प्रस्तावना / Introduction –

भागीदारी संस्था याने पार्टनरशिप फर्म यह एक बिज़नेस करने के लिए पर्याय कानूनी तौर पर हमें भारत में उपलब्ध होता है। वैसे तो भारत में व्यक्तिगत स्तर पर बिज़नेस करना ज्यादातर लोग पसंद करते हे इसलिए हमें प्रोप्राइटर शिप इस प्रकार में बिज़नेस देखने को मिलते हे। सामान्य लोगो के लिए नौकरी यह सबसे सुरक्षित और बेहतरीन पर्याय लगता है जो पहली पीढ़ी अपने अगले पीढ़ी को यही सिखाती है।

समय बदला और मानव समाज के इतिहास में जानकारी का भंडार इससे पहली किसी को देखने को नहीं मिला। इससे पहले कोई भी जानकारी लेनी हो तो हमें पेशेवर लोग के पास पैसा देकर जाना पड़ता था अथवा ढेर सारी किताबे पढ़नी पड़ती थी और काफी समय देना पड़ता था। इसलिए यह जानकारी उपलब्ध होने के बाद लोगो का नजरिया बदल गया और बिज़नेस करने के लिए काफी सारा पैसा लगता हे यह धारणा बदल गयी।

भागीदारी संस्था इसी कारन निर्माण हुई जिसमे एक व्यक्ति के पास अनुभव और दूसरे व्यक्ति के पास पैसा , ऐसे दो व्यक्ति एकत्र आकर पार्टनरशिप फर्म बनाकर बिज़नेस कर सकते है। ऐसा नहीं हे की यह कानून पहले अस्तित्व में नहीं था , मगर आज लोगो को पार्टनरशिप फर्म में बिज़नेस करने के फायदे नजर आने लगे है। इसलिए हम आज जानने की कोशिश करेंगे की पार्टनरशिप फर्म वास्तविकता में क्या हे और यह कैसे काम करती है।

भारतीय भागीदारी अधिनियम १९३२ / Indian Partnership Act 1932 –

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट १८७२ यह मुख्य कानून में पार्टनरशिप फर्म के बारे प्रावधान पार्टनरशिप कानून आने से पहले हमें देखने को मिलते थे, जो १९३२ में अलग कानून की जरुरत देखते हुए पार्टनरशिप एक्ट को बनाया गया । किसी भी संस्था जो पैसा कमाने के उद्देश्य से बनाई जाती हे और जिसमे दो से ज्यादा व्यक्ति एकत्र आकर बिज़नेस करते हे वह पार्टनरशिप फर्म मानी जाती है।

यह कानून ब्रिटिश इंडिया में बनाया गया था जिसे भारत की स्वतंत्रता के बाद भी रखा गया केवल उसमे समय समय पर बदलाव किये गए। छोटे स्तर पर बिज़नेस करने का यह सबसे बेहतरीन पर्याय सरकार द्वारा उपलब्ध किया गया था। पार्टनरशिप फर्म को रजिस्टर्ड करना ज्यादातर राज्यों में अनिवार्य नहीं हे केवल महाराष्ट्रा में कुछ महत्वपूर्ण कारणों के लिए रजिस्ट्रेशन जरुरी होता है।

ब्रिटिश इंडिया में उस समय की परिस्थिति को सामने देखते हुए पार्टनरशिप एक्ट ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में अलग से लाया गया जो पहले इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट का हिस्सा था। पार्टनरशिप एक्ट यह मुख्य रूप से एक कानूनी कॉन्ट्रैक्ट होता हे जहा दो से ज्यादा व्यक्ति एक बिज़नेस के उद्देश्य से एकत्र आकर काम शुरू करते है।

पार्टनरशिप फर्म क्या है ? / What is Partnership Firm –

भारत में बिज़नेस से सम्बंधित कोई भी कानून हो इसके लिए कंपनी कानून सबसे आदर्श कानून माना जाता हे जिसके प्रावधान और किसी स्पेशल कानून के प्रावधान इसमें कुछ विसंगति देखने को मिलती हे तो कंपनी कानून के नियम आदर्श माने जाते है। कंपनी कानून में कंपनी की व्याख्या बताई गई हे और पार्टनरशिप एक्ट में पार्टनरशिप फर्म की व्याख्या बताई गई है।

पार्टनरशिप एक्ट में रजिस्टर्ड कंपनी को पार्टनरशिप फर्म कहा जाता हे, कंपनी कानून के हिसाब से जो कंपनी कंपनी कानून में रजिस्टर्ड होती हे वही कंपनी मानी जाती है जो बड़े स्तर पर बिज़नेस करती है। पार्टनरशिप फर्म में जो विशेषतः कंपनी कानून में होती हे वह इसमें नहीं मिलती और असीमित जिम्मेदारी के साथ पार्टनरशिप फर्म को चलाया जाता है।

पार्टनरशिप फर्म के लिए कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के सभी प्रावधान लागु होते हे जहा वैध कॉन्ट्रैक्ट बनाया जाता है जिसमे यह एग्रीमेंट जीवित व्यक्तियों में होना चाहिए , इस एग्रीमेंट में १८ साल से कम उम्र की व्यक्ति पात्र नहीं होती तथा मानसिक दृष्टी से विकलांग व्यक्ति पात्र नहीं होती है। बिज़नेस करने के लिए छोटे स्तर पर यह बेहतरीन पर्याय माना जाता हे जहा दो से ज्यादा व्यक्ति किसी एक उद्देश्य से बिज़नेस करने के लिए एकत्र आ सकते हे जिसकी ज्यादातर सख्या २० होनी चाहिए।

पार्टनरशिप एक्ट का इतिहास / History of Partnership Act –

जैसे की हमने देखा की इंडियन पार्टनरशिप एक्ट भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा लाया गया था जिसका मुख्य आधार ब्रिटेन का पार्टनरशिप एक्ट १८९० पर आधारित था। जिसमे केवल भारत की उस समय की परिस्थिति देखकर कुछ बदलाव किये गए थे और इसका मुख्य आधार इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट तथा १८६६ के कानून आयोग जिसके प्रमुख लार्ड रोमिली रहे थे इसके सिफारिशों पर आधारित रहा है।

८ अप्रैल १९३२ को इस कानून को मंजूरी मिली थी और १ अक्टूबर १९३२ को यह कानून प्रत्यक्ष रूप से भारत में लागु किया गया था। इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट में पार्टनरशिप फर्म के लिए धारा २३९ -२६६ तक प्रावधान दिए गए थे जो पार्टनरशिप का विकास देखते हुए इसके लिए अलग कानून बनाना चाहिए यह प्रस्ताव भेजा गया और इसी कारन अलग से पार्टनरशिप एक्ट कानून का निर्माण हुवा और कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के प्रावधान रद्द कर दिए गए।

१९३२ में बनाया यह कानून भारत में आज भी लागु हे समय नुसार उसमे कुछ बदलाव किये गए मगर कानून का मुख्य ढांचा वैसे ही रखा गया है। २०२२ तक बिज़नेस करने के तरीके काफी सारे विकसित हुए हे जिसमे सबसे महत्वपूर्ण तरीका हे कंपनी कानून के अंतर्गत बनाए गए बिज़नेस यह आज महत्वपूर्ण माने जाते है तथा अलग से २००८ में लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप यह अलग से कानून बनाया गया।

पार्टनरशिप फर्म की विशेषताए / Features of Partnership Firm –

पार्टनरशिप फर्म यह पर्याय एक व्यक्ति द्वारा चलाए जाने वाले व्यवसाय से बेहतर पर्याय माना जाता है और इसकी कुछ विशेषता हम आगे देखेंगे।

  • पार्टनरशिप फर्म में दो से ज्यादा व्यक्ति और २० तक मर्यादित लोग मिलकर प्रॉफिट के उद्देश्य से कोई भी कानूनी बिज़नेस शुरू कर सकते है।
  • यह पार्टनरशिप फर्म पार्टनरशिप कानून के अंतर्गत रजिस्टर्ड करनी पड़ती हे जो स्वेच्छा पर निर्भर है।
  • यह एक बिज़नेस का महत्वपूर्ण एग्रीमेंट होता हे जिसमे बिज़नेस के लिए नियमावली एग्रीमेंट बनाकर की जाती हे।
  • पार्टनरशिप फर्म किसी एक पार्टनर के मृत्यु पर ख़त्म हो जाती हे और उस मृत पार्टनर के वारिस अगर चाहे तो नया एग्रीमेंट करके पार्टनरशिप शुरू रख सकते है।
  • पार्टनरशिप फर्म में अगर नुकसान हुवा तो उसके लिए पार्टनर्स को असीमित जिम्मेदारी लेनी पड़ती है जिसमे व्यक्तिगत संपत्ति भी शामिल है।
  • पार्टनरशिप फर्म किस उद्देश्य के लिए स्थापित की गई हे उसी उद्देश्य के लिए पार्टनर्स को काम करना होता है।
  • पार्टनरशिप एक्ट के सेक्शन ७ के अनुसार पार्टनरशिप इच्छा के अनुरूप कभी भी समाप्त की जाती है।
  • कुछ पार्टनरशिप फर्म कुछ समय के लिए चलने वाले बिज़नेस प्रोजेक्ट के लिए बनाई जाती है जो वह प्रोजेक्ट ख़त्म होने के बाद समाप्त की जाती हे इसके प्रावधान एग्रीमेंट में लिखे जाते है।
  • जिन लोगो के पास नॉलेज होता हे और कुछ लोगो के पास पैसा होता हे ऐसे लोग मिलकर ऐसे बिज़नेस फर्म शुरू कर सकते है।

पार्टनरशिप फर्म के नुकसान / Disadvantages of Partnership Firm –

  • पार्टनरशिप फर्म में बिज़नेस करने के लिए भारत में ज्यादा लोग विश्वास नहीं रखते इसलिए वह प्रोप्रइटरशिप में बिज़नेस करना पसंद करते है।
  • एक पार्टनर के गलत निर्णयों के परिणाम कभी कभी बाकि पार्टनर्स को भुगतने पड़ते है।
  • पार्टनरशिप फर्म के लिए इनकम टैक्स के प्रावधान प्रोप्रइटरशिप से ज्यादा टैक्स रेट पर भरना पड़ता है।
  • पार्टनरशिप की खामिया देखते हुए लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट २००८ में लाया गया जो इस कानून के लिए बेह्तरीय पर्याय बनाया गया है।
  • दो अलग सोच वाले व्यक्ति एक उद्देश्य के लिए बिज़नेस कॉन्ट्रैक्ट करते हे जिसमे भविष्य में आर्थिक और मानसिक समस्याए निर्माण होना एक साधारण बात बन जाती है।
  • कभी कभी एक पार्टनर ज्यादा बिज़नेस बढ़ाने के लिए मेहनत करता हे तो दूसरा पार्टनर कम यह समस्या साधरतः देखने को मिलती है।
  • इस कानून के अंतर्गत पार्टनरशिप एग्रीमेंट अनिवार्य न होने की वजह से भविष्य में समस्या होने पर न्यायिक प्रक्रिया में न्याय मिलना काफी कठिन हो जाता है।
  • पार्टनरशिप फर्म के लिए किए जाने वाले सभी व्यवहार के लिए सभी पार्टनर्स जिम्मेदार होते हे चाहे किसी एक प्रतिनिधि द्वारा कोई गतिविधि की गई हो।
  • कानून के अनुसार पार्टनरशिप फर्म यह किसी कंपनी की तरह अलग कृत्रिम व्यक्ति नहीं मानी जाती, इसके सभी जिम्मेदारियां सभी पार्टनर्स पर होती है ।

पार्टनरशिप का पंजीकरण / Registration of Partnership –

पार्टनरशिप कानून के तहत पार्टनरशिप फर्म को एग्रीमेंट होता हे मगर इसका रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य नहीं होता हे इसलिए भारत में ज्यादातर पार्टनरशिप फर्म रजिस्टर्ड नहीं किये जाते। इसमें पार्टनरशिप फर्म के एग्रीमेंट का रजिस्ट्रेशन और पार्टनरशिप फर्म के कानून के अंतर्गत किया जाने वाला रेगिस्ट्रशन यह गतिविधिया महत्वपूर्ण हे जो अनिवार्य नहीं होती है।

ब्रिटिश पार्टनरशिप एक्ट में पार्टनरशिप फर्म का रजिस्ट्रेशन आवश्यक माना गया हे मगर हमारे कानून में यह अनिर्वाय नहीं माना जाता है। इस कानून के धारा ६९ के अंतर्गत पार्टनरशिप रजिस्टर्ड न करने से क्या नुकसान हो सकते हे यह प्रावधान दिए गए हे मगर वास्तविकता में देखा जाता हे की ज्यादातर पार्टनरशिप फर्म रजिस्टर्ड नहीं की जाती है।

कॉन्ट्रैक्ट एक्ट और साक्ष अधिनियम की सन्दर्भ में देखे तो पार्टनरशिप एग्रीमेंट यह एक साबुत के तौर पर महत्वपूर्ण माना जाता हे अगर वह रजिस्टर्ड हो , मगर बिना रजिस्टर्ड की इसकी अहमियत कानूनी तौर पर कम हो जाती है। भारत में छोटे स्तर पर किये जाने वाले बिज़नेस कानून व्यवस्था के भरोसे अपना बिज़नेस नहीं करना चाहते जिसका प्रमुख कारन हे भ्रष्टाचार और न्याय होने वाली देरी होता है। विदेशो में इसलिए कानून व्यवस्था विकसित होने के कारन पार्टनरशिप फर्म रजिस्टर्ड करना जरुरी समझा जाता है।

पार्टनरशिप फर्म के लिए मध्यस्तता का प्रावधान / Importance of ADR Provision for Partnership –

भारत की न्यायप्रणाली की कमजोरी को देखते हुए १९९० के बाद भारत में नयी आर्थिक निति के तहत बहुत सारे बदलाव देखने को मिलते हे जिसमे वैकल्पिक विवाद समाधान १९९६ जिसे अंग्रेजी में Arbitration, Conciliation & madiation यह कानून भारत में लाया गया जिसका मुख्य उद्देश्य भारत की न्याय व्यवस्था पर पड़ने वाला भार कम करना।

इस कानून के तहत पार्टनरशिप फर्म में भविष्य में होने वाली समस्याओ के ली एग्रीमेंट में केवल एक प्रावधान करके रखना हे जिसमे लिखा जाता हे की ” भविष्य में कोई समस्या होने पर पेशेवर मध्यस्थ आर्बिट्रेशन कानून के अंतर्गत नियुक्त किया जाएगा जो वास्तविकता देखकर जो भी निर्णय लगे वह पार्टनर्स को मंजूर होगा ” जिससे मुख्य न्यायिक व्यवस्था में न्याय के लिए आवेदन देने की किसी भी पार्टनर को जरुरत नहीं रहेगी और काम समय में और काम खर्च में न्याय मिल जाएगा ।

भारत में बहुत सारे पार्टनरशिप फर्म चलाए जाते हे जो वकील को ज्यादा खर्च करने से डरते हे मगर कुछ चीजे हमारे लिए शुरुवाती समय में कम खर्च में हो जाती हे इसके लिए आगे ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते है। इसलिए ADR नियुक्त करने के प्रावधान पार्टनरशिप एग्रीमेंट में करके आप न्यायिक सुरक्षा खुद को दे सकते हे जिसमे विषम स्वरुप में पेशेवर नियुक्त किये जा सकते हे जिसमे वकील , चार्टर्ड अकाउंटेंट तथा अन्य विशेषज्ञ नियुक्त किये जा सकते है।

पार्टनर्स के अधिकार और कर्त्तव्य / Rights & Duties of Partners –

अधिकार / Rights

  • किसी पार्टनर्स के निधन होने पर उनके वारिस को मिलने वाले लाभ उनके परिवार के अधिकार है।
  • पार्टनरशिप फर्म के प्रतिनिधि द्वारा गैर कानूनी गतिविधियों के लिए बाकि पार्टनर्स जिम्मेदार नहीं हो सकते है।
  • पार्टनरशिप फर्म के आलावा यह पार्टनर्स अपना दूसरा बिज़नेस कर सकते हे अगर कोई प्रावधान पार्टनरशिप में नहीं किए गए हो।
  • पार्टनरशिप के उद्देश्य पूर्तता अथवा इच्छा अनुरूप कोई भी पार्टनर एग्रीमेंट से बाहर निकल सकता है।
  • पार्टनरशिप में नए पार्टनर्स लेना , रिटायरमेंट , अथवा निधन इस तरह पार्टनर्स में बदलाव करने का अधिकार बहुमत से होता है।
  • पार्टनरशिप फर्म में किसी बिज़नेस में बदलाव करना अथवा किसी महत्वपूर्ण निर्णय पर अपना मत रखना पार्टनर्स का अधिकार रहेगा और निर्णय बहुमत से होते है।

कर्तव्य /Duties

  • धारा १८ के अनुसार सभी पार्टनर्स व्यक्तिगत तौर पर फर्म के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हे इसलिए वह काम फर्म के उद्देश्य से सम्बंधित हो यह जरुरी है।
  • धारा १९ के अनुसार पार्टनरशिप फर्म के प्रतिनिधि द्वारा किया गया कोई भी कार्य यह सभी प्रतिनिधि की जिम्मेदारी माना जाएगा।
  • धारा २० के अनुसार पार्टनरशिप फर्म के किसी भी पार्टनर्स के अधिकार बढ़ाए अथवा कम किये जा सकते है।
  • पार्टनरशिप के लिए प्रॉफिट होने पर एग्रीमेंट के नुसार प्रॉफिट वितरित किया जाता हे वैसे ही नुकसान होने पर इसी तरह हर पार्टनर को स्वीकार करना होगा।
  • पार्टनरशिप फर्म को छोड़ने से पहले फर्म को कानूनी सूचना देना अनिवार्य है।

LLP और पार्टनरशिप फर्म / LLP & Partnership Firm –

सिमित देयता भागीदारी अधिनियम यह कानून २००८ याने LLP कानून को संसद द्वारा पारित किया गया जिसका प्रमुख उद्देश्य पार्टनरशिप एक्ट में जो कमिया पार्टनरशिप फर्म के लिए थी उसको दूर दिए जाए। LLP यह फर्म को इस कानून द्वारा कंपनी अधिनियम में जो विशेषताए कंपनी को मिलती हे वह पार्टनरशिप फर्म को दी गयी है।

पार्टनरशिप फर्म का यह आधुनिक प्रकार हमें देखने को मिलता हे जिसमे भविष्य में होने वाली आर्थिक समस्या के लिए पार्टनर्स की जिम्मेदारी को सिमित और सुरक्षित किया गया है। किसी भी पार्टनर्स के मृत्यु के पश्चात पार्टनरशिप फर्म ख़त्म नहीं होती वह निरंतर चलती रहती हे जबतक कोई आर्थिक समस्या निर्माण नहीं होती है।

कंपनी कानून की विशेषता और पार्टनरशिप फर्म का मुख्य ढांचा वैसे ही रखकर इसमें बदलाव किए गए हे और पार्टनरशिप को बढ़ावा देने के लिए यह कानून लाया गया है। जो लोग पहले कंपनी कानून के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन करना काफी जटिल कार्य होता हे ऐसे समझते हे उनके लिए LLP यह फर्म स्थापित करना एक अच्छा पर्याय माना जाता है।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से की पार्टनरशिप फर्म के क्या फायदे हे और क्या नुकसान है। प्रोप्रइटरशिप में व्यवसाय करने वाले लोग और पार्टनरशिप फर्म इस प्रकार से भारत में ८० % रोजगार उपलब्ध किया जाता है। इतना बड़ा बिज़नेस का क्षेत्र भारत में हमें देखने को मिलता हे इसलिए इनको प्रोस्ताहन देने के लिए कई सारी योजनाए सरकार द्वारा चलायी जाती है।

पार्टनरशिप फर्म के लिए क्या प्रावधान इस कानून में दिए गए हे इसके बारे में हमने सामान्य भाषा में जानने की कोशिश यहाँ की है। पार्टनरशिप फर्म भारत सरकार ने LLP २००८ यह कानून बनाया गया हे जिसके तहत पार्टनरशिप फर्म की खामिया दूर करने की कोशिश की गयी हे तथा पार्टनर्स को सुरक्षा प्रदान करने कानून द्वारा की गयी है।

भारत में ज्यादातर पारम्परिक व्यावसायिक पार्टनरशिप में बिज़नेस करना पसंद नहीं करते जिनकी कई पीढ़ियों से बिज़नेस किया जाता है। उनकी समस्या बिज़नेस करने के लिए पैसा कभी नहीं होती बल्कि किसी नए बिज़नेस के लिए जानकारी यह होता है। आज के दौर में जिसके पास पैसा होता हे और जिनके पास नॉलेज होता हे ऐसे लोग एकत्र मिलकर पार्टनरशिप फर्म शुरू कर सकते है।

 

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