प्रस्तावना / Introduction –

भारत में टॉर्ट कानून के बारे में काफी काम लोगो को पता है, जिसका मतलब होता हे की हर व्यक्ति अथवा संस्था के लीगल अधिकार और नुकसान होने पर आर्थिक रूप से मुहफजा मिलना। हमें उपभोक्ता अधिनियम कानून पता हे मगर यह कानून आपके सभी लीगल अधिकारों का संरक्षण नहीं करता है। यह कानून आपको केवल उसी समय उपयोग में आता हे जब आप किसी कंपनी अथवा संस्था से कोई सर्विस अथवा प्रोडक्ट खरीद ते हे और उसके बदले पैसे देते है।

टोर्ट कानून आपको सरकार की किसी गतिविधियों से होने वाले नुकसान को सुरक्षित करता हे और अधिकार देता है। आज हमारा विषय टोर्ट कानून नहीं हे मगर अधिकार के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए यह हमने आपको बताया। मेडिकल क्षेत्र में हम डॉक्टर को भगवान मानते हे मगर १९९० के बाद मेडिकल क्षेत्र यह प्रोफेशन कम और प्रॉफिट कमाने वाली एक कॉर्पोरेट फर्म की तरह काम करती है।

जिससे सभी निजी अस्पतालों को एक दूसरे के सामने टिकने के लिए और पूरी कॉर्पोरेट व्यवस्था चलाने के लिए काफी सारा पैसा खर्च करना पड़ता है। इसलिए मेडिकल क्षेत्र के लिए बनाए गए नैतिक मूल्य हमें पीछे पड़ते हुए देखते है। कई बार हम खुद को ठगा महसूस करते है, भले ही हम हमारे प्रोफेशन में कितने भी होशियार हो मगर मेडिकल क्षेत्र की जानकारी न होने की वजह से और जीवन में कभी न कभी हमारा संबंध किसी हॉसिपिटल से आता ही है।

इसलिए यहाँ हम मेडिकल क्षेत्र की वास्तविकता से आपको कानूनी दृष्टिकोण से अवगत करके क्या सावधानिया बरतनी चाहिए इसके बारे में आगे विस्तृत तटीके से बताएगे।

चिकिस्ता लापरवाही क्या होती है ? / What is Medical Negligence ?-

  • गलत दवाई से इलाज करना
  • ऑपरेशन के दौरान लापरवाही करना
  • ऑपरेशन से पहले पूरी जानकारी न देना
  • मरीज की सही देखभाल न होना
  • अनावश्यक ऑपरेशन करना
  • ऑपरेशन के समय बेहोशी विशेषज्ञ द्वारा गलती करना
  • महिला प्रसूति में अनावश्यक ऑपरेशन करना
  • बीमारी का गलत निदान करना
  • बीमारी का निदान करने में समय लगाना
  • हॉस्पिटल स्टाफ द्वारा इलाज में लापरवाही
  • लंबी अवधि की चिकिस्ता में गलती करना

मेडिकल क्षेत्र के बारे में हमारी अज्ञानता हमारी इन समस्याओ का सबसे प्रमुख कारन होता है। किसी भी अस्पताल से कोई इलाज करते समय भविष्य में होने वाली समस्याओ के लिए दस्तावेज यह अहम् भूमिका निभाते हे जिसको हमें साबुत के तौर पर देखना होगा जो हम नहीं देखते। जिसकी वजह से ज्यादातर समय हम किसी मेडिकल लापरवाही का शिकार होते हे तब इन बातो की कारन हमें न्याय मिलने में कठिनाई निर्माण होती है।

चिकित्सा लापरवाही यह सरकारी अस्पताल अथवा निजी अस्पताल, किसी भी अस्पताल में देखि जाने वाली समस्या है जिसमे लोगो की जान दाव पर लगती है। जिसमे हमने ऊपर दिए गए कुछ तथ्य हमें देखने को मिलते हे, इसके लिए भारत में उपभोक्ता अधिनियम कानून के अंतर्गत न्याय देने का प्रावधान हे तथा प्रोफेशनल मिसकंडक्ट के तहत मेडिकल कौंसिल द्वारा यह मामले देखे जाते है।

क्रिमिनल प्रावधानों के माध्यम से कुछ मामलो में ऐसे केसेस को देखा जाता हे मगर वास्तविक तौर पर देखे तो यह काफी मुश्किल होता हे क्यूंकि यह निजी हॉस्पिटल सामान्य मरीजों से काफी ताकदवर होते हे और वह अपने हिसाब से कानून व्यवस्था को नियंत्रित करना जानते है। इसलिए मेडिकल लापरवाही के बहुत कम मामलो में हमें न्याय मिलते हुए दिखता है।

अस्पतालों की वास्तविकता / Facts of Hospitals –

मेडिकल प्रोफेशन यह ऐसा पेशा हे की सामान्य आदमी तो छोड़िये किसी पढ़े लिखे इंसान को भी मेडिकल में बारे में साधारण से जानकारी भी नहीं होती है। यह एक ऐसा पेशा हे की जिसमे लोगो को सेवाए देते समय जान का जोखिम होता हे इसलिए यह दुनिया का सबसे जिम्मेदारी भरा पेशा है। इसलिए हमें इसमें सावधानिया क्या रखनी चाहिए यह पता होना चाहिए।

भारत में कानून व्यवस्था के बारे में ज्यादातर लोगो को ठीक से पता नहीं होता और इस व्यवस्था से लोग दूर रहना पसंद करते है। “जिसकी लाठी उसकी भैस ” इस मुहावरे की तरह कानून व्यवस्था को हम देखते हे और अनुभव भी करते हे। इसलिए ज्यादातर लोग इसे झमेला मानते हे और चुपचाप ऐसी व्यवस्था में जीना दिखते है। निजी अस्पताल में आज के समय में प्रॉफिट बनाना यह ज्यादातर अस्पतालों का मूल उद्देश्य होता हे जिसके कारन मरीजों के लिए जानकारी रखना काफी जरुरी हो गया है।

मेडिकल की जरुरत गरीब से आमिर तक जीवन में काफी बार जरुरत पड़ती है तथा सरकारी अस्पतालों की गलत व्यवस्था के कारन लोग निजी अस्पतालों में इलाज करना पसंद करते है। मगर मूल समस्या यह हे की बहुत कम लोग भारत में हे की निजी अस्पताल में बड़ी आसानी से जो खर्चा होता हे उसे भर सकते हे। फिर भी ऐसे ऐसे अनुभव हमें निजी अस्पताल और सरकारी अस्पताल में देखने को मिलते हे जिसपर हम आवाज उठाना नहीं चाहते।

मेडिकल क्षेत्र के लिए कानूनी प्रावधान / Law Provisions for Medical Field –

भारतीय दंड संहिता में मेडिकल लापरवाही के लिए प्रमुख प्रावधान किए गए हे जिसके अंतर्गत आपराधिक मामले दर्ज दिए जा सकते हे। मेडिकल कौंसिल अधिनियम १९५६ के अंतर्गत मेडिकल कौंसिल शापित की गयी हे जिसके माध्यम से हम किसी भी मेडिकल लापरवाही के मामलो में शिकायत दर्ज कर सकते है।

ग्राहक सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत हम अपनी शिकायत बड़ी आसानी से और काम खर्च में दर्ज कर सकते है। भारत सरकार द्वारा सभी कानूनी व्यवस्था मेडिकल सुरक्षा के लिए बनाकर राखी गई हे केवल लोगो के इसके बारे में जागृत होना और इस प्रक्रिया के बारे में जानना जरुरी होता है। मगर भारत में लोगो का कानून व्यवस्था के प्रति विश्वास से ज्यादा डर होता हे जिसकी वजह से वह ऐसे मामले दर्ज नहीं करता है।

इसकी वजह से जो निजी तथा सरकारी अस्पतालों में लापरवाहियां होती हे तो उनको पता हे की कोई भी इंसान हमारे ऊपर कोई कार्यवाही नहीं करने वाला हे तथा व्यक्तिगत स्तर पर दबाव बनाकर पैसे की ताकद से ऐसे मामले कई बार निपटाए जाते है। जिससे ऐसी लापरवाहियां अस्पताल के स्टाफ द्वारा बड़ी आसानी से किये हुए हमें देखने को मिलते हे जिसमे कोई डर नहीं होता है।

अस्पताल से सम्बंधित सावधानिया / Precautions to Deal with Hospitals –

  • किसी भी अस्पताल में अपने मरीज को भरती करते समय दो तीन एक्सपर्ट की रे जरूर ले और जो विसंगती इन लोगो के सलाह से आपको दिखे उससे सही निर्णय ले।
  • कभी भी अगर इलाज में कोई लापरवाही होने पर कानून अपने हाथ में न अथवा ऐसा कोई गैर कानूनी काम न करे जिससे भविष्य में मिलने वाले न्याय पर असर पड़े।
  • किसी भी अस्पताल में अपने मरीज को भरती करने से लेकर अस्पताल से छूटने तक की सभी कागजी प्रक्रिया को साबुत के तौर पर अपने पास रखे ताकि अगर कोई लापरवाही धहोती हे तो इसका फायदा हो सके।
  • ऊपर दिए गए सभी माध्यम के तहत आप अपना न्याय प्राप्त कर सकते हे जिसके लिए किसी भी प्रतिष्टित व्यक्ति की जरुरत नहीं
    जितना हम अस्पताल के लिए पैसा खर्च करते हे , सावधानी के लिए कानूनी सलाह महत्वपूर्ण ऑपरेशन के लिए लेना आज के दौर में काफी महत्वपूर्ण हुवा है।
  • कोरोना के समय काफी लोगो को बुरे अनुभव से गुजरना पड़ा हे इसलिए किसी भी अस्पताल में अपने मरीज को भरती करते समय सभी बातो को कागजी दस्तावेज में अस्पताल से मांगे जिससे बाद में समस्या न हो।
  • मेडिकल कौंसिल के माध्यम से , क्रिमिनल केस दायर करके , ग्राहक सुरक्षा अधिनियक हम हमारे लिए न्याय ले सकते है।

विक्टिम कौन है ? / Who is Victims –

सामान्यतः कानून की दृष्टी से जो कमजोर होता हे वह किसी भी मामले में विक्टिम समझा जाता है। मेडिकल क्षेत्र के कई डॉक्टर तथा हॉस्पिटल के स्टाफ पर हमें हिंसक हमले देखने को मिलते हे जिसकी काफी चर्चा हम टेलीविज़न चैनलों पर देखते है। ऐसी घटनाए नहीं होनी चाहिए यह बात बिलकुल सही हे मगर जब समाज की किसी व्यवस्था के ऊपर से विश्वास उठ जाता हे तो समाज हिंसक बन जाता है। समाज को ऐसा कहा जाता हे।

अस्पताल में जो मरीज के लोग आते हे वह मानसिक दृष्टी से काफी अपसेट होते हे उसपर आर्थिक दृष्टी से कितना खर्च होगा इसके लिए चिंतित होते हे उसपर अगर उन्हें संवेदनहीन हॉस्पिटल का स्टाफ देखने को मिले तो सामान्यतः कुछ परिस्थितियों में हिंसक घटनाए देखने की मिलती है। इसको हमें जड़ से समझना होगा और अस्पताल में आने वाले लोगो से संवेदना से पेश आए तो यह समस्या ख़त्म हो सकती हे।

इसलिए हम कह सकते हे की ज्यादातर समय हमें देखने को मिलता हे की विक्टिम यह मरीज के रिश्तेदार होते है और कुछ परिस्थियों में हिंसक घटनाए गलत धारणा से अथवा अस्पताल से पैसे ऐठने होते हे जिसका प्रमाण बहुत नगण्य होता है। इसलिए सरकारी अस्पताल हो अथवा निजी अस्पताल हो अस्पताल में आने वाले लोगो से कैसे पेश आना हे इसके लिए सरकार द्वारा सख्त नियम होने चाहिए जिससे ऐसे हादसे कम होंगे।

अस्पताल और स्टाफ के लिए कर्तव्य / Duty towards Patients of Hospitals & Staff –

  • किसी भी अस्पताल अथवा क्लिनिक में मरीज के प्रती जो नियमावली मेडिकल अथॉरिटी द्वारा निर्धारित की हुई हे इसके अंतर्गत मरीज के सेवाए देना बंधनकारक है।
  • अगर किसी मरीज की परिस्थिति काफी जटिल हे उस समय सबसे पहली प्रस्थामिकता ऐसे केसेस पर देना डॉक्टर्स और स्टाफ के लिए बंधनकारक है।
  • किसी भी अस्पताल अथवा डॉक्टर्स को किसी भी मरीज की वास्तविक परिस्थिति समझाना अनिर्वाय हे न ज्यादा न कम परिस्थिति के बारे में सत्य जानकारी देनी चाहिए।
  • किसी बीमारी के लिए प्रॉपर ट्रीटमेंट देना बंधनकारक हे और यह प्रॉपर ट्रीटमेंट क्या होगी इसकी व्याख्या सर्वोच्च न्यायलय द्वारा कई मामलों में दी गयी है।
  • मरीज के बीमारी के बारे में गुप्तता रखना किसी भी अस्पताल और डॉक्टर्स के लिए बंधनकारक है, अगर वह बीमारी समाज में सक्रमण फैला सकती हे केवल इसी मामलों में वह जानकारी सार्वजानिक की जाती है ।
  • आपातकाल में कोई भी पेशेवर डॉक्टर किसी भी मरीज का इलाज कर सकता हे मगर उस डॉक्टर को वह इलाज छोड़ना हे तो मरीज के रिश्तेदारों को इसकी जानकारी देना बंधनकारक है।
  • दवाई के बारे में जो प्रेसकीबशन अस्पताल अथवा डॉक्टर द्वारा दिया जाता हे वह दवाइया प्रतिबंधित नहीं होनी चाहिए।
  • किसी भी इलाज के लिए कौनसी ट्रीटमेंट मरीज के साथ करनी हे इसके बारे में पूरी तरह से लिखित जानकारी रखनी चाहिए और इसकी जानकारी मरीज के रिश्तेदारों को होनी चाहिए।

चिकित्सा लापरवाही दावे को कैसे सिद्ध करे / How to prove Medical Negligence in court –

  • सबसे पहले आपको डॉक्टर और मरीज का रिश्ता कागजी दस्तावेज के आधारपर सिद्ध करना होगा।
  • आपके डॉक्टर द्वारा डॉक्टर पेशे के लिए जो कानूनी प्रक्रिया बताई गई हे इसका उलंघन किया हे इसके सबुत होने चाहिए।
  • चिकित्सा लापरवाही की वजह से आपके मरीज की मौत हो चुकी हे अथवा गलत इलाज की वजह से आपको शारीरिक तौर पर क्षति पहुंची है।
  • आपके लिए चिकत्सा लापरवाही की वजह से जो क्षति पहुंची हे इसके कागजी दस्तावेज होना जरुरी है।
  • किसी भी चिकित्सा लापरवाही के लिए सही समय पर शिकायत दर्ज करना जरुरी हे, जितना हम शिकायत दर्ज करने के लिए समय लगाएगे उतना दस्तावेजी सबूत पर परिणाम होगा और न्याय मिलने के लिए कठिनाइया निर्माण होगी।
  • हम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सबूत पर इस्तेमाल कर सकते हे मगर इसका गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए यह ध्यान में रखना होगा।
    एक्सपर्ट डॉक्टर्स की रिपोर्ट अपनी शिकायत की दस्तावेज से जोड़ दे।
  • हॉस्पिटल और जो जो स्टाफ आपके मरीज के ट्रीटमेंट में शामिल हे उन सबको पार्टी बनाए।
  • आपकी मेन्टल तकलीफ तथा जो सामाजिक और आर्थिक नुकसान हुवा हे उसके हिसाब से नुकसान की रकम तय करे।

चिकिस्ता लापरवाही और ग्राहक सुरक्षा अधिनियम / Medical Negligence & Consumer Protection Act –

उपभोक्ता सुरक्षा कानून १९८६ में लाया गया जो शुरुवात में केवल गुड्स की सेवाए इसमें शामिल थी मगर बाद में इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी क्षेत्र के आने से इस कानून में सेवाओं की भी शामिल किया गया। मेडिकल लापरवाही के मामलो पर कई दिनों तक बहस चली की क्या मेडिकल क्षेत्र से सम्बंधित प्रकरण उपभोक्ता फोरम में लिए जाए क्यूंकि यह प्रकरण काफी जटिल होते हे और इसके लिए एक्सपर्ट लोगो की राय काफी महत्वपूर्ण होती है।

इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाए दाखिल की गयी जो विरोध में भी थी और समर्थन में भी थी। १९९५ में सर्वोच्च न्यायालय में एक केस आया जो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन विरुद विशान्ता जिसमे सारी व्याख्या को स्पष्ट किया गया। IMA द्वारा स्टैंड रखा गया की मेडिकल कौंसिल की खुद की प्रोफेशनल मिसकंडक्ट की प्रक्रिया हे तो अलग से दूसरी प्रक्रिया शुरू करने का क्या अर्थ है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में कहा गया की उपभोक्ता कानून यह ग्राहकों को अतिरिक्त न्याय की सुविधा हे जिससे ग्राहक की सुरक्षा और मजबूत तरीके से सुरक्षित होगी। IMA की केसेस में केवल डॉक्टर को सजा मिलती ग्राहकों के लिए कोई फायदा नहीं मिलता है। ग्राहक सुरक्षा अधिनियम इस कानून के अंतर्गत काफी तेजी से न्याय मिलता हे और नुकसान की रकम काफी सही तरीके से निर्धारित की जाती है।

निष्कर्ष / Conclusion –

१९९० के बाद प्रॉफिट मेकिंग निजी अस्पतालों का प्रमाण भारत में काफी बढ़ा हे और इसके कारन सामान्य लोगो का पैसे के लिए शोषण बड़ी मात्रा में हमें देखने को मिलता है। क्यूंकि मेडिकल क्षेत्र एक कॉर्पोरेट की तरह काम कर रहा है जिससे इसपर ज्यादा नियमावली करना और प्रतिबन्ध करना भारत जैसे विकासशील देश में जरुरी है। हम अमरीका की तरह निजी अस्पतालों को प्रॉफिट कमाने के लिए खुली छूट नहीं दे सकते।

भारत में ज्यादातर लोगो की इनकम सामन्यतः काफी काम होती हे और सरकारी अस्पतालों की सेवाए ख़राब होने के कारन अगर ऐसे लोग निजी अस्पताल में इलाज करते हे तो वह उस परिवार को आर्थिक रूप से पूरी जिंदगी के लिए ख़त्म कर सकते हे। इसलिए भारत में कुछ नियमावली यूरोप से अलग होना जरुरी है। सरकार द्वारा हेल्थ के मामलों में ज्यादा बजेट रखना जरुरी है।

लोगो में अपने कानूनी अधिकार के प्रति ज्यादा जानकारी से वह ऐसे निजी और सरकारी अस्पतालों के शोषण का शिकार बनते है। इसलिए हमें इसके बारे में बेसिक जानकारी होना जरुरी है। किसी भी अस्पताल में भरती होने दो तीन एक्सपर्ट से सलाह लेना काफी महत्वपूर्ण रहेगा क्यूंकि मेडिकल क्षेत्र में कौन सही हे और कौन गलत हे यह पहचानना काफी मुश्किल होता हे। इलाज के दौरान जीतनी प्रक्रिया होती हे उसकी लिखित दस्तावेज रखना मरीज के रिश्तेदारों के लिए न्याय के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।

सहकारी आवास समिती कानून क्या है ?

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