प्रस्तावना / Introduction – 

गुलामी दो प्रकार की होती हे जिसमे एक मानसिक गुलामी होती हे और दूसरी शारीरिक गुलामी होती है। अमरीका और पश्चिमी देशो में कानून बनाकर अश्वेत लोगो को बेचा जाता था जिसे हम शारीरिक गुलामी कह सकते हे जिसको १८६५ में अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के कार्यकाल में समाप्त किया गया था। ऐसा कहा जाता हे की इसके पीछे नैतिकता से ज्यादा राजनितिक प्रेरणा ज्यादा रही थी।

अमरीका में ज्यादा गुलामो की जरुरत दक्षिणी अमरीका में लगती थी और अमरीका की राजनीती में इन दक्षिणी जमीनदारो का प्रभाव कम करने के लिए लिया गया फैसला था। चाहे कारन कुछ भी हो इससे अमरीका की राजनीती में हमें बराक ओबामा जैसे अश्वेत राष्ट्रपति  देखने को मिले है जो प्रतिनिधिक लोकतंत्र होने का प्रमाण देता है। वैसे ही भारत में ब्रिटिश इंडिया में अंग्रेजो ने भारत के प्रतिनिधि सत्ता में लेना शुरू किया तभी आरक्षण का मुद्दा भारत में पहली बार देखने को मिला है।

भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत की राजनीती में जातीय आरक्षण यह सबसे बड़ा मुद्दा रहा हे जिससे किसकी सरकार बनेगी यह तय होने लगा, मगर भारत की राजनीती की एक समस्या रही हे जो गोलमेज परिषद् से देखने को मिली हे। भारत के लोगो का प्रतिनिधित्व कौन करेगा और कौन सही मायने में किसके प्रतिनिधि है यह देश की बहुसंख्य समाज को पता ही नहीं है । इसलिए हम आज भारत में आरक्षण की राजनीती और आरक्षण की गलत धारणाए क्या हे यह देखने की कोशिश करेंगे।

जातिगत आरक्षण क्या है ? What is Reservation –

आरक्षण को समझना हे तो संविधान सभा के प्रतिनिधि तथा मसूदा समिति के अध्यक्ष रहे डॉ. बाबासाहब आंबेडकरजी के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दिए हुए संशोधन को देखना जरुरी है जिसे “Castes  in India” इस विषय पर १९१६ में प्रबंध लिखा था। महाराष्ट्र सरकार द्वारा उनके लिखे हुए साहित्य को अधिकृत रूप से प्रकाशित प्रकाशित किया हे जिसके आधारपर हम आरक्षण की व्याख्या को निर्धारित कर सकते है।

हम यहाँ यह संदर्भ क्यों दे रहे हे इसके पीछे कई कारन हे, जिसमे आरक्षण की मूल व्याख्या समाज के ज्यादातर लोगो को पता नहीं हे, जिन लोगो को पता हे वह आरक्षण के कारन उनका  प्रतिनिधित्व ख़त्म हो जाएगा इस डर से इसको न्यायिक दृष्टी से नहीं देख रहे है। इसमें सरकारी संस्थाओ के बड़े बड़े अधिकारी , मंत्री , तथा न्यायिक व्यवस्था के न्यायाधीश भी शामिल है जो इसको गलत तरीके से व्याख्या कर रहे है।

संविधान निर्माता की नजर से देखे तो आरक्षण का मतलब होता हे प्रतिनिधित्व , प्रतिनिधित्व क्यों ? क्युकी स्वतंत्रता के बाद व्यवस्था के सभी महत्वपूर्ण जगह पर कुछ खास वर्ग के लोगो की संख्या उनके संख्या से काफी ज्यादा थी। शक्ति का सिद्धांत कहता हे की “सत्ता भ्रष्ट होती हे और अनियंत्रित सत्ता अनियंत्रित भ्रष्ट होती है ” इस सिद्धांत को देखे तो किसी भी समुदाय का ज्यादा प्रतिनिधित्व दूसरे समाज को कभी न्याय नहीं दे सकता इसलिए आरक्षण देना जरुरी है।

मेरिट क्या हे और वह कैसे बनती है ? / What is Merit & How it develops  –

जमीन पर अगर किसी प्रकार की खेती नहीं की जाए तो समय के अनुसार वह जमींन बंजर हो जाती हे और अगर निरंतर उसका इस्तेमाल खेती के लिए किया जाए तो वह उपजाव जमीन बन जाती है। इंसान के मस्तिष्क का विकास वैसे ही हुवा हे पौष्टिक आहार, तार्किक विचारशक्ति , और योग्य वातावरण यह इंसान के बुद्धि का विकास करने के लिए पृष्ठभूमि होती है।  डार्विन के हिसाब से हमारे अनुवांशिक गुण पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होते रहते है।

अगर हमारी पिछली सेकड़ो पीढ़िया शिक्षा से दूर रहे तो आपकी बुद्धिका विकास दूसरे लोगो के तुलना में  कम ही होगा, बुद्धिके विकास के लिए जो भी चीजे लगती हे अगर वह एक व्यक्ति को मिल रही हे और दूसरे व्यक्ति को नहीं मिल रही हे तो दोनों में स्पर्धा करना अनुचित होगा यह वैज्ञानिक दृष्टी से सिद्ध हो चूका है इसलिए हमें मेरिट का सही अर्थ समझना होगा।

मेरिट याने किसी एक वंश को कुदरत ने ज्यादा बुद्धि पिढीजात दी हे और दूसरे वंश को नहीं दी हे ऐसा बिलकुल नहीं है। अगर १९ वी सदी के मनोवैज्ञानिक सेग्मेंड फ्राइड को पढ़े तो हमें मनोविज्ञान के बारे में सही जानकारी मिलती है । आज की भाषा में कहे तो जिस लडको को इंटरनेट , अभ्यास करने के लिए अलग कमरा , कोई आर्थिक समस्या नहीं और पढ़े लिखे माता पिता यह वातावरण मिले तो मेरिट अपने आप बन जाती है।

बहुत दुर्लभ स्थिति में विपरीत परिस्थिति में लोग मेरिट विकसित करने में सफल होते हे मगर इसके लिए सामान्य लोगो से काफी परिश्रम करना होता हे।  इसलिए आरक्षण लेने वाले लोग मेरिटधारी नहीं होते यह एक गलत धरना और समाज में विषमता फ़ैलाने वाली मानसिकता है जिसे हमें बदलना होगा।

आरक्षण और भारत का संविधान / Reservation & Indian Constitution –

भारत के संविधान में भारत के नागरिको को मुलभुत अधिकार दिए गए हे जिसके अंतर्गत भारत स्वतंत्र होने से पहले जो भी परम्पराए अथवा व्यवस्था प्रस्तापित थी वह अगर संविधान के मूल उद्देश्य से विसंगत हे तो उसे शून्य घोषित किया गया। इसका मतलब था की भारत के समाज में जाती व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था जिसमे सामाजिक असमानता थी उसको गैरकानूनी घोषित किया गया।

जिसमे प्रमुख रूप से अस्पृश्यता , दासी प्रथा , किसी भी प्रकार की गुलामी  और जाती के आधार पर कोई भी व्यक्ति अथवा समाज, किसी पर भी शोषण नहीं करेगा यह निश्चित किया गया। जिसमे व्यक्ति स्वातंत्र्य , किसी भी राज्य में जाने का अधिकार , कोई भी व्यापार अथवा नौकरी करने का अधिकार ऐसे कई सारे प्रावधान अलग अलग कानून बनाकर प्रस्थापित किए गए।

अनुसूचित जाती (SC) , अनुसूचित जमाती (ST) , अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यांक (Minorities) यह वर्ग के आधार पर जाती आधारित आरक्षण देने का अधिकार संविधान द्वारा केंद्र सरकार तथा राज्यों को दिया गया। अनुसूचित जाती और जमाती को यह आरक्षण उनके संख्या के अनुपात में अंग्रेजो के समय से लागु था वह भारत के संविधान में कायम रखा गया तथा अन्य पिछड़ा वर्ग यह कौन हे इसके लिए दो महत्वपूर्ण आयोग बनाए गए।

जिसमे कालेलकर आयोग और मंडल आयोग यह बनाए गए जिसके आधारपर ओबीसी की पहचान करना था, जिसके लिए जाती आधारित जनगणना करना जरुरी होता हे मगर इससे समाज में जाती की चेतना ज्यादा बढ़ जाएगी ऐसे कारन देकर सभी केंद्र सरकारों द्वारा इसे टाला गया। किसी भी बीमारी को पहले पहचानना होता हे और बाद में उसका इलाज करना पड़ता है इसी तरह जाती आधारित जनगणना यह समाज की बीमारी कितनी गंभीर हे यह हमें  चल जाएगा।

भारत की न्यायव्यवस्था और आरक्षण / Indian Judiciary & Reservation –

भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद पहला संविधान संशोधन आरक्षण के सन्दर्भ में किया गया और समानता की व्याख्या को आरक्षण के माध्यम से अपवाद रखा गया। न्यायिक सिद्धांत में कोई भी कानून निरंकुश या absolute नहीं होता इस हिसाब से महिलाओ के लिए लिंग के आधार पर तथा कमजोर लोगो के लिए कुछ अतिरिक्त सुविधाए सरकार दे सकती हे ऐसा संविधान कहता है।

भारत की न्यायिक व्यवस्था पर आरोप किये जाते हे की न्यायिक सिद्धांत के अनुसार जजों की नियुक्ति जज नहीं कर सकते मगर भारत में यह नियुक्तियां होती हे तथा कुछ जाती विशेष तथा परिवार विशेष लोग ही जज बनते हे ऐसे आरोप किये जाते है। इसलिए आरक्षण के मामले में समय समय पर दिए गए निर्णय समाज के सभी लोगो को तथा कानून के एक्सपर्ट लोगो को संतुष्ट नहीं कर सके है।

आरक्षण यह सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा पण इसके आधारपर संविधान द्वारा निर्धारित किए गए हे जिसमे आर्थिक दृष्टी से सधन हुए लोग ऐसे आरक्षण नहीं ले सकेंगे इसके लिए क्रीमीलेयर का प्रावधान लाया गया खास कर के ओबीसी के लिए तथा SC और ST पर भी यह नियम लगाना होगा इसके लिए प्रयास किये गए मगर इसमें सफलता नहीं मिल सकी वही ओबीसी में जाग्रति नहीं होने से वह आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए गए ।

जिस समाज की समस्या होती हे उसके पर्याप्त प्रतिनिधि न्याय करने के लिए जजों की बेंच में होने चाहिए यह न्याय का सिद्धांत कहता है।

भारत में आरक्षण की राजनीती / Reservation Politics in India –

ब्रिटिश भारत में आरक्षण के लिए संघर्ष डिप्रेस्ड क्लास द्वारा किया गया जिसका नेतृत्व डॉ. बी आर आंबेडकरजी कर रहे थे मगर गांधीजी ऐसे वर्ग का नेता खुद को मान रहे थे यहाँ से दोनों का राजनितिक संघर्ष गोलमेज परिषद् तक चला और अंग्रेजो द्वारा दिया गया सेपरेट मतदार संघ का प्रस्ताव गांधीजी द्वारा विरोध किया गया।

इसके लिए उन्होंने पूना में अनशन किया जिसका परिणाम डॉ. बी आर आंबेडकरजी को यह प्रस्ताव छोड़ना पड़ा जिसके बदले गांधीजी ने उनके प्रतिनिधियों की संख्या को बढ़ाया जिसे हम आज राजनितिक आरक्षण कहते है। स्वतंत्रता के बाद SC और ST ने अपना आरक्षण अपने संख्या के आधारपर हासिल कर लिया मगर ओबीसी को इसके लिए १९९१ तक इंतजार करना पड़ा।

मंडल आयोग वि पी सिंह सरकार द्वारा लागु कर दिया गया जिस सरकार में भाजपा का सपोर्ट था यह बात उनको अच्छी नहीं लगी मगर आरक्षण के नाम पर सरकार से बाहर होना भाजपा को जोखिम भरा निर्णय था इसलिए मंडल को काउंटर करने के लिए कमंडल की राजनीती के तहतअडवाणीजी  नेतृत्व में रथयात्रा का पुरे भारत में आयोजन किया गया जो भाजप के लिए भविष्य में काफी प्रभावी निर्णय रहा।

कौन हे अन्य पिछड़ा वर्ग / Who is Other Backward Classes –

डॉ. बी आर आंबेडकरजी की एक थेओरी थी जिसके आधारपर पर उन्होंने शूद्र और अतिशूद्र तथा अल्पसंख्यक धर्म परिवर्तीत समाज यह पिछड़ा वर्ग है।  वर्ण व्यवस्था में जो लोग वर्ण व्यवस्था के अंदर थे मगर शूद्र थे वह आज के  ओबीसी कहलाते है तथा जो लोग वर्ण व्यवस्था से बाहर थे उन्होंने अनुसूचित जाती तथा आदिवासी लोगो के लिए अनुसूचित जमाती कहा गया।

१९३१ तक ब्रिटिश इंडिया में जनगणना जातिगत आधार पर की जाती थी जिसमे ओबीसी को एक अलग पहचान दी गयी थी जिसके हिसाब से उस समय ओबीसी की संख्या ५२ % थी। स्वतंत्र भारत में अनुसूचित जाती तथा जमाती की जनगणना जाती आधारित होती रही मगर ओबीसी की जनगणना को नहीं किया गया। जिसका परिणाम ओबीसी के प्रतिनिधि व्यवस्था में उनकी संख्या के अनुपात में नहीं पहुंच सके जिसे सत्ता की हिस्सेदारी कहते है ।

इसका महत्वपूर्ण कारन था SC और ST के लिए जनगणना करने के लिए इस समाज से भारत की स्वतंत्रता के बाद भी काफी दबाव सरकार पर रहता था वैसा ओबीसी में कोई नेतृत्व कभी उभरा नहीं अथवा जानभूझकर उभरने नहीं दिया गया। ओबीसी समाज में जातिगत आरक्षण की बजाए धर्म की चेतना को ज्यादा प्रभावित किया गया था। १९९१ में यह कारन था की जो संघर्ष मंडल के समर्थन में होना चाहिए था वह समर्थन रथ यात्रा में परिवर्तित हुवा जिसका फायदा शासक जाती को राजनीती में होता रहा है।

आरक्षण का मुद्दा इतना महत्वपूर्ण क्यों है ? / Why Reservation Issue is so Important –

यह केवल शिक्षा में एडमिशन हासिल करना , सरकारी नौकरी हासिल करना अथवा चुनाव में आरक्षित जगह हासिल करना इतने तक सिमित मामला नहीं है। आरक्षण का सही अर्थ प्रतिनिधित्व होता हे जो वंशिक भेदभाव की वजह से प्रताड़ित जातियों के लिए दिया गया था, जिनकी कई पीढियों को शिक्षा तथा संपत्ति से व्यवस्था बनाकर वंचित रखा गया था इसलिए आरक्षण दिया गया था।

यह कोई आर्थिक मामला नहीं था जिससे आर्थिक सधन होने से आप उची जाती की लड़की अथवा लडके से शादी नहीं कर सकते है , शादी के लिए घोड़ी पर नहीं चढ़ सकते है इसका मतलब हे आपका जाती की पहचान आपके आर्थिक सधन होने से नहीं जाती हे इसलिए संविधान ने आरक्षण दिया है। सरकारी बड़े पदों पर नौकरी मिलने से आप देश की पॉलिसी मेकिंग का हिस्सा बन जाते है, खुद की राजनितिक पार्टी बनाने से आप खुद की सरकार बना सकते है यह प्रतिनिधित्व का महत्त्व होता है।

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भारत को स्वतंत्रता बहाल करने के समय कहा था की “भारत लोकतंत्र के लिए अभी तैयार नहीं है” इस बात के लिए भारत से इसके लिए उनकी काफी आलोचना हुई थी मगर यह वास्तविकता थी। ओबीसी के अपने हक़ और अधिकार के लिए जागृत होना शासक जाती को सत्ता से बाहर कर देगा यह वह जानते हे इसलिए वह निरंतर ओबीसी को धर्म के माध्यम से मूल उद्देश्य से भटकाने में आजतक सफल रहे है।

भारत में १९९१  का आर्थिक संकट / 1991’s Economic Crises in India –

वी पी सिंह की सरकार गिरने के बाद भारत में नरसिम्हाराव की सरकार सत्ता में आयी और इसी समय भारत ने विदेशी मुद्रा का आर्थिक संकट देखते हुए भारत को साम्यवादी देश से कॅपिटलिस्ट साम्यवादी देश में बदल दिया और अमरीका के पूंजीवादी पॉलिसीज के माध्यम से भारत में निजीकरण का अभियान चलाया जिसमे सरकारी कंपनियों को निजी हातो में सपना शुरू किया तथा विदेशी निवेश को भारत में खुला कर दिया।

यही दौर था ओबीसी में आरक्षण की चेतना बढ़ रही थी और वह SC और ST के लोगो में हो रहे बदलाव देख रहे थे जो भारत में उची जातियों के बाद आर्थिक दृष्टी से तथा सरकारी दफ्तरों में जाने वाला वर्ग बन रहा था। यह दौर था जब ओबीसी जातियों को बताया जाता था की तुम्हे नोकरिया नहीं मिल रही हे क्यूंकि SC और ST के लोग तुम्हारी नोकरिया खा रहे है मगर जब उन्होंने वास्तविक अकड़े देखे तो वह कुछ और ही बयान कर रहे थे।

१९९१ में भारत सरकार ने सरकारी संस्थाए निजी क्षेत्र को बेचना शुरू किया और इसका सीधा परिणाम आरक्षण को प्रभावहीन करने का काम होने लगा। आज हम देखते हे की भारत की ज्यादातर संस्थाओ में सरकारी नौकरी मिलना लगबघ बंद हो गया हे अथवा काफी कम हो गया है। उच्च पदपर भी कॉर्पोरेट क्षेत्र के अनुभवी लोगो को सीधा नियुक्त करना शुरू हो गया है। जिससे आरक्षण पर अपने आप बुरा असर होना शुरू हो गया है।

क्या जाती आधारित आरक्षण देश विरोधी है ? / Is Caste base Reservation Anti-nation ? –  

यूरोप में शासक जाती ने समाज के विकास के लिए १५ वि सदी में खुद के अधिकारों को कम करने के लिए सहमती जताई थी जिसका परिणाम यूरोप आगे जाकर वैज्ञानिक क्रांति , राजनितिक क्रांति , औद्योगिक क्रांति तथा , टेक्नोलॉजी की क्रांति में इतना आगे जा सका है। भारत  की क्षमता दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनने की है बस उची जातियों को अपनी मानसिकता को बदलना होगा और देश के वंचित समाज को बराबरी में बिठाना होगा।

इससे उनको नुकसान कम और फायदा ज्यादा होगा क्यूंकि आज हम देखते हे की उची जातियों की अगली पीढ़ी विदेशो में सेटल हो रही हे जिससे देश में अगर सब मिल कर देश को समान रूप से प्रतिनिधिक स्तर पर न्याय दे सके तो हमें किसी देश में जाकर नौकरी करने की जरुरत नहीं पड़ेगी और दूसरे देशो के लोग भारत की सम्पन्नता देखकर भारत में नौकरी करेंगे। आरक्षण यह लोगो को समानता प्रस्थापित करने  बनाया गया उपाय हे, यह कोई समस्या नहीं है, हमें बस हमारी सोच बदलनी होगी ।

यह इतना आसान नहीं हे मगर इसके भविष्य में अच्छे परिणाम हमें देखने को मिल सकते हे और निरंतर ओबीसी को झूट आधारपर भ्रमित रखने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इससे विदेशी  कंपनियों को फायदा होता हे और वह इसका लाभ उठाते है। भारत में इतनी संधि हे पैसा कमाने की जो सभी को इसका लाभ मिल सकता हे केवल हमें हमारी तार्किक बुद्धिमत्ता को विकसित करना हे और हमारी जनसँख्या हमारी संपत्ति बन सकती है।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की आरक्षण के बारे में कैसे लोगो में भ्रम हे तथा सही जानकारी नहीं होने के कारन तथा बुद्धिजीबी लोगो द्वारा पूर्ण जानकारी न देने के कारन आरक्षण के बारे में गलत धारणाए फैली हुई है। ओबीसी समाज इसके लिए सबसे ज्यादा शिकार बना हुवा है, जो राज्यों की सत्ता मिलने पर संतुष्ट हो जाता हे मगर असली सत्ता केंद्र में हे यह वह नहीं जनता है।

केंद्र में शासक जातियों को भी इसके लिए पहल करनी चाहिए और अपनी संकुचित मानसिकता को बदलना होगा क्यूंकि जानकारी के इस युग में ज्यादा दिनों तक लोगो को मुर्ख नहीं रखा जा सकता हे इसलिए भाईचारा बनाकर देश को विकसित करके दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

देश में यह असमानता की मानसिकता को ख़त्म करने के बाद हमें किसी जातिगत आरक्षण की जरुरत नहीं पड़ेगी मगर इसके लिए समानता आनी जरुरी है। भारत के सभी क्षेत्रो में सभी जाती धर्मो के प्रतिनिधि होना यह सही लोकतंत्र की पहचान है और गलत तरीके से दुसरो के अधिकारों को छीनकर सत्ता का उपभोग लेना यह आज के युग में नहीं छुप  सकता, इससे अच्छा हे अपने आचरण में परिवर्तन करना सही निर्णय होगा।

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