प्रस्तावना / Introduction –

यूक्रेन और रशिया के बिच जो युद्ध चल रहा हे इसके कारन कई लोगो के सामने प्रश्न खड़ा हुवा हे की नाटो यह क्या हे, जिसके कारन रशिया ने युद्ध का इतना बड़ा फैसला कैसे लिया यह प्रश्न उपस्थित होता है। इसलिए नाटो की स्थापना किस उद्देश्य से की हे और यह कैसे कार्य करता हे इसके बारे में हम जानने की कोशिश करेंगे।

नाटो में अस्थाई सदस्य के तौर पर शामिल होने के लिए भारत को भी कई बार जाने की खबरे मीडिया द्वारा हमें सुनने को मिली है, यह इतना आसान फैसला नहीं होने वाला है। नाटो यह संघटन का मूल उद्देश्य रशिया के विस्तारवाद को रोकना रहा हे इसलिए रशिया के सिमा से लगे देशो को नाटो में शामिल होने पर रशिया का अस्वस्थ होना लाजमी है।

व्लादिमीर पुतिन का मानना हे की यूक्रेन यह हमारा पारम्परिक हिस्सा हे और इसे नाटो का हिस्सा बनाना यह हमारे खिलाफ बनाया गया षडयंत्र है। इसलिए हम यहाँ देखेंगे की नाटो इस संघटन के द्वारा कैसे दुनिया को प्रभावित किया हे तथा इसपर लगने वाला खर्च यह ७० % अमरीका द्वारा किया जाता है।

नाटो की स्थापना / Formation of NATO –

North Atlantic Treaty Organization उत्तर अटलांटिक संधी संघटन की स्थापना ४ अप्रैल १९४९ में अमरीका में हुई थी जिसका मुख्य उद्देश्य दूसरे विश्व युद्ध के बाद रशिया का विस्तारवाद का प्रभाव कम कर सके। भौगोलिक दृष्टी से देखे तो रशिया और पूर्वी यूरोप एक दूसरे से जुड़े हुई थे जिसके कारन रशिया के साम्यवादी व्यवस्था को यूरोप से दूर रखना यह अमरीका का मुख्य लक्ष उस समय रहा है।

नाटो में मुख्य रूप से २८ यूरोपीय देश तथा दो अमरीकी देश जिसमे अमरीका और कॅनडा यह देश स्थायी सदस्य है। नाटो का मुख्यालय बेल्जियम के ब्रूसेल इस शहर में स्थापित किया गया है और नाटो के संविधान के आर्टिकल ५ में मुख्य उद्देश्य किसी भी सदस्य देश पर हमला मतलब नाटो पर हमला यह माना गया।

अमरीका का व्यवस्था लिबरल पूंजीवादी विचारधारा पर आधारित हे जिसमे निजीकरण यह प्राथमिकता रहती है यही साम्यवादी व्यवस्था में हर संस्था सरकार के अधीन होता है। साम्यवादी विचारधारा के बारे में अमरीका शुरू से कड़े रुख रहे हे तथा यूरोप में रशिया का प्रभाव मतलब उसके प्रभाव इसलिए दोनों देशो की अपने विचारधारा को बढ़ाना यह मुख्य कारन रहा नाटो की थापना का।

नाटो संघटन का उद्देश्य / Object of NATO Organization –

नाटो का उद्देश्य दूसरे विश्व युद्ध के बाद रशिया की विस्तारवाद की महत्वकांक्षा को रोकना यह रहा हे तथा अमरीका के पूंजीवादी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को दुनिया भर में प्रसारित करना यह रहा है। जो नाटो के सदस्य से युद्ध करेगा पूरा नाटो संघटन उसमे शामिल होगा यह आर्टिकल ५ के तहत संघटन का उद्देश्य बनाया गया।

इसमें मुख्यतः स्थापने के समय केवल १२ सदस्य रहे थे जिसमे समय के साथ साथ सदस्य बढ़ते गए, यूरोप में ज्यादातर छोटे छोटे देश हे जिसको सुरक्षा के मामलों में दुनिया के शक्तिशाली देशो से सुरक्षा प्रदान करना तथा अमरीकी पॉलिसी को अमल में लाना यह अमरीका का उद्देश्य रहा है। अमरीका नाटो के लिए ७० % बजट देती हे तथा सभी देशो को उनके जीडीपी के २ प्रतिशत नाटो संघटन के लिए देना होगा यह संविधान में लिखा गया है।

नाटो संघटन अपनी सुरक्षा के लिए १ ट्रिलियन डॉलर का बजेट हे तथा दुनिया के बाकि देशो पर इसका प्रभाव रखना तथा अमरीका को पुरे दुनिया पर इससे अपनी आर्थिक निति प्रस्तापित करने में मदत होती है। यूरोपीय सभी देशो को अमरीका का यह उद्देश्य नहीं दिखता ऐसी बात नहीं हे मगर उनको भी अपने देश के लिए सुरक्षा मिल जाती है।

नाटो संघटन विरुद्ध वॉरसॉ पॅक्ट / NATO Vs WAR SAW PACT –

नाटो द्वारा १९५५ में पश्चिमी जर्मनी को नाटो के सदस्यत्व बहाल किया जिकी प्रतिक्रिया में राजनितिक दृष्टी से WAR SAW PACT पोलैंड में किया गया जिसका काम नाटो की तरह सदस्य देशो की सुरक्षा प्रदान करना था। संयुक्त रशिया जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे ताकदवर देश बनकर उभरा था और भौगोलिक दृष्टी से काफी बड़ा था और अमरीका का महासत्ता बनने के लिए प्रतिस्पर्धी रहा था।

इंग्लैंड द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आर्थिक दृष्टी से काफी कमजोर हो गया था तथा इस विश्व युद्ध से सबसे ज्यादा आर्थिक हानि यूरोप के देशो की हुई थी इसलिए अमरीका की पहल से नाटो की स्थापना १०४९ में की गयी तथा वॉर सॉ पैक्ट की स्थापना १९५५ में पश्चिमी जर्मनी की नाटो की सदस्यता प्रदान की गयी जो रशिया के लिए राजनितिक खतरा था।

१९९१ में संयुक्त रशिया के विघटन के साथ रशिया द्वारा बनाए गए इस संघटन को बर्खास्त किया गया जिसके कई सदस्य आज नाटो के सदस्य बने है। पुतिन के राष्ट्रपति बनने के बाद उनके एक आर्टिकल के माध्यम से उन्होंने बताया की उनके जीवन की सबसे दुखद घटना संयुक्त राष्ट्र संघटन का टूटना रहा है। इससे उन्होंने सिख लेकर कई दिनों तक शांत रहकर खुद को अमरीका से लड़ने के लिए तैयार किया हे ऐसा दिखता है।

नाटो संघटन की संरचना / Structure of NATO –

  • सदस्य देश /MEMBER COUNTRY
  • नाटो प्रतिनिधि मंडल / NATO DELEGATION
  • सैन्य सदस्य / MILITARY REPRESENTATIVE
  • परमाणु योजना संघ /NUCLEAR PLANNING GROUP
  • उत्तरी अटलांटिक कौंसिल / NORTH ATLANTIC GROUP
  • अधीनस्थ समिति / SUBORDINATE COMMITTEE
  • महासचिव / SECRETARY GENERAL
  • सैन्य समिति / MILITARY COMMITTEE
  • अलाइड कमांड ऑपरेशन / ALLIED COMMAND OPERATION
  • अलाइड कमांड ट्रांसफॉर्मेशन /ALLIED COMMAND TRANSFORMATION

नाटो संघटन और अमरीका / NATO & America –

नाटो संघटन का उद्देश्य और हित यह एक दूसरे की सुरक्षा की रक्षा करना तथा अमरीका का इस संघटन से सबसे ज्यादा फायदा रहा है जिसके सहायता से उसने रशिया के साथ दूसरे विश्व युद्ध के बाद जो प्रॉक्सी युद्ध हुवा इसमें विजय हासिल की हे जो काफी बड़ी उपलब्धि उसने नाटो संघटन के माध्यम से उठाई है। दुनिया के आर्थिक और राजनितिक वर्चस्व को प्रस्थापित करने के लिए अमरीका द्वारा नाटो संघटन का इस्तेमाल बड़ी होशियारी से किया गया है।

नाटो संघटन में सभी सदस्य अपने विकास दर के दो प्रतिशत पैसा नाटो के लिए खर्च करेंगे ऐसा तय किया था जिसमे अमरीका सबसे ज्यादा पैसा देता हे जो लगबघ ४०० बिलियन अमरीकी डॉलर तक जाता है। नाटो संघटन के संविधान में आर्टिकल ५ के हिसाब से किसी भी सदस्य देश पर बाहरी आक्रमण होता हे तो नाटो के सभी सदस्य देशो पर आक्रमण माना जाएगी।

इसके तहत अमरीका में २००१ में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुवा था जिसके बाद इस आर्टिकल का पहली बार सही मायने में नाटो ने इस्तेमाल किया हे और इसके बाद कई सारे मिशन के माध्यम से नाटो संघटन ने कई देशो में हस्तक्षेप करके सदस्य देशो की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। डोनाल्ड ट्रम्प के समय उन्होंने नाटो से बाहर निकलने की धमकी दी थी जिसका कारन कई सारे देश नाटो में अपना शेयर जमा नहीं करते हे यह रहा है।

रशिया के दृष्टिकोण से नाटो का उद्देश्य / Object of NATO as per Russia –

नाटो की संविधान में संघटन का उद्देश्य लिखा गया हे की दुनिया में शांति बनाए रखना और लोकतंत्र को सुरक्षित करना यह महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिए यह संघटन काम करेगा। किसी भी सदस्य देश को बाहरी आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने का काम करेगा ऐसे कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य रखे गए तथा एक संधि के माध्यम से किसी भी रशियन संघ के देशो को तोड़ने की कोशिश यह संघटन नहीं करेगा यह ट्रीटी के माध्यम से आश्वासन मिलने के बाद भी उस का उलंघन किया गया।

रशिया ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया हे बस अपने संघ के देशो की सुरक्षा की है मगर नाटो ने इन देशो को तोड़कर नाटो का सदस्य बनाया है। एक योजना के तहत रशिया का विघटन करके रशिया के सिमा पर जो देश पहले संयुक्त रशिया का हिस्सा रहे थे उनको भड़काने का काम किया है। ऐसे कई आरोप रशिया द्वारा नाटो संघटन पर किये जाते हे और मुख्यता अमरीका पर किये जाते है।

अफगानिस्तान में तालिबान जैसे आतंकी संघटन को बढ़ावा देना तथा आर्थिक सहायता देना ऐसे कार्य अमरीका द्वारा किये गए है, तथा मध्य पूर्व देशो में नाटो दवता हस्तक्षेप करने का काम नाटो द्वारा किया जाता है। दुनिया को दिखने के उद्देश्य अलग हे तथा ख़ुफ़िया उद्देश्य अलग हे ऐसे रशिया का मानना है। यूक्रेन जैसे रशिया के पारम्परिक साथी को बढ़काने का काम अमरीका द्वारा किया जा रहा हे ऐसे कई आरोप रशिया द्वारा किये जाते है।

नाटो संघटन की विशेषताए / Features of NATO Organization –

  • ४ अप्रैल १९४९ को रशिया को नियंत्रित करने के लिए अमरीका की पहल से नाटो संघटन की स्थापना की गयी।
  • यूरोप के छोटे छोटे देशो को जर्मनी तथा रशिया से सुरक्षा प्रदान करना तथा द्वितीय विश्व युद्ध के अनुभव ने यह संघटन शापित करने की प्रेरणा अमरीका को मिली।
  • उत्तरी अमरीका तथा यूरोप के कुछ देशो ने मिलकर इस संघटन की स्थापना सुरक्षा हेतु की थी।
  • १९५५ में पश्चिमी जर्मनी के नाटो का सदस्य बनते ही रशिया द्वारा वॉर सॉ पैक्ट की स्थापना की जो नाटो संघटन से राजनितिक दृष्टी से संयुक्त रशिया की सुरक्षा करेगा।
  • १९५५ में पश्चिमी जर्मनी को नाटो का सदस्य बनाना यह नाटो की रणनीति का एक हिस्सा था जिससे जर्मनी को नाटो की सुरक्षा संघटन पर निर्भर करना था।
  • अमरीका का इस संघटन बनाने की लिए की गई पहल यह व्यक्तिगत हित के कारन किया गया जिसके माध्यम से वह अपनी पूंजीवादी व्यवस्था पुरे यूरोप में प्रस्थापित कर सके।
  • नाटो में बाद के केवल यूरोपीय सदस्य के साथ साथ अस्थाई सदस्य के तौर पर यूरोप के बाहर के देशो को सदस्य बनाना शुरू किया।
  • नाटो इस संघटन में अमरीका ७० % आर्थिक बजट देता हे जिसके कारन वह इस संघटन पैन नियंत्रण रखता है और बाकि सदस्य देशो पर अपना प्रभाव रखता है ।
  • नाटो की स्थापना के पीछे अमरीका का छुपा हुवा उद्देश्य यह रहा हे की रशिया की विस्तारवादी महत्वकांक्षा को नियंत्रित किया जाए।
  • नाटो की सदस्य्ता द्वारा दुनिया में न्यूक्लियर शक्ति के आक्रमण से सुरक्षा देने के लिए न्यूक्लियर अम्ब्रेला की निति के तहत सुरक्षा प्रदान की गई।

नाटो संघटन में जर्मनी की भूमिका /The Role of Germany in NATO –

द्वितीय विश्व का कारन हिटलर और उनका देश जर्मनी रहा था जिसका विश्व युद्ध के ख़त्म होने के बाद रशिया और अमरीका ने दो हिस्सों में बाटकर अपने अधिकार क्षेत्र में लिया था। जिसमे पश्चिम जर्मनी अमरीका के नियंत्रण में लिया गया और पूर्वी जर्मनी रशिया के नियंत्रण में चला गया था। इसके बाद भी यूरोपीय देश फिर भी जर्मनी के गतिविधियों से खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे थे इसलिए १९५५ में पश्चिमी जर्मनी को नाटो का हिस्सा बनाकर उसकी खुदकी सुरक्षा व्यवस्था को नाटो द्वारा नियंत्रित किया जाने लगा।

इससे रशिया काफी खुद को असुरक्षित महसूस करने लगा और इसके प्रतिक्रिया में रशिया द्वारा वॉर सॉ पैक्ट की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से १९९१ तक रशिया और अमरीका में प्रॉक्सी युद्ध चलता रहा। जर्मनी को नाटो द्वारा इस सहित युद्ध के लिए बेस पॉइंट किया गया था जिसपर लगबघ ९ लाख नाटो की आर्मी जर्मनी में काफी दिनों तक राखी गई जिसका नतीजा रहा की १९९१ को रशिया ने इस युद्ध से खुद को आर्थिक कारणों से खुद को पीछे लिया था।

इसलिए संयुक्त रशिया के विघटन में जर्मनी का काफी अहम् भूमिका रही थी जिसके कारन पश्चिमी जर्मनी और पूर्वी जर्मनी एक किया गया और नाटो के पूर्णतः नियंत्रण में लिया गया। आज के तारीख में अमरीका और फ़्रांस के बाद नाटो की सुरक्षा बजट में सबसे ज्यादा पैसा जर्मनी के माध्यम से दिया जाता हे और आज जर्मनी की प्रधानमंत्री ने बयान देकर देश की सुरक्षा के लिए नाटो की जरुरत को समझा है।

नाटो और यूरोपीय संघ की भूमिका / NATO & Europe’s Role –

रशिया की समस्या हे अमरीका की विस्तारवाद निति, इसलिए आने वाले समय में यूरोपीय संघ को भौगोलिक दॄष्टि से नाटो में महत्वपूर्ण बदलाव करने होंगे अथवा सुधार करने होंगे जिससे दुनिया में शक्ति का संतुलन बन सके। रशिया और यूक्रेन का युद्ध आज शुरू हे जिसका महत्वपूर्ण कारन हे यूक्रेन का नाटो का सदस्य बनना रशिया को राजनितिक दृष्टी से अच्छा नहीं लगा है।

रशिया के दृष्टी से यह रशिया को कमजोर करने की रणनीति हे जिसमे यूरोप और यूक्रेन एक कठपुतली की तरह इस्तेमाल हो रहे है, इसमें केवल दो देशो का आर्थिक और राजनितिक फायदा नजर आता हे वह हे अमरीका और दूसरा हे रशिया। इसलिए यूरोपीय यूनियन को बगैर अमरीका और कनाडा के यूरोपीय संघ की भौगोलिक आधार पर सुरक्षा संघटन की नए सिरे से स्थापना करनी होगी।

यूरोपीय संघ मिलकर खुद की सुरक्षा व्यवस्था निर्माण करने में सक्षम हे जिससे रशिया और अमरीका के साथ यूरोपीय दुनिया में एक राजनितिक शक्ति के तौर पर उभरेगा जिससे दुनिया में शक्ति का संतुलन विकेन्द्रित होने में मदत होगी जिससे दुनिया में किसी एक देश का वर्चस्व नहीं बन पाएगा। इससे रशिया भी यूक्रेन में शांत होगा तथा यह शीत युद्ध यहाँ छुपा युद्ध बंद हो जाएगा।

नाटो और भारत की भूमिका / NATO & Role of India –

अप्रैल २०२१ को नाटो के जनरल सेक्रेटरी जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने भारत का दौरा किया और मिलकर काम करने का प्रस्ताव रखा जिससे भारत की राजनीती पर इसके गहरे प्रभाव देखने को मिले है। १९६२ के चीन के और भारत संबंध आजतक कभी ठीक नहीं हुए हे चाहे वह राजनितिक रहे हो अथवा आर्थिक रहे हो इसलिए नाटो के जनरल सेक्रेटरी द्वारा दिए गए प्रस्ताव के संकेत चीन को देखते हुए दिए गए थे।

भारत की सबसे बड़ी समस्या चीन नहीं हे मगर भौगोलिक दृष्टी से देखा जाए तो यूरोप और अमरीका भारत से काफी दूर हे और हम जिस देशो से घिरे हे अगर उन सभी देशो को दुश्मन बना देते हे तो भारत की सुरक्षा के लिए यह काफी जोखिम भरी रणनीति रहेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही हे की रशिया और भारत के संबंध भारत की स्वतंत्रता के बाद से काफी अच्छे रहे है।

१९९० के बाद भारत और अमरीका भले ही आर्थिक और राजनितिक दृष्टी से नजदीक आये हे मगर भारत ने अपने रशिया से संबंध कभी ख़राब नहीं किये है। नाटो से नजदीकी करना मतलब रशिया से दुरी बनाना यह आर्थिक और राजनितिक दृष्टी से भारत के लिए फायदे का सौदा नहीं होने वाला इसलिए कई मामलों में भारत ने रशिया के विरोध में कई फैसलों में संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य पश्चिमी संघटनो में तटस्थ भूमिका हमेशा से रखने की कोशिश की है।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने यहाँ देखा की नाटो इस संघटन का रशिया तथा अमरीका के दृष्टी से क्या महत्त्व हे तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो शीत युद्ध रशिया और अमरीका के बिच में चला जिसमे कैसे नाटो की भूमिका महत्वपूर्ण रही हे रशिया के विघटन में यह हमने जानने की कोशिश यहाँ की है। रशिया यूक्रेन युद्ध फील हल यह आर्टिकल लिखते समय सातवा दिन चल रहा है और दुनिया में सभी लोगो को यह सवाल दिमाख में आता होगा की क्या कारन हे रशिया ने इतनी जोखिम इस युद्ध में ली है।

नाटो संघटन का मुख्य उद्देश्य रशिया को अपने विस्तारवाद से रखना रहा हे जिसने समय समय पर अपने उद्देश्य में बदलाव किये हे जिसमे १९९१ में रशिया के विघटन के बाद मध्य पूर्व एशिया में अपना वर्चस्व प्रस्थापित करने के लिए नाटो का इस्तेमाल किया है। पुरे दुनिया ने आतंकवाद का भुत देखा हे जो अफगानिस्तान में रशिया और अमरीका के हस्तक्षेप के कारन हमें यह देखना पड़ा है।

इराक , सीरिया , लीबिया अब यूक्रेन में भारी कीमत सामान्य लोगो ने चुकाई हे यह महत्वकांक्षी विस्तारवादी वर्ग को नहीं देखने को मिलती हे वह नैसर्गिक सम्पदा का इस्तेमाल कैसे करना हे और उसका पैसा कैसे बनाना हे यह जानते है। नैसर्गिक सम्पदा से पैसा बनाना और पैसे की शक्ति से राजनीती को नियंत्रित करना यही चक्रव्यूह हमें आजतक देखने को मिला है और इंसान ने अपने ही विनाश की तैयारी न्यूक्लियर बम बनाकर की है।

रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश क्यों है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *