प्रस्तावना / Introduction –

हर्षद मेहता घोटाला यह भारत की शेयर बाजार की इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला हे जिससे शेयर बाजार की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह खड़े हुए थे। सरकारी नियमो की खामियों की वजह से तथा शेयर बाजार की पारदर्शकता के आभाव की वजह से यह सब हुवा था। हमें आज भी शेयर बाजार में निवेश करते समय आधारहीन खबरों पर शेयर बाजार में निवेश नहीं करने चाहिए यह हमें सिखाता है। इसलिए शेयर बाजार को सही तरीके से समझने के लिए हमें यह हर्षद मेहता स्कैम समझना जरुरी है।

इस आर्टिकल के माध्यम से हम कौन थे हर्षद मेहता और कैसे उन्होंने शेयर बाजार में खामियों का फायदा उठाया और हजारो करोड़ रूपए कमाए यह जानने की कोशिश करेंगे। यह घोटाला दुनिया के सामने कैसे आया यह समझने की कोशिश करेंगे और सुचेता दलाल जो टाइम्स ऑफ़ इंडिया की बिज़नेस रिपोर्टर थी इनको कैसे इस शेयर बाजार के घोटाले की खबर पहुंचाई गई और इसके कारन ढूंढने की कोशिश करेंगे। अगर अंदुरनी लोगो द्वारा यह घोटाला बाहर नहीं लाया जाता तो क्या दुनिया को यह कभी पता नहीं चलता ?

हर्षद मेहता के परिवार का आगे क्या हुवा और उनपर लगाए गए केसेस का क्या हुवा इसका अध्ययन करने की कोशिश करेंगे तथा तथ्योंके आधारपर इस घोटाले के प्रमुख सूत्रधार क्या सही में हर्षद मेहता थे या वह केवल एक मोहरा थे ? यह हमें समझना है। राजनितिक दृष्टिकोण से देखने की कोशिश करेंगे की क्या वह राजनितिक लोगो का सहभाग इस घोटाले में नहीं करते तो क्या वह बच सकते थे ? जैसे विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे दिवालिया बिजनेसमैन को कानून का फायदा मिला तथा राजनितिक सम्बन्धो का इस्तेमाल कर सकते थे ? ऐसे कई सवाल ढूंढ़ने की कोशिश करेंगे ।

हर्षद मेहता घोटाला / Harshad Mehta Scam –

हर्षद मेहता के पिता एक कपडे के व्यापारी थे और उनका बचपन मुंबई के बोरीवली इलाके में गुजरा था। १९७६ में उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया और कई नोकरिया करने के बाद न्यू इंडिया अशुरन्स कंपनी के लिए सेल्स पर्सन के तौर पर नौकरी करते समय उनको के बारे में रूचि निर्माण हुई।BSE शेयर बाजार में एक ब्रोकर के लिए काम करना शुरू किया जिसका नाम था हरीजीवनदास नेमिदास सिक्योरिटीज और धीरे धीरे शेयर बाजार की बारीकियां सीखने लगे।

शेयर बाजार के हुनर के लिए वह प्रसन्न प्राणजीवनदास जो एक ब्रोकर थे उनको गुरु मानते थे। १९८० में अपने शेयर बाजार के करियर को शुरुवात करने के बाद केवल दस साल में उन्होंने शेयर बाजार में ऐसी उचाईया हासिल की जिससे प्रभावित होकर मीडिया का कवरेज उन्हें मिलने लगा और बिग बुल , शेयर बाजार का अमिताभ बच्चन जैसे उपाधियों से उनको मीडिया द्वारा नवाजा गया और वह बाकि शेयर ब्रोकर से इतने आगे दौड़ रहे थे जिससे इसी क्षेत्र में उनके दुश्मन निर्माण होना शुरू हुवा जो उनकी इस दौड़ से जलने लगे थे।

यही जलन बाद में उनके पतन का कारन बनाने वाली थी यह उनको पता नहीं था इसलिए वह अपनी व्यक्तिगत जीवन इतनी ऐशोआराम से जीने लगे की सभी की नज़रे उनपर टिकने लगी। ऐसा नहीं की रिज़र्व बैंक को शेयर बाजार में जो तेजी हो रही हे वह पैसा कहा से आ रहा हे इसकी भनक नहीं थी। मगर यह घोटाला इतना बड़ा होगा इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी और सर्व साधारण तौर पर सरकारी बैंको के पैसे का इस्तेमाल कई ब्रोकर शेयर बाजार में करते थे।

हर्षद मेहता घोटाला और सुचेता दलाल / Sucheta Dalal & Harshad Mehta Scam –

सुचेता दलाल यह टाइम्स ऑफ़ इंडिया की बिज़नेस रिपोर्टर के तौर पर काम करती थी और १९९२ में पहली बार उन्हें SBI के कुछ अधिकारियो द्वारा बैंक में कुछ गलत हो रहा हे इस बारे में खबर दी गयी थी। रिज़र्व बैंक के कुछ अधिकारियो द्वारा भी SBI बैंक के ५०० करोड़ की राशि कम हे ऐसी खबर बाहर लीक की गयी थी। हर्षद मेहता ने पिछले दस साल में काफी तेजी से अपनी यह सफलता हासिल की थी और मार्किट पर उनका पूरा दबदबा देखने को मिलता था इसलिए उनके कई सहकारी दुश्मन बन गए थे।

२३ अप्रैल १९९२ को पहली बार यह खबर दुनिया के सामने आयी और इस खबर ने पुरे शेयर बाजार को पूरी तरह से हिला दिया था। हर्षद मेहता ने रेडी फॉरवर्ड डील के माध्यम से सरकारी नियमो की खामियों का फायदा उठाते हुए बैंको के पैसे शेयर बाजार में इस्तेमाल करना शुरू किया और पैसे कमाने का लालच दिखते हुए सभी को इसमें शामिल किया था। जब सुचेता दलाल ने अपने सोर्सेज से उनके बारे में यह खबरे पहली बार सुनी थी तब उनके पास कुछ ठोस सबुत नहीं थे।

इसलिए उन्होंने सबुत जुटाना शुरू किया क्यूंकि बिना साबुत के इतने बड़े व्यक्ति के बारे में खबरे लिखना मतलब मानहानि के केसेस का सामना करना पद सकता था और वह भी काफी बड़ी रकम का यह दावा हो सकता था। इसलिए उन्होंने इन खबरों की जांच करना शुरू किया की कैसे यह घोटाला किया गया है। ऐसा नहीं हे की पूरी मार्किट में के पैसे गलत तरीके से हर्षद मेहता ही केवल इस्तेमाल कर रहे थे। मगर वह इसमें सबसे ज्यादा पैसे लगा रहे थे और मार्किट को पूरी तरह से अपने हिसाब से ऊपर लेकर जा रहे थे जो गैरकानूनी था।

इसलिए पहली बार जब सुचेता दलाल ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया में यह खबर चलाई तो इसकी सज्ञान शेयर बाजार को भी लेना पड़ा और सरकार ,रिज़र्व बैंक तथा वित्त मंत्रालय जैसे कई सरकारी संस्थानों को उन्होंने काम पर लगाया था। इसमें काफी बड़े बड़े नाम शामिल देखने को मिले मगर सजा कितनो को मिली यह संशोधन का विषय है।

१९९२ से पहले शेयर बाजार / Share Market Before 1992 –

१९९१ यह साल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण वर्ष माना जाता जहा आर्थिक रिफॉर्म्स किए गए और भारत में निजीकरण की पॉलिसी लागु करने किया गया था। इससे पहले भारतीय शेयर बाजार डिजिटल नहीं था इसलिए किसी भी व्यवहार को पूरा करने के लिए १५ दिन रुकना पड़ता था। व्यवहार के लिए पूरी तरह से ब्रॉकर हाउस पर निर्भर रहना पड़ता था जिसमे कई बार धोखे होने के पूरी संभावना होती थी।भारत में शेयर बाजार में निवेश करने के लिए काफी कम लोगो को जानकारी थी इसलिए निवेश काफी काम होता था अथवा समाज के एक विशेष वर्ग से यह निवेश होता था।

सेबी का अस्तित्ब १९९२ से पहले था मगर इसको ज्यादा अधिकार नहीं थे और पूरी मार्किट पर शेयर ब्रोकर का नियंत्रण मिलता था और सरकारी प्रतिनिधि केवल नाममात्र सदस्य के तौर पर देखने को मिलते थे। सरकारी बैंको की ज्यादा तर रकम रिज़र्व बैंको में एसएलआर और CLR के माध्यम से सुरक्षा के तौर पर जमा होती थी और यहसरकारी बैंक घाटे में चल रहे थे और कम समय में यह घाटा रिकवर करना चाहते थे इसलिए शेयर ब्रोकर के माध्यम से उन्होंने गवर्नमेंट सिक्योरिटीज के माध्यम से पैसा इस्तेमाल करना शुरू किया जो सरकारी नियमो की सबसे बड़ी खामी रही थी।

आज की तरह विदेशी निवेश काफी कम होता था और विदेशी कंपनियों को भारत में रजिस्टर्ड करने के लिए कड़े कानून का सामना करना पड़ता था इसलिए उनका प्रमाण भी काफी कम था। विदेशी बैंको को भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने के लिए कुछ छूट दी गयी थी जिसका फायदा उन्होंने इस घोटाले के माध्यम से उठाने की कोशिश की जिससे भारतीय शेयर बाजार को काफी नुकसान हुवा मगर भारत सरकारी राजनितिक मजबूरियों के कारन इन विदेशी कंपनियों पर कुछ नहीं कर सकी और केवल अंतर्गत जांच के माध्यम से कुछ अधिकार्यो को बैंक से निकाला गया।

BSE यह पूरी तरह से भारतीय शेयर बाजार पर नियंत्रण रखता था और सरकारी हस्तक्षेप काफी काम देखने को मिलता था जिससे शेयर बाजार में काफी गतिविधिया मनमानी तरीके से देखने को मिलती थी।

१९९२ के बाद शेयर बाजार / Share Market After 1992 –

१९९२ के बाद आर्थिक रिफॉर्म्स के चलते शेयर बाजार में कई बदलाव देखने को मिले जिसमे नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना की गयी और डिजिटल व्यवस्था शेयर मार्किट में लायी गयी। पारदर्शकता के लिए सेबी की स्थापना संसद में कानून बनाकर रेगुलेटर के तौर पर की गयी और इसको काफी अधिकार दिए गए। ऐसा नहीं हे की केवल हर्षद मेहता घोटाला शेयर बाजार में देखने को मिला बल्कि केतन पारेख जैसे कई घोटाले बाद में एक के बाद एक देखने को मिले जिससे शेयर बाजार की विश्वसनीयता को पुनर्स्थापित करना काफी मुश्किल काम बन गया था।

डिजिटल शेयर बाजार की व्यवस्था को करने के बाद कोई भी व्यवहार पूरा होने पहले १५ दिन का समय लगता था वह केवल तीन दिन का बनाया गया जिससे निवेशक की सुरक्षितता को प्राथमिकता देने की कोशिश की गयी। विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए कानून में काफी सारे बदलाव देखने को मिले है जिसमे वित्तीय संस्था को कुछ हद तक भारतीय शेयर बाजार में निवेश के नियम बनाए गए। हर्षद मेहता घोटाले की वजह कानूनों में जीतनी खामिया थी उसको कम करने के लिए कई सारे बदलाव देखने को मिले।

वेबसाइट के माध्यम से आज हम शेयर बाजार के सभी ब्रोकर हाउस की जानकारी प्राप्त कर सकते है तथा डीमैट अकाउंट के माध्यम से शेयर बाजार की गतिविधिया खुद से कर सकते हे जिससे होने वाली पैसे की हेर फेर पर अंकुश लगना शुरू हुवा है। २०२२ में शेयर बाजार अपने सेंसेक्स ५४००० तक पंहुचा हे और NSE १६००० तक जिससे शेयर बाजार की १९९२ में हुए घोटाले के कारन जो हानि हुई थी उसको भरने में भारत सरकार को सफलता मिली है।

संयुक्त संसद समिति की रिपोर्ट/Joint Parliament Committee Report –

जानकिरमन समिति की रिपोर्ट् से लोग संतुष्ट नहीं थे और ज्यादा जाँच के लिए सरकार पर संसद में दबाव बढ़ने लगा जिसके कारन इस समिति की स्थापना की गयी जिसमे सरकारी बैंको के अधिकारियो से लेकर रिज़र्व बैंको के महत्वपूर्ण अधिकारियो को इसमें दोषी पाया गया था। जानकिरमन समिति के अध्यक्ष को इस संसदीय समिति द्वारा दोषी पाया गया जो रिज़र्व बैंक के महत्वपूर्ण अधिकारी थे। मगर आज तक के भारतीय इतिहास में कई सारी संसदीय समिति बनाई गयी मगर ऐसा कम हे की किसी को सजा मिली है ऐसे आरोप किए जाते है।

जानकिरमन समिति के माध्यम से सरकारी बैंको और सरकारी कंपनियों के ४००० करोड़ रुपए हर्षद मेहता द्वारा इस्तेमाल किए गए और वह कंपनी को अब नहीं मिलेंगे यह अकड़ा दिया था। जॉइंट पार्लियामेंट कमिटी को अपनी रिपोर्ट सादर करने १७ महीने का समय लगा जिसके कारन आर्थिक रिफॉर्म्स के जो बदलाव भारत सरकार को करने थे वह इस जाँच के पुरे होने तक रोककर रखे गए थे। जितनी भी जांच की गयी उसमे हर्षद मेहता पर सीबीआई द्वारा जीतनी भी केसेस चलाए गए अथवा स्पेशल कोर्ट के माध्यम से हर्षद मेहता के ३४ केसेस को चलाया गया।

हर्षद मेहता पर ७२ क्रिमिनल केसेस और ६०० से ज्यादा सिविल केसेस चलाए गए थे मगर संसदीय समिति के जाँच को इसमें कितना महत्त्व दिया गया यह संशोधन का विषय है। संयुक्त संसदीय समिति की स्थापना अगस्त १९९२ को की गयी थी जिसके अध्यक्ष राम निवास मिर्धा को बनाया गया था जो कॉग्रेस के वरिष्ठ पूर्व मंत्री रह चुके थे उनपर सौपी गयी। इस समिति द्वारा जितने भी सुझाव दिए गए उनको कभी भी लागु नहीं किया गया तथा इस जाँच में कई बड़े अधिकारी शामिल थे मगर हर्षद मेहता को बलि का बकरा बनाया गया ऐसा कहा जाता है।

जानकीरामन समिति की रिपोर्ट / Janakiraman Committee Report –

जब पहली बार सुचेता दलाल के माध्यम से टाइम्स ऑफ़ इंडिया में हर्षद मेहता के बारे में खबरे चलाई गयी जिससे सरकार तुरंत हरकत पड़ा और रिज़र्व बैंक के माध्यम से जानकिरमन समिति की स्थापना इस घोटाले की जाँच के लिए घटित की गयी। इस समिति के माध्यम से सरकारी बैंको तथा सरकारी कंपनियों का इस घोटाले से कितना नुकसान हुवा हे इसकी जाँच का दायरा इस समिति को था जिसके अनुसार उन्होंने जो अकड़ा निकला था वह लगबघ ४००० करोड़ रूपए था।

ऐसा कहा जाता हे की इसमें शेयर बाजार में जिन लोगो का नुकसान हुवा तथा सरकारी बैंको का वास्तविकता में कितना नुकसान हुवा यह अकड़ा इस समिति द्वारा नहीं दिखाया गया है। संसदीय समिति ने खुद जानकिरमन जो रिज़र्व बैंक के प्रमुख अधिकारी हे जिसके अधिकार अंतर्गत यह मामला क्यों नजर में नहीं आया ऐसे आरोप लगाए गए जिससे रिज़र्व बैंक के अधिकारी भी इस घोटाले में कुछ हद तक सहभागी हे ऐसा मानना था।

यह घोटाला लगबघ १५००० करोड़ रूपए का माना जाता हे जिसमे बाकि नुकसान को नजरअंदाज किया गया ऐसा दिखता है। हर्षद मेहता ने कई ऐसे नियमो का फायदा उठाया जिसमे कमिया थी। बैंक रिसिप्ट का इस्तेमाल करते समय दी जाने वाली रकम सीधे हर्षद मेहता के अकाउंट में जमा की जाती थी यह सरकारी नियमो का सबसे बड़ी खामी देखि गयी जिससे उसको पैसे इतेमाल करने का मौका मिला। गवर्नमेंट सिक्योरिटीज का रिकॉर्ड रिज़र्व बैंक द्वारा ठीक से जाँच फायदा रेडी फॉरवर्ड डील के माध्यम से हर्षद मेहता ने उठाया।

हर्षद मेहता घोटाला और राजनीती/Politics in Harshad Mehta Scam –

हर्षद मेहता ने अपने आरोप को प्रोटेक्ट करने के लिए उस समय के नामी वकील राम जेठमलानी को यह केस सौपा जो राजनीती को आमंत्रण देता हे जिससे जो भी सलाह राम जेठमलानी देते गए वह हर्षद मेहता करते गए। प्रेस को सम्बोदित करते हुए हर्षद मेहता ने सीधे प्रधानमंत्री को घुस लेने के आरोप किए जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। राम जेठमलानी खुद एक विपक्ष के बड़े नेता थे जिससे इस केस में राजनीती ने काफी प्रभाव डाला जिसमे वह एक छोटे व्यक्ति थे जो इस राजनीती को नहीं समझ सके।

हर्षद जरूर गुनाह के हक़दार थे परन्तु इस गुनाह में उनका साथ देने वाले सभी लोगो को शिक्षा होनी चाहिए थी मगर ऐसा नहीं हुवा और केवल निलंबन करना , छुट्टी पर भेजना जैसे मामूली अनुशासन से उनको सजा दी गयी। हर्षद मेहता की कंपनी के आलावा और दो ब्रोकर हाउस इसमें शामिल थे जिसमे पि चिताम्बरम की कंपनी छोटे स्तर पर ही सही मगर शामिल थी जिससे इस केस में राजनितिक दबाव देखने को मिलता है।

इसमें सरकारी बैंको का तथा सरकारी कंपनियों का पैसा लगाया गया जो जनता की टैक्स से इन संस्थाओ को दिया गया था। एक प्रकार से यह जनता के पैसे की लूट मानी जाती हे जिसमें सरकारी अधिकारियो से लेकर मंत्रियो तक इंवोल्मेंट देखा गया। प्रधानमंत्री पर घुस लेने के आरोप ने तथा राजनितिक पार्टी से सम्बंधित वकील करने की कीमत हर्षद मेहता को चुकानी पड़ी। नहीं तो नीरव मोदी , विजय माल्या जैसे वह भी कानून का दुरूपयोग और नेटवर्क का इस्तेमाल करके विदेश जा सकते थे , ऐसा ही कह सकते है ।

हर्षद मेहता घोटाले की विशेषताए / Features Harshad Mehta Scam –

  • हर्षद मेहता घोटाले का प्रमुख कारन रहा बैंकिंग रेगुलेटरी कानून की कमिया जिसका फायदा उनके द्वारा लिया गया और बैंक रिसीप्ट का फायदा लिया गया।
  • सिक्योरिटी जनरल लेजर यह रिज़र्व बैंक द्वारा गवर्नमेंट सिक्योरिटीज के व्यवहारों का रिकॉर्ड रखा जाता हे जिसको मैन्युअली रखा जाता था जो एक बैंक खरीदने वाली और दूसरी बेचने वाली यह होता था मगर इस व्यवहार में एजेंट हर्षद मेहता के अकाउंट में पैसे भेजे जाते थे।
  • ऐसे ही कई बैंको की रकम का इस्तेमाल हर्षद मेहता मार्किट को ऊपर उठाने के लिए करता रहता था , जिससे १९९१ से १९९२ तक शेयर बाजार चार गुना बढ़ा था।
  • जानकिरमन समिति की रिपोर्ट के अनुसार यह घोटाला ४००० करोड़ रूपए का था मगर वास्तविकता में यह केवल बैंक और वित्तीय संस्थाओ का अकड़ा था।
  • शेयर बाजार में १८८५ से ऐसे व्यवहार लगबघ बहुत सारे ब्रोकरेज हाउस कर रहे थे और हर्षद मेहता इसमें सबसे ज्यादा फायदा उठा रहे थे इसलिए वह दुनिया के नजर में सबसे पहले आए।
  • रिज़र्व बैंक द्वारा १९८६ में आंध्र बैंक और बैंक में व्यवहारों में बैंक रिसिप्ट के गैरकानूनी व्यवहार देखे थे मगर ज्यादा कठोर कदम लिए जाने चाहिए थे।
  • शेयर बाजार के इस घोटाले में हर्षद मेहता यह केवल एक हिस्सा था मगर इसका पूरा सिंडिकेट कार्यरत होने के बावजूद बाकि लोगो पर ज्यादा कठोर कार्यवाही नहीं हुई, जिसमे सरकारी बैंको के अधिकारियो, वित्त मंत्रालय के अधिकारी तथा रिज़र्व बैंक के अधिकारी द्वारा अपने कर्तव्य में लापरवाही की गयी थी।
  • इस घोटाले के बाद शेयर बाजार में कई रिफॉर्म्स किए गए जिसमे सेबी को रेगुलेटरी के तौर पर स्थापित किया गया और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना की गयी।
  • डिजिटल शेयर ट्रेडिंग के माध्यम से शेयर बाजार को कंप्यूटराइज्ड किया गया जिससे बाजार पर लोगो का विश्वास निर्माण हो सके।
  • अप्रैल १९९१ को शेयर बाजार १२५० अंक था जो मई १९९२ आते आते ४४६७ हुवा था जो फंडामेंटल पर नहीं बल्कि खबरों पर बढ़ा था।
  • हर्षद मेहता ने यह घोटाला करने के लिए “रिप्लेसमेंट कॉस्ट थेओरी ” का इस्तेमाल किया जिसमे कंपनी की पूरी संपत्ति की आज की कीमत के अनुसार कंपनी के शेयर की कीमत होनी चाहिए।
  • इस घोटाले में तीन प्रमुख शेयर ब्रोकिंग कंपनी को दोषी माना गया जिसमे हर्षद मेहता की कंपनी , दलाल ग्रुप और फेयर ग्रोथ फाइनेंस सर्विसेज कंपनी जो पि चिताम्बरम की कंपनी थी।

निष्कर्ष /Conclusion –

हर्षद मेहता यह इस घोटाले के केवल एक पार्ट थे मगर इसके लिए सरकारी व्यवस्था के काफी लोगो का सहभाग संसदीय समिति रिपोर्ट में देखा गया मगर कार्यवाही बहुत कम लोगो पर की गयी। शेयर बाजार की विश्वसनीयता पर कई सवाल खड़े हुए जिससे इसकी छवि पूरी दुनियाभर में ख़राब हुई और इसमें पी चितम्बरम की ब्रोकर कंपनी के सहभाग के कारन उनको वाणिज्य मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा कर वित्तीय मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा इस्तीफा दिया गया मगर सरकार न वह स्वीकार नहीं किया।

इस घोटाले में सरकारी बैंको का काफी नुकसान हुवा मगर निजी विदेशी बैंको ने इसमें काफी मुनाफा हासिल किया। वास्तविक तौर पर यह घोटाला १५००० करोड़ के आसपास होना चाहिए था जो केवल जानकिरमन रिपोर्ट के आकड़ो को मीडिया द्वारा प्रसिद्द किया गया। यह वही दौर था जब भारतीय अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही थी इसलिए उनको रिफॉर्म्स लाने पड़े और निजीकरण की पॉलिसी का स्वीकार किया गया।

सरकारी कानून कमजोर होने की वजह से और पारदर्शकता का आभाव होने की वजह से शेयर बाजार में यह घोटाला किया गया। १९९२ शेयर ब्रोकर संघटन का पूरी तरह से नियंत्रण था और सरकारी अधिकारी यह केवल नाममात्र रहे थे जिसका फायदा शेयर ब्रोकर हाउसेस लिया गया। भारत में शेयर बाजार में निवेश करने का प्रमाण इस दौर तक काफी कम था इसलिए सवाल खड़ा होता हे की इन सब गतिविधि में फायदा किसको हुवा और नुकसान किसको हुवा ? सरकारी बैंको का पैसा डूबा याने सरकारी टैक्स के पैसो पर चलने वाली बैंको का नुकसान हुवा मतलब जनता का नुकसान हुवा यह बहुत दुःख की बात है।

 

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