प्रस्तावना / Introduction –

हमें अगर दुनिया को समझना हे तो उसे आर्थिक , राजनितिक और सामाजिक स्थर पर विश्लेषण करना होगा तभी हम समझ पाएगे, हमारा कोई भी आर्टिकल लिखने का मकसद केवल किसी परीक्षा को उत्तीर्ण होने के लिए ,किसी इनफार्मेशन को देखना नहीं है बल्कि उसे सभी दृष्टिकोण से समझना है।

इसलिए हम यह अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष के बारे में इन्ही दृष्टिकोण से आपको समझाने वाले हे, केवल रट्टा मार – तोता नॉलेज ग्रहण नहीं करेंगे। इसलिए हमारे सभी आर्टिकल इन्ही दृष्टिकोण से लिखे जाते हे, जिससे हमारी समझ किसी भी विषय को समझने की तार्किक रहे।

“अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष” के बारे जानने के लिए हम पहले उसकी पृष्टभूमि जानने की कोशिश करेंगे और तटस्थ भूमिका से इस संस्था का दुनिया के लिए कितना लाभ हुवा, अथवा इसके पीछे कुछ अलग ही उद्देश्य था यह समझने की कोशिश करेंगे। इस संस्था के स्थापना से लेकर आज तक क्या इस संस्था का उद्देश्य सफल हुवा अथवा नहीं यह समझेंगे।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष / International Monitory Fund –

अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष यह संस्था विश्व स्थर पर सदस्य देशो को उनकी आपत्ती में मुद्रा राशी की कम व्याज पर मदत करती है। इसकी स्थापना के समय इसका उद्देश्य दुनिया के विभिन्न देशो की अर्थव्यवस्था को सहायता करके सुधारना यह रखा गया था। जब किसी देश में आर्थिक संकट निर्माण होता हे तो कुछ शर्तो के साथ यह संस्था उस देश को आर्थिक सहायता देती है।

इस संस्था की आज की तारीख में सदस्य संख्या १८९ हे जिनको सदस्यता के लिए कुछ राशि संस्था में रखनी पड़ती हे, जिसके बदले उसको संस्था द्वारा किये जाने वाले निर्णय प्रक्रिया में अधिकार हासिल होता है। जिन सदस्यो की सदस्यता राशि ज्यादा होती हे उनका निर्णय प्रक्रिया में ज्यादा अधिकार होता है।

अमरीका की सदस्यता राशि सबसे ज्यादा है, याने १७ % सदस्यता राशि के साथ अमरीका “अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष ” में क्या पॉलिसी बनानी हे इसपर संस्था के स्थापना से वर्चस्व प्रस्थापित किये हुए है। निर्णय प्रक्रिया में ज्यादा अधिकार मिलने से इसका क्या लाभ मिलता हे यह हम आगे देखेंगे परन्तु अमरीका के बाद सबसे ज्यादा वोट का अधिकार जापान और उसके बाद चीन का है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का इतिहास / History of IMF –

अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना अमरीका के “न्यू हैम्पशायर” में जुलाई – १९४४ में ब्रिटेन वुड्स सम्मलेन में हुई थी,उस समय इसकी सदस्य्ता संख्या ४४ थी। वह दौर था द्वितीय विश्व युद्ध का जो १९३९ से लेकर १९४५ तक चला और इससे जितने भी देश इस विश्व युद्ध में सम्मिलित हुए थे, उनकी आर्थिक व्यवस्था पूरी चरमरा गई थी।

द्वितीय विश्व युद्ध से पहले ब्रिटेन दुनिया की आर्थिक महासत्ता रहा था, जो इस युद्ध के समाप्ती के बाद अमरीका ने इसकी बागडौर संभाली और दुनिया की एक नई आर्थिक महासत्ता बनके उभरी। विश्वयुद्ध के इसी समय अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना अमरीका के नेतृत्व में की गयी जिसका मकसद जो देश इस विश्वयुद्ध से बिखर गए हे उनको संभाला जाए।

विश्वयुद्ध से पहले यूरोपियन वसाहत वाद में माध्यम से पूरी अंतराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था चलती थी, जिसका रूपांतर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतराष्ट्रीय आर्थिक बाजार के रूप में अर्थव्यवस्था को बदला गया और जितने भी देश इन यूरोपियन वसाहत वाद के अधीन थेवह स्वतंत्र किये गए मगर व्यापार पर इसका परिणाम न हो इसके लिए कई सारे प्रावधान सयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किये गए जिसमे से एक अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष यह संस्था रही थी।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष उद्देश्य / Object of IMF –

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का उद्देश्य १९३० में जो मंदी पूरी दुनिया ने देखि, उसपर द्वितीय विश्व युद्ध के समय आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ गयी थी। जिसमे सबसे ज्यादा क्षति यूरोप के विकसित देशो की रही क्यूंकि विश्वयुद्ध का मुख्य केंद्र बिंदु यूरोप रहा है दुनिया के बाकि देश इन यूरोपियन देशो की कॉलनी रही थी।

जिसके कारन वह देश इस विश्व युद्ध में शामिल हुए जिसका उदहारण हे भारत जो ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा रहा था, जिसके कारन वह इस युद्ध का हिस्सा बना। ब्रिटेन वुड्स सम्मलेन में विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गयी, जिसमे IMF का मुख्य उद्देश्य रखा गया की जिन विकासशील अथवा गरीब देशो की अर्थव्यवस्था संकट में हे उनको आर्थिक सहायता करना।

इसके बदले में अंतराष्ट्रीय व्यापार की नीतिया इन देशो में लागु करना जिससे अंतराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा मिल सके। मूलतः यह अर्थव्यवस्था का पूंजीवादी आर्थिक मॉडल था। यह दौर था जहा कई सारे देशो में सत्ता में बदलाव हो रहे थे और आर्थिक ढांचा सँभालने की जरुरत थी उस समय इस संस्था की स्थापना की गयी।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्य / How IMF Works –

अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मूल उद्देश्य हे दुनिया के सभी देशो को अर्थशास्त्र तथा वित्तीय ज्ञान मुहैया कराए जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधर जाए और लोगो को जीवन स्तर बढ़ने में मदत हो। इसलिए हर देश के वित्त मंत्री तथा उस देश की सेंट्रल बैंक के अधिकारी इस संस्था से जुड़कर काम करते है।

जिन देशो की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हे उनको कम ब्याज पर आर्थिक सहायत्ता मुहैया करना यह इस संस्था की सबसे पहली प्राथमिकता रहती है। उस देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए वित्तीय तथा आर्थिक पॉलिसी का प्लान उस देश में आर्थिक सहायत्ता देते समय अमल करना और मुक्त बाजार के जरिये अंतराष्ट्रीय कंपनियों के लिए बाजार खुला करना।

यह संस्था सभी सदस्य देशो के आर्थिक तथा वित्तीय गतिविधियों पर नजर रखती हे तथा अगर कुछ खामिया दिखती हे वह बदलाव करने की कोशिश करती है।  इसके लिए सभी देशो में सदस्य प्रतिनिधि द्वारा यह व्यवस्था चलाई जाती है जिसका मुख्य आर्थिक फण्ड सभी देशो से दिया जाता हे और उसके अनुसार निर्णय प्रक्रिया में वोट का अधिकार होता है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बँक / World Bank & IMF –

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक की स्थापना एक समय पर की गयी थी, तथा दोनों के उद्देश्य अलग अलग रखे गए थे। जैसे भारत में १९९१ में आर्थिक संकट की स्थिति निर्माण हुई थी उस समय हमने इस संस्था से आर्थिक सहायता ली थी जिसके बदले में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हमारी अर्थव्यवस्था में कुछ आर्थिक सुधार के सुझाव दिए थे।

वर्ल्ड बैंक का दायरा और उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से काफी अलग हे जब कोई देश IMF से पैसे की मांग करता हे तो समझना कोई आर्थिक संकट निर्माण हुवा हे, वही अगर वही देश विश्व बैंक से कर्ज ले रहा हे तो उसके नियम बिलकुल अलग है।

विश्व बैंक से कर्ज सदस्य देशो को विकास के लिए प्रदान किये जाते हे इसमें आम तौर पर प्रोजेक्ट बेस कर्ज होते हे वही IMF द्वारा दिए जाने वाले कर्ज यह लम्बी अवधि के होते हे और पूरी अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखकर दिए जाते है। IMF द्वारा दिए जाने वाले कर्ज के बदले में जो नियम होते हे वह काफी सख्त होते हे जिसके लिए आर्थिक पॉलिसी दी जाती है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और सयुंक्त राष्ट्र संघ / IMF & United Nation –

सयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना होने से पहले अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गयी थी मगर द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद दुनिया में राजनितिक और सामाजिक बदलाव देखने को मिले। इसलिए प्रथम विश्वयुद्ध के बाद दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए लीग ऑफ़ नेशन की स्थापना ब्रिटेन के नेतृत्व में की गयी थी जो विफल हो गयी थी।

द्वितीय विश्व युद्ध में ख़त्म होने के बाद यूनाइटेड नेशन की याने सयुक्त राष्ट की स्थापना की गयी, जिसके अंतर्गत बाद में सभी अंतराष्ट्रीय संस्था को लिया गया जिसमे IMF भी शामिल था। विश्व बैंक और IMF की स्थापना करते समय विश्व युद्ध शुरू था और उसके परिणाम क्या होने वाले हे यह किसी को पता नहीं था इसलिए आर्थिक और वित्तीय नियंत्रण रखने के लिए इन दो संस्थाओ की स्थापना की गयी थी।

जैसे की सयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना अमरीका के नेतृत्व में हुई थी तथा अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष में ज्यादा शक्ति अमरीका का ही हे इसलिए बाद में इसका नियंत्रण सयुक्त राष्ट्र के अधीन किया गया। वैसे तो उसको स्वतंत्र दर्जा दिया गया हे मगर अप्रत्यक्ष रूप से सयुक्त राष्ट्र का प्रभाव IMF के निर्णय प्रक्रिया पर होता है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और भारत / IMF & India –

१९९० के दशक में दुनिया के राजनीती में काफी फेरबदल हुए और रशिया ने शीत युद्ध समाप्ती की घोषणा की जिससे काफी सारे देशो ने अपनी आर्थिक और वित्तीय पॉलिसी में बदलाव किये। जिसमे भारत यह दुनिया का सबसे बड़ा देश था जिसने सोशलिस्ट लोकतंत्र के मॉडल में बदलाव करके कॅपिटलिस्ट पॉलिसी का स्वीकार किया।

१९९० के दशक में भारत में अंतर्गत राजनीती में काफी अस्थिरता देखने को मिली जिसमे मंडल और कमंडल राजनीती अपने चरम पर थी जो सामाजिक और राजनितिक बदलाव चाहती थी। उसी दौर में नरसिम्हा राव सरकार ने आर्थिक समस्याओ के चलते IMF का दरवाजा खटखटाया और उनसे भारत का अंतराष्ट्रीय मुद्रा की समस्या को सुलझाने की कोशिश की थी।

IMF पर अमरीका का प्रभाव ज्यादा हे तथा उसमे निर्णय लेने के अधिकार सबसे ज्यादा हे जिसके कारन जो पॉलिसी बनाई जाती हे वह कॅपिटलिस्ट होती हे। जिसमे  खुली अर्थव्यवस्था और सरकार का अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण कम करना जिसके अंतर्गत १९९० से लेकर आज तक वह पॉलिसी के अंतर्गत सरकारी कंपनियों का निजी करन और विदेशी कंपनियों को प्रोस्ताहन दिया जाने लगा।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की विशेषताएं / Features of IMF –

  • अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना विश्व बैंक के साथ ब्रिटेन वुड्स सम्मलेन में की गयी।
  • १९३० की दुनिया की आर्थिक मंदी को सामने देखकर विकसशील तथा गरीब देशो की आर्थिक मदत करने के लिए की गयी।
  • जो देश आर्थिक और वित्तीय संकट में फस गए है उनको IMF एक्सपर्ट अधिकारियो के माध्यम से कर्ज के साथ नयी आर्थिक और वित्तीय पॉलिसी देती है।
  • विश्व बैंक भी कर्ज देती हे मगर यह देश के विकास के प्रोजेक्ट के लिए होता है।
  • IMF के कर्ज यह लंबी अवधि के कर्ज होते हे और काफी कड़ी शर्तो के साथ अमल में लाए जाते हे जो किसी देश की आर्थिक संकट के समय की जाती है।
  • जब IMF की स्थापना की गयी थी तब वह केवल ४४ देश थी जो आज १८९ सदस्य संख्या है।
  • IMF सदस्य देशो को कर्ज देता हे तथा जो देश यह कर्ज की मांग करता हे वह देश आर्थिक संकट में हे ऐसा समझा जाता हे।
  • IMF चलाने के लिए सदस्य देश कुछ राशि ( गोल्ड के रूप में ) सदस्यता के तौर पर संस्था में देता हे जिससे संस्था चलाई जाती है और जीतनी राशि देने का अधिकार देशो को होता हे उतना ही अधिकार निर्णय प्रक्रिया में होता है।
  • निर्णय प्रक्रिया में आने के लिए सभी देश इतना महत्त्व देते हे इसका कारन जो कर्ज देते समय पॉलिसी बनाई जाती हे उससे निर्यात में वह देश खुद का फायदा देखता है।
  • IMF के निर्णय प्रक्रिया में अमरीका का मताधिकार १३ % होने के कारन इस संस्था की पॉलिसी प्रक्रिया पर अमरीका का प्रभाव दिखता है।
  • IMF पॉलिसीज की महत्वपूर्ण विशेषता हे खुली अर्थव्यवस्था, सोशल खर्चे के कटौती और कम सरकारी हस्तक्षेप यह रहा है।

IMF का आलोचनात्मक विश्लेषण / Critical Analysis of IMF –

  • दुनिया में आर्थिक और वित्तीय संघर्ष देखने को मिलता हे यह मूलतः समाज के दो वर्गों का संघर्ष हे जिसमे समाजवाद और पूंजीवाद यह विचारधारा का संघर्ष है।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वसाहत वाद ख़त्म हुवा और नयी जागतिक व्यवस्था का निर्माण हुवा जिसका नियंत्रण पूंजीवाद चाहता था।
    शीत युद्ध यह अप्रत्यक्ष स्वरुप में दुनिया के दो आर्थिक लोकतंत्र के मॉडल का संघर्ष रहा है।
  • कॅपिटलिस्ट आर्थिक मॉडल से ऐसा कहा जाता हे की आर्थिक विषमता बढ़ी है।
  • IMF का यही उद्देश्य रहा हे की पूंजीवादी लोकतंत्र का मॉडल दुनिया रहे ।
  • IMF से कर्ज लेने की शर्ते काफी कठोर होती हे और उस देश के अंतर्गत मामलों में हस्तक्षेप करती है ऐसा माना जाता है।
  • सोशल वेलफेयर को बंद करके अर्थव्यवस्था को डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करना कितना सही हे यह हमें निर्धारित करना है।
  • कोई भी अति रिक्त पॉलिसीज समाज में दुष्परिणाम का कारन बनती हे इसलिए इस संस्था की पॉलिसीज पर चिंतन होना चाहिए ऐसा बुद्धिजीवी लोगो का मानना है।
  •  जो देश IMF से कर्ज की मांग करता हे उस देश से विदेशी निवेशक अपना पैसा निकालते है।
  • IMF पर अमरीका का असीमित नियंत्रण होने की वजह से आर्थिक बल से वह गरीब और विकासशील देशो की निसर्ग सम्पदा का फायदा उठाते हे ऐसे आरोप होते है।

निष्कर्ष / Conclusion –

इसतरह से हमने देखा की अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष कैसे कार्य करता हे और उनका उद्देश्य क्या है। १९४५ में इसकी शुरुवात होने से लेकर आजतक का उसका विश्लेषण करे तो इसका आर्थिक और वित्तीय फायदा अमरीका को सबसे ज्यादा हुवा है। अमरीका की अर्थव्यवस्था सबसे तेजी से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बढ़ी है।

द्वितीय विश्व युद्ध में जितने देशो ने सहभाग किया था वह आर्थिक संकट में कई दिनों तक रही जिसमे ब्रिटेन को अपनी महाशक्ति होने का पद छोड़ना पड़ा था। IMF पर सबसे ज्यादा नियंत्रण होने की वजह से रशिया और चीन अपनी आर्थिक और वित्तीय रणनीति अलग से गुप्त तरीक़े से अमल में लाती हे जिससे केवल छोटे छोटे देश अथवा भारत जैसे विकासशील देशो को इसके दुष्परिणाम झेलने पड़ते है।

IMF द्वारा कुछ फायदे गरीब देशो को मिलते हे मगर अंतर्गत भ्रष्टाचार तथा सामाजिक सुविधा का आभाव इसने यह पॉलिसीज को काफी बदनाम किया है। नैसर्गिक साधन संपदा सबसे ज्यादा संपत्ति पश्चिमी देश तथा अमरीका ने ज्यादा हासिल की हे और अब वही इसे बचाने की मोहिम चला रहे हे यह बड़ी ही विसंगति देखने को मिलती है।

2023आर्थिक मंदी संकट

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