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प्रस्तावना / Introduction –

१९ वी सदी यह दुनिया के लिए आर्थिक तथा राजनितिक तौर पर एक बहुत बड़ा बदलाव बनके सामने आयी थी।दूसरा विश्वयुद्ध और आधे दुनिया पर मार्क्सवाद का प्रभाव, राजतन्त्र का अंत तथा लोकतंत्र का उदय यह दौर दुनिया ने देखा जो इतिहास के दृष्टिकोण से सामाजिक और राजनितिक बदलाव का महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता हे ।

कार्ल मार्क्स जिस दौर में थे वह दौर था औद्योगीकरण का शहरीकरण का जिसमे लोगो का शहरों की तरफ स्थलांतरित होने का दौर था और लोग गांव में खेती करने के बजाय शहरों में काम करना पसंद करते थे जहा ज्यादा पैसा मिलने लगा था। जिसकी वजह से कार्ल मार्क्स के विचार पूर्णतः इस वातावरण में निर्माण हुए जहा पूंजीवाद लोगो का शोषण कर रहा हे और १६ -१६ घंटे लोगो से काम करावा रहा है।

आज के दौर में मार्क्सवाद असफल हुवा हे इसके कारन हम ढूंढने की कोशिश करेंगे तथा सचमुच मार्क्सवाद सामान्य लोगो को न्याय दिलाने के लिए निर्माण किया था ? जब हम अडोल्फ हिटलर की जीवनी पढ़ते हे तो वह इस कम्युनिज्म से काफी तिरस्कार करते थे और कहते थे, ऐसे कई सवालों पर यहाँ हम देखेंगे। कार्ल मार्क्स और उनके विचारो को विचारो को जानने की कोशिश करेंगे।

कार्ल मार्क्स (१८१८ -१८८३) / Karl Marx (1818 -1883) –

कार्ल हेनरिच मार्क्स इनका जन्म ५ मई १८१८ को परशिया (जर्मनी) में हुवा था जो एक समाजशास्त्री , अर्थशास्त्री , इतिहासकार और क्रन्तिकारी थे जिन्होंने वास्तविकता में कोई महत्वपूर्ण क्रांति नहीं की मगर उनके विचारो ने सारी दुनिया को प्रभावित किया।

उन्होंने जो साहित्य निर्माण किया वह दुनियाभर में इतना प्रकाशित हुवा की आज दुनिया के किसी भी कोने में कार्ल मार्क्स और उनका साहित्य इसके बारे में पता नहीं ऐसा होता नहीं। कार्ल मार्क्स के पिताजी पर्शिया में जानेमाने सफल वकील रहे थे जिनपर उस समय के दार्शनिक एमानुएल कांत तथा वोल्टायर के विचारो का खासा प्रभाव रहा था।

कार्ल मार्क्स मूलतः ज्यूइश परिवार से थे जिसका उनपर खासा प्रभाव रहा था, मगर वह इसका आलोचनात्मक विश्लेषण करना भी जानते थे । शुरुवाती दिनों में उन्होंने देखा की समाज में धर्म का खासा प्रभाव हे और समाज में काफी विषमता है जिसका उन्होंने अध्ययन करना शुरू किया और उन्हें लगा की समाज में परिवर्तन होना जरुरी है।

कार्ल मार्क्स का दर्शनशात्र / Philosophy of Karl Marx –

कार्ल मार्क्स को दार्शनिक से ज्यादा उन्हें क्रांतिकारी और एक्टिविस्ट माना जाता है, कार्ल मार्क्स का साहित्य दुनियाभर के बुद्धिजीवी वर्ग के कम्युनिस्ट लोगो के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। कार्ल मार्क्स ने कई तरह की किताबे लिखी जिसमे इतिहास , अर्थशास्त्र तथा सामाजिक विज्ञानं में उनकी काफी रूचि रही हे और दूसरे दार्शनिक से उनका साहित्य काफी प्रसिद्द रहा है।

मार्क्सवाद का मुख्य केंद्रबिंदु हे पूंजीपति तथा मजदूरवर्ग जो पूँजीपती को अतिरिक्त मेहनत करके मूल्य देता हे, जिसके लिए मार्क्स पूंजीवाद को शोषक कहते है। कार्ल मार्क्स का समाज आर्थिक स्तर पर दो भागो में बटा हे जिसमे एक शोषक हे तो दूसरा बहुसंख्य वर्ग पूंजीवाद के अतिरिक्त प्रॉफिट का शिकार है।

शुरुवाती दिनों में कार्ल मार्क्स ने अपने विचार पत्रकारिता के माध्यम से दुनिया के सामने रखे जिसको काफी विरोध का सामना करना पड़ा और इसकारण उनको अपने जीवन में काफी आर्थिक रूप से सामना करना पड़ा। जर्मनी तथा फ्रांस से उनको उनके तीखे विचारो की वजह से निष्कासित किया गया और आखिर में वह इंग्लैंड में रहे ।

एडम स्मिथ के अर्थव्यवस्था के अदृश्य हाथो के तकनीक को उन्होंने सिरे से नाकारा और कहा की अर्थव्यवस्था में होने वाली तेजी और मंदी के लिए केवल और केवल पूंजीवाद जिम्मेदार होता है। उनके विचारधारा की काफी आलोचक हुई, ऐसा कहा जाता हे की यह नकारात्मक विचारधारा है जो तानाशाह को जन्म देती है।

कार्ल मार्क्स के विचारधारा की काफी आलोचना की जाती हे मगर फिर भी उनका साहित्य दुनियाभर में काफी प्रसिद्द हुवा और यह काफी जटिल दर्शन माना जाता है, जिसे समझने के लिए काफी बुध्दि लगानी पड़ती है।

कार्ल मार्क्स का साहित्य/ Literature of Karl Marx –

  • दी कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो (१८४८)
  • दास कॅपिटल (१८६७) वॉल्यूम्स
  • इकनोमिक एंड फिलॉसॉफिक मैनुस्क्रिप्ट ऑफ़ १८४४ (१९३२)
  • मार्क्स -एंगेल्स कलेक्शन वर्क्स (१९७५)
  • ग्रंडरिस (१९३९)
  • कॅपिटल -वॉल्यूम १ (१८६७)
  • दी क्रिटिक ऑफ़ पोलिटिकल इकोनॉमी (१८५९)
  • दी पावर्टी फिलोसोफी (१८४७)
  • दी सिविल वॉर इन फ्रांस (१८७१)
  • वेज -लेबर एंड कॅपिटल (१८४९)
  • वैल्यू प्राइस एंड प्रॉफिट (१८६५)
  • दी क्लास स्ट्रगल इन फ्रांस १८४८ -१८५० (१८५०)
  • दी पोलिटिकल राइटिंग

कार्ल मार्क्स और राष्ट्रवाद का निर्माण / Karl Marx & Nationalism –

१८४८ से पहले औद्योगिक क्रांती के बाद मार्क्सवाद का जन्म हुवा जिसका मूल संघर्ष पूंजीवादी तथा कर्मचारीवर्ग इसमें था इसलिए कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में कार्ल मार्क्स ने नारा दिया ” दुनिया के कर्मचारीवर्ग एक हो जाओ ” इसतरह से उन्होंने सीधे सीधे पूंजीवाद को आवाहन दिया था।

पूंजीवाद यह पहले से था तथा वह वसाहतवाद के माध्यम से था औद्योगिक क्रांती यह मुख्यतः यूरोप तथा अमरीका में केंद्र बिंदु रहा था तथा यूरोपीय देशो की वसाहत जहा जहा थी वह मार्क्सवाद प्रासंगिक था इसलिए यूरोपीय देश और पूंजीवादी इससे डर गए और राष्ट्रवाद का जन्म हुवा जो एक राजनीतिक रणनीति थी।

जिससे दुनिया भर के कर्मचारी एक न हो जाये तथा मार्क्सवाद से पहले लोग राष्ट्रवाद को महत्त्व दे यही इसका उद्देश्य रहा था और इसमें थोड़ी सफलता यूरोप मे मिली मगर जहा पूंजीवाद नहीं भी था और जो देश यूरोप जैसे आमिर नहीं थे वह मार्क्सवाद ज्यादा फैला रहा।

अस्थिकतावाद और नास्तिकतावाद / Atheism & Theism Conflict –

पूंजीवाद और मार्क्सवाद का सबसे बड़ा वैचारिक मतभेद था की एक विचार पूरी तरह नास्तिक था और दूसरा अस्थिक जो भगवान पे विश्वास रखता था। इसलिए कॅपिटलिस्ट देश इस महत्वपूर्ण कारन से भी मार्क्सवाद से डरते थे की यह राजनितिक सत्ता हतिया लेंगे तो पुरे समाज को सत्ता के बल पर नास्तिक बना देंगे।

इतिहास में धर्म की स्थापना यह समाज को सही मार्ग दिखाने के लिए हुवा था क्यूंकि आज के जैसी फॉर्मल शिक्षा व्यवस्था उस ज़माने में नहीं होती थी तथा किसी राज्य को जोड़े रखने के लिए आस्था का सहारा लिया जाता था। जिसका बाद में धर्म तथा पंथ में रूपांतर हुवा है। अगर तर्कबुद्धि से कहे की धर्म की जरुरत आज के ज़माने में हे क्या ? तो इसका उत्तर हा ही होगा मगर इसका दुरूपयोग हजारो सालो से होता आया है।

मार्कवादी विचार आपको शिक्षा को और वैज्ञानिक सोच को ज्यादा महत्त्व देता हे वही पूंजीवाद आपको अस्थिक होने में कोई बुराई नहीं मानता और सभी को धर्म का स्वतंत्र देता है। ऐसा माना जाता हे की दुनिया में बुद्धिजीवी समाज अल्पसंख्य होता हे इसलिए बाकि बहुसंख्य समाज को जीवन में सही दिशा देने के लिए धर्म की जरुरत होती है।

एडम स्मिथ और कार्ल मार्क्स / Adam Smith & Karl Marx –

एडम स्मिथ को पूंजीवाद का निर्माता कहा जाता है जिनका मानना था की मार्किट में एक अदृश्य हात होता हे जो अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है मगर कार्ल मार्क्स का कहना था की बाजार में तेजी या मंदी आना इसके लिए पूंजीवाद कारन होता है।
मार्क्स का कहना था की मजदुर अपने मजदूरी के आलावा अतिरिक्त मूल्य निर्माण करता हे जिसे पूंजीवाद अपने पास रखता हे जिसे कार्ल मार्क्स शोषण कहते है। कार्ल मार्क्स के मुताबित मुनाफा यह पूंजीवाद का व्यक्तिगत होता हे मगर नुकसान यह सामाजिक होता है।

एडम स्मिथ के पूंजीवाद की समस्या यह थी की औद्योगिक क्रांति और मशीन का इस्तेमाल यह उनके आखरी दिनों में शुरू हुवा और अगले ६० साल तक अपने परमोच्च स्तर पर रहा जिसपर आधारित मार्क्सवाद रहा है। इसका मतलब एडम स्मिथ के दर्शनशास्त्र में काफी खामिया रही है।

एडम स्मिथ (१७२३ -१७९०) यह दौर रहा जिसमे उन्होंने पूंजीवाद के सिद्धांत रखे जो आज के तारीख में हम पूरी दुनिया में देखते है। “वेल्थ ऑफ़ नेशन ” यह किताब पूंजीवाद के लिए धर्मग्रन्थ की तरह मानी जाती है। इन दोनों में एडम स्मिथ के विचारो को आशावादी विचारधारा तथा कार्ल मार्क्स के विचारधारा को निराशावादी विचारधारा कहा जाता है।

मार्क्सवाद और माओवाद / Marxism & Maoism –

माओ ज़िदोंग पर मार्कवाद का काफी प्रभाव रहा था जिसके बाद उन्होंने चीन में सत्ता परिवर्तन की लड़ाई हत्यार बंद आंदोलन से लड़ी जिसे छापामार रणनीति भी कहा जाता हे जो उनके मृत्यु तक १९७६ तक चलती रही जो काफी हिंसक रही।
उनका जो सोशलिस्ट मॉडल था वह काफी तानाशाह रहा हे जिसमे उन्होंने अपने प्रतिस्पर्धी की हिंसक तरीके से हत्याए की थी। उनका सोशलिस्ट मॉडल चीन में अंतर्गत कलह से भरा रहा हे जिसको वह अपने आखरी समय में भी आर्थिक रूप से सफल नहीं कर पाए।

चीन में जो मार्क्सवाद रहा वह काफी अलग रहा हे क्यूंकि मार्क्सवाद का मूल आधार फॅक्टरी वर्कर्स रहे थे जो शहरों से आते थे मगर माओ ने अपने आंदोलन का मूल आधार गावो के किसान रखे और गावो से शहर तक क्रांती शुरू की इसकी वजह से चीन में जो मार्क्सवाद था वह काफी अलग रहा है।

माओ के बाद जो चीन की राजनीती में काफी उतार चढाव भरा रहा जिसके बाद कई सारे नेतृत्व ने सोशलिस्ट मॉडल में बदलाव करके कुछ आर्थिक नीती में बदलाव किये और उसे /उदारवादी लिबरल पॉलिसीज लाई जिससे चीन की परिस्थिति में कुछ बदलाव हुए जिसमे डेंग सेओपिंग का काफी महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।

इसलिए ऐसा कहा जाता हे की पूंजीवाद के इस युग में चीन का मार्क्सवादी राजनितिक मॉडल सबसे सफल माना जाता हे जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

कार्ल मार्क्स और व्लादिमीर लेनिन / Karl Marx & Vladimir Lenin –

रशिया में १९१७ में बहुत बड़ी राजनितिक तथा सामाजिक क्रांती हुई जिसका नेतृत्व लेनिन कर रहे थे यह मार्क्सवादी विचारो की दुनिया में पहली सफल क्रांती थी जिसको लेनिन ने प्रत्यक्ष अपने नेतृत्व में सफल किया था। रशिया की क्रांति ने पूरी दुनिया में इसका प्रभाव रहा और मार्क्स के विचारो को प्रत्यक्ष रूप में लेनिन ने सफल किया।

वह दौर था जहा रशिया दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनके उभरा और कार्ल मार्क्स के कम्युनिस्ट विचारधारा का नेतृत्व दुनिया के लिए करता था , जिसका सीधा संघर्ष पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से था जो अमरीका रही थी जो दूसरे महायुद्ध के बाद ब्रिटिश वसाहतवाद के ख़त्म होने के बाद दुनिया की सबसे महान शक्ती बन गयी थी।

लेनिन के शुरुवाती संघर्ष के दिनों में मार्क्सवाद का पुरे दुनिया पर प्रभाव था जिससे लेनिन भी प्रभावित हुए थे जिसमे प्रत्यक्ष रूप में कुछ बदलाव करके रशिया में क्रांती करके सत्ता हासिल की थी इसलिए इसे लेनिनिस्म भी कहा जाता है।

भारत में मार्क्सवाद का इतिहास/ Marxism in India –

भारत में जब १९४७ से पहले स्वतंत्रता के लिए आंदोलन चला जिसमे मार्क्सवाद का खासा प्रभाव रहा हे मगर गांधीवादी आंदोलन ने कभी इस विचारधारा का भारत के आजादी के आंदोलन में प्रवेश करने नहीं दिया। इसे बस सहयोग कहे या फिर एक समझौता यह इतिहास के लिए एक गूढ़ रहा है।

क्यूंकि गांधीजी ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया जिस समय भारत के मजदुर संघ पर मार्क्सवाद का खासा प्रभाव रहा था जिसको कभी गांधीजी ने अपने आंदोलन का हिस्सा नहीं बनाया। उस दौर में मार्क्सवादी आंदोलन को हिंसक आंदोलन के तौर पर देखा जाता था जो चीन तथा रशिया में काफी हिंसक तरीके से चला था।

भारत में मार्कवादी विचारधारा का नेतृत्व हमेशा से समाज के उच्च वर्ग के नेतृत्व में चला हे, जब की इस विचारधारा की जड़ में नेतृत्व दबे कुचले लोगो को करना था जो भारत में उस समय संभव नहीं था क्यूंकि भारतीय समाज में निचले स्तर के लोगो में शिक्षा का प्रमाण काफी कम था या यु कहे की न के बराबर था।

मार्क्सवादी विचारधारा समझने के लिए काफी बुद्धिजीवी होना जरुरी होता हे और शिक्षित होना जरुरी होता है, जो उस समय समाज के उची जाती के लोग ही शिक्षा में उस स्तर की शिक्षा हासिल करते थे इसलिए समाज के निचले स्तर से मार्क्सवादी नेतृत्व कभी निर्माण नहीं हुवा।

मार्क्सवाद में आगे भारत में कई सारी विचारधाराए निर्माण हुई जिसमे आज के दौर में हम नक्षलवाद हमें दिखता हे जो हिंसक तरीके से आंदोलन भारत में चलाया जाता है।

पूंजीवाद विरुद्ध मार्क्सवाद / Capitalism vs Marxism –

रशिया और अमरीका में दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हमेशा से संघर्ष चलते रहा हे जिसको सभी शीत युद्ध (Cold War) के नाम से चला जो अप्रत्यक्ष रूप से दुनिया की महाशक्ति बनने के लिए रहा है और केवल वह आर्थिक और राजनितिक सत्ता का संघर्ष नहीं रहा है वह विचारधारा का संघर्ष रहा है।

१९५० से लेकर १९९० तक रशिया और अमरीका का यह विचारधारा का संघर्ष चला जो रशिया के विघटन के साथ ख़तम हुवा और कॅपिटलिस्म ने मार्क्सवाद को पूरी दुनिया से धीरे धीरे ख़त्म करने में सफलता हासिल की और अपना प्रभाव पूरी दुनिया के राजनितिक और आर्थिक व्यवस्था पर रखा।

आज के दौर में मार्क्सवाद पूंजीवाद से काफी पीछे रहा मगर चीन ने अपनी यह विचारधारा रखते हुए अपनी आर्थिक और राजनितिक व्यवस्था में कुछ बदलाव करके दुनिया में एक अलग मक़ाम हासिल किया और मार्क्सवादी सोशलिस्ट मॉडल भी दुनिया में सफल हो सकता हे यह दिखाया है।

मार्क्सवाद और नागरिकता / Marxism and Citizenship –

कार्ल मार्क्स का कहना था की लोगो ने अपने नैसर्गिक अधिकारों का त्याग करके समाज का निर्माण किया और नागरिकता का स्वीकार किया जो पूंजीवाद के नियंत्रण में था जिसे उन्होंने नाम दिया था मानव अधिकार (Human Rights) जो उनकी दृष्टी से एक दिखावा था। जिसे हम सिविल सोसाइटी कहते हे इसे वह लोगो की स्वतंत्रता के बदले निर्माण किये गए थे।

पूंजीवाद द्वारा होने वाले शोषण को यह व्यवस्था अनदेखा कर रही थी और सिविल राइट्स यह केवल दिखाने के लिए हे ऐसा उनका मानना था। जब राज्य के नागरिक अपने लिए राज्य से सुविधाए पाने की अभिलाषा रखते हे एक तरह से वह अपनी स्वतंत्रता खोते हे और राज्य की सत्ता के गुलाम बन जाते है।

पश्चिमी विकसित देशो में सामाजिक अधिकार एक तरह से राज्य की सत्ता के ग्राहक बन गए थे जिसको वह टॅक्स प्रदान करते है और उसके बदले राज्य उनको सुविधाए प्रदान करते है। इसलिए इसे मार्क्स उपभोक्तावाद के नाम से बोलते थे ।

मार्क्सवाद और अम्बेडकरवाद / Marxism and Ambedkarism –

भारत में ऐसी एक धारणा बनाई गई हे जिसमे अम्बेडकरवाद याने मार्क्सवाद मगर यह बिलकुल गलत धारणा बनाई गयी है। मार्क्सवाद का संघर्ष यह समाज के पूंजीवादी विरुद्ध मजदूरवर्ग यह हे जिसका मूल क्षेत्र शहरी रहा है।आंबेडकरवाद यह विचारधारा का संघर्ष यह भारत की उची जातीया हे जिसने उनके हक़्क़ और अधिकारों को छिना है।

जातीय संघर्ष और विषमता यह अम्बेडकरवाद का मूल संघर्ष का कारन है वही मार्क्सवाद का संघर्ष यह गरीब विरुद्ध आमिर यह रहा है। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कारन है अम्बेडकरवाद का नेतृत्व यह निचले स्तर से आने वाले बुद्धिजीवी करते हे वही मार्क्सवाद का नेतृत्व समाज के उची जाती के बुद्धिजीवी लोग करते है।

इसलिए भारत में मार्क्सवाद असफल होने का कारन हे वह समाज के निचले स्तर तक नहीं गया जिससे वह केवल लेबर यूनियन तक ही सिमित रहा तथा नक्षलवाद का हिंसक संघर्ष जो आदिवासी समाज का नेतृत्व कर रहा हे जिनको यह विचारधारा क्या हे यह भी समझ नहीं है, जो केवल इस्तेमाल किये जाते है।

मार्क्सवाद की असफलता / Failures of Marxism –

मार्क्सवाद जो जोसफ स्टालिन के युग तक काफी उचाई पर था जो उनके मृत्यु के बाद १९५३ से मार्क्सवाद के पतन का दौर शुरू हुवा जिसमे सोशलिज्म की राजव्यवस्था में नौकरशाह तथा देश की सारी महत्वपूर्ण संपत्ती नौकरशाह तथा शासकवर्ग के पास थी जिसमे काफी भ्रष्टाचार देखने को मिलता है।

पूंजीवाद का अमरीका का यह मॉडल १९५० से आगे टेक्नोलॉजी और कंप्यूटर की क्रांती से रशिया को उसने काफी पीछे छोड़ दिया तथा दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनके उभरा और दुनिया के लिए कौनसी विचारधारा योग्य हे इसके बारे में दुनिया में एक विवाद हमें देखने को मिला।

१९९० आते आते जिन देशोने मार्क्सवादी मॉडल अपनाया था वह धीरे धीरे पूंजीवादी लोकतान्त्रिक मॉडल में बदलने लगे। जिसमे भारत की अर्थव्यवस्था में भी आर्थिक असफलता के चलते पूंजीवादी लोकतंत्र का मॉडल स्वीकारा और धीरे धीरे सभी क्षेत्र में निजीकरण शुरू हुवा।

मार्क्सवाद की असफलता का सबसे बड़ा कारन था रशिया का विघटन तथा चीन का अलग से रणनीति के तहत अपना स्वतंत्र सोसलिस्ट मॉडल चलना जिससे मार्क्सवाद पूंजीवाद के सामने अप्रासंगिक कर दिया गया। कौन सही हे यह कहना काफी मुश्किल हे मगर आज के दौर में देखे तो केवल मार्क्सवाद की विचारधारा किताबो तक सिमित रह गई है।

वर्ग संघर्ष इतिहास और विचारधारा / Class Struggle History & Ideology –

सभ्य समाज की स्थापना से लेकर आज तक विचारधारा को जो संघर्ष हमने देखा हे वह सामाजिक वर्ग संघर्ष रहा है। कार्लमार्क्स की विचारधारा का मुख्य बेस समाज के सबसे निचले स्तर का समाज रहा है जिसे वह कर्मचारी वर्ग कहते थे। राजतन्त्र का और सामंतवाद का अस्त यह नए माध्यम वर्ग का राजनितिक सत्ता की तरफ बढ़ने वाला वर्ग बनके उभरा जिसे हम पूंजीवाद कहते है।

धर्म का वर्चस्व और राजतन्त्र तथा सामंतवाद का अंत यह यही माध्यम वर्ग की क्रांति का परिणाम फ्रांस में रहा हे जिन्होंने व्यक्ति स्वतंत्र की मांग करके धर्म के वर्चस्व को आवाहन दिया तथा उसमे सफल भी रहे। रशिया और अमरीका में जो शीत युद्ध अप्रत्यक्ष रूप से चला जिसकी मूल विचारधारा यह निचले स्तर का सर्वहारा वर्ग और मध्यम वर्ग जो बिज़नेस क्लास बन गया था और आर्थिक रूप से काफी ताकदवर बन गया था इनमे रहा है।

मार्क्स की विचारधारा यह सत्ता राज्य के अधीन चाहती हे वही एडम स्मिथ की पूंजीवादी विचारधारा यही सत्ता लिबरल याने राज्य से स्वतंत्र चाहती है। मूलतः अगर हम ज्यादातर देशो में देखे तो यह सत्ता समाज के उच्च वर्ग के हाथो में हमेशा से रही हे चाहे वह मार्क्सवादी सत्ता हो अथवा पूंजीवादी सत्ता हो। मार्क्सवादी सत्ता हमेशा से हिंसक रही हे और पूंजीवादी सत्ता अपने पैसे के ताकद पर सत्ता बनाए रखने में सफल रही है।

निष्कर्ष / conclusion –

इसतरह से हमने यहाँ देखा की मार्क्सवाद क्या हे और कार्ल मार्क्स के विचारो ने कैसे दुनिया पर अपना प्रभाव कई दशकों तक रखा। हमने यहाँ देखा की कार्ल मार्क्स का साहित्य क्या हे और उनके विचारो का संघर्ष पूंजीवाद से कैसे चला।

हमने देखा की भारत में मार्क्सवाद असफल क्यों रहा और समाज के निचले स्तर तक क्यों नहीं पंहुचा। गांधीजी के स्वतंत्रता के आंदोलन में मार्क्सवादी विचारो को दूर रखा गया तथा अंग्रेजो ने इसके लिए सुरक्षितता बरती की इसका साहित्य भारत में न पहुंचे।

भारत के कम्युनिस्ट नेताओ ने काफी बार रशिया के स्टालिन से मिलने की कोशिश की मगर उन्होंने कभी इनमे दिलचस्पी नहीं दिखाई। हमने यहाँ देखा की मार्क्सवाद और अम्बेडकरवाद कैसे अलग हे और भारत ने पूंजीवाद को कैसे अपनाया।

हमने यहाँ कार्ल मार्क्स की विचारधारा का अध्ययन करने की कोशिश की और मार्क्सवाद तथा कॅपिटलिस्म में तुलना करने की कोशिश की है। कार्ल मार्क्स के मृत्यु के समय उनके कुछ गिने चुने लोग उनके अंतिमयात्रा में शामिल थे मगर उनके विचार उनके मृत्यु के बाद काफी प्रसिद्द हुए। दुनिया में ऐसा कोई बुद्धिजीवी नहीं होगा जिसे कार्ल मार्क्स और उनका साहित्य इसके बारे में पता नहीं है।

वोल्टेयर का मुख्य दर्शन क्या है?

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