प्रस्तावना /Introduction –

इंसान ने खुद को दूसरे जीवो से इतना विकसित किया की वह चाँद पर और मंगल ग्रह पर पंहुचा हे मगर इंसान के अंदरूनी शक्ति को पहचानने में इंसान को अभी काफी वक्त लगाने वाला है। हम यहाँ चार्ल्स डार्विन के संशोधन को सामान्य भाषा में उजागर करने की कोशिश करेगी जिसने दुनिया के सोचने का तरीका ही बदल दिया।

इंसान के मूल इतिहास को खोजने के लिए डार्विन ने अपने जिंदगी के चालीस साल अपने संशोधन को दिए और इंसान का मूल खोज के निकाला जो काफी विवादित संशोधन उस वक्त रहा। डार्विन का प्राकृतिक चयन का सिंद्धांत दुनिया के लिए एक क्रांति थी। डीएनए का संशोधन डार्विन के दौर के बाद लगा अगर यह उनके संशोधन के समय होता तो कई और तथ्य वह अलग तरीके से दुनिया के सामने रखते।

उन्होंने जो भी संशोधन दुनिया के सभी जीवो के बारे में रखे वह काफी चौकाने वाले थे जो आज मानववंशशास्त्र के आधारभूत सिद्धांत माने जाते हे। उन्होंने अपना संशोधन दुनिया के सामने उजागर करने के लिए काफी समय लगाया क्यूंकि उस दौर में धर्म की धरना के विरुद्ध उनका संशोधन होने के कारन वह अपना संशोधन उनके आखरी दिनों में प्रकाशित करते हे जो पूरी दुनिया के लिए एक क्रांति थी।

चार्ल्स डार्विन का जीवन (1809-1882)/ Life of Charls Darwin –

चार्ल्स डार्विन यह इंग्लैंड के सधन परिवार से थे और उनके पिताजी रोबर्ट डार्विन यह खुद एक डॉक्टर और वैज्ञानिक थे और चार्ल्स भी इसी क्षेत्र में काम करे ऐसा उनको लगता था। उनकी माताजी इंग्लैंड के प्रसिद्द व्यावसायिक की लड़की थी और उनके इनके दादाजी यह भी मेडिकल क्षेत्र से थे और काफी प्रभावशाली व्यक्ति रहे थे।

चार्ल्स डार्विन की माताजी का निधन उनके उम्र के आठवे साल में ही हुवा जिसके उनका पालन पोषण उनकी तीन बड़ी बहनो ने किया। उनके पिताजी को लगता था की वह भी एक अच्छे डॉक्टर बने मगर उनका इंटरेस्ट किसी और चीज में था इसलिए उन्होंने वह पारम्परिक मेडिकल की शिक्षा को छोड़ दिया और कुदरत की निरिक्षण में अपना समय बिताने लगे।

चार्ल्स डार्विन ने अपना संशोधन अल्फ्रेड रसेल वालेस साथ मिलकर किया जिसपर वालेस इस डार्विनिस्म यह किताब उनको समर्पित की थी। ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज में उन्होंने वालेस के संशोधन को भी उनके नाम से दर्शाया हे जिसके लिए वालेस हमेशा उनकी प्रशंसा करते रहे है। उनको इस संशोधन के लिए चालीस साल लगे जिसके लिए उन्होंने १८३१ -१८३६ तक दुनिया की समुद्री यात्रा की जिसके निरक्षण पर उनकी यह थ्योरी आधारित है।

डार्विनवाद क्या है / What is Darwinism –

उनकी रूचि इस विषयपर होने का कारन एडिंगबर्ग और उनके केम्ब्रिज के अध्यापक मेंटर रहे हे जिन्होंने चार्ल्स डार्विन को डर्विनिस्म थिओरी के विकास में प्रोस्ताहित किया। उनकी समुद्री यात्रा के दौरान उन्होंने प्रिंसिपल ऑफ़ जियोलॉजी यह चार्ल्स लेयेल की किताब पढ़ी जो तीन संस्करण में प्रकाशित थी यह उन्होंने कई बार पढ़ी और कुदरत के विकास के नियम समझे, जिनसे उन्हें पांच कल्पनाए मिली ।

  1. भूवैज्ञानिको को सृष्टि के सजीव और निर्जीव चीजों का अध्ययन करना चाहिए और जिससे शुरू से लेकर जो बदलाव हुए उसका अध्ययन करना चाहिए ।
  2. इन वैज्ञानिको का महत्वपूर्ण कार्य होगा की यह सभी संशोधन का संग्रह करके रखा जाए, उसकी विशेषताए तथा बारीकियां सामान्य नियमो का इस्तेमाल करके मूल कारन ढूंढ़ना चाहिए ।
  3. यह सभी खोज एक सिमित अध्ययन तक सिमित रखकर उसपर अतिसूक्ष्म अध्ययन करना चाहिए जिसका उल्लेख लेखक सब टाइटल में करते है।
  4. पृथ्वी का अध्ययन हमें यह बताता हे की चीजे निर्माण होती हे और विलुप्त भी होती है जिसके कारन वैज्ञानिको को ढूंढ़ने है।
  5. चार्ल्स डार्विन ने पाया की अबतक का संशोधन काफी अधूरा हे और आगे काफी संशोधन करना बाकि है जिसके लिए संशोधक लेमार्क की सिद्धांतो की असफलता को दिखाया है।
  6. डार्विन इन पांच सिद्धांतो को आगे लेकर अपने संशोधन का आधार बनाया और प्राकृतिक चयन के सिद्धांत को विकसित किया जो आज के मानववंश शास्त्र का मूल आधार माना जाता है। आज के आधुनिक वैज्ञानिक के पास डीएनए का मूल आधार मिला हे जो डार्विन के पास नहीं था जिससे उसने काल्पनिक चयन की पद्धति को विकसित किया है।

डर्विनिस्म का सबसे विवादित संशोधन यह इंसान के पूर्वज यह समुद्री जीवो से निर्माण हुए हे और उसका सबसे नजदीकी पूर्वज वानर हे जिसका डीएनए और इंसान का डीएनए यह केवल १ % का अंतर हे यह आधुनिक संशोधन ने सिद्ध किया हे जिससे शुरुवाती दिनों में डार्विन के इस सिद्धांत की काफी आलोचना हुई थी जिसमे समाज के धर्मग्रन्ध के आधार को ही हिला दिया था।

डार्विनवाद का सिद्धांत -Principles of Darwinism –

  • सृष्टि का हर जिव अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखता हे और हर एक जिव एक दूसरे से अलग होता है।
  • सृष्टि के हर जिव की विशेषता हे की वह पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संख्या बढ़ाता जाता है।
  • हर जिव का जीने के लिए संघर्ष होता हे जिसके लिए वह खुद में निरंतर बदलाव करते रहता है, इसीको डार्विन कुदरती चयन कहते है ।
  • जो जिव यह जीने का संघर्ष करने के लिए सक्षम होता हे वही अपनी प्रजाति आगे बढ़ाता हे और जो कमजोर जिव होते हे वह नष्ट होते है।
  • हर जिव का जीने का संघर्ष अगले पीढ़ी को विकसित जीन्स देता हे जो अगली पीढ़ी को बढ़ाता है।
  • हर जिव का गर्भ यह उसकी प्राथमिक अवस्था में एक जैसा दिखता हे जो बाद में अपने जाती का आकार लेता है।
  • सृष्टि के हर जिव का मूल यह समुद्री मछली से विकसित हुवा है।
  • सृष्टि का हर जिव अपने आप को वातावरण अनुसार खुद को ढालता हे और जो यह करने में असमर्थ होते हे वह नष्ट होते है।
  • इंसान का करीबी पूर्वज वानर यह प्रजाति हे और सभी जीवो का संबंध एक दूसरे के साथ हे जिसको उन्होंने किसी पेड़ अथवा वृक्ष का उदाहरण देकर बताया है।
  • डीएनए के तकनीक के बगैर जीवशास्त्र अधूरा हे जिसका उदय डार्विन के संशोधन के बाद हुवा और वह आज जिस विकसित अवस्था में हे इसने डार्विन के संशोधन से काफी ज्यादा संशोधन किया है।

डार्विन थ्योरी ऑफ़ नेचुरल सिलेक्शन / Darwin theory of Natural Selection –

चार्ल्स डार्विन ने अपनी समुद्री यात्रा में अलग अलग द्वीपों पर संशोधन किया और यह पाया की सभी द्वीपों पर जो सभी प्रकार के जिव हे उनमे कुछ भिन्नता है। इसके लिए उन्होंने कछुए , और पक्षी , कीड़े, समुद्री मछलिया ऐसे हजारो जीवो का अध्ययन करके उन्होंने यह कुदरती चयन की प्रक्रिया को समझा और दुनिया के सामने रखा।

इंसान का सबसे करीबी पूर्वज वानर हे और लाखो वर्षो से पूर्वज समुद्री मछली हे यह संशोधन उन्होंने दुनिया के सामने रखा, जो उस समय काफी विवादित रहा था। उन्होंने पाया कुदरत में सभी जीवो का संघर्ष यह जीने के लिए होता हे और जो जिव खुद को कुदरत के हिसाब से ढालने में सक्षम होता हे वही जीता है।

डार्विन जब यह अध्ययन कर रहे थे तो उनके सामने डीएनए यह संशोधन नहीं था अगर यह होता तो डार्विन द्वारा कुछ और पहलू दुनिया के सामने वह रखते। उनकी संशोधन का महत्त्व फिर भी कम नहीं होता क्यूंकि उस वक्त उन्होंने जो सोचा वह एक क्रांति थी जिसकी वजह से आज के वैज्ञानिको को एक प्लेटफार्म मिला संशोधन करने के लिए। कुदरती चयन यह उनका संशोधन का एक खास पहलू था जिसने दुनिया के सोचने का तरीका बदल डाला।

डार्विनवाद और नव डार्विनवाद में अंतर / Difference between Darwinism & new Darwinism –

हम शरीर के जिस हिस्से का ज्यादा इस्तेमाल करते हे वह हिस्सा दूसरे जीवो से काफी विकसित होता है यह लेमार्क की थिओरी का मूल सिंद्धांत रहा है, उनका मानना था की शरीर के जिस हिस्से का हम कम इस्तेमाल करते हे वह हिस्सा धीरे धीरे पीढ़ी दर पीढ़ी नष्ट हो जाता है ।इसके लिए वह एक लोहार का उदाहरण देते हे, लोहार अपने हातो का इस्तेमाल ज्यादा क्षमता से करता हे जिससे उसकी अगली पीडियो के हाथ दूसरे लोगो से ज्यादा लम्बे और मजबूत होते है। मगर इसका कुछ वैज्ञानिक आधार वह नहीं दे सके यह केवल निरिक्षण से उन्होंने प्रमाणित किया था। इसलिए डार्विन ने अपने संशोधन में लेमार्क की पिछले पीढ़ियो के विरासत का सिद्धांत स्वीकार करते है।

लेमार्क के इस सिद्धांत को कई वैज्ञानिको ने सिरे से नाकारा और किसी जिव के कटे हुए शरीर के हिस्से का उदहारण देते हुए कहा की क्या यह अगली पीढ़ी के सक्रमित होता है ? ऐसा नहीं होता इसलिए लेमार्क का यह सिद्धांत पूरी तरह से सही नहीं हे। डार्विन ने इसके लिए और संशोधन किये और वैज्ञानिक तरीके से इसके कारन ढूंढने शुरू किये जिसका परिणाम कुदरत का चयन यह सिद्धांत उन्होंने रखा और उसके लिए कई उदहारण दुनिया के सामने रखे।

डार्विनवाद की आलोचना / Critical Analysis of Darwinism –

  • डार्विन का संशोधन यह कोई तकनिकी और वैज्ञानिक सिद्धांतो कम और निरिक्षण पर ज्यादा आधारित रहे है।
  • डार्विन ने अपने सिद्धांत दुनिया के सामने रखे मगर उसके यह बदलाव के मूल कारणों को वह खोजने में असफल रहे यह खुद माना।
  • उस समय के विचारक हेरचल उनके सिद्धांत को ” Law of higgledy -piggledy” कहा जो वैज्ञानिक दृष्टी से सटीक नहीं है, जिसे संभावना और संयोग से हुई बताया जाता है ।
  • आस्तिकवादी विचारको ने डार्विन के इन सिद्धांतो को बेतुका बताया और कहा इसके लिए कोई वैज्ञानिक आधार नहीं हे और यह केवल सम्भावनाओ पर आधारित है।
  • डार्विन के संभावना और संयोग के सिद्धांत को आस्तिकवादी लोगो ने नाकारा और कहा की ऐसा नहीं हो सकता की सब कुछ कुदरत अपने आप कर रही हे इसका कोई निर्माता नहीं है।

डार्विनवाद से समाज में हुए बदलाव / Influence of Darwinism on Society –

१६ वि सदी से यूरोप में सामाजिक बदलाव देखने को मिलते हे जिसमे कोपर्निकस, न्यूटन जैसे वैज्ञानिक निर्माण हुए और उन्होंने सामाजिक और धार्मिक स्थाई धारणाओं की अपने वैज्ञानिक संशोधन से नाकारा। फ्रांस की सामजिक और राजनितिक क्रांति यह लोगो के सोच में हुए बदलाव का नतीजा था जिसने हजारो सालो से चल रही राजतन्त्र और सामंतवाद को ख़त्म कर दिया।

यही सामाजिक और शैक्षणिक बदलाव में डार्विन जैसे संशोधक निर्माण हुए जिन्होंने इस वैचारिक क्रांति को एक नया बल दिया और दुनिया के सोचने का तरीका बदल दिया। जिस वक्त उन्होंने यह संशोधन किया तब उनकी काफी आलोचना की गयी मगर जैसे जैसे इसका संशोधन और होने लगा , उनके सिद्धांत सत्य प्रतीत होने लगे और समाज ने वह स्वीकार भी किये।

इसके पूर्व ऐसे माना जाता था की दुनिया में इंसान की प्रजाति यह सबसे अलग हे और वह जानवरो से निर्माण नहीं हुई हे, भगवान ने उसे अलग से निर्माण किया है। मगर आज के डीएनए संशोधन तथा महा विस्फोट के वैज्ञानिको संशोधन को देखे तो इसका मूल आधार डार्विन के मूल संशोधन के सिद्धांत ही है। इसलिए डार्विन के सिद्धांत ने दुनिया के सोचने का तरीका ही बदल दिया जिससे हम कुदरत को देखने का हमारा नजरिया बदल गया।

चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत और डीएनए संशोधन / Darwinism & DNA Research –

चार्ल्स डार्विन ने बगैर टेक्नोलॉजी के केवल निरिक्षण और वैज्ञानिक सिद्धांतो के आधारपर अपने संशोधन को दुनिया के सामने रखा इसके लिए वह ज्यादा प्रमाण नहीं जुटा सके यह उन्होंने अपने आखरी दिनों में खुद माना। आज के आधुनिक जैविक विज्ञानं के लिए उनके सिद्धांत कितने उपयोगी रहे हे यह खुद वैज्ञानिक बताते है।

उन्होंने अपने संशोधन के लिए चालीस साल लगाए और अपने सिद्धांत आज के विज्ञानं के लिए एक प्रमाण के रूप में दिए जिसमे खामिया निकालना काफी मुश्किल काम रहा है। उनके आखरी दिनों में डीएनए संशोधन विकसित हुवा जो भविष्य में उनके संशोधन को विस्तार से दुनिया के सामने रखने वाला था।

१८६० में फ्रेडरिक मैस्चेर ने डीएनए का निर्माण किया था और दुनिया के सामने इसका महत्त्व समझने के लिए अगले १०० साल लगे जब कंप्यूटर हुवा जिसने अपनी असाधारण क्षमता से सभी सवालों के जवाब दिए जो चार्ल्स डार्विन से लेकर सब वैज्ञानिको को रहे थे।

कुदरती चयन और कृत्रिम चयन / Natural Selection & Artificial Selection –

चार्ल्स डार्विन ने कुदरती चयन का सिद्धांत दुनिया के सामने रखा जिसमे हर जिव खुद को जिन्दा रखने के लिए कैसे पीढ़ी दर पीढ़ी अपने आप में बदलाव करता हे जिससे वह जीने की इस स्पर्धा में जिन्दा रह सके। वैज्ञानिको ने आगे जाकर इसपर अर्टिफिकल सिलेक्शन का सिद्धांत विकसित किया जिसका उदहारण हे कुत्तो की कई सारि प्रजातियां जो हमें आज देखने को मिलती है।

जह चार्ल्स डार्विन यह संशोधन कर रहे थे तह उनको शरीर की अंदरूनी प्रक्रिया के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी मगर बाद में डीएनए संशोधन ने यह सिद्ध किया की डार्विन ने संशोधन किया इसके क्या कारन थे। उन्होंने डीएनए की जटिलता को दुनिया के सामने खोलकर रखा और मनुष्य और वानर में संख्या के आधार पर एक प्रतिशत का अंतर हे यह बताया।

यही आगे जाकर कृत्रिक सिलेक्शन सिद्धांत का आधार बना और अलग अलग प्रजातियों के डीएनए के अंश एक दूसरे के डीएनए के साथ मिलकर संशोधन किये जाने लगे जिसको हम कृत्रिक सिलेक्शन कहते है। इसका परिणाम क्या होगा यह तो भविष्य ही बताएगा मगर कुदरती नियमो के साथ किये गए कई खिलवाड़ इंसान को भुगतने पड़े हे।

इसलिए यह संशोधन हमें कितना फायदा देगा और कुदरत की कितने हानि करेगा इसपर निर्भर हे। क्यूंकि इस सृष्टि में इंसान का जिन्दा रहना महत्वपूर्ण नहीं हे सृष्टि का हर जिव जिन्दा रहे यह महत्वपूर्ण है जो एक दूसरे पर आधारित है।

निष्कर्ष / Conclusion –

१९ वि सदी में धर्म के सिद्धांतो के विरोध में अगर कोई बोलता हे अथवा लिखता हे उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाती थी और कभी कभी मृत्युदंड भी दिया जाता था इसलिए डार्विन ने अपने संशोधन को काफी दिनों तक छुपाके रखा था। अपने आखरी दिनों में उन्होंने इस संशोधन को ” The Origin of Species ” के माध्यम से प्रकाशित किया।

यह किताब दुनिया की सबसे प्रसिद्द किताब मानी जाती हे मगर इसको प्रकाशित करने के लिए डार्विन ने काफी समय लगाया। इस अध्ययन के लिए डार्विन ने अपने जिंदगी के चालीस साल दिए और इसके लिए दुनिया भर की समुद्री यात्रा करके जगह जगह से कई जैविक सबूत इखट्टा किये और उसपर संशोधन किया।

उनका पक्षियों के चोंच पर किया संशोधन काफी प्रसिद्द रहा जिसमे वह कुदरत की चयन के सिद्धांत को साबित करने में सफल हुए जिसके लिए पक्षियों के चोंच की विविधता का कारन उस जगह की अन्न की उपलब्धता के कारन रही हे यह उन्होंने सिद्ध किया।

नेपोलियन बोनापार्ट की जीवनी और राजनीती

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