प्रस्तावना /Introduction –

ब्रिटिश भारत में चल रही कंपनियों को रेगुलेट करने के लिए पहली भारत में कंपनी कानून अंग्रेजो द्वारा लाया गया, जो कंपनी कानून २०१३ में इस कानून का आधुनिक संस्करण स्वतंत्र भारत में लाया गया । कंपनी कानून १९५६ यह कई दिनों तक चलाया गया जिसको १९९० के बाद बदलना जरुरी हुवा क्यूंकि भारत ने अपने उद्देश्य को बदलकर खुली अर्थव्यवस्था के माध्यम से दुनिया के लिए भारत के रास्ते खोल दिए।

कंपनी कानून भारत में कंपनियों को रेगुलेट करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कानून हे जबकि भारत ज्यादातर उद्योग छोटे स्थर पर चलाए जाते है वह इस कानून के अंतर्गत नहीं आते जिसकी संख्या काफी ज्यादा है। आज हम कंपनी कानून के मुख्य बिंदु क्या हे और इसका महत्त्व कंपनियों के लिए तथा भारत सरकार के लिए क्या हे यह हम देखने की कोशिश करेंगे।

कंपनी कानून यह भारत सरकार की कॉर्पोरेट अफेयर मिनिस्ट्री के माध्यम से चलाया जाता हे जिसके डिस्प्यूट सुलझाने ने के लिए कानून के तहत ट्रिब्यूनल तैयार किये गए है। भारत की न्यायव्यवस्था की वर्क लोड के कारन १९९० के बाद कई सारे क्षेत्र में न्यायव्यवस्था के बराबरी से क्वासि न्यायव्यवस्था बनाई गई जो मुख्य न्यायव्यवस्था के अधीन रहकर कार्य करेगी।

कंपनी कानून क्या है ? / What is a Company Law –

कंपनी का अर्थ होता हे एक नैसर्गिक व्यक्ति जो किसी व्यक्ति की तरह कार्य करता हे व्यवहार करता है इसके लिए कई सारे लोग व्यापार के उद्देश्य से एकत्र मिलकर सरकारी कंपनी कानून के तहत कंपनी रजिस्टर्ड करते है। जिसमे पब्लिक लिमिटेड कम्पनिया भी होती हे प्राइवेट लिमिटेड कम्पनिया भी होती हे जो कंपनी कानून के अंतर्गत आने वाली और इस कानून का पालन करके चलने वाली कम्पनिया।

कंपनी कानून यह केंद्र सरकार द्वारा २०१३ में पारित किया गया कानून हे जिसके अंतर्गत भारत में रजिस्टर्ड कम्पनिया रेगुलेट की जाती है जिसमे विदेशी कम्पनिया भी रजिस्टर्ड की जाती है। इससे पहले जो स्वतंत्र भारत में कानून बनाया गया था वह था कंपनी कानून १९५६ जिसको आर्थिक नीतियों को बदलने के बाद पूरी तरह से ख़त्म करना पड़ा और २०१३ में नया कानून लाना पड़ा। १९५६ के कुछ प्रावधान आज भी लागु हे मगर जो प्रावधान २०१३ के कानून से विसंगत हे वह लागु नहीं समझे जाते।

इससे पहले कानून के रद्द करना पड़ा क्यूंकि आर्थिक और टेक्नोलॉजिकल बदलाव भारत में देखने को मिलते हे जिसके अंतर्गत पुराने कानून में संशोधन करने की बजाए पूरी तरह से नया कानून लाया गया। इसके साथ साथ IBC और CCI जैसे कानून लाए गए जो कंपनी कानून के साथ साथ चलेंगे जिसका कार्य होगा बाजार में स्पर्धा बनी रहे और छोटे कंपनियों की सुरक्षा की जाए तथा कंपनी डूबने पर उसे सुरक्षा प्रदान की जाए जो पहले नहीं थी।

कंपनी कानून का इतिहास / History of Company Law –

  • Joint Stock Company Act 1844
  • The Indian Company Act 1862
  • The Indian Company Act 1913
  • The Company Act 1956
  • The Company Act 2013

ब्रिटिश इंडिया में भारत में बिज़नेस करने के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट में चार्टर पास करवाना पड़ता था इसके लिए हर बार यह प्रक्रिया करने से बचने के लिए भारत में पहली बार जॉइंट स्टॉक कंपनी कानून लाया गया जिसमे कंपनी के लिए रजिस्ट्रेशन किये गए जो भारत में व्यवसाय करेंगे। भारत की स्वतंत्रता मिलाने तक इसमें काफी बदलाव होते गए जिसमे कंपनी को रेगुलेट करना और कंपनी की जिम्मेदारी तय करना यहाँ तक निर्धारित किया गया।

स्वतंत्र भारत में १९५० को एच सी भाभा के अध्यक्षता में एक आयोग बनाकर भारत में नए तरीके से बिज़नेस बढ़ाने के लिए सिफारिशें मंगवायी गए और जिसके अनुसार कंपनी कानून १९५६ को भारतीय संसद द्वारा लागु कर दिया गया। २०१३ के नए कंपनी कानून के आने तक समय समय तक इसमें बदलाव किये गए।

२०१३ का नया कंपनी कानून १९९० के नए आर्थिक निति के बदलाव के कारन लाया जिसके तहत १९५६ के कंपनी कानून को २०१३ के कानून ने जगह ली मगर १९५६ कुछ प्रावधान आज भी लागु हे मगर पुराने कानून के जो प्रावधान २०१३ के कानून से विसंगत हे वह छोड़ दिए गए है। इस कानून के तहत डिजिटल प्रक्रिया के बदलाव भी ध्यान में रखे गए हे जिसमे ज्यादातर रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया ऑनलाइन रहनी चाहिए इसपर ध्यान दिया गया है।

कंपनी कानून की विशेषताए / Features of Company Laws –

भारत में कंपनी कानून की जरुरत हे इसका कारन हे कंपनी को रेगुलेट करना कंपनी के अंतर्गत व्यवस्थापन को नियंत्रित करना तथा छोटी कंपनियों को बड़े कंपनियों से सुरक्षित रखना। इसलिए भारतीय कंपनी कानून की मुख्य कुछ विशेषताए हम आगे देखेंगे।

  • भारत में कोई भी कंपनी कंपनी कानून २०१३ के अंतर्गत रजिस्टर नहीं हे उसे कंपनी नहीं माना जाएगा।
  • कंपनी के अलग कानूनी कृत्रिम व्यक्ति की तरह कार्य कर सकती हे जिसमे वह प्रॉपर्टी खरीद सकती हे कोई व्यवहार कर सकती है तथा इसपर कानूनी केस फाइल हो सकता हे अथवा यह किसी पर केस फाइल कर सकती है।
  • कंपनी के सदस्यों की जिम्मेदारी उनके शेयर कैपिटल अथवा गारंटी पर आधारित होगा।
  • कंपनी की भागीदारी किसी दूसरे व्यक्ति को बदली जा सकती हे, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के लिए कुछ प्रतिबंध हे मगर वह भी कुछ नियमो के साथ यह कर सकती है।
  • किसी भी सदस्यों के मृत्यु पर कंपनी में कोई बदलाव नहीं होते कंपनी निरंतर चलती रहती हे जबतक कंपनी में कोई आर्थिक नुकसान नहीं होते।
  • कंपनी के सभी व्यवहार कंपनी के कॉमन सील के माध्यम से चलाए जाते हे जो एक लीगल एंटिटी के तौर पर उसके नियुक्त प्रतिनिधि द्वारा किए जाते है।

खुली अर्थव्यवस्था और कंपनी कानून/Liberalization & Company Law –

१९९० के बाद विदेशी मुद्रा संकट के चलते भारत सरकार ने भारत के आर्थिक संरचना में बदलाव किये और जो प्रतिबन्ध १९५६ के कंपनी कानून में विदेशी निवेश के लिए थे उसे समय समय पर हटा दिया गया और विदेशी निवेश को भारत में बढ़ाने के लिए निर्णय लिए गए। इससे पहले भारत में विदेशी कंपनियों के लिए कड़े नियम के कारन कई विदेशी कम्पनिया भारत के अपने बिज़नेस को बंद कर चुकी थी जिसमे कोका कोला जैसी बड़ी कम्पनिया थी।

२०१३ के कंपनी कानून के तहत काफी सारे बदलाव किये गए जो १९५६ के कानून में थे जिसमे विदेशी कम्पनिया भारत में रजिस्टर्ड हो सकती है। कई सारे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीतियों के अनुसार कंपनी कानून में समय समय पर बदलाव किये गए। कंपनी कानून के सलग्न IBC और CCI कानून लाए गए जो भारतीय बाजार में निष्पक्ष स्पर्धा बनी रहे तथा इससे पहले जो मानसिकता होती थी की कंपनी दिवालिया होना एक अपराध के तौर पर देखा जाता तो उसमे बदलाव किये गए।

IBC कानून के तहत कंपनियों को दिवालिया होने पर कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई , जिसमे इन्वेस्टर तथा कर्जधारक के पैसे को सुरक्षा मिली और कंपनी निरंतर बनी रहे इसके लिए कुछ प्रावधान रखे गए। अमरीका में बिज़नेस को सुरक्षा मिलती हे जिससे बिज़नेस करने के लिए प्रोस्ताहन मिलता रहे और समाज में लोगो को रोजगार मिल सके। यह कानून आने से पहले विदेशी कम्पनिया तथा भारतीय कंपनियों के लिए कानून काफी कड़े हुवा करते थे जिसको शिथिल किया गया।

भारतीय शेयर बाजार और कंपनी कानून / Stock Market & Company Law –

कंपनी कानून के तहत कंपनी व्याख्या कर दी गई हे जिसके अंतर्गत जो कम्पनिया इस कानून के तहत रजिस्टर्ड की जाती हे उसे कंपनी कहा जाता है। भारतीय शेयर बाजार वैसे तो बहुत पुराण हे मगर १९९० के बाद इसके भी काफी बदलाव किए गए और सेबी जैसी रेगुलेटरी के अंतर्गत भारतीय शेयर बाजार को सुरक्षित किया गया जो कंपनी कानून के अंतर्गत कंपनियों को पैसा उपलब्ध करने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम बनाया गया।

शेयर बाजार में कंपनी को रजिस्टर होने के लिए कंपनी कानून के तहत रजिस्टर्ड होना जरुरी होता हे इसलिए किसी भी कंपनी को शेयर बाजार से कर्ज के माध्यम से अथवा शेयर्स के माध्यम से पैसे खड़े करने हे तो कंपनी कानून के अंतर्गत सभी दस्तावेज पूर्ण करने होते है। कंपनी कानून के अंतर्गत आने वाली कम्पनिया यह लीगल सेपरेट एंटिटी होती हे जिसमे सदस्यों की जिम्मेदारी मर्यादित होती है।

प्रोप्राइटरशिप और पार्टनरशिप कम्पनिया शेयर बाजार से पैसे खड़ा नहीं कर सकती इसके लिए कंपनी कानून के अंतर्गत रजिस्टर्ड कंपनियों यह प्रावधान किया गया है। इसलिए कंपनियों के बैंको से कर्ज लेने के आलावा शेयर बाजार से कर्ज अथवा शेयर्स के माध्यम से बड़े स्तर पर पैसा खड़ा करने का पर्याय उपलब्ध होता है। कंपनियों को भारत में प्रोस्ताहन देने के लिए यह सब प्रावधान किये गए है।

प्रोप्राइटरशिप और कंपनी कानून / Proprietorship & Company Law –

भारत में ८० % बिज़नेस छोटे स्तर पर याने प्रोप्राइटरशिप के स्तर पर किये जाते हे जो राज्यों के कानून के अंतर्गत नियमित किए जाते है। ऐसे बिज़नेस को कानूनी तौर पर कंपनी नहीं माना जाता मगर हम सामान्यतः इसे कंपनी कहते है। इन छोटे बिज़नेस में एक भ्रम निर्माण किया गया हे की कंपनी कानून के अंतर्गत रजिस्टर करने से बिज़नेस कम और सरकारी नियम ज्यादा देखने पड़ते है।

कंपनी कानून के अंतर्गत रजिस्टर्ड करने के फायदे भारत में छोटे बिज़नेस को नहीं बताए जाते और जिसकी वजह से सालो साल ऐसे बिज़नेस कभी विकसित नहीं होते और बंद हो जाते है । कंपनी कानून के अंतर्गत केंद्र सरकार के लाभ हमें नहीं मिलते और ऐसे बिज़नेस छोटे स्तर पर ही बंद किये जाते है। डिजिटल बिज़नेस प्रक्रिया होने से गैर कानूनी तरीके से होने वाले व्यवहार अभी कम हो चुके हे यही कारन हे की छोटे बिज़नेस कंपनी कानून में रजिस्टर्ड नहीं होते थे।

इसका मुख्य उद्देश्य बिज़नेस से होने वाला फायदा कही टैक्स भरने में न जाए मगर कंपनी रजिस्टर्ड करने से मार्किट में मिलाने वाले फायदे यह छोटे बिज़नेस नहीं समझ पाते और एक्सपर्ट द्वारा दिए गए गलत सलाह की वजह से कभी अपने बिज़नेस को नहीं बढ़ा पाते। सबसे महत्वपूर्ण कारन यह बिज़नेस सफल नहीं हो पाते वह हे जोखिम जो दिवालिया होने पर व्यवसाय बंद करना पड़ता हे और इसकी भरपाई संपत्ति से करनी पड़ती है।

पार्टनरशिप फर्म और कंपनी कानून / Partnership Firm & Company Laws –

छोटे स्तर पर बिज़नेस करने के लिए सबसे बड़ी समस्या होती हे पैसा जो पार्टनरशिप में यह समस्या छोटे बिज़नेस के लिए दूर हो सकती है जहा ऐसे पार्टनर दो से अधिक लोग मिलकर पैसा लगा सकते हे और बिज़नेस शुरू कर सकते है। भारत में पार्टनरशिप में बिज़नेस करने के लिए ज्यादा लोग तैयार नहीं होते और अपने व्यक्तिगत स्तर पर बिज़नेस चलाए जाते है।

समय के साथ साथ पार्टनरशिप के फायदे लोगो को समझ में आने लगे और लोग अब पार्टनरशिप में बिज़नेस करने लगे है। ऐसे बिज़नेस को कानूनी भाषा में फर्म कहा जाता है जिसमे सदस्यों की जिम्मेदारी उनके हिस्सेदारी के हिसाब से तय होती है। फर्म दिवालिया होने पर अपनी निजी संपत्ति से कर्ज को पूरा किया जाता हे और यह कानून केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया है।

सामान्यतः राज्यों के कानून के अंतर्गत पार्टनरशिप को रजिस्टर्ड करके चलाया जाता हे जो एक पर्याय हे मगर पार्टनरशिप कानून के अंतर्गत रजिस्टर्ड करना अभी जरुरी किया गया हे जो पहले बहुत सारे लोगो नहीं था। इसकी भी बहुत सारी खामिया हे जिसके कारन कंपनी कानून के अंतर्गत रजिस्टर्ड करने से क्या फायदे होते हे यह हमें पता नहीं होता और हम छोटे स्तर पर बिज़नेस करना पसंद करते है।

न्यायाधिकरण और कंपनी कानून / Tribunals & Company Law –

१९९० के के बाद भारत की आर्थिक नीतियों में बदलाव किये गए जिसके अंतर्गत भारत की व्यायव्यवस्था को सुधारने के लिए समान्तर न्यायिक व्यवस्था बनाई गया जो मुख्य न्यायव्यवस्था के अधीन रहकर कार्य करेगी। पारम्परिक न्यायव्यवस्था में किसी भी न्याय के लिए सालो सालो इंतजार करना पड़ता हे जो कंपनी के विकास के लिए अच्छा नहीं हे इसलिए कंपनी के अंतर्गत होनी वाली समस्याओ के लिए न्यायाधिकरण की स्थापना की गयी।

ADR यह नयी प्रक्रिया बनाई गई जिसके अंतर्गत आर्बिट्रेशन के लिए केंद्र सरकार द्वारा कानून बनाकर एक न्यायिक व्यवस्था बनाई गई जो ट्रिब्यूनल्स के साथ साथ कार्य करेगी जो काफी असरदार मानी जाती है। इससे पारम्परिक न्यायिक व्यवस्था से बाहर रहकर कम्पनिया अपनी समस्याए निपटा सकती है। तथा सरकारी यंत्रणा को कंपनी के शोषण की बजाय एक सहयोगी के तौर पर देखा जाने लगा जो पहले तानाशाह के रूप में देखा जाता था।

भारत में विदेशी निवेश तथा कम्पनिया नहीं आने का सबसे महत्वपूर्ण कारन भारत की न्यायिक व्यवस्था और भ्रष्टाचार यह मुख्य मुद्दे रहे है। इसलिए इसमें काफी बदलाव किये गए और भ्रष्टाचार और न्यायिक व्यवस्था के बदलाव के लिए सरकार द्वारा तथा सामाजिक संस्थाओ द्वारा बड़े पैमाने में काम किया गया। ADR व्यवस्था आज भी छोटे स्तर के बिज़नेस में पता नहीं हे और जिसकी वजह से ऐसे मामले गलत तरीके से सुलझाए जाते हे जो बिज़नेस को नुकसान देह होते है।

श्रम कानून और कंपनी कानून / Labour Laws & Company Law –

छोटे स्तर पर बिज़नेस करने वाले बिज़नेस श्रम कानून से मिलाने वाली छूट के कारन कंपनी कानून में रजिस्टर्ड नहीं होते थे मगर आज किसी भी छोटे स्तर पर बिज़नेस को श्रम कानून के नियम का पालन करना जरुरी किया गया है। जिससे एम्प्लाइज का होने वाला शोषण ध्यान में रखकर केंद्र सरकार द्वारा चार लेबर कोड लाए गए है।

जिसके अंतर्गत एम्प्लाइज को सुरक्षा प्रदान की गई हे तथा कंपनी को विकास में इससे कोई नुकसान नहीं होगा यह ध्यान में रखकर दोनों का संतुलन किया गया है। कंपनी कानून के अंतर्गत श्रम कानून के नियम कड़े होते हे जिससे एम्प्लाइज को इसका फायदा होता हे , वैसे ही कंपनियों के लिए कर्मचारियों को कंपनी से निकालने के प्रावधान दिए गए हे तथा कंपनी नुकसान में चल रही हे तो उसे बंद करने की प्रक्रिया आसान बनायीं गई है।

कंपनी कानून के फायदे / Benefits of Company Law –

  • कंपनी कानून के अंतर्गत रेजिस्टर्ड करने से कंपनी दिवालिया होने से व्यक्तिगत संपत्ति को सुरक्षा मिल जाती है।
  • कंपनी कानून के अंतर्गत रजिस्टर्ड कंपनी एक कृतिम व्यक्ति की तरह व्यवसाय के सभी निर्णय लेती हे जिससे व्यक्तिगत स्तर पर कोई जिम्मेदारी नहीं रहती।
  • कंपनी छोटे स्तर के बिज़नेस के तरह मुख्य व्यक्ति के मृत्यु के बाद भी कंपनी का अस्तित्व बरक़रार रहता हे।
  • स्टॉक मार्किट के माध्यम से कम्पनिया बड़े स्तर पर कर्ज और शेयर्स के माध्यम से बाजार से पैसा खड़ा कर सकती हे जिससे कंपनी को बड़े स्तर पर अपना व्यवसाय बढ़ाना आसान हो जाता है।
  • केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाली अलग अलग योजना का लाभ इन कंपनियों को मिलता है।
  • कंपनी के व्यवहार में पारदर्शिता आने से इन्वेस्टर और कर्जधारक को अपने पैसे की सुरक्षा मिलती है।
  • कंपनी कानून के अंतर्गत ट्रिब्यूनल्स की स्थापना की गई हे जिसके फायदे कम्पनिया उठा सकती हे जो छोटे स्तर पर बिज़नेस करने वाली कंपनियों को नहीं मिलता।
  • टेक्नोलॉजी और संशोधन पर आधारित कंपनियों के लिए बाजार से पैसा खड़ा करना काफी सरल किया गया हे और टॅक्स में भी कई फायदे मिलते है।
  • कंपनी कानून में रेजिस्टर्ड कंपनियों को मार्किट में ऑर्डर्स लेने के लिए कोई परेशानी नहीं होती क्यूंकि कम्पनी की रेगिस्ट्रशन प्रक्रिया कड़ी होने की वजह से कंपनी का गुडविल बढ़ जाता है।

कंपनी कानून का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of Company Law –

  • भारत में ८०% बिज़नेस प्रोप्राइटरशिप और पार्टनरशिप फर्म के स्तर पर किये जाते हे इसका मुख्य कारन हे जटिल रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया जिसके लिए बिजनेसमैन को एक्सपर्ट को ज्यादा पैसा देकर सहायता लेनी पड़ती है।
  • सेपरेट लीगल एंटिटी इस विशेषता के कारन कानूनी तौर पर कंपनी के प्रतिनिधियों पर जिम्मेदारी साबित करना काफी मुश्किल होता है।
  • कंपनी कानून की प्रक्रिया छोटे कंपनी के लिए उसका खर्चा बहुत बड़ा लगता हे इसलिए वह इस प्रक्रिया से दूर रहना पसंद करते है।
  • कानूनी प्रक्रिया के लिए किसी पेशेवर व्यक्ति अथवा संस्था को नियुक्त करना छोटे कंपनियों के लिए काफी मुश्किल काम होता है।
  • ज्यादातर छोटे व्यावसायिक कंपनी कानून में अपने बिज़नेस को रजिस्टर्ड नहीं करते इसका मुख्य कारन टॅक्स प्रणाली की जटिलता और बढ़ने वाले खर्चे यह होता है।

निष्कर्ष /Conclusion –

इसतरह से हमने कंपनी कानून के महत्त्व के बारे में हमने समझने की कोशिश की है तथा कंपनी कानून का ब्रिटिश इंडिया से इतिहास जानने की कोशिश हमने यहाँ की है। कंपनी कानून के अंतर्गत मिलने वाले फायदे तथा होने वाले नुकसान हमने जानने की कोशिश विस्तृत रूप से करने की कोशिश की है।

कंपनी कानून में भारत की स्वतंत्रता के बाद कैसे बदलाव होते गए तथा कौन कौनसे कानून और कंपनी कानून भारत की अर्थव्यवस्था में साथ साथ काम करते हे यह हमने देखा। स्टॉक मार्किट और कंपनी कानून कैसे कंपनी को कॅपिटल निर्माण करने के लिए सहायता करता हे तथा विदेशी निवेश और विदेशी कंपनियों को भारत में कैसे रजिस्टर्ड करना पड़ता हे यह हमने देखा।

मूलतः सामान्य बिज़नेसमन तथा जो लोग भविष्य में बिज़नेस करना चाहते हे उनके लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण होगी ऐसी हम आशा करते है। हमने कंपनी कानून के अंतर्गत आने वाली ज्यादा से ज्यादा जानकारी आपके सामने रखने की कोशिश की है। किसी कानूनी विषय को साधारण भाषा में प्रस्तुत करना हमारा मुख्य कार्य हम समझते हे और इसी कोशिश के अंतर्गत हम कानून विषयो पर आपके लिए नयी नयी जानकारी उपलब्ध करते है।

 

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