प्रस्तावना / Introduction –

“King of Good Times ” एक ज़माने में जिसकी लाइफस्टाइल ही उनके बिज़नेस की ब्रांड वैल्यू थी ऐसे व्यक्ती को दिवालिया घोषित किया जाना यह बहुत ही पेनफुल सफर होता हे किसी भी बिज़नेसमन के लिए। इसलिए कई बार कहा जाता हे की हम जिस समाज में रहते हे उस समाज के प्रती संवेदनशील रहके प्रगती करना कभी भी अच्छा होता है और कंपनी के एम्प्लाइज कंपनी के एसेट्स होते हे उनके प्रती सवेदनशील होना एक मैसेज देता हे समाज को आप के प्रती।

सही समय पर सही निर्णय और बहुत सारा असफलता का अनुभव चाहे वह खुद के हो या दुसरो से सीखे हुए हो। निरंतर सफलता कभी कभी अति आत्मविश्वास निर्मान करती है और सोचने की शक्ती ख़त्म करती है ऐसा ही कुछ यूनाइटेड ब्रेवरीज के २८ साल की उम्र में चेयरमैन बने विजय माल्या के साथ हुवा किंगफिशर एयरलाइन की असफलता और विवाद के बाद उनको UB ग्रुप से रिजाइन करना पड़ा और नए चेयरमैन बने Diageo ने उनपे $181 मिलियन का फ्रॉड का केस फाइल किया था।

उनका ओरिजिनल बिज़नेस बियर प्रोडक्शन था और वह अच्छा परफॉरमेंस दे रहा था भारत की बात करे तो इस सेक्टर में डोमिनेट कर रहा था मगर डेक्कन एयरलाइन्स को खरीद ना उनका सबसे गलत निर्णय था। यह लॉजिकल निर्णय नहीं था इमोशनल निर्णय था क्यूंकि उनको इंटरनेशनल फ्लाइट्स के लिए परमिशन नहीं मिल रही थी। यहाँ हम कौन गलत हे और कौन सही यह नहीं देखेंगे हम फैक्ट्स पे चर्चा करेंगे और उनके और उनके प्रस्थापित ब्रांड को कैसा धक्का लगा यह विश्लेषण करके देखेंगे।

किंगफ़िशर / Kingfisher –

UB ग्रुप की सब्सिडरी कंपनी १९७८ में स्थापित की गयी थी और विजय माल्या १९८३ से इसके चेयरमैन रहे थे इस कंट्रोवर्सी के होने तक। किंगफ़िशर ब्रांड २०१२ के मोस्ट ट्रस्टेड ब्रांड में शुमार था कहने का मतलब कंपनी का यह प्रोजेक्ट अच्छा प्रदर्शन कर रहा था।

१९९६ के क्रिकेट वर्ल्ड कप में किंग फिशर कंपनीने वेस्ट इंडीज टीम को स्पोंसर किया था और यह ब्रांड में काफी अच्छा परफॉरमेंस कर रहा था। इसबीच उन्होंने काफी सारे सेक्टर में बिज़नेस करने की कोशिश की मगर बाद में बियर प्रोडक्शन पर ध्यान देना शुरू किया और भारत का नम्बर वन ब्रांड बनाया।

रॉयल चैलेंजर बंगलौर यह आईपीएल क्रिकेट फ़्रेंचाइज़ को २००८ में विजय माल्या ने यूनाइटेड स्प्रिट्स के माध्यम से ख़रीदा। ऐसे बहुत सारे क्षेत्रो में उन्होंने हात आजमाया और उनकी सबसे बड़ी गलती रही एविएशन सेक्टर में आना जो एक सबसे कम मार्जिन वाला सेक्टर परन्तु एक स्टेटस सिम्बल की तरह बिज़नेस था जिसमे प्रॉफिट मेकिंग कंपनी बनाना बहुत ही स्किल फूल काम होता है।

विजय माल्या के बारे में / Vijay Mallya –

विजय माल्या को बिज़नेस अपने पिताजी के विरासत में मिला जो UB ग्रुप के चेयरमैन थे और उनके देहांत के बाद २८ साल की उम्र में उन्होंने कंपनी को अपने हाथो में लिया और किंग फिशर ब्रांड को भारत में और दुनिया का एक प्रस्थापित ब्रांड बनाया।

वह उनके लक्सरी लाइफ के लिए जाने जाते थे और उन्होंने कुछ ऐतिहासिक वस्तुओ के ऑक्शन में कुछ चीजे खरीदी थी जो काफी चर्चा में रही। किंगफ़िशर की कैलेंडर के प्रकाशन के लिए वह काफी चर्चा में रहते थे।

वही उनके किंगफ़िशर ब्रांड का बढ़ने का सबसे बड़ा कारन था क्यूंकि भारत में बियर प्रोडक्शन के इस्तेहार को परमिशन नहीं हे फिर भी उन्होंने किंगफ़िशर ब्रांडिंग इवेंट आर्गनाइज्ड करके , क्रिकेट स्पोंसरशिप्स जैसी चीजों के कारन खूब ब्रांडिंग की और भारत का उस क्षेत्र में नम्बर वन ब्रांड बनाया और आज भी वह अच्छा परफॉरमेंस दे रहा है।

भले ही अब इन किसी कंपनी में वह किसी पोजीशन पर नहीं रहे मगर उनके काम खास कर इस प्रोडक्ट के लिए सफल रहे।

किंगफ़िशर एयरलाइन्स की स्थापना / Formation of Kingfisher Airlines –

किंगफ़िशर एयरलाइन्स की स्थापना २००३ को की गयी और जो २०१२ सिज़ कर दी गयी थी। मगर जब इसकी शुरुवात की थी । किंगफ़िशर ब्रांड भारत की मार्किट का एक बहुत बड़ा ब्रांड बन चूका था और डोमेस्टिक फ्लाइट्स में किंगफ़िशर एयरलाइन्स सबसे अच्छा विकल्प लोगो के लिए काफी जलदी बन चूका था ।उसके लक्सुरिअस सर्विसेज की वजह से २००८ तक सब कुछ अच्छा चल रहा था |

कंपनी के लिए मगर कंपनी अपनी फ्लाइट्स अब इंटरनेशनल लेवल पर चलाना चाहती थी और उसके लाइसेंस लगबघ पांच साल के इस क्षेत्र के अनुभव के बाद मिल सकते थे ऐसा सरकारी नियम था।एविएशन सेक्टर की समस्या यह होती हे की इसमें प्रॉफिट ऑफ़ मार्जिन बहुत कम होता है इसलिए अच्छा मुनाफा कमाने के लिए कंपनियों को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी और उस दौर में मंदी और क्रूड ऑइल के अंतराष्ट्रीय दर बढ़ने की वजह से इस क्षेत्र के प्रॉफिट पे बहुत बुरा असर पड़ा था।

किंगफ़िशर एयरलाइन्स का बिज़नेस मॉडल / Business Model of Kingfisher Airlines –

भारत में शराब के बिज़नेस को समाज में नकारात्मक दृष्टी से देखा जाता हे, इसलिए किंगफ़िशर भले ही भारत का एक बड़ा ब्रांड था मगर इसे सीधे तौर पर ब्रांड बनाने की अनुमति नहीं थी। इसलिए किंगफ़िशर सोडा के रूप में इसको ब्रांड बनाया गया। मगर फिर भी भारत में विजय माल्या को बाकि बिज़नेस पर्सनालिटी जैसी सफलता नहीं मिल रही थी अथवा वह इज्जत नहीं मिल रही थी इसलिए उन्होंने किंगफ़िशर एयरलाइन बिज़नेस के माध्यम से इस ब्रांड को भारत में सकारात्मक तरीके से प्रस्थापित करने की कोशिश की थी।

एविएशन क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले यह बिज़नेस मॉडल सस्ते टेर्रिफ के माध्यम से चलाए जा रहे थे जिसमे प्रॉफिट मार्जिन काफी काम था। विजय माल्या ने अपने लक्ज़री जीवनशैली की तरह किंगफ़िशर एयरलाइन को बनाने का निर्णय लिया और इसके लिए उन्होंने काफी पैसा लगाया। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या यह रही की विमान चलाने के लिए जो तेल लगता था उसकी कीमते हर समय बदलती रहती है, जिसके कारन प्रॉफिट ऑफ़ मार्जिन में जोखिम काफी बढ़ गयी थी।

अंतराष्ट्रीय सेवाए देने के लिए सरकार के कुछ मानक थे , जिसके हिसाब से कंपनी को कुछ दी इस क्षेत्र में काम करना था , मगर विजय माल्या इस कंपनी को तेजी से इस क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी बनाना चाहते थे। इसलिए वह प्रस्थपित बिज़नेस मॉडल से हटकर कुछ नया करना चाहते थे और इसके लिए वह काफी पैसा इन्वेस्ट कर चुके थे जो बैंको से कर्ज के स्वरुप में मिल रहा था और वह भी कंपनी के मुलभुत कीमत पर नहीं बल्कि कंपनी के बिज़नेस ब्रांड पर जो बड़ी आश्चर्य की बात थी।

टेक ओवर ऑफ़ डेक्कन एयरलाइन्स / Takeover of Deccan Airlines –

जब किंगफ़िशर ने २००७ को डेक्कन एयरलाइन्स को ख़रीदा तब डेक्कन एयरलाइन्स बुरे दौर से गुजर रहा था अर्थव्यवथा मंदी के दौर से गुजर रही थी किंगफ़िशर को इंटरनेशनल फ्लाइट्स उड़ानी थी यानी किंगफ़िशर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उतरना था डोमेस्टिक मार्किट में अबतक सबकुछ अच्छा चल रहा था किंगफ़िशर ने कुछ ही दिनों में एयरलाइन इंडस्ट्री में खुद को प्रस्थापित कर लिया था बस प्रस्थापित ही नहीं किया बल्कि इस क्षेत्र की अव्वल कंपनी बन चुकी थी|

मगर उनको इंटरनेशनल फ्लाइट्स उड़ानी थी और सरकार इसके लिए परमिशन नहीं दे रही थी। उस समय नियम था की अंतराष्ट्रीय फ्लाइट्स उड़ने के लिए पांच साल का डोमेस्टिक अनुभव होना जरुरी हे। यह कानून में बदलाव करने के लिए विजय माल्याजी ने बहुत कोशिश की वह खुद भी मेंबर ऑफ़ पार्लियामेंट थे राजयसभा के मगर सफल नहीं हुए इसलिए पहले एयर सहारा को खरीद ने की कोशिश की मगर उसमे सफल नहीं हुए और आखिर २००७ डेक्कन एयरलाइन्स को खरीद लिया।

किंगफ़िशर एयरलाइन्स डूबने की कहानी / Failure of Kingfisher Airlines –

किंगफ़िशर एयरलाइन्स का डेक्कन एयरलाइन्स को खरीदना विजय माल्याजी का उनके जिंदगी का सबसे बुरा निर्णय रहा क्यूंकि डेक्कन एयरलाइन्स उनके इकोनोमिकल बिज़नेस मॉडल की वजह से एयरलाइन्स इंडस्ट्री में प्रसिद्ध थी और किंगफ़िशर एयरलाइन्स उनके लक्सुरियस सर्विसेज की वजह से कस्टमर्स में प्रसिद्द थी।

दोनों की Policies बिलकुल अलग थी उसमे भी डेक्कन एयरलाइन्स नुकसान में चल रही थी। किंगफ़िशर एयरलाइन का लक्सुरियस प्रोडक्ट कंपनी ने वैसे ही रखा और डेक्कन एयरलाइन्स का नाम बदल के किंगफ़िशर रेड रखा शुरुवाती दिनों में उसके टेर्रिफ कम रखे जैसे डेक्कन एयरलाइन्स के थे मगर सर्विसेज अच्छी देनी शुरू की जो पहले यह कंपनी पानी भी एयरलाइन्स में बेचती थी।

इससे किंगफ़िशर एयरलाइन के कस्टमर किंगफ़िशर रेड को प्रेफरेंस देने लगे इससे किंगफ़िशर एयरलाइन्स को नुकसान होने लगा। डेक्कन एयरलाइन्स को खरीद ने का उद्देश्य इंटरनेशनल एयरलाइन्स में प्रवेश करना मगर दूसरे प्रतिस्पर्धी के कस्टमर खींचने के बजाय खुद की दोनों कम्पनीओ में प्रतिस्पर्धा होने लगी। इसलिए फिर किंगफ़िशर रेड की पालिसी में बदलाव किये गए और टेर्रिफ बढ़ाये गए।

इस दौरान किंगफ़िशर का नुकसान बहुत बढ़ चूका था उसमे भी पालिसी बदल ने वजह से जो कस्टमर किंगफ़िशर रेड के पास थे वह दूसरे कंपनी की सर्विसेज पसंद करने लगे और दोनों किंगफ़िशर की कम्पनिया नुकसान में जाने लगी। २०१२ आते आते किंगफ़िशर कोई भी पेमेंट देने में असफल रही और दिवालिया घोषित कर दी गयी। लगबघ १२ बैंको का लोन जो ९००० करोड़ का और उसका ब्याज अलग से यह देने में कंपनी ने असमर्थता दर्शायी।

किंगफ़िशर एयरलाइन्स दिवालिया होने के कारन / Bankruptcy of Kingfisher Airlines –

किसी भी कंपनी की सफलता उसके मैनेजमेंट पर निर्भर करती हे विजय माल्या का उनके बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स पर बहुत प्रभाव था और ऐसा कहा जाता हे की सभी निर्णय बहुत ही आक्रामक तरीके से लेने की उनकी आदत थी जब तक उनके निर्णय सही जा रहे थे तब तक ठीक चल रहा था|

मगर इससे कंपनी में एक निर्णय लेने का पैटर्न बन चूका था जो डेक्कन एयरलाइन टेकओवर के निर्णय ने किंगफ़िशर ब्रांड को बनाने में जो मेहनत विजय माल्या ने ली थी वह एक निर्णय ने ख़तम कर दी इस वजह से उनको UB ग्रुप तथा अन्य सारि कंपनी के चेयरमैन पद से हटना पड़ा। मगर जो खामिया रही इस असफलता में वह आगे दी है।

  • जिस क्षेत्र में कंपनी अच्छा चल रही थी उस क्षेत्र के आलावा नए क्षेत्र में निवेश करना सही होता हे मगर एयरलाइन्स क्षेत्र चुनना यह सबसे बड़ी गलती थी।
  • बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स पर पूरा नियंत्रण होने की वजह से निर्णय प्रकिर्या एकाधिकार बन चुकी थी और इससे लॉजिकल निर्णय कम आते हे और महत्वकांशी निर्णय ज्यादा आते है।
  • एयरलाइन्स इंडस्ट्रीज में प्रवेश करना एक गलत बिज़नेस स्ट्रेटेजी थी भले इससे पहले सभी निर्णय विजय माल्या के अच्छे जा रहे थे।
  • टेकओवर की जो टाइमिंग थी व बहुत ही गलत टाइमिंग थी और उस वक्त एविएशन मार्किट बुरे दौर से गुजर रहा था।
  • फाइनेंसियल मैनेजमेंट और स्ट्रेटेजी करने में मैनेजमेंट विफल रहा।
  • भारत में बिज़नेस करते समय लोगो की भावनाओ का विचार करना जरुरी होता हे , जब किंगफ़िशर एयरलाइन कर्मचारियों के वेतन कई दिनों से नहीं मिल रहे थे उस वक्त विजय माल्या अपना ६० वा बर्थडे सेलिब्रेशन धूमधाम से मना रहे थे जिससे समाज में गलत मैसेज गया जिसका नुकसान कंपनी और विजय माल्या को हुवा।
  • कानूनी तौर पर विजय माल्या अपनी व्यक्तिगत संपत्ति से कर्मचारियों के वेतन देने के लिए बाध्य नहीं थे, मगर वह ऐसा करते तो उनपर होने वाली करवाई में फर्क पड़ता क्यूंकि इससे समाज में एक सकारात्मक सन्देश जा सकता था।

विजय माल्या और भारत सरकार की कानूनी लड़ाई / Legal Dispute of Vijay Mallya & Indian Government –

जब यह सब प्रक्रिया चल रही थी २०१२ से और हमारी सभी महत्वपूर्ण संस्थाओ को पता था की वह भारत छोड़ के जा सकते हे तो ऐतिहात क्यों बरते नहीं गए यह सवाल खड़े होते हे। सरकारी बैंको का पैसा मतलब वह देश का पैसा हे और देश का पैसा लोगो की टैक्स से आता हे जिससे बैंक चलते हे, इसलिए इन सभी प्रक्रिया में सिस्टम कही न कही कमजोर नजर आता हे जिसे समाज को देखना होगा और इसको अच्छा करने के लिए पहल करनी होगी नहीं तो विजय माल्या भारत छोड़कर नहीं जा सकते थे।

अमरीका में बिज़नेस असफल होना एक सामान्य प्रक्रिया समझी जाती है अमरीका के राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रम्प अपने जीवन में दिवालिया हो चुके है मगर अमरीका में कानून बनाकर बुसिनेसेस को फिर से खड़ा किया जाता है। वह एक पूरी तरह से पूंजीवादी देश होने की वजह से वह के उद्योगों को काफी सुरक्षा प्रदान की जाती है।

भारत में भी Insolvency & Bankruptcy Code के रूप में २००२ को दिवालिया कंपनी की सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए है तो सवाल हे क्या विजय मल्ल्या यह एक क्रिमिनल हे अथवा वह एक राजनितिक बलि का बकरा बनाए गए है ? यह हमें समझना होगा मीडिया के भरोसे कीसी निष्कर्ष पर पहुंचना खतरनाक होगा।

उन्होंने ने इंग्लैंड में शरण ली इसका कारन हे यूरोप तथा अमरीका में बिज़नेस में दिवालिया होना कोई जुर्म नहीं है तथा भारत में भी इसे जुर्म नहीं माना जाता क्यूंकि IBC कानून संसद में बनाकर दिवालिया कंपनियों को सुरक्षा दी गयी हे। सवाल हे यह प्रकरण इतना क्यों उछाला जा रहा हे, वैसे देखा जाए तो हर्षद मेहता और सत्यम घोटाला इससे यह मामला काफी अलग हे। बैंको के अधिकारियो का आचरण इसमें काफी संदेहास्पद नजर आता हे जिससे हमारी नौकरशाही के कई ऐब नजर आते है।

विजय माल्या ने इंग्लैंड में शरण क्यों ली ?

अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश एक दूसरे के साथ ट्रीटीज करते हे जिससे कानूनी प्रक्रिया में कोई बाधा न आये एक दूसरे के देश में गुनाह होने का फायदा कोई ले इसलिए यह करार सभी देश एकदूसरे के साथ करते है। इसे कानूनी भाषा में एक्सट्रडीशन और असायलम कहते हे जिसमे अपराधी दूसरे देश में शरण लेता हे और अगर वह देश उसे संरक्षण देता हे तो उसे असायलम कहते हे नहीं तो उसका एक्सट्रडीशन याने प्रत्यर्पण दूसरे देश को करती है।

इंग्लैंड का पिछले इतिहास इस बारे में देखे तो बहुत ही रेयर मामले में उन्होंने प्रत्यर्पण किया हे और अपराधी सरक्षण में ह्यूमन राइट्स का मुद्दा उठाके एक्सट्रडीशन प्रक्रिया को विफल कर देते है। हमारी समस्या यह हे की हमारी न्याय व्यवस्था में न्याय मिलाने में देर लगती हे और अंडर ट्रेल कैदीयो की समस्या सबसे मूल कारन हे इसका ही बेनिफिट लेके अपराधी इंग्लैंड में एक्सट्रडीशन को पाने में विफल हो जाते है।

यूनाइटेड ब्रेवरीज ग्रुप / United Braveries Group –

इस सब घटनाओ के बाद यूनाइटेड ब्रेवरीज के चेयरमैन बदल चुके हे और सभी सब्सिडारिज कंपनी के मैनेजमेंट UB ग्रुप ने बदल दिए जहा विजय माल्या का प्रभाव था चाहे वह रॉयल चैलेंजर बंगलोरे क्रिकेट टीम हो या अन्य कम्पनिया बलकि UB ग्रुप के स्थायी चेयरमैन ने विजय माल्या पर फ्रॉड का केस दायर किया हे इससे ऐसा लगता हे की जो कंपनी आज खुद को विजय माल्या से अलग कर वह अपने business में आगे बढ़ चुकी हे कानूनी तौर पर वह एक अलग लीगल एंटिटी है।

किंगफ़िशर एयरलाइन्स यह कंपनी हे जो कंट्रोवर्सी में फसी हे और दिवालिया हुई है। विजय माल्या के प्रभाव में जो भी व्यवहार हुए हे यह सब कानूनी प्रक्रिया में सामने आये है।

निष्कर्ष / Conclusion –

अंत में जो सफर बहुत ही तेज और आक्रामक तरीके से शुरू हुवा था और जिन्हे “King of Good Times ” कहा जाता था उन्हके लिए ऐसा भी समय आ सकता हे यह एक बिज़नेस या एन्टेर्प्रेनुएर होने की प्रेरणा को ख़तम करते है। बिज़नेस में असफल होना यह एक बिज़नेस का हिस्सा माना जाता हे मगर भारत में असफल होना यह सबसे बड़ा गुनाह समझा जाता है। सवाल हे विजय मल्ल्या ने क्या बैंको को फ़साने के उद्देश्य से पैसा कर्ज लिया ? इसमें बैंक अधिकारियो का आचरण भी संदेहास्पद है यह हमें नहीं भूलना चाहिए।

उनके जैसा बनना शुरुवाती सफल दौर में बहुत सारे लोगो ने सपना देखा होगा मगर इससे एक सिख मिलती हे सामाजिक दृष्टिकोण रखके आगे बढ़ा जाये तो आपको कोई सफल होने से रोक नहीं सकता मगर संवेदना हिन् जीवन जीना और अपने ही लाइफस्टाइल में जीना यह सब से घातक निर्णय होता हे क्यूंकि यहाँ कोई अमर नहीं हे निर्णय सभी के गलत हो सकते हे मगर सही वक्त पर सही निर्णय लेना और सादगी भरा जीवन जीना कभीभी अच्छा होता हे बुरे वक्त में वही काम आता है।

बाकि विजय माल्या जी सही हे या गलत वह कानून तय करेगा उनका इंटेंशन पैसा डुबाने का था या नहीं वह भविष्य में पता चलेगा जब तथ्य कानून के सामने आएंगे। मगर सरकारी बैंको का पैसा मतलब जनता का पैसा और एकतरह से देश का पैसा इसलिए वह वापिस मिलना चाहिए और सभी बिज़नेस एन्टेर्प्रेनुएर के जीवन में असफलता आती हे मगर ईमानदारी रखना बहुत कठिन बात होती है।

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