प्रस्तावना / Introduction

घर चलाने के लिए घर का प्रमुख व्यक्ती खुद फटे हुए कपडे पहनता हे मगर अपने घर के लोगो की सभी मांगे पूरी करने कोशिश करता है क्यूंकि इसकी समस्या होती हे की आमदनी कम और खर्चा ज्यादा होता है। लोकतंत्र में समाज खुद देश नहीं चला सकता मगर वह अपने प्रतिनिधी संसद में देश चलाने के लिए भेजता है।

जो आचरण कुटुंब का मुखिया अपने परिवार के लिए करता हे वही आचरण की अपेक्षा लोकतंत्र में समाज अपने प्रतिनिधियों से करता हे मगर दुनिया की विकसित देशो से लेकर गरीब देशो तक लोकतंत्र की दशा देखेंगे तो यह आचरण हमें देखने को नहीं मिलता।

जितना गरीब देश होगा इसके राजनितिक प्रतिनिधि उतने ज्यादा आमिर होते है और हर साल जो बजेट हम देखते है ज्यादातर देशो का बजेट वित्तीय घटा दिखाता है। इसलिए आज का हमारा विषय गवर्नमेंट बजेट क्या होता हे यह समझना जिससे बजट के बारे में हमें जानकारी मिल सके और क्या समस्याए हे यह समझमे आये।

गवर्नमेंट बजेट क्या है ? / What is Government Budget –

भारत की संविधान में फाइनेंसियल स्टेटमेंट हर साल सरकार को संसद में सदर करना होगा यह प्रावधान हे बजट यह शब्द मूलतः फ्रेंच भाषा का शब्द हे जिसका अर्थ हे लेदर की बॅग जो ब्रिटिश इंडिया से तथा दुनियाभर में इस्तेमाल किया जाता है।
गवर्नमेंट बजेट का मतलब होता हे की सरकार की आय तथा सरकार द्वारा किया जाने वाला खर्चा जो फाइनेंसियल ईयर के दौरान उसका नियोजन करना और आने वाले वित्त वर्ष में उसके हिसाब से फाइनेंसियल नियोजन करना जो संसद में हर साल वित्त मंत्री द्वारा सादर किया जाता है।

आने वाले वित्त वर्ष के लिए खर्चा हर कार्य के लिए कैसे आवंटित करना हे इसका विवरण इस बजट में होता हे तथा टॅक्स रेवेनुए पॉलिसी आने वाले वर्ष में क्या होने वाली हे इसका नियोजन किया जाता है और इसके संसद में सादर होने तक गुप्तता रखने का काम किया जाता है जिससे जो वित्तीय निर्णय लिए गए हे इसका अनुपालन बजट पेश होने के बाद किया जाये।

गवर्नमेंट बजेट का इतिहास / History of Government Budget –

भारत में १९४७ से पहले ब्रिटिश व्यवस्था का शासन व्यवस्था पर नियंत्रण था तथा ब्रिटेन में यह व्यवस्था सामंतवाद का अंत होने के बाद निर्माण हुई जिसमे पार्लियामेंट सिस्टम तथा जो लोग टॅक्स भरते थे उसपर पूरी व्यवस्था चलाई जाती थी।

टैक्स भरने वाले लोग इस पार्लियामेंट द्वारा इस व्यवस्था पर होने वाला खर्चा इसका ब्यौरा देने की मांग करने लगे तब ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा यह बजेट पेश होना सबसे पहले शुरू हुवा, शुरुवाती दिनों में यह बजट केवल टॅक्स का ब्यौरा देता था जो बाद में जाके होने वाले खर्चो का ब्यौरा देना शुरू हुवा जिसे

ब्रिटिश इंडिया से यह रिवाज शुरू हुवा और स्वतंत्र भारत में संविधान के आर्टिकल ११२ के तहत हर साल फाइनेंसियल स्टेटमेंट के नाम से सरकार को संसद में पेश करना होगा यह प्रावधान लिखा गया जिसके तहत निरंतर आजतक ७३ बजेट पेश किये गए हे जिसमे १४ अंतरिम बजट तथा चार स्पेशल बजेट पेश किये गए है।

गवर्नमेंट बजेट का मूल उद्देश्य / Object of Government Budget –

ब्रिटेन में जब यह बजेट पेश होना शुरू हुवा तो इसका मूल उद्देश्य टॅक्स भरने वाले लोगो के प्रती जवाबदेही तथा पार्लियामेंट में कामकाज में पारदर्शिता रहे यही होता था। लोकतंत्र में हम कहते हे ” हम भारत के लोग ” जो हमारे संविधान की पहली लाइन है जिसका अर्थ हे की भारत के लोग हमारे प्रतिनिधि द्वारा देश चलाएगे जो हमारे लिए जवाबदेही होंगे।

इसलिए संविधान में इसके लिए आर्टिकल ११२ के तहत प्रावधान किया गया और सरकार द्वारा संसद में हर वित्त वर्ष के लिए कितना पैसा जमा हुवा और कितना पैसा खर्च हुवा इसका ब्यौरा देना होगा जिसे बजेट कहते है। जिसका आज के आधुनिक युग में बजट का उद्देश्य सरकार की पॉलिसी क्या होगी और किसको बढ़ावा देना हे और किसको बढ़ावा नहीं देना हे उसके पैसे का नियोजन किया जाता है।

आज के दिन सरकार के हर साल होने वाले वित्तीय बजट का असर भारत की पूरी अर्थव्यवस्था पर होता है जिससे किसी को फायदा होता हे तो किसी को नुकसान होता है। १९९० के भारत सरकार द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था को सोशलिस्ट से कॅपिटलिस्ट किये जाने के बाद काफी सारे बदलाव किये गए है।

जिससे हमें बजट में यह बदलाव हमें १९९० के बाद देखने को मिले हे जिसमे सबसे महत्वपूर्ण हे डिसइनवेस्टमेंट पॉलिसी जिसके हिसाब से आर्थिक नियोजन किया जाने लगा है।

गवर्नमेंट बजट के मूल तत्व और वर्गीकरण / Elements & Classification of Government Budget –

गवर्नमेंट बजट में मूलतः देश का खर्चा क्या हे और देश का इनकम या रेवेनुए क्या इसका लेखा जोखा होता हे जिसमे टॅक्स कितना कलेक्ट होता है देश को एक्सपोर्ट से कितना पैसा मिलता हे इम्पोर्ट पे कितना खर्चा होता है। वर्ल्ड बैंक अथवा अन्य अंतराष्ट्रीय बैंको से हमने कितना कर्ज लिया हे उसका व्याज कितना भर रहे है इसका लेखा जोखा बजट में होता है।

भारत की व्यवस्था चलाने में नौकरशाह की वेतन यह भारत के बजट का सबसे बड़ा खर्चा होता है इसलिए इसका नियोजन काफी महत्वपूर्ण होता हे। इसके बाद देश की सुरक्षा पर कितना खर्च करना हे इसका लेखा जोखा बजट में होता हे जिसको संसद में सब सांसदों के सामने प्रस्तुत किया जाता हे उसपर चर्चा होती हे अगर कोई संसद उसमे उचित बदलाव का सुझाव दे तो उसपर विचार किया जाता है।

तीन तरह के बजट होते है जिसमे फिस्कल डेफिसिट वाला बजट ज्यादातर देशो में प्रस्तुत किया जाता हे जिसका महत्त्व सोशल वेलफेयर होता हे इसके कारन इसमें इनकम से ज्यादा खर्चा होता हे ऐसा राजनतिक एक्सपर्ट का मानना है।

दूसरा होता हे बॅलन्स बजट जिसमे इनकम और खर्चा समान होता हे। सबसे आखरी स्पेशल बजेट जिसमे खर्चा और इनकम इसमें इनकम अधिक होता हे जो दुनिया के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलता यह काफी कम और छोटे देशो में देखने को मिलता है।

गवर्नमेंट बजेट और गवर्नमेंट पॉलिसी / Government Budgets & government Policies –

किसी भी देश का बजट उस देश की पॉलिसी निर्धारित करती है इसलिए भारत की बात करेंगे तो १९९० के बात कई सारे बदलाव भारत के बजट में देखने को मिलते है। जिसमे सोशलिस्ट पॉलिसीस को बदलकर कॅपिटलिस्ट पॉलिसीस में बदला गया जिससे किये जाने वाले खर्चो की प्राथमिकता को बदल दिया गया।

सुरक्षा बजट की राशि को धीरे धीरे बढ़ाया गया तथा सोशल वेलफेयर के कई सारे प्रावधान धीरे धीरे हटा दिए गए और विनिवेश की पॉलिसी तहत सरकारी कंपनियों का निजी करण किया गया जिसके कारन बजट में काफी बदलाव देखने को मिले और सरकार को काफी राशि उपलब्ध हुई जो १९९० में जो समस्या निर्माण हुई थी इसका इलाज था।

यह पॉलिसीज कितनी सही हे और गलत हे यह काफी विवाद का तथा विश्लेषण का विषय हमेशा से रहा है मगर आर्थिक रूप से १९९० के बाद सरकार के काफी पैसा आया है। कोई भी शिक्षा निति पर तथा रिसर्च और डेवलपमेंट पर कितना पैसा खर्च करता हे उसपर उस देश की भविष्य की एक्सपोर्ट इम्पोर्ट निति तय होती है।

राजकोषीय घाटा क्या होता है ? / What is Fiscal Deficit –

दुनिया के चाहे विकसित देश हो अथवा विकसनशील देश हो सोशलिस्ट देश अथवा कॅपिटलिस्ट देश हो राजकोषीय घटा लगबघ सभी देशो में औसतन १० % देखने को मिलता है जिसमे यह अकड़े कितने सही होते हे और कितने गलत यह भी विश्लेषण का विषय है। यहाँ हमारा उद्देश्य आपके सामने अकड़े प्रस्तुत करना नहीं हे, हमारा उद्देश्य गवर्नमेंट बजेट का तार्किक रूप से विश्लेषण करना है।

खुली अर्थ व्यवस्था के कारन कोई भी देश की कंपनी किसी भी देश में अपना व्यवसाय करती है जिससे मिलाने वाला प्रॉफिट वह उस कंपनी को मिलता हे और उसका निकाला हुवा उत्पादन यह देश का जीडीपी होता हे जिस देश में वह कंपनी स्थापित की हुई है। इसलिए जीडीपी के अकड़े कितने सही हे यह एक्सपर्ट्स ही बता सकते है।

१९७० के बाद अमरीका ने कागजी चलन के लिए गोल्ड की सिक्योरिटी को हटा दिया और बजट का राजकोषीय घाटा कम करने के लिए अतिरिक्त पैसा मार्किट में लाया जिसका परिणाम महंगाई निरंतर लोगो की खरीद क्षमता को कम करने लगी जिससे अर्थव्यवस्था में पूंजी तो काफी बढ़ी मगर लोगो की खरीद क्षमता कम होते गयी यह वास्तव हमें समझना होगा।

सरकारी बजेट की प्राथमिकताए / Priorities of Government Budget –

भारत की स्वतंत्रता को लगबघ ७५ साल पुरे होने को आए हे और हम अभीभी हमारी प्राथमिक कारणों पर काम कर रहे है। इसलिए संविधान में देश के सरकार की क्या प्राथमिकताए होनी चाहिए इसके लिए मार्गदर्शक तत्व दिए गए है। विकसित देशो का अध्ययन करेंगे तो देखेंगे की वह देश की आय कैसे बढ़ेगी और संशोधन , शिक्षा पर ज्यादा खर्च कैसे किया जाए इसपर ध्यान देते है।

हमारी समस्या यह हे की पिछले ७५ सालो से हम शिक्षा , स्वास्थ्य , रोजगार और गरीबी इसपर ही कार्य कर रहे है, हमें शिक्षा और संशोधन पर ज्यादा ध्यान देना होगा जिससे हमारा आत्मनिर्भर बनने का उद्देश्य पूरा होगा और हमारा निर्यात बढ़ेगा। आज हमारी स्थिति ऐसी हे की हमारा आयत निर्यात से काफी ज्यादा हे जिससे विकसित देश बनने के लिए सबसे बड़ी बाधाए है।

हमें भारत के बजट में शिक्षा और संशोधन पर ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा क्यूंकि बहुत सारे उद्योजक यह कह चुके हे की हमारी शिक्षा प्रणाली लायक एम्प्लोयी निर्माण करने में असफल रहे है। इसलिए हमें शिक्षा और संशोधन पर बजेट में ज्यादा नियोजन करना होगा जिससे हमारा निर्यात बढ़ने में जितनी क्षेत्र में प्रोस्ताहन देना चाहिए वह हमें करना होगा। विदेशी निवेश को बढ़ाना यह थोड़े समय के लिए देश की समस्या को सुलझा सकता हे मगर लम्बे अवधि के लिए हमें शिक्षा और संशोधन पर पैसा लगाना होगा।

रेल्वे बजट का इतिहास / History of Railway Budget –

ब्रिटिश इंडिया में भारतीय रेलवे अर्थव्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था तथा ४० % से ज्यादा इनकम रेल्वे से ब्रिटिश इंडिया से लेकर भारत की बजट तक आता था जो धीरे धीरे कम होने लगा और रेलवे के लिए काफी पर्याय निर्माण होने लगे।

मगर रेलवे सामान्य लोगो के लिए आज भी काफी महत्वपूर्ण जरिया माना जाता हे तथा दूसरे प्रवासी पर्याय से काफी सस्था माध्यम माना जाता है जिसका जाल ब्रिटिश इंडिया से भारत में काफी बड़ा रहा हे जिसको स्वतंत्र भारत में २० % भी नहीं बढ़ाया गया हे चाहे कोई भी सरकार हो यह काफी खेद की बात रही है।

विलियम मिचेल एकवर्थ यह एक रेलवे विशेषज्ञ रहे हे जिन्होंने १९२१ में एक रिपोर्ट बनाई और ब्रिटिश गवर्नमेंट को पेश की जिसमे रेलवे बजट और सामान्य गवर्नमेंट बजट को अलग रखने की सिफारिश उन्होंने की जिसका अमल हमें स्वतंत्र भारत में भी देखने को मिलता है। भाजपा सरकार ने २०१६ को ९२ साल पुराणी परंपरा को बदल कर रेलवे बजट और सामान्य बजट को एक कर दिया है।

बजेट की प्रक्रिया / Process of Government Budget –

भारत की संविधान के आर्टिकल ११२ के अनुसार देश का फाइनेंसियल स्टेटमेंट राष्ट्रपती की मान्यता से हर साल संसद में पेश किया जायेगा ऐसा प्रावधान किया गया है। जिसकी प्रक्रिया काफी गुप्त राखी जाती है और बजट पर काम करने वाले कर्मचारी तथा अन्य लोगो को इस प्रक्रिया में पहले इसके प्रिंटिंग का काम राष्ट्रपती भवन से किया जाता था मगर बाद में यह बदलकर वित्त मत्रालय के बिल्डिंग में बनाया जाता है।

संसद में यह बजट हर साल सादर होने तक इसमें गुप्तता रखी जाती हे जो संसद में किसी भी सदस्यों को नहीं पता होता केवल वित्त विभाग के लोगो को पता होता है। जिसपर संसद में चर्चा होती और कुछ बदलाव के साथ दोनों हाउसेस में पेश करके वित्त मत्री इसको पास करते हे और आखिर में इसपर राष्ट्रपती द्वारा साइन किया जाता है।

गवर्नमेंट के इस मुख्य बजट में इनकम टॅक्स कानून में हर साल बदलाव किये जाते है तथा अन्य टॅक्स [प्रावधानों पर चर्चा करके बदलाव किये जाते है और आर्थिक निति के अनुसार बजट पेश किया जाता हे जिसका एक्सेक्यूशन संसद में बजट पेश होने के बाद किया जाता हे परिणाम देश की अर्थव्यवस्था पर तथा शेयर बाजार पर पड़ता है।

बजट के मुख्य प्रावधान / Provisions of budget –

  • सुरक्षा खर्चा
  • इनकम टॅक्स प्रावधान
  • जीडीपी आंकड़े
  • खेल के लिए प्रावधान
  • कृषि के लिए प्रावधान
  • शिक्षा के लिए प्रावधान
  • स्वास्थ्य के लिए प्रावधान
  • कॉर्पोरेट
  • इंफ्रास्ट्रक्चर
  • अन्य प्रावधान

देश के सभी राज्यों के वित्त बजेट / State Government Budgets –

भारत का संविधान यह अपने राज्यों को कानून बनाने का अधिकार देता हे, इसका मतलब हे की लिस्ट तीन -कॉन्करेन्ट लिस्ट में राज्योंके अधिकार दर्शित किये हे जिसमे कानून बनाने का अधिकार तथा राज्यों की सरकार चलाने के लिए टॅक्स प्रणाली तैयार करने का अधिकार भी समाविष्ट है।

जिससे हम कह सकते है की केंद्र सरकार पुरे देश के लिए वित्त बजट पेश करती हे वैसे ही देश के सभी राज्य अपने राज्य को चलाने के लिए हर साल बजट अपने विधानसभा में पेश करते है। वित् बजट पेश करने की प्रणाली अपने सिमित राज्य के लिए होती हे तथा उसका ढांचा केंद्र सरकार की वित्त बजट की तरह ही होता है।

हर राज्य अपनी अंदरूनी अर्थव्यवस्था के अनुरूप उसके बजट की क्षमता रहती हे जैसे महाराष्ट्र का बजट भारत में सबसे बड़ा होता हे क्यूंकि मुंबई पुणे जैसी आर्थिक शहरों की वजह से इसकी टैक्स कलेक्शन की प्रणाली दूसरे राज्यों से काफी बड़ी हे। केंद्र की तरह हर राज्यों के वित्त मंत्री उस राज्यों का वित्त बजट अपनी विधानसभा में पेश करते है।

खुली अर्थ व्यवस्था के कारन अब हर राज्योंको विदेशी कंपनियों से सीधा अपने राज्यों के लिए निति बनाने का अधिकार मिलाने से कर्नाटक , गुजरात और कई सारे दूसरे राज्यों की अर्थव्यवस्था सुधारने लगी हे क्यूंकि विदेशी कम्पनिया आने से रोजगार और उसके अनुरूप व्यवसाय उद्योग बढ़ने से वह की अर्थव्यवस्था बढ़ने लगी है। जिससे उन राज्यों के बजट में इनकम की बढ़ौतरी कुछ दिनों से हमें देखने को मिलती है।

भारतीय वित्त बजेट की विशेषताए / Features of India’s Finance Budget –

  • वित्त मत्री निर्मला सीतारमण ने पहली बार २०२१ में डिजिटल बजट पेश किया इससे पहले पारम्परिक तरीके से लेदर सूटकेस में यह बजट पेश किया जाता था।
  • भारत का वित्तीय बजट यह आर्थिक वर्ष अप्रैल से शुरू होकर अगले वर्ष के मार्च में ख़त्म होता हे जिसका लेखा जोखा बजट में पेश किया जाता है।
  • वित्त बजट की परंपरा यह ब्रिटिश इंडिया से हमें देखने को मिलती है।
  • संविधान में आर्टिकल ११२ के तहत संसद को हर साल देश का आर्थिक ब्यौरा देना होगा ऐसा प्रावधान किया हुवा है।
  • गवर्नमेंट इस वित्त बजट में अगले साल रेवेनुए कितना होगा तथा खर्चा कितना होगा इसका ब्यौरा पेश करता हे जिसमे दो तरह से विभाजन किया जाता है , रेवेनुए बजट और कॅपिटल बजट।
  • रेवेनुए बजट में रेवेनुए रिसीप्ट्स और रेवेनुए एक्सपेंडिचर का ब्यौरा होता हे और कैपिटल बजट में कैपिटल रिसीप्ट्स और पेमेंट्स होता है।
  • वित्त बजट में भारत सरकार ने २० -२१ के लिए ३४.५० लाख करोड़ रुपये खर्च किये थे जो नियोजन से १३ % ज्यादा हे।
  • वित्त बजट में रेवेनुए रिसीप्ट्स १९.७६ लाख करोड़ रूपए नियोजित किया था मगर वास्तिविकता में २९ % कम रेवेनुए जमा हुवा है।
    इनकम टॅक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किये गए है।
  • वित्त मत्री निर्मला सीतारमण यह देश की पहली पूर्ण कालीन वित्त मातृ महिला रही हे इंदिरा गाँधी ने वित्त बजट पेश किया था जो थोड़े समय के लिए वित्त मत्रालय अपने पास रखा था और वह देश की प्रधानमंत्री थी।
  • पहले रेलवे बजट अलग से पेश किया जाता था जो भाजपा सरकार ने २०१६ में मूल बजट में शामिल किया गया।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने भारत का वित्त बजट क्या होता हे यह जानने की कोशिश की हे जिससे सामान्य लोगो से लेकर बड़े बड़े कॉर्पोरेट कंपनियों पर असर हमें देखने को मिलता है। सामान्यतः लोगो को बजट के बारे में जानकारी मीडिया द्वारा क्या सस्ता हुवा हे और क्या महंगा हुवा हे इस तरह से पेश किया जाता है मगर देश का वित्त बजट इससे कई ज्यादा जटिल होता है।

जिसमे सरकार ने किस योजना के लिए अगले साल ज्यादा महत्त्व दिया हे और पिछले साल उस योजना के लिए क्या प्रावधान किये थे इससे सरकार की निति क्या होगी यह हमें समझमे आता है। हम गणतंत्र लोकतान्त्रिक व्यवस्था में रहते हे जिससे हमें देश में किसपर खर्चा किया जाता हे और देश का पैसा कैसे इस्तेमाल होता हे इसकी जानकारी हासिल करना अधिकार होता है।

देश की आर्थिक सफलता अपने खर्चो की प्राथमिकता पर आधारित होती है इसलिए रिसर्च और डेवलपमेंट , शिक्षा और उच्च शिक्षा , आरोग्य ऐसी प्राथमिकता के मुख्य अंग होने चाहिए मगर सुरक्षा , इंफ्रास्ट्रक्चर , कॉर्पोरेट यह प्राथमिकता कॅपिटलिस्ट पॉलिसी के तरफ झुकाव का लक्षण दिखाती है।

पब्लिक वेलफेयर पर खर्चा कम करना यह खुली अर्थव्यवस्था की पॉलिसी मानी जाती है जो कितनी योग्य अथवा अयोग्य हे इसपर काफी मंथन हमें बुद्धिजीवी द्वारा देखने को मिलता है। इसतरह से हमने आपके लिए आवश्यक जानकारी बजेट के बारे में बताने की कोशिश की है।

 

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