प्रस्तावना / Introduction –

इंडियन स्टॅम्प कानून यह एक राजकोषीय अधिनियम हे जी ब्रिटिश इंडिया में भारत में लागु किया गया जो भारत की स्वतंत्रता के बाद आज तक कायम रखा गया और इसमें कालानुसार समय समय पर बदलाव किये गए। यह विषय हमने लिखने के लिए चुना इसका कारन हे की पेशेवर जानकार लोग भी इस कानून के मूल में नहीं जाते और इसकी सामान्य जानकारी बाकि लोगो भी नहीं मिलती।

इंडियन स्टॅम्प एक्ट १८९९ यह कानून भारत में होने वाले सभी व्यवहारों के लिए इस्तेमाल किया जाता हे जिसमे एक व्यक्ति को जिम्मेदारी होती हे और दूसरे व्यक्ति को फायदा होता है यह व्यवहार स्थाई संपत्ति के लिए हो सकता हे अथवा अस्थाई संपत्ति के लिए हो सकता है। हम सामान्य जीवन में कई प्रकारके स्टॅम्प देखते हे जो किस कारन अलग अलग इस्तेमाल होते हे इसकी कानूनी अहमियत क्या हे यह हम समझने की कोशिश करते है।

किसी भी आर्थिक व्यवहार की कानूनी जिम्मेदारी सरकार स्टॅम्प एक्ट के माध्यम से खुद पर लेती हे जिससे भविष्य में होने वाली इस व्यवहार के लिए कार्य करती हे जिसे हम सार्वभौम कहते है। इस कानून के तहत बनाए गए दस्तावेज सबुत के तौर पर मूल्यवान समझे जाते है दूसरे दस्तावेज के तुलना में इसलिए इसकी कीमत काफी ज्यादा होती है। यह आर्थिक व्यवहार में देश की कानून व्यवस्था होने का संकेत होता हे।

इंडियन स्टॅम्प एक्ट १८९९ / Indian Stamp Act 1899 –

किसी दस्तावेज के लिए हम स्टॅम्प ड्यूटी सरकार को टॅक्स के रूप में देते है जिसे इंस्ट्रूमेंट कहा जाता है वह स्थाई संपत्ति के लिए होता हे अथवा अस्थाई संपत्ति के लिए होता है। डिजिटल फॉर्म में किये जाने वाले स्टॉक मार्किट के व्यवहारों के लिए स्टॅम्प ड्यूटी नहीं ली जाती मगर फिसिकल फॉर्म में शेयर अथवा बॉन्ड के दस्तावेज पर स्टॅम्प ड्यूटी लागु होती है।

१८९९ में बनाया गया कानून यह भारत की स्वतंत्रता के बाद भी कायम रखा गया और समय समय पर इसमें कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किये गए जिसमे पहले के प्रोविंस और प्रेसीडेंसी टाउन के बदले में राज्य तथा केंद्र अधिकार क्षेत्र को संविधान हिसाब से तय कर दिया गया।

  • Impressed Stamp – जिसे फ्रैंकिंग मशीन द्वारा किया जाता है वह बैंको के माध्यम से जिसमे कागज पेपर खुदाई जैसे निशान के माध्यम से दस्तावेज को अधिकृत किया जाता है।
  • Adhesive Stamp – यह ऐसे स्टॅम्प होते हे जो दस्तावेज पर चिपकाए जाते हे अथवा जोड़े जाते है जिसमे मुख्य रूप से
  • Postal Stamp जो पोस्ट ऑफिस से सम्बंधित कार्यो के लिए इस्तेमाल किये जाते है।
  • Non Postal Stamp – Revenue Stamp , Court fee stamp ,Insurance Policy Stamp इत्यादि
  • E – Stamp – डिजिटल माध्यम से चलाई गई स्टॅम्प ड्यूटी की प्रक्रिया

स्टॅम्प ड्यूटी क्या है ? / What is Stamp Duty –

स्टॅम्प ड्यूटी यह किसी भी राज्य सरकार द्वारा प्रॉपर्टी के व्यवहार के लिए लगाया गया टॅक्स होता है जो स्टॅम्प एक्ट के लिस्ट के अनुसार लगाया जाता हे और इसके अधिकार सरकार को रेगुलेशन करने के लिए दिए जाते है। व्यवहार के समय उस प्रॉपर्टी की कीमत के अनुसार यह स्टॅम्प के दर स्टॅम्प एक्ट के कानून के नुसार निर्धारित किये जाते है।

स्टॅम्प ड्यूटी का यह पेमेंट यह व्यवहार पूरा होने के समय पूर्ण करना पड़ता हे अथवा देरी करने पर सरकार द्वारा दंड के प्रावधान किये गए हे तथा जो स्टॅम्प ड्यूटी दर निर्धारित किये गए हे वह भरना जरुरी हे, अगर जानबूझकर गलत अथवा कम स्टॅम्प ड्यूटी भरने पर दंडात्मक कार्यवाही और दस्तावेज जप्त करने के अधिकार तत्सम अधिकारी को होते है।

इसलिए अगर यह स्टॅम्प ड्यूटी भरने में कोई उलझन हे तो जो ज्यादा स्टॅम्प ड्यूटी दर होगा वह भरना चाहिए अथवा मुख्य अधिकारी को सामान्य शुल्क के साथ अर्जी देकर योग्य दर की जानकारी हासिल कर सकते है। दंडात्मक कार्यवाही की रकम २ % से लेकर २००% तक तत्सम अधिकारी वसूल कर सकता है। इसलिए ऐसे व्यवहारों के स्टॅम्प ड्यूटी भरते समय यह सब जानकारी रखना जरुरी है।

आज सरकार द्वारा कुछ मुख्य शहरों के लिए ऑनलाइन सेवा स्टॅम्प ड्यूटी भरने के लिए बहुत सारी राज्यों द्वारा मुहैया की गई हे जिससे बहुत सारा समय और गलतिया होना बंद होने में मदत मिलेगी। क्यूंकि बहुत सारी जानकारी और अपडेट सरकार द्वारा वेबसाइट पर प्रसारित किये जाते हे जिससे होने वाली समस्याए कम होने में मदत होती है।

इंडियन स्टॅम्प एक्ट १८९९ का इतिहास / History of Indian Stamp Act 1899 –

यह कानून भारत में ब्रिटिश सरकार ने पहली बार हमारे देश में लाया, दुनिया में पहली बार स्टॅम्प एक्ट लाया गया वह था हॉलैंड में १६२४ में इसके बाद वह इंग्लैंड में प्रस्थापित किया गया। इंग्लैंड में यह कानून पहली बार किंग चार्ल्स – द्वितीय के दौरान लाया गया मगर सही मायने में इस कानून को विकसित किया किंग विल्लियम के कार्यकाल में , जो दुनिया के लिए यह पहली बार था।

भारत में पहली बार अंग्रेजो ने इस कानून को लाया वह था बंगाल, बिहार, ओरिसा और बनारस इस क्षेत्र में जो रेगुलेशन के फॉर्म में था जो १७९७ में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन भारत की व्यवस्था चलाई जाती थी। इंग्लिश मूल कानून का सिद्धांत शुरू से रहा हे की ” the things which is made liable to duty is an Instrument ” किसी भी राज्य को चलाने के लिए पैसे की जरुरत होती हे और वह पैसा टॅक्स के माध्यम से खड़ा किया जाता है।

जिसमे मुख्य टॅक्स के जरिये पर जब ज्यादा विरोध समाज से होने लगता हे तो स्टॅम्प एक्ट जैसे कानून की मदत से बंद किये गए टॅक्स के बदले यह कानून लाया गया। जो हर व्यवहार के लिए चाहे वह स्थाई प्रॉपर्टी का हो या किसी अस्थाई वस्तु का हो जिसपर टॅक्स लगाया जाता है जिसमे दोनों पार्टिया जीवित होनी चाहिए यह प्रमुख बात है। १८५७ के संघर्ष ने ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार को भारत से निकलकर ब्रिटिश पार्लियामेंट के अधीन भारत की व्यवस्था कार्य करने लगी और नए तरीके से स्टैंप एक्ट १८९९ को लाया गया।

स्टैंप एक्ट की विशेषताए / Features of Stamp Act –

  • इस कानून के अंतर्गत सभी इंस्ट्रूमेंट्स जहा व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा किये गए व्यवहार के लिए सरकार द्वारा अलग अलग व्यवहार के लिए अलग अलग स्टॅम्प जो सरकार की मजूरी से उसकी वैधता प्रस्थापित की जाती है।
  • स्टॅम्प ड्यूटी के मुख्य रूप से Adhesive अथवा Impressed stamp जो सभी व्यवहारों के लिए कितनी स्टॅम्प ड्यूटी लगेगी यह कानून द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  • भारत की संविधान के फ़ेडरल चरित्र के कारन राज्य तथा केंद्र सरकार इन दोनों के अधिकार कानून के अनुसार तय किये जाते है।
  • स्टॅम्प एक्ट यह कानून रजिस्ट्रेशन एक्ट तथा प्रॉपर्टी एक्ट और सेल्स एंड गुड्स एक्ट इन कानून से सहयोग करके कार्य करता है।
  • स्टॅम्प एक्ट के माध्यम से बनाए गए दस्तावेज सबुत के तौर पर न्यायिक प्रक्रिया में काफी महत्वपूर्ण होते है।
  • स्टॅम्प ड्यूटी के लिए निर्धारित की गई दरे राज्य तथा केंद्र सरकार अपने हिसाब से कम ज्यादा कर सकती हे ऐसे प्रावधान कानून में किये गए जिसका इस्तेमाल हमें कोरोना समय में देखने को मिला जहा स्टॅम्प ड्यूटी को कुछ समय के लिए कम किया गया।
  • जहा एक से ज्यादा दस्तावेज एक ही कार्य के लिए बनाए जाते हे वह एक स्टॅम्प के प्रावधान हमें कानून द्वारा किये गए है, जहा मुख्य दस्तावेज पर स्टॅम्प ड्यूटी कानून के अनुसार ली जाती हे और इससे सम्बंधित बाकि दस्तावेज के लिए एक रूपया स्टॅम्प ड्यूटी निर्धारित की जाती है ।
  • यह कानून इनकम टॅक्स अधिनियम की तरह एक वित्तीय कानून के रूप में जाना जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य सरकार को टॅक्स के रूप में उत्पन्न निर्धारित करना ।

इंडियन स्टॅम्प एक्ट और रजिस्ट्रेशन एक्ट / Indian Stamp Act 1899 & Registration Act 1908 –

अगर हमें इंडियन स्टॅम्प एक्ट को समझना हे तो हमें रजिस्ट्रेशन एक्ट को भी साथ साथ समझना होगा जिसमे मुख्य रूप से स्थाई संपत्ति के सबंध में रजिस्ट्रेशन किया जाता हे। स्टॅम्प एक्ट कानून के अंतर्गत दिए गए टॅक्स रेट तथा तत्सम सरकार दिए गए अधिकार के तहत स्टॅम्प ड्यूटी निर्धारित की जाती है जिसमे कम स्टॅम्प ड्यूटी भरने पर अधिक रकम दंड के माध्यम से भरनी पड़ती है।

क्यूंकि स्थाई संपत्ति की रकम बाकि व्यवहार से काफी ज्यादा होती हे और इसमें धोखादड़ी होने की संभावना तथा जोखिम काफी बढ़ जाती है इसलिए संसद द्वारा रजिस्ट्रेशन एक्ट के माध्यम से होने वाले दस्तावेजों को और सुरक्षित करने के लिए यह कानून लाया गया। जिससे कानूनी प्रक्रिया में इन दस्तावेजों की सबुत के तौर पर विश्वसनीयता बढ़ जाती है। रजिस्ट्रेशन कानून के वजह से यह दस्तावेज सरकार के पास कई सालो तक सुरक्षित रह सकते हे तथा उसे हम कभी भी निकाल सकते है।

रजिस्ट्रेशन दस्तावेज करने के लिए मुख्यतः तीन प्रकार से हम इसे देख सकते हे जिसे इस कानून के तहत प्रक्रिया बताई गई है।

  • पंजीकरण के लिए अनिर्वाय / Compulsory to Registration
  • स्वेच्छा से पंजीकरण / Not Compulsory to Registration
  • सामान्य पंजीकरण / Registration with nominal duty

कानून स्टॅम्प एक्ट और रजिस्ट्रेशन एक्ट तथा अस्थाई संपत्ति के लिए अन्य कानून के आधारपर स्टॅम्प पेपर्स के माध्यम से रजिस्ट्रेशन के माध्यम से यह कर प्रणाली चलाई जाती है जो मुख्य रूप से प्रमुख करो के साथ साथ सरकार की आर्थिक व्यवस्था को मजबूत करने का काम यह प्रणाली करती है। रजिस्ट्रेशन एक्ट यह कानून स्टॅम्प एक्ट के लिए काफी महत्वपूर्ण हे जो एक साथ स्थाई संपत्ति के लिए कर वसूल करने का काम करता है।

स्टॅम्प ड्यूटी किसे भरनी होती है / Whom Stamp Duty is Payable –

  • किसी भी स्थाई संपत्ति के लिए स्टॅम्प ड्यूटी भरना जरुरी होता है, जिसमे वसीयत , एक्सचेंज और गिफ्ट डीड भी शामिल है ।
  • शेयर बाजार में शेयर और बॉन्ड की होने वाली खरीद और विक्री पर जो फिसिकल फॉर्म में होती है , डिजीटल फॉर्म में होने वाले व्यवहार को इसमें नहीं रखा गया।
  • किसी व्यवहार में जहा कोई व्याज से कोई रकम दी गयी हे, स्टॅम्प ड्यूटी इसमें केवल मूल रकम पर ली जाती है।
  • जहा लीज एग्रीमेंट किसी स्थाई संपत्ति के लिए बनाया जाता है।
  • बिल ऑफ़ एक्सचेंज जिसे सामान्य भाषा में हुंडी भी कहा जाता हे इसमें स्टॅम्प ड्यूटी भरनी पड़ती है।
  • कोई भी व्यवहार का इंटरेस्ट सरकार के लिए हे वह स्टॅम्प ड्यूटी नहीं भरी जाती।

निष्कर्ष / Conclusion –

इस तरह से हमने देखा की इंडियन स्टॅम्प एक्ट भारत में पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी के समय रेगुलेशन के स्वरुप में पहली बार लाया गया जिसका उद्देश्य उस समय केवल रेवेन्यू जमा करना यही रहा है। इसके लिए मुख्य रूप से प्रोविंशियल राज्य के रूप में यह कर प्रणाली चलाई जाती थी। भारत की स्वतंत्रता के बाद इस कानून को कायम रखा गया।

स्टॅम्प एक्ट में हम देखते हे की साधारण रेवेन्यू स्टॅम्प से लेकर बड़े स्तर पर स्टॅम्प पेपर के माध्यम से सरकार के अधिकृत अधिकार से इसकी विक्री की जाती है जो स्थाई संपत्ति के लिए तथा अस्थाई संपत्ति के लिए इस्तेमाल किये जाते है तथा एफिडेविट जैसे दस्तावेज बनाने इसका इस्तेमाल किया जाता है।

कानूनी प्रक्रिया के इसकी सबूत के के लिए महत्वपूर्ण इस्तेमाल किया जाता हे इसलिए इसकी कीमत कानूनी रूप से होती है तथा आर्थिक व्यवहार में होने वाले धोके रोकने के लिए यह स्टॅम्प एक्ट कानून रखने का मूल उद्देश्य रहा है तथा सरकार के लिए मुख्य कर प्रणाली के सहयोग के लिए यह कर प्रणाली काफी प्रभावशाली साबित हुई हे जिसके अधिकार संविधान के अनुसूची सात के नुसार राज्य तथा केंद्र को विभाजित कर के दिए गए है।

 

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