दो हाउस होते हे जिसमे वरिष्ठ सभागृह और कनिष्ट सभागृह यह होते है।

वरिष्ठ सभागृह में प्रतिनिधि यह विशेष क्षेत्र के एक्सपर्ट होते हे जिसका फायदा पॉलिसी बनाने के लिए होता हे और इनको चुने हुए लोकसभा और विधानसभा के प्रतिनिधि चुनते है। कनिष्ठ सभागृह यह जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों का सभागृह होता है, जहा जो राजनितिक पार्टी बहुमत सिद्ध करती है वह सरकार बनाती है। संसद में उस राजनितिक पार्टी का नेता प्रधानमंत्री पद के लिए चुना जाता हे जो कैबिनेट का नेतृत्व करता है। संसद में संविधानिक बने हुए कानून को कोई भी नागरिक नकार नहीं सकता वह “Law of the Land” होते है।

१५) राज्य की निति के निदेशक सिद्धांत / Directive Principle of State Policies –

  • आर्टिकल ३६ – राज्य का मतलब केंद्र सरकार और सभी राज्यों की सरकार जिसकी व्याख्या पार्ट ३ में दी गयी है।
  • आर्टिकल ३७ – मुलभुत अधिकारों की तरह यह सिद्धांत बंधनकारक नहीं है (not Enforceable by law in the Court) परन्तु सरकार की कर्तव्य हे की इसका पालन किया जाए।
  • आर्टिकल ३८ – सरकार को लोगो में आर्थिक समानता प्रस्थापित होने के लिए कार्य करना है तथा व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह विशेष के बजाय सभी लोगो के आर्थिक हित पर निति बनानी है।
  • आर्टिकल ३९ -नैसर्गिक साधन सम्पत्तिका विभाजन समाज में सही तरीके से होना चाहिए यह सरकार को देखना है।
  • आर्टिकल ३९ अ – कानून व्यवस्था को न्याय देने के लिए प्रोस्ताहित करना हे तथा किसी नागरिक को आर्थिक कारणों से न्याय में भेदभाव नहीं होना चाहिए।
  • आर्टिकल ४० – गांव पंचायत को अधिकार देकर सक्षम करना।
  • आर्टिकल ४१ – शिक्षा और नौकरी के लिए विशेष प्रावधान करने हे तथा विकलांगता , बुढ़ापा , दुर्धर बीमारी इसको सुरक्षा प्रदान करनी है।
  • आर्टिकल ४२ – सरकार ऐसी पॉलिसी निर्धारित करेगा जिससे मजदूरों को काम करने के लिए अच्छा वातावरण मिले तथा महिलाओ को प्रसूति के समय सही लाभ मिले।
  • आर्टिकल ४३ -कर्मचारियों को अच्छा जीवन जीने के लिए सही वेतन निति निर्धारित करे।
  • आर्टिकल ४४ – यूनिफार्म सिविल कोड कानून बनाया जाए।
  • आर्टिकल ४५ – बच्चो को उम्र के १४ साल तक फ्री शिक्षा मुहैया होनी चाहिए।
  • आर्टिकल ४६ – समाज के कमजोर घटको को विशेष निति बनाकर समानता का अवसर देना चाहिए जो महिलाए, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े है।
  • आर्टिकल ४७ – देश के सभी नागरिको को सही आहार मिल सके इसके लिए निति बनाई जाए।
  • आर्टिकल ४८ – कृषि क्षेत्र के अर्थिकीकरण को सुधारा जाए तथा कुदरत का विशेष संवर्धन किया जाए।
  • आर्टिकल ४९ – ऐतिहासिक वस्तुओ का संवर्धन करना चाहिए।
  • आर्टिकल ५० – राज्य को न्यायव्यवस्था और कार्यपालिका को अलग रखने की निति बनानी चाहिए।
  • आर्टिकल ५१ – अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की पहल करनी चाहिए।

संविधान के पार्ट ४ में राज्य को कैसे कार्य करना हे इसके लिए कर्तव्य निर्धारित किए गए है, जिसमे राज्य का मतलब होता हे केंद्र सरकार तथा सभी राज्यों की सरकार जिसको कैसे कार्य करना हे यह निर्धारित किया गया है। संविधान के आर्टिकल ३६ से लेकर आर्टिकल ५१ तक हमें राज्यों को मार्गदर्शक तत्व क्या होंगे यह बताया है जो मुलभुत अधिकारों की तरह बंधनकारक नहीं है मगर संविधान में shall का मतलब होता हे करना ही है जिसका दूसरा अर्थ होता हे अगर कोई सरकार इसके विपरीत आचरण करती है तो वह संविधान द्रोह माना जाएगा।

 

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