अंटोनिओ ग्राम्सकी यह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इटली के संस्थापक सदस्य थे और शासक मुसोलिनी के कट्टर आलोचक माने जाते थे।

प्रस्तावना / Introduction –

इटली यह राजनीतक और सामाजिक बदलाव के दृष्टी से काफी महत्वपूर्ण देश माना जाता हे जहा मैकियावेली , लेओनार्दो डा विन्ची जैसे दार्शनिक और बुद्धिजीवी हमें देखने को मिलते है। आज हम जिस थिंकर के बारे में अध्ययन करना चाहते हे वह मैकियावेली के विचारो से काफी प्रभावित थे और जिस दौर में वह जी रहे थे वह दौर काफी उतर चढ़ाव भरा रहा है। प्रथम विश्व युद्ध ने पुरे यूरोप को आर्थिक संकट में डाला हुवा था और पूरी राजनीती में बदलाव देखने को मिले।

मुसोलिनी जैसा तानाशाह चुनाव लड़कर राष्ट्रवाद के नाम पर इटली पर शासन कर रहा था। उसी दौर में अंटोनिओ ग्राम्सकी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इटली के माध्यम से राजनीती में प्रवेश कर चुके थे। इसलिए हम यहाँ उनके लिखे हुए साहित्य को जो खासकर के राजनितिक साहित्य हे इसको अध्ययन करने की कोशिश करेंगे। जिसमे उन्होंने जो राजनितिक सिद्धांत दुनिया के सामने रखे वह काफी महत्वपूर्ण रहे है।

यूरोप में कार्ल मार्क्स ने अपने विचारो से प्रभावित किया और जल्द ही यूरोप के देशो में हमें क्रांति देखने को मिलेगी यह उन्होंने कहा था , मगर ऐसा हो नहीं रहा था। इसका अध्ययन ग्राम्सकी ने बड़े बारीकी से किया। कार्ल मार्क्स के विचारधारा में वह आर्थिक प्रभुत्व को काफी महत्त्व देते हे मगर ग्राम्स्की का कहना था की सामाजिक धारणा और परम्पराओ पर शासक जाती का प्रभुत्व यह महत्वपूर्ण कारन हे यूरोप में क्रांति नहीं हो रही हे। इसलिए यहाँ हम विस्तृत रूप से देखेंगे की ग्राम्सकी के विचार वास्तव में क्या थे।

अंटोनिओ ग्राम्सकी (१८९१-१९३८) / Antonio Gramsci –

अंटोनिओ ग्राम्सकी यह इटली के महान राजनीतिज्ञ और लेखक रहे हे वह अपने शुरुवाती दिनों से शारीरिक दृष्टी से काफी कमजोर रहे हे और जब उन्हें मुसोलिनी द्वारा उम्रकैद की शिक्षा दी गई उसी दौरान उनकी मौत हुई थी। मगर इस दौरान उन्होंने वह अपने जीवन की राजनितिक अनुभव को कागज पर उतरा था। वह मूलतः एक मार्क्सवादी थे मगर वह मार्क्सवादी विचार तरह सहमत नहीं थे। वह इटली के कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इटली के संस्थापक सदस्य रह चुके थे।

ग्राम्सकी का जन्म इटली के अलेस शहर में हुवा जो ऑरिस्तानो प्रान्त में था। वह अपने माता पिता के सात बच्चो में चौथे संतान थे। १८९८ में एक आपराधिक मामले में उनके पिताजी को जेल जाना पड़ा और १९०४ तक उनके पिताजी को जेल से छोड़ा गया तबतक उन्हें परिवार के लिए काम करना पड़ा। अपने शुरुवाती दिनों से वह अपने शारीरिक समस्याओ से जूझते रहे हे।

अपने शिक्षा के दौरान वह मार्कवादी विचारधारा के प्रभाव में आए मगर उसमे उन्हें कई खामिया दिखती थी इसलिए उनका मानना था की यह विचारधारा हर क्षेत्र में अलग अलग तरीके से इस्तेमाल करने पर ही क्रांति हो सकती है। वह अपने राजनितिक जीवन में रशियन क्रांति के बाद रशिया गए और लेनिन से मुलाकात की। वह केवल ४६ साल जिए मगर उन्होंने जो साहित्य अपने पीछे छोड़ा हे उसने पूरी दुनिया को राजनितिक विचारधारा से अलग तरीके से अवगत किया है।

अंटोनिओ ग्राम्सकी के ३० नोट्स / 30 Notes of Antonio Gramsci –

अंटोनिओ ग्राम्सकी यह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इटली के संस्थापक सदस्य थे और शासक मुसोलिनी के कट्टर आलोचक माने जाते थे। १९२६ को मुसोलिनी ने उन्हें उम्रकैद की शिक्षा से जेल में डाला और वह अपने आखरी दिनों तक जेल रहे। १९३७ को शारीरिक बीमारियो के कारन उन्हें छोड़ा गया मगर तबतक वह काफी कमजोर हुए थे जिससे उनका देहांत हुवा। उन्हें जेल में लिखने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं किया गया था।

उन्होंने अपनी बहन के सहायता से जेल में अख़बार पढ़ने के लिए व्यवस्था प्राप्त कर ली थी और इसी के माध्यम से उन्होंने वह लगबघ ३० नोट्स लिखे जो ३००० पन्नो में लिखे थे। वह कोई पुस्तक रूप में नहीं लिखे हुए थे इसलिए वह नोट्स माध्यम से लिखे हुए थे जो उनके मृत्यु पश्चात काफी महत्वपूर्ण साहित्य के रूप में प्रकाशित किया गया जो दुनिया के लिए राजनितिक शास्त्र के माध्यम महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गया।

उन्होंने मार्क्सवाद की खामिया दिखाने कोशिश अपने नोट्स में की हे और यूरोप में औद्योगीकरण के माध्यम से वर्कर्स का शोषण होते हुए भी क्रांति क्यों नहीं हो रही हे इसके कारन ढूंढने की कोशिश की है। अफ़्रीकी और एशिया देशो का शोषण यह यूरोप में क्रांति न होने का सबसे महत्वपूर्ण कारन उन्होंने दिखाया। उनका मानना था की शोषण करने के लिए यूरोप के शासक और पूंजवादी लोगो ने अफ़्रीकी और एशिया देशो का सहारा लिया और यूरोपीय समाज को एक विचारधारा के माध्यम से भ्रमित रखने का कार्य किया।

सांस्कृतिक अधिपत्य सिद्धांत / Cultural Hegemony Theory –

सांस्कृतिक अधिपत्य का अर्थ हे की शासक जाती को निरंतर सत्ता पर काबिज रहने के लिए उसे किसी विचारधारा की जरुरत होती हे जिससे वह समाज को अपने प्रति भ्रमित विश्वास रखने को मजबूर करती है। यह सिद्धांत ग्राम्सकी ने दुनिया के सामने रखा। इसके लिए माध्यम वर्ग और पूंजीपति इसके सहयोग से वह बहुसंख्य समाज को अप्राकृतिक चीजों को प्राकृतिक तरह से समाज के सामने पेश करके उनपर अपना अधिपत्य प्रस्तापित करना यह शासक जाती का शासन करने का मूल आधार है।

शासक जाती यह सांस्कृतिक अधिपत्य शिक्षा , परम्पराए और धर्म के माध्यम से समाज को एकसंघ बांधकर अपना वर्चस्व पस्थापित करते हे। यह नियम हमें लगबघ पूरी दुनिया में देखने को मिलता है। हम देखते हे की अमरीका में १ प्रतिशत विरुद्ध ९९ प्रतिशत यह लड़ाई देखने को मिलती हे, वही स्थिति हमें भारत में भी देखने को मिलत्ती हे, मगर इससे समाज में असंतोष निर्माण नहीं होता इसका कारन ग्राम्सकी सांस्कृतिक अधिपत्य का विचार है।

अंटोनिओ ग्राम्सकी ने यह विचारधारा कार्ल मार्क्स के विचारधारा से प्रभावित होकर ली गई है। कार्ल मार्क्स के अनुसार समाज की प्रमुख विचारधारा यह शासक वर्ग के हित और विश्वास पर आधारित होती हे, इसमें कुछ बदलाव करके ग्राम्सकी ने कहा की शासक जाती का शासक बनने के लिए वह समाज पर अपनी विचारधारा थोपता हे जिसके कारन वह उस समाज का विश्वास , मान्यताए , विचारधारा और सामाजिक मूल्य निर्धारित करते है।

सांस्कृतिक अधिपत्य और बुद्धिजीवी वर्ग / Cultural Hegemony & Intellectual Class –

हमने विल्फ्रेड परेटो का ८० -२० का सिद्धांत पढ़ा होगा जिसमे वह कहते हे की समाज पर २० प्रतिशत लोग ८० प्रतिशत समाज पर राज करते है। इसका मतलब हे अल्पसंख्य लोग बहुसंख्य लोगो पर राज करते है। कार्ल मार्क्स ने जो लोकतंत्र की थ्योरी दुनिया के सामने रखी और पूंजीवादी लोगो ने जो लोकतंत्र की थ्योरी रखी यह दोनों थ्योरी का आधार बहुसंख्य समाज राजनितिक और सामाजिक दृष्टी से समाज पर राज करेगा यह माना।

अंटोनिओ ग्राम्सकी की सांस्कृतिक अधिपत्य की थ्योरी के अनुसार समाज में दो प्रकार बुद्धिजीवी होते हे, जो बुद्धिजीवी समाज के हर क्षेत्र पर प्रभाव रखते हे उन्हें आर्गेनिक बुद्धिजीवी कहा जो किसी भी वर्ग से आते है। पारम्परिक/ट्रेडिशनल बुद्धिजीवी यह शासक जाती को निरंतर सत्ता पर रहने के लिए सहयोग करते है । भारत में इसे हम क्रांति और प्रतिक्रांति में है।

जिसमे पारम्परिक बुद्धिजीवी यह एक ऐसी विचारधारा का निर्माण करते हे जिससे बहुसंख्य समाज सम्मति से अल्प सांख्य शासक जाती की विचारधारा को स्वीकार करते है। आर्गेनिक बुद्धिजीवी यह शोषक जाती से भी निर्माण हो सकते हे यह अंटोनिओ ग्राम्सकी ने जाना। रशिया में क्रांति संभव हुई और सर्वहारा समाज द्वारा शासक बनना संभव हुवा इसका कारन था, सांस्कृतिक अधिपत्य थ्योरी रशिया में कमजोर रही थी।

अंटोनिओ ग्राम्सकी और मार्क्सवाद / Antonio Gramsci & Maxism –

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इटली यह यूरोप की सबसे शक्तिशाली और सफल राजनितिक पार्टी थी जो मार्क्सवाद पर स्थापित की गई थी। मुसोलिनी ने इसकी वजह से भयभीत होकर अंटोनिओ ग्राम्सकी को ११ साल जेल में रखा था। अंटोनिओ पर मार्क्सवाद का खासा प्रभाव शुरुवाती दिनों में रहा था मगर उनके कुछ सवाल थे जो मार्क्सवाद के सन्दर्भ में थे। वह जानना चाहते थे की यूरोप में राजनितिक क्रांति क्यों नहीं हो रही हे जैसे की कार्ल मार्क्स ने भविष्यवाणी करके कहा था।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी की कार्ल मार्क्स कहते थे की सभी समस्याओ का कारन पूंजीवादी व्यवस्था का अर्थव्यवस्था नियंत्रण यह कारन है। अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण रखकर शासक वर्ग निरंतर सत्ता पर कायम रहता है। अंटोनिओ ग्राम्सकी ने इस थेओरी को नकारते हुए कल्चरल हेजेमनी इस सिद्धांत को प्रमुख कारन बताया जिसके कारन अल्पसंख्य शासक वर्ग बहुसंख्य समाज पर शासन करते है।

इसलिए उन्होंने अपनी मार्क्सवादी विचारधारा में बदलाव करते हुए सांस्कृतिक स्थापत्य यह कारन खोज के निकला जिसमे भाषा , परम्पराए , धर्म ,मीडिया जैसे महत्वपूर्ण साधनो पर शासक वर्ग पूंजीवादी लोगो के सहायता से अधिपत्य निर्माण करता है और लोगो की धारणा को प्रभावित करके उनकी सम्मति सत्ता पर रहने के लिए लेता है जिसमे समाज की सोचने की शक्ति क्षीण हो जाती है।

अंटोनिओ ग्राम्सकी की सामाजिक संरचना / Social Structure of Antonio Gramsci –

  • राजनितिक सोसाइटी / Political Society
  • सिविल सोसाइटी / Civil Society

राजनितिक सोसाइटी में जिनके पास राजनितिक शक्ति हे ऐसे लोग आते हे और राज्य की व्यवस्था के अधिकारी वर्ग होते है , उनके पास कानून व्यवस्था को शासित करने की शक्ति उपलब्ध होती हे जिसका इस्तेमाल वह समाज में कानून व्यवस्था को बरक़रार रखने के लिए करता है। दूसरी तरफ सिविल सोसाइटी के पास बलप्रयोग अथवा अनुशासन करने की शक्ति नहीं होती वह अपने विचार के प्रभाव से अपना कार्य करते हे।

अंटोनिओ ग्राम्सकी कहते हे की पोलिटिकल हेजेमोनी यह शासक जाती की सत्ता को कायम रखने के लिए इन दो व्यवस्था का काफी प्रभावशाली तरीके से इस्तेमाल करते है। राजनितिक सोसाइटी में पुलिस प्रशासन , न्यायिक व्यवस्था यह आते हे जिनके पास बलप्रयोग से कानून व्यवस्था को लागु करने की शक्ति होती है। वही सिविल सोसाइटी में धर्म प्रचारक , सामाजिक कार्यकर्त्ता जैसे लोग अपने विचारो के प्रभाव से लोगो की सोच को शासक जाती के अनुरूप बनाने का कार्य करते है।

रशिया में कम्युनिस्ट क्रांति संभव हुई इसका कारन अंटोनिओ ग्राम्सकी मानते हे की कल्चरल हेजेमनी पर शासक जाती का प्रभुत्व न होना यह कारन रहा। कानून व्यवस्था पर शासक जाती का प्रभुत्व होने पर सबसे ज्यादा फायदा कानून व्यवस्था को पूंजीवादी और शासक जाती के माध्यम वर्ग को होता है। संस्कृति , इतिहास , परम्पराए , धर्म संस्कार , भाषा ,राजनितिक व्यवस्था इन सबपर नियंत्रण करके एक विचारधारा का निर्माण करके बहुसंख्य शासित जाती को संमति से विचारधारा से प्रभावित रखा जाता है। इसलिए यह कल्चरल हेजेमोनी की संरचना अंटोनिओ ग्राम्स्की बताते है।

अंटोनिओ ग्राम्सकी की विचारधारा की विशेषताए / Features of Antonio Gramsci Philosophy –

  • अंटोनिओ ग्राम्सकी जिस दौर में थे वह दौर था प्रथम विश्व युद्ध की जिसके कारन पुरे यूरोप की आर्थिक हालत काफी ख़राब थी इसका फायदा उठाकर मुसोलिनी जैसा शासक इटली पर शासन कर रहा था।
  • इटली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इटली के वह संस्थापक सदस्य रहे थे और पुरे यूरोप में सबसे सफल कम्युनिस्ट पार्टी का निर्माण उनके नेतृत्व में किया गया था।
  • १९२६ में मुसोलिनी ने उनके राजनितिक प्रभाव को देखते हुए देश के विरुद्ध षड्यंत्र के आरोप में जेल में डाला जहा वह ११ साल रहे और वही उन्होंने अपना साहित्य निर्माण किया।
  • जेल में रहते हुए उन्होंने ३० नोट्स और ३००० पेजेज की अपनी विचारधार पुस्तक रूप में तैयार की थी।
  • बचपन से वह रीड की बीमारी के चलते बीमार रहते थे और इसके कारन वह पांच फुट से भी कम उचाई के रहे थे और अपने आखरी दिनों तक बीमार रहते थे और इसके कारन उनके आखरी दिनों में छोड़ा गया मगर उनकी जेल के हालत के कारन उम्र के ४६ साल में मृत्यु हुई।
  • सांस्कृतिक अधिपत्य यह विचारधारा का निर्माण करके उन्होंने कार्ल मार्क्स के आर्थिक महत्त्व को नकार दिया और एक अलग से सिद्धांत रखे।
  • ऑर्गनिग बुद्धिजीवी यह संकल्पना के माध्यम से ट्रेडिशनल बुद्धिजीवी को अलग किया।
  • पूंजीवाद का शासक जाती को प्रस्थापित करने कैसे सहयोग मिलता हे यह उन्होंने दर्शाया हे।
  • कार्ल मार्क्स के अनुसार यूरोप में क्रांति होगी मगर नहीं हो पायी इसके कारन ढूंढ़ने की कोशिश अंटोनिओ ग्ग्राम्सकी द्वारा दिए गए।
  • सामाजिक संरचना पर शासक जाती का नियंत्रण कैसे निर्माण होता हे यह अंटोनिओ ग्राम्सकी बताते हे और इसको विरोध करने आर्गेनिक बुद्धिजीवी कैसे संघर्ष करते हे यह विश्लेषण देखने को मिलता है।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की अंटोनिओ ग्राम्सकी ने अपने राजनितिक अनुभव से कैसे एक राजनितिक विचारधारा किया जिसने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। रशिया की क्रांति यह मार्क्सवाद का एक अपवाद कारन था मगर इसके आलावा और किसी जगह पर समाज में बदलाव नहीं हो रहे थे। पूंजीवाद पूरी यूरोप में पहुंच गया था। साम्राज्यवाद माध्यम से शासक जातियों ने अफ़्रीकी और एशियाई देशो की साधन संपत्ति को पूरी तरह से अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया।

इसलिए यूरोप में जो शोषण हो रहा था वह इन अफ़्रीकी और एशियाई देशो की तुलना में काफी कम था इसका प्रभाव यूरोप के जनता पर हमें उस समय देखने को मिलता है। पूंजीवादी और शासक मिलकर समाज को लूट रहे थे मगर समाज में कोई बदलाव देखने को नहीं मिल रहा था। इसका अध्ययन करने के बाद ग्राम्सकी ने देखा की केवल आर्थिक वर्चस्व के माध्यम से शासक जाती लोगो पर नियंत्रण नहीं रख रही है।

समाज की संस्कृति , मूल्य और विचारधारा पर नियंत्रण रखने का काम शासक जाती और पूंजीवादी मिलजुलकर अपने हित के लिए समाज पर थोप रहे है। अप्राकृतिक चीजों को प्राकृतिक रूप में समाज पर विश्वास पर थोप रहे हे। यही कारन हे समाज में कोई बदलाव नहीं हो रहा हे, वास्तविकता में समाज का शोषण काफी हो रहा था मगर क्रांति नहीं हो रही थी इसलिए उन्होंने इसके कारन ढूंढने की कोशिश अपने साहित्य से की है।

मैकियावेली का जीवन दर्शन

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