प्रस्तावना / Introduction –

भारतीय न्यायिक व्यवस्था में उच्च न्यायालयों का काफी महत्त्व हे क्यूंकि सर्वोच्च न्यायलय का महत्वपूर्ण कार्य उच्च न्यायलय के कारन सहज हो जाता हैं । भारत का संविधान देश की सभी राज्यों को अपने कानून बनाने का अधिकार देता हे जिससे संविधान का फ़ेडरल चरित्र हमें दिखता हैं । संविधान के आर्टिकल 226  के माध्यम से राज्यों के बनाए गए कानून की समीक्षा तथा व्याख्या करने का अधिकार देता हैं । संविधान के आर्टिकल 227 के माध्यम से राज्य के सभी जिला कोर्ट तथा ट्रिब्यूनल्स पर व्यवस्थापन करने का अधिकार देता हैं ।

सामान्यतः साधारण लोगो को न्यायव्यवस्था में कौनसे कोर्ट का क्या महत्त्व हे तथा कार्य हे यह जानकारी नहीं होती इसलिए इस आर्टिकल के माध्यम से हम सामान्य भाषा में उच्च न्यायलय /high कोर्ट के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देने की कोशिश करेंगे । भारत की न्यायिक व्यवस्था का मूल आधार ब्रिटिश इंडिया में बनाई गयी न्यायिक व्यवस्था हे इसलिए हमें उस इतिहास से हाई कोर्ट का निर्माण कैसे हुवा यह जानने की कोशिश करेंगे ।

इसलिए सबसे पहले हम उच्च न्यायलय क्या हे और इसकी व्यवस्था कैसे चलाई जाती हे यह विस्तृत जानने की कोशिश इस आर्टिकल के माध्यम से करेंगे । जमीनी स्तर पे ऐसे देखा गया हे की सामान्य लोगो को जानकारी नहीं होती यह हम समझ सकते हे परन्तु पढ़े लिखे लोगो को भी यह जानकारी नहीं होती इसलिए हम इस आर्टिकल के माध्यम से हाई कोर्ट के बारे में जानकारी उपलब्ध करने की कोशिश करेंगे जो सभी प्रकारकी जानकारी हमें इस आर्टिकल के माध्यम से पढ़ने को मिलेगी ।

उच्च न्यायालय क्या है ? /  What is High Courts ? –

हाई कोर्ट्स यह भारत के किसी भी राज्य के प्रमुख कोर्ट होते हे जो अपने राज्य के जिला कोर्ट तथा ट्रिब्यूनल्स को नियंत्रित करने का काम करता हे तथा नागरिको के मुलभुत अधिकारों का सरंक्षण रिट  के माध्यम से करता हैं ।high कोर्ट यह अपने राज्य का कोर्ट ऑफ़ रिकॉर्ड होता हैं । आर्टिकल 226 के तहत भारत का संविधान सभी हाई कोर्ट्स को व्यक्ति, संघटन, राज्य सरकार, संस्था तथा राज्यों की प्रशासन व्यवस्था को कानून व्यवस्था के माध्यम से संरक्षण, आदेश तथा दण्डित कर सकती हैं ।

भारत का सर्वोच्च न्यायलय यह आर्टिकल 141 के अनुसार देश का सबसे बड़ा न्यायलय निर्धारित किया गया हे जिसके नियंत्रण में देश के सभी राज्यों के उच्च न्यायालयों को कार्य करना होता हैं । पुरे भारत में कुल 25 हाई कोर्ट्स हे जिसमे 6 हाई कोर्ट की कार्यवाही में एक से ज्यादा राज्यों के न्यायिक व्यवस्था चलाया जाता हैं । भारत के नागरिको के मुलभुत अधिकारों का सरक्षण करने के लिए हाई कोर्ट में कोई भी व्यक्ति, संस्था रिट के माध्यम से याचिका दाखिल कर सकते हैं ।

उच्च न्यायलय के निचले स्तर पर कोर्ट की कार्यवाही उस राज्य के परदेशी भाषा में मुख्य रूप से होती हे , परन्तु देश के सभी हाई कोर्ट की कार्यवाही यह अंग्रेजी भाषा में होती हैं । तथा निचली न्यायिक व्यवस्था में क्रिमिनल और सिविल मामले मुख्य रूप से विभाजन होता हे वही हाई कोर्ट में जिला न्यायलय से अपील तथा रिट पिटीशन इस माध्यम से अंग्रेजी में कार्यवाही होती हैं । हाई कोर्ट को आर्टिकल 227 के माध्यम से संविधान ने निचले न्यायालयों पर प्रशानिक अधिकार दिए हुए हैं । राज्यों के बनाए गए कानूनों की समीक्षा हाई कोर्ट में याचिका के माध्यम से अथवा सुओ मोटो सिद्धांत के अनुसार आदेश अथवा व्याख्या करने का अधिकार हाई कोर्ट को दिया हुवा हैं ।

हाई कोर्ट्स की महत्वपूर्ण रिट याचिकाए / Important Writ Petitions of High Courts-

  • Habeas Corpus-भारत के किसी भी नागरिक को न्यायिक प्रक्रिया के आदेश के बिना हिरासत में नहीं रख सकते ।
  • Mandamus- पब्लिक ऑफिस अथवा अधिकारी को कानूनी कर्तव्य तथा पब्लिक कर्त्तव्य पालन करने का आदेश ।
  • Prohibition- जिला न्यायालयों के  द्वारा दिए गए निर्णय विसंगत अथवा गैर कानूनी घोषित करने का अधिकार ।
  • Quo warranto-  सरकारी संस्था द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कानूनी अधिकारों के वैद्यता पर सवाल उठाने का अधिकार ।
  • Certiorari- निचली अदालतों द्वारा दिए गए असंविधानी/ विसंगत निर्णयों को रद्द करने का अधिकार ।

हाई कोर्ट्स को यह अधिकार संविधान के आर्टिकल 226 के अनुसार दिए गए हैं , जिसके माध्यम से वह उस राज्य की कानून व्यवस्था को संविधान के दायरे में कार्य करने के लिए बाध्य होता हैं । भारतीय संविधान के पार्ट 3 में दिए गए नागरिको के मुलभुत अधिकारों का सरक्षण करने की जिम्मेदारी यह उस राज्य के हाई कोर्ट की होती हैं । सुप्रीम कोर्ट के अधीन रहकर हाई कोर्ट को अपने निर्णय प्रक्रिया को चलना पड़ता हैं । सुप्रीम कोर्ट को भारतीय संविधान में आर्टिकल 13 के माध्यम से नागरिको के हितो का सरक्षण करने की जिम्मेदारी सोपि हुई हैं वही आर्टिकल 226 के तहत हाई कोर्ट के अधिकारों का दायरा बड़ा होता हैं, जिसमे जिला कोर्ट के निचले अदालतों पर नियंत्रण रखना तथा अपील को देखना होता हैं ।

उच्च न्यायालय का इतिहास / History of High Courts-

ब्रिटिश इंडिया में कोलकाता यह शहर भारत की राजधानी हुवा करता था इसलिए न्यायिक व्यवस्था की शुरुवात भी हमें इसी शहर से देखने को मिलती हैं । 1857 की क्रांति से पहले ब्रिटिश क्राउन और ईस्ट इंडिया कंपनी इनकी अलग अलग न्यायिक व्यवस्था हुवा करती थी जिसमे कई बार डिस्प्यूट देखने को मिलते थे । इसलिए 1857 के बाद भारतीय दंड सहित के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने न्यायिक व्यवस्था में बदलाव करना शुरू किया था । 1773 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी थी मगर आज के सुप्रीम कोर्ट की तरह उसका उद्देश्य नहीं था, जो कोलकाता में स्थापित किया गया और वह आज के हाई कोर्ट की तरह काम करता था ।

कोलकत्ता सुप्रीम कोर्ट का कार्य क्षेत्र यह बंगाल, बिहार, उड़ीसा यह था, तथा ब्रिटिश क्राउन किंग जॉर्ज 3 द्वारा सन1800 -1823 क्रमशः  में मद्रास  और बॉम्बे  प्रोविंस में सुप्रीम कोर्ट शुरू किया गया था, जिसका कार्य आज के हाई कोर्ट की तरह था । ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा इसी समय मुफसिल कोर्ट तथा दीवानी कोर्ट चलाए जाते थे और इसी बिच कानून व्यवस्था बनाने के लिए समस्याए निर्माण होनी लगी । इंडिया हाई कोर्ट एक्ट 1861 के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की जगह हाई कोर्ट्स के माध्यम से प्रोविंशियल स्टेट्स में कानून व्यवस्था को प्रस्थापित किया गया , तथा सुप्रीम कोर्ट की जगह फ़ेडरल कोर्ट यह मुख्या कोर्ट के माध्यम से स्थापित किया गया ।

स्वतंत्र भारत में 25 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी और ब्रिटिश इंडिया में प्रिवी कौंसिल जूरिस्डिक्शन एक्ट 1949 को रद्द कर दिया गया और दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी । भारत में कोलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास यह हाई कोर्ट सबसे पुराने माने जाते हे, भारतीय संविधान लागु होने के बाद संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट के अधीन चलाए जाते हैं । भारतीय संविधान के आर्टिकल 214 के तहत हर राज्य में हाई कोर्ट होना चाहिए, इसलिए आज धीरे धीरे हाई कोर्ट की संख्या बढ़ रही हैं । 2019 में अधरा प्रदेश हाई कोर्ट की स्थापना यह सबसे नयी हाई कोर्ट मानी जाती हैं ।

उच्च न्यायालय की सरंचना / Composition of High Courts in India  –

हर राज्य के हाई कोर्ट के लिए मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति देश के राष्ट्रपति द्वारा तथा जुडिशल कॉलेजियम सिस्टम के सिफारिशों पर होती हैं, जिसके लिए सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश तथा सम्बंधित राज्य के राज्यपाल की भूमिका काफी अहम् होती हैं । हाई कोर्ट के बाकि न्यायाधीशों की नियुक्ति इसी तरह होती हैं तथा प्रत्येक हाई कोर्ट में कितने न्यायाधीश होने चाहिए इसकी संख्या कही पर भी लिखी नहीं गयी हैं । इन न्यायाधीशों की संख्या क्या होनी चाहिए यह उस हाई कोर्ट के कार्य क्षेत्र पर निर्धारित होती हैं और इसी हिसाब से हर राज्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता हैं ।

उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र /  Jurisdiction of High Courts  –

उच्च न्यायलय के लिए जूरिस्डिक्शन मतलब अधिकार क्षेत्र यह उस राज्य की सिमा होती हैं तथा इसके अंदर आने  वाले सभी जिले इसके अधिकार क्षेत्र के अंदर कार्य करते हैं । भारत में लगबघ 6 राज्य ऐसे हैं जिनके हाई कोर्ट अधिकार क्षेत्र में एक से ज्यादा राज्य अथवा केंद्र शाषित प्रदेश आते हैं । ऐसे हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में उस राज्यों की सरकार, व्यक्ति तथा संस्थाए आती हैं । संविधान के आर्टिकल 141 के तहत इन सभी हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के नियंत्रण कक्षा में काम करना होता हैं ।

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायलय / Supreme Court and High Courts –

2022 तक भारत में हाई कोर्ट की संख्या 25 हुई हैं तथा यह सभी हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के अधीन रहकर काम करना होता हैं तथा इन सभी न्यायालयों की न्यायाधीश नियुक्ति प्रक्रिया एक ही प्रकार की होती हैं । हाई कोर्ट में जो केसेस निपटाए जाते हैं इसकी अपील सुप्रीम कोर्ट में होती हैं और हाई कोर्ट के दिए हुए आदेश पर निर्णय बदलने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को होता हैं । सभी हाई कोर्ट तथा देश के सुप्रीम कोर्ट को कोर्ट ऑफ़ रिकॉर्ड कहा जाता हैं परन्तु हाई कोर्ट के दायरे में उस राज्यों के जिला न्यायलय होते हैं वही सुप्रीम कोर्ट के दायरे में देश के सभी राज्यों के हाई कोर्ट होते हैं ।

उच्च न्यायालय की कार्यप्रणाली / Function of High Courts-

  • Original Jurisdiction/ मूल न्यायाधिकार
  • Writ Jurisdiction/ रिट जूरिस्डिक्शन
  • Appellate Jurisdiction/ अपील जूरिस्डिक्शन
  • Supervisory Jurisdiction/ परिवेक्षम जूरिस्डिक्शन
  • A Court of Record/ कोर्ट ऑफ़ रिकॉर्ड
  • Power of Judical Review/ न्यायिक समीक्षा की शक्ति

उच्च न्यायालय की विशेषताए / Features of High Courts in India-

  • संविधान के आर्टिकल 226 तथा 227 के माध्यम से सभी राज्यों के उच्च न्यायलय की स्थापना हुई हे तथा इसको अपने राज्यों के जिला न्यायलय तथा ट्रिब्यूनल पर व्यवस्थापन करने का अधिकार प्राप्त होता हैं ।
  • भारतीय संविधान के आर्टिकल 214 से लेकर 231 पार्ट 4 तक प्रावधान यह हाई कोर्ट के बारे में कहता हैं ।
  • उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती हे जिसके लिए सर्वोच्च न्यायलय के चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया तथा उस राज्य का राज्यपाल नमो की सूचि संविधान के आर्टिकल 217 के अनुसार राष्ट्रपति को देते हैं ।
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने ही दिए गए तीन जजमेंट के आधार पर देश के सभी हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के जुजो की नियुक्ति “जुडिशल कॉलेजियम” के माध्यम से होती हैं तथा जिला न्यायालयों को निचले स्तरों पर परीक्षा के माध्यम से जज चुने जाते हैं ।
  • कलकत्ता हाई कोर्ट यह देश का सबसे पुराना हाई कोर्ट हे जिसकी स्थापना ब्रिटिश इंडिया में 2 जुलाई 1862 को हुई थी ।
  • भारत की न्यायिक व्यवस्था में कुल 25 हाई कोर्ट्स हे जिसमे केंद्र शाषित प्रदेश तथा राज्य शामिल हैं, 6 राज्य ऐसे हे जहा अन्य राज्य एवं केंद्र शाषित प्रदेश शामिल हैं ।
  • हाई कोर्ट के दिए गए निर्णय यह अनकोडीफायड कानून बन जाता हे और जहा राज्यों की विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून में जहा कानून में कुछ खामिया होती हे उसे सुधारने का और कानून की व्याख्या करने का अधिकार होता हैं ।
  • जिला न्यायलय की रचना मुख्य रूप से दो भागो में की गयी हे जिसमे सिविल मामलों के लिए सिविल जज होते हे, तथा क्रिमिनल मामलो के लिए सेशन जज होते हे जो यह कोर्ट अपनी कार्यवाही हाई कोर्ट के निरिक्षण में अलग अलग चलाते हैं ।
  • जिला न्यायालयों के निचला स्तर यह उच्च न्यायलय तथा सुप्रीम कोर्ट से अलग चलाया जाता हे जहा किसी भी केस की ट्रायल होती हे जिसमे सबुत और तथ्यों को पेश किया जाता हैं ।
  • जिला अदालतों के निचले स्तरों की कार्यवाही राज्यों के स्थानिक भाषा में होती हे वही हाई कोर्ट की कार्यवाही यह अंग्रेजी में होती हैं ।

उच्च न्यायालय व्यवस्था का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of High Courts System in India

भारत की न्यायिक व्यवस्था में केस सालो चलते हे ऐसी धारणा सामान्य लोगो में प्रस्थापित हो चुकी हे जिससे देर से मिला हुवा न्याय यह न्याय न मिलने के बराबर माना जाता हैं । इसलिए अगर हम यूरोप और अमरीका की न्यायिक व्यवस्था का अध्ययन करे तो हमें काफी विकसित न्यायिक व्यवस्था प्रस्थापित करनी होगी । एक निजी सामाजिक संस्था द्वारा 2015 में किए गए अध्ययन से यह पता चला हे की हाई कोर्ट को औसतन 3 साल लगते हे किसी भी एक केस को पूर्ण करने के लिए ,  इसलिए न्यायिक प्रक्रिया पर लोगो का विश्वास प्रस्थापित करने के लिए यह खामिया दूर करनी होगी ।

जुडिशल कॉलेजियम सिम्टम का बुद्धिजीवी आलाचकों द्वारा काफी मुद्दा उठाया जाता हे, जिसमे भाई भतीजा वाद के आरोप किए जाते हैं और मेरिट के आधार पर जजों की नियुक्ति परीक्षा के माध्यम से होनी चाहिए यह बताया जाता हैं । जिला स्तर तक जुजो की नियुक्ति परीक्षा के माध्यम से होती हे परन्तु हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जुजो की नियुक्ति यह जुडिशल कॉलेजियम के माध्यम से होती हे जिसपर कई बार भारत सरकार ने भी कई बार कानून बनाने की कोशिश की हे मगर इसका विरोध हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया गया हैं ।

सामान्य जनता के लिए हाई कोर्ट में केस लड़ने के लिए आर्थिक दृष्टी से  सक्षम नहीं हे  इसलिए भले ही हाई कोर्ट को संविधान द्वारा नागरिको के हितो का सरक्षण करने के लिए बाध्य  रखा हे परन्तु पिछले 75 सालो से वह विश्वास हासिल करने के लिए यह असफल रहा हैं । न्यायिक व्यवस्था कोर्ट की कार्यवाही को सक्षम करने के लिए भारत सरकार आर्थिक सहयोग नहीं करता हे इसलिए न्यायालयकी जुजो की भारती अथवा इंफ्रास्ट्रचर के लिए आर्थिक रूकावट यह प्रमुख कारन न्यायिक व्यवस्था द्वारा कई बार जाहिर तौर पर दिया गया हैं । जिसपर पहल भारत सरकार द्वारा होते नहीं दिख रही हैं ।

निष्कर्ष /  Conclusion-

इसतरह से हाई कोर्ट न्यायिक व्यवस्था भारत में कैसे प्रस्थापित हुई हैं इसके लिए हमने हाई कोर्ट का ब्रिटिश इंडिया से इतिहास क्या हैं यह जानने की कोशिश यहाँ की हैं । भारतीय संविधान में आर्टिकल 13 के तहत सुप्रीम कोर्ट को तथा आर्टिकल 226 के तहत हाई कोर्ट को नागरिको के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए अधिकार प्रदान किए हैं । जिसके तहत देश का कोई भी नागरिक अथवा संस्था सीधे हाई कोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट में याचिका के माध्यम से केस दर्ज कर सकता हैं ।

ब्रिटिश इंडिया में हाई कोर्ट व्यवस्था और भारत की स्वतंत्रता के बाद की हाई कोर्ट न्यायिक व्यवस्था यह उद्देश्य के हिसाब से अलग हुई हैं तथा देश में 25 हाई कोर्ट में न्यायिक प्रक्रिया की भाषा यह अंग्रेजी में होती हैं । सभी राज्यों की जिला स्तर से निचले स्तर पर राज्यों के स्थानिक भाषा में कोर्ट की कार्यवाही होती हैं तथा सिविल कोर्ट और क्रिमिनल कोर्ट ऐसा मुख्य रूप से दो हिस्सों में कोर्ट का विभाजन होता हैं । फॅमिली कोर्ट , इंडस्ट्रियल कोर्ट तथा अन्य ट्रिब्यूनल के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया को हाई कोर्ट के अधीन चलाया जाता हैं ।

भारत की न्यायिक व्यवस्था में काफी समय लगाने की वजह से सामान्य लोगो का न्यायिक व्यवस्था के प्रति विश्वास देखने को नहीं मिलता यह हमारे न्यायिक व्यवस्था के लिए एक आवाहन की तरह हे जिसे हमें मिलकर सुधारना होगा । सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा कई बार सार्वजिनक प्लेटफार्म पर उनकी मज़बूरी को बयां किया हैं तथा पर्याप्त आर्थिक सहायता के बिना इस न्यायिक प्रक्रिया को नहीं सुधारा जा सकता हैं यह उनका मानना हैं । हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के नियुक्ति का मामला काफी विवादस्पद हैं क्यूंकि इसपर कई सरकारों द्वारा आक्षेप उठाया गया हैं जो अपने ही द्वारा अपने को नियुक्त करता हैं जो न्यायिक सिद्धांतो के विपरीत हैं ऐसा कई बुद्धिजीवियों का मानना हैं ।

 

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